शामत
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राजीव गुप्ता 9 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। सरकार उन्हें राज्य मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन बनाने जा रही है। 9 के बाद कभी भी इसका आदेश निकल जाएगा। राज्य बनने के बाद मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन बनने वाले वे पहले जस्टिस होंगे। बहुत पहले, एलजे सिंह एक्टिंग चेयरमैन रहे, पर वे भी डीजे रैंक के थे। उनके रिटायर होने के बाद आयोग का कोई माई-बाप नहीं रहा। जबकि, सुप्रीम कोर्ट का आदेश है, मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस होगा या फिर सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस। बहरहाल, जस्टिस गुप्ता के लिए राजधानी में आवास की तलाश शुरू हो गई है। पिछले हफ्ते अफसरों ने उन्हें जेल रोड स्थित वन विभाग का गेस्ट हाउस दिखाया। इसके बाद उन्होंने वन विभाग का माना गेस्ट हाउस भी देखा। हालांकि, जस्टिस गुप्ता के मानवाधिकार आयोग में आने के बाद राज्य के पुलिस अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ सकती है। आयोग का अधिकांश वास्ता पुलिस से रहता है। और अभी तक तो वे मानवाधिकार आयोग की चिठ्ठियों का रिप्लाई देने की भी जरूरत नहीं समझते थे। ऐसे में, उनकी दिक्कत समझी जा सकती है।
दूसरे ननकीराम
वन मंत्री विक्रम उसेंडी राज्य के दूसरे ननकीराम कंवर हो गए हैं, जिनकी अपने ही महकमे में कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पता चला है, वन मुख्यालय-अरण्य तो उन्हें एकदम भाव नहीं दे रहा। आईएफएस अफसर मोरगन को प्रशासन और एके द्विवेदी को वाइल्ड लाइफ से हटाने के लिए उसेंडी दसियों नोटशीट भेज चुके होंगे। पर अफसर उसे कूड़ेदान में डाल दे रहे हैं। उसेंडी की स्थिति मार्च के बाद ज्यादा खराब हुई है, जब अरण्य और मंत्रालय के नौकरशाहों के बीच के डोर मजबूत हुए। कमोवेश, ऐसी ही हालत गृह मंत्री ननकीराम कंवर की भी है। फर्क इतना ही है, ननकीराम फट पड़ते हैं और उसेंडी में उतना डेसिंग नहीं है।
सेफ गेम
रामनिवास को स्पेशल डीजी बनाने की परमिशन भले ही भारत सरकार से मिल गई थी और कैबिनेट ने भी उसे एप्रूव्हल दे दिया था, इसके बाद भी उनकी ताजपोशी इतने आसानी से नहीं हुई। 22 सितंबर को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद भी 28 तक नोटशीट चीफ सिकरेट्री आफिस में पड़ी रही। फाइल ऐसे समय में मूव हुई, जब गृह मंत्री ननकीराम कंवर रायपुर में नहीं थे। 28 को पीएस होम एनके असवाल ने लिखा, गृह मंत्री राजधानी से बाहर हैं, सो, उनके अनुमोदन की प्रत्याशा में आदेश जारी किया जाए। इसके बाद तो नोटशीट में, मानों पंख लग गए। हफ्ते भर सीएस आफिस में पड़ी रही नोटशीट 29 को उड़ने लगी। इस दिन नोटशीट दो बार सीएम और दो बार सीएस के पास गई और लौट भी आई। 3 सितंबर को रामनिवास का आदेश हुआ और 2 को गृह मंत्री रायपुर में थे। सो, उनके रायपुर से बाहर रहने की बात हजम नहीं हो रही। विभाग चाहता तो 2 को दस्तखत करा सकता था। मगर आशंका थी, गृह मंत्री कहीं, नोटशीट पर ऐसे कोई कमेंट न लिख दें, जिससे बात का बतंगड़ हो जाए।
बैजेंद्र सर
एन. बैजेंद्र कुमार सीएम के प्रींसिपल सिकरेट्री के साथ आवास पर्यावरण, जनसंपर्क और न्यू रायपुर तो देखहीरहे हैं इसके साथ, अपरोक्ष तौर पर आजकल एक नए रोल में भी हैं। किरदार है, राज्य के युवा आईएएसकोप्रशासन के गुर समझाने का। बैजेंद्र के सुझाव पर ही अब कलेक्टर बनने से पहले या एकाध जिला करचुकेअफसरों को राजधानी में पोस्ट किया जा रहा है। ताकि, वे सिस्टम को नजदीक से देखसकें.....उसकीपेचीदगियों से वाकिफ हो सकें......विधानसभा की अहमियत को जान सकें। अमित कटारियाबैजेंद्र के पहलेस्टूडेंट थे। आरडीए में सीईओ रहने के बाद वे अब रायगढ़ कलेक्टर हैं। इसके बाद एलेक्स पालमेनन, एसप्रकाश और हिमांशु गुप्ता को राजधानी बुलाया गया है। बैजेंद्र का मानना है, सिस्टम को समझ लेनेऔरराजधानी में तप जाने के बाद, आईएएस बढि़यां ढंग से जिले में काम कर सकेंगे। ठीक है, बैजेंद्र सर।
पहला पीएचक्यू
छत्तीसगढ़ का पुलिस मुख्यालय, देश का पहला पुलिस मुख्यालय होगा, जहां आज की तारीख में एक भीएडिशनल डीजी नहीं है। इकलौते एडीजी रामनिवास थे, वे अब पदोन्नत होकर स्पेशल डीजी बन चुके हैं। बाकीजितने भी हैं, सबके सब पीएचक्यू सें बाहर हैं। या एक तरह से कहें तो किनारे कर दिए गए हैं। गिरधारी नायकसे लेकर डब्लूएम अंसारी, एएन उपध्याय, डीएम अवस्थी और राजीव श्रीवास्तव तक। हालांकि, पहले ऐसा नहींथा। कभी एक ही समय में संतकुमार पासवान, राजीव माथुर, अनिल नवानी और अशोक श्रीवास्तव पीएचक्यूमें एडीजी रहे। आमतौर पर पीएचक्यू में एडीजी ही विभाग के हेड होते हैं और आईजी उनके सपोर्ट के लिए होतेहैं। मगर विश्वरंजन के डीजीपी बनने के बाद आईजी बेस पीएचक्यू की जो परंपरा डली, वो आज भी जारी है।असल में, एडीजी सीनियर आईपीएस होते हैं, इस वजह से उन पर हद से अधिक बासिज्म नहीं झाड़ा जासकता। इसलिए, पीएचक्यू के अधिकांश सेक्शन की कमान आईजी के हाथ में सौंप दी गई। हालांकि, काका नेजब पीएचक्यू संभाला था, तो वे गिरधारी नायक को वापस लाए थे, मगर कुछ ही दिन में नायक को पीएचक्यूसे बाहर ट्रेनिंग में भेज दिया गया।
आडियंस फ्री
राजधानी के संस्कृति संचालनालय के सभागार में साहित्यिक और पुस्तक विमोचन जैसे कार्यक्रम इसलिए ज्यादा होते हैं कि वहां हाल के साथ, आडियंस फ्री सुविधा है। छोटे से हाल की क्षमता मुश्किल से सवा सौ होगी। इनमें 60 से 70 रेडिमेड आडियंस होते हैं, जो वहीं के स्टाफ होते हैं। इसके लिए डायरेक्टरेट के अफसरों से बात भर करनी होती है। बस, कर्मचारियों और अधिकारियों को कार्यक्रम में बैठने का फारमान जारी हो जाता है। अलबत्ता, रसूख कुछ ज्यादा है, तो चाय-नाश्ता का प्रबंध भी वहीं से समझिए। मगर 29 सितंबर को संस्कृति संचालनालय का स्टाफ थैंक्स गाड्स बोल रहा था। उस दिन पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त डा0 सुशील त्रिवेदी के किताब का विमोचन था और लोग इतने जुट गए कि चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार और डीजीपी अनिल नवानी के लिए आगे में अलग से कुर्सियां लगानी पड़ गई। अरसे बाद डायरेक्टरेट के कर्मियों ने ऐसा दिन देखा, उनके सभागार में कोई कार्यक्रम हुआ और उन्हें बैठना नहीं पड़ा।
अंत में दो सवाल आपसे
1. वीआईपी रोड पर स्थित एक होटल में किस अ-सरदार पुलिस अधिकारी का पैसा लगा है?
2. 83 बैच के सीनियर आईएफएस अफसर आरके सिंह को प्रशासन अकादमी का आयुक्त बनाना था न कि संचालक। यह सामान्य प्रशासन विभाग की लापरवाही है या आईएफएस को नीचा दिखाने के लिए ऐसा किया गया?
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