शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

तरकश, 10 फरवर

दूसरा शैलेष

तमिलनाडू कैडर से डेपुटेशन पर यहां आए संतोष मिश्रा को छत्तीसगढ़ का दूसरा शैलेष पाठक कहा जा रहा है। शैलेष पाठक बोले तो मैनुपुलेशन में माहिर। जोगी सरकार में उनका जलजला था। किसके वे खास नहीं थे। संतोष मिश्रा भी कुछ इसी तरह फास्ट बैटिंग कर रहे हैं। टूरिज्म बोर्ड के एमडी, तो वे हैं ही, तीन-चार एडिशनल विभाग भी हं उनके पास। छह महीने के भीतर ही, उन्होंने सीएम का विश्वास हासिल किया है, तो सीएस के भी नजदीक हैं। पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को भी उनसे दिक्कत नहीं है। आलम यह है, ब्यूरोक्रेसी में लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि मिश्रा की बैटिंग की यही रफ्तार रही, तो सत्ता के ताकतवर अफसर बैजंेंद्र कुमार और अमन सिंह को भी कहीं पीछे न छोड़ दें। सत्ता में बढ़ती हैसियत की एक झलक सिरपुर महोत्सव में सबने देखी। सीएम और राज्यपाल के प्रोग्राम में टूरिज्म का प्रींसिपल सिकरेट्री केडीपी राव दर्शक दीर्घा मं बैठे थे और उनका एमडी संतोष मिश्रा सीएम और गवर्नर के बगल में मंच पर। लोग आवाक थे, सरकार के सामने सार्वजनिक तौर पर डेकोरम का उल्लंघन। बैजेंद्र और अमन, इस तरह कभी अपने को एक्सपोज नहीं करते। इसीलिए, यह मानने वालों की भी कमी नहीं कि बाद में, शैलेष जैसे हाल कहीं मिश्रा का न हो जाए। उतावलापन में शैलेष आईएएस छोड़कर प्रायवेट सेक्टर में चले गए और अब आईएएस में लौटने के लिए छटपटा रहे हैं। 

पोस्टिंग में आगे

छत्तीसगढ़ में एक ऐसे भाग्यशाली सीनियर आईएएस हैं, जो काम में पीछे रहने के बाद भी पोस्टिंग में सबसे आगे रहते हैं। कोई भी मलाईदार कुर्सी उनसे बची नहीं है। एक समय में पावर सिकरेट्री के साथ ही सीएसईबी के चेयरमैन रहे। सालों तक एक्साइज, वाणिज्यिक कर संभाला। अभी भी अहम विभाग संभल रहे हैं। उनकी वजह से विभाग के मंत्री का तारीफ होती है, वैसे अफसर से भी मंत्रीजी काम चला लेते हैं। और यह भी, शुक्रवार को सीएम हाउस में प्रभारी सचिवों की बैठक में चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार जिस रेडियस वाटर की फाइल पर भड़क गए, उस कमेटी में वही आईएएस थे। जोगी सरकार के समय हुए प्रकरण की फाइल उन्होंने हाल में, यह कहते हुए उपर भेजी है कि इसमे मार्गदर्शन दिया जाए। सीएस का कहना था, सिकरेट्री अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए ऐसा कर रहे हैं। इससे फाइलों में नाहक विलंब होता है। मगर इससे क्या फर्क पड़ता है। गदहे भी खीर खाते हैं, यह मुहावरा ऐसे थोड़े ही बना है।

वन विकेट

आईपीएल की तैयारी शुरू नहीं हुई कि एक अफसर ने अपना विकेट गंवा डाला। खेल सिकरेट्री सुब्रमण्यिम हीट विकेट होकर पेवेलियन लौट गए। और सीएम के पास राजेंद्र प्रसाद मंडल को मैदान पर भेजने के अलावा कोई चारा नहीं था। पीडब्लूडी में आने के बाद मंडल विराट कोहली के अंदाज में बैटिंग कर रहे हैं। आए दिन अफसरों पर कार्रवाई हो रही है। वैसे भी, वे फील्ड में रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते हैं। पुचकारने से काम निकल गया, तो ठीक वरना चमकी-धमकी में तो उनकी मास्टरी है। फिर, खेल विभाग में ऐसे-ऐसे खटराल अफसर बैठे हैं, जो जरा-सा भी कमजोर पड़ने पर सुरेश कलमाडी बना देंगे। उन पर नकैल डालकर आईपीएल करा देने के लिए ही सरकार ने मंडल को भेजा गया है। जाहिर है, आईपीएल बड़ा आयोजन है। अभी तक भोपाल और इंदौर में आईपीएल नहीं हुआ है। सियासी प्रेक्षको का कहना है, इसका लाभ सत्ताधारी पार्टी को मिलेगा। वह यूथ को, तो प्रभावित करेगा ही। जाहिर है, सरकार के लिए यह प्रतिष्ठा का विषय तो रहेगा ही। 

कामयाब

सुब्रमण्यिम के खेल विभाग से हटने से आईएएस लाबी की प्रसन्नता समझी जा सकती है। सुब्रमण्यिम पिछले छै-सात साल से अहम पद संभाल रहे थे। कहां नहीं रहे, मनरेगा, वेटनरी, मंडी बोर्ड, तकनीकी शिक्षा, ड्रग कंट्रोलर जैसे कई जगहों पर। सभी आईएएस कैडर के पोस्ट थे। वे सूबे के पहले आईएफएस थे, जो सीएम सिके्रटेरियेट में रहे। सीएम ने पिछले साल आईएएस सुब्रत साहू से खेल विभाग लेकर सुब्रमण्यिम को सौंपा था। किसी आईएफएस को इंडिविजिवल चार्ज का यह पहला मौका था। मगर आईपीएल आते ही, उन्होंने जिस तरह से अपने ही बल्ले से अपना विकेट गिरा दिया, उससे आईएफएस के साथ ही आईपीएस भी सकते में हैं। इसलिए, क्योंकि उन्होंने आईएएस को यह कहने का मौका दे दिया कि चैलेंजिंग वाला काम वे ही कर सकते हैं, आईपीएस, आईएफएस सेकेंड लाइन के लिए ठीक हंै। सुब्रमण्यिम के करीबी अफसर भी मान रहे हैं, अपने को साबित करने का इससे बढि़यां मौका नहीं मिलता। आखिर, बे्रन ट्यूमर होने के बाद भी अद्भूत जीजीविषा का परिचय देते हुए आईएफएस देवेंद्र सिंह ने सफल इंवेस्टर मीट कैसे करा डाला था। सिंह ने आईएफएस की कामयाबी का जो झंडा गाड़ा, सुब्रमण्यिम के अकारण मैदान छोड़ने से उसकी छबि जाहिर तौर पर धूमिल हुई है।

काका किस्मती

निवर्तमान डीजीपी अनिल नवानी किस्मती निकले। एक तो विश्वरंजन के डिरेल होने के चलते वक्त से आठ महीने पहले डीजीपी बन गए और 16 महीने के कार्यकाल में अलेक्स पाल मेनन के अपहरण के अलावा कोई बड़ी घटना नहीं हुई। मगर वर्तमान डीजीपी रामनिवास के साथ ऐसा नहीं हुआ। उन्हें दो महीने नहीं हुए, एयरफोर्स के हेलीकाप्टर पर नक्सलियों की फायरिंग और अब तीस मार खां फिल्म के अंदाज में टे्रन हाइजेकिंग हो गई। वो भी राजधानी के बगल में। देश में इस तरह का यह पहला वाकया है। नेशनल मीडिया में यह सुर्खियों में है। इससे रामनिवास की परेशानी तो बढ़ी है। 

हफ्ते का एसएमएस

एक सभा में राहुल गांधी जोर-जोर से भाषण दे रहे थे, कांग्रेस में करप्ट  लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। भीड़ से आवाज आई, हाउसफुल हो गया है क्या?

अंत में दो सवाल आपसे

1.    नीतिन गडकरी के भाजपा अध्यक्ष पद से हटने पर किस आईएएस की स्थिति कमजोर हुई है?
2.    सत्ता में रसूख रखने वाले दो भाइयों का नाम बताइये, जिन पर दो राजनेताओं ने हाईप्रोफाइल शादियों में केटरिंग की व्यवस्था का जिम्मा सौंपा था और उन्होंने उसे गुड़-गोबर कर दिया?

न्यूपावरगेमडाटकाम से साभार

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