शनिवार, 14 सितंबर 2013

तरकश, 15 सितंबर

खोखा का खेल
सरकारी स्कूलों के बच्चों को 22 इंच की जगह 20 इंच की सायकिल टिकाने के बाद अब, उनके लिए छपने वाली पुस्तकों में भी खेल षुरू हो गया है। और खेल भी छोटा-मोटा नहीं, एक आयटम के टेंडर में सीधे 10 खोखा का। विभाग ने पिछले सप्ताह कागज खरीदी का टेंडर किया और जो 70 जीएसएम का पेपर रायपुर के बाजार में 49 रुपए प्रति किलो में उपलब्घ है, उसे अहमदाबाद की एक पार्टी से 57 रुपए में खरीदने का टेंडर ओपन कर दिया। जबकि, सरकारी सप्लार्इ में डयूटी भी नहीं लगती। और-तो-और डीजीएसएंडडी रेट 42.55 रुपए का है। वो भी 50 मीटि्रक टन का। 13 हजार मीटि्रक टन में तो रेट और कम हो जाएगा। बहरहाल, सब कुछ प्लान वे में हुआ। रेट कोट करने का खेल जरा समझिए। 57 रुपए, 57.15 रुपए, 57.24 रुपए और 58 रुपए। याने सब मिला-जुला। और 74 करोड़ की खरीदी की तैयारी हो गर्इ। बाजार रेट से 10 खोखा अधिक में। चलिये, चुनाव का समय है। पैसे तो लगेंगे ही। 


विधायकजी की सीडी
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राज्य में सीडी की राजनीति गरमाती जा रही है। बस्तर के एक मंत्री की लेन-देन वाली सीडी की चर्चा थी ही, बिलासपुर जिले के सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक की सीडी पर इन दिनों खूब कानाफूसी हो रही है। एनडी तिवारी टार्इप की सीडी को एक संवैधानिक पोस्ट पर बैठे शखिसयत को जांच के लिए दी गर्इ है। पता चला हैं, टिकिट वितरण के बाद सीडी को सार्वजनिक किया जाएगा। इसी तरह, एक कांग्रेस नेता की भी इसी टार्इप की सीडी कांग्रेसियों ने ही बनवार्इ है। कांग्रेस का झगड़ा अगर नहीं थमा तो मानकर चलिये, कांग्रेस में भी बवंडर मचेगा। 


मजबूरी का नाम
रायपुर की नुमाइंदगी करने वाले रमन कैबिनेट के दोनों मंत्री, बृजमोहन अग्रवाल और राजेष मूणत के बीच रिष्ते कैसे हैं, यह बताने की जरूरत नहीं है। मगर गुरूवार को राजधानी में कुछ ऐसा हुआ कि लोग देखकर चौंक गए। रजाबंधा मैदान में एक ट्रेवल्र्स एजेंसी के उदघाटन में दोनों अतिथि थे और मंत्रालय में षाम को कैबिनेट की बैठक खतम होने के बाद दोनों एक ही गाड़ी में सवार होकर कार्यक्रम में पहुंचे। अब, इस पर चर्चा तो होनी ही थी...... चुनाव को देखते कहीं दोनों ने हाथ तो नहीं मिला लिया। आखिर, दोनों की सिथति बहुत अच्छी नहीं है। चाणक्य ने कहा भी है, संकट में दुष्मनों से भी रिष्ते सुधार लेना चाहिए।


झटका
अमिताभ जैन से भी बड़ा झटका अमित अग्रवाल को लगा है। अमिताभ को तो स्वतंत्र ना सही, विभाग तो मिल गया था। पीएमओ में लंबे समय बिता कर छत्तीसगढ़ लौटे अग्रवाल का हाल बुरा है। उन्होंने 6 सितंबर को ज्वार्इनिंग दी। और नौ दिन गुजर जाने के बाद भी उनका विभाग तय नहीं हुआ है। दरअसल, निर्धारित अवधि पूरा होने के बाद भी डेपुटेषन से लौटने में हीलाहवाला करने वाले अफसरों को सरकार एक मैसेज देना चाहती है। आखिर, अग्रवाल सात साल के बजाए नौ साल चार महीने बाद लौटे। राज्य सरकार केंद्र को अफसरों की कमी का हवाला देकर पत्र लिखती रही। और अग्रवाल का डेपुटेषन नियम ना होने के बाद भी बढ़ता रहा। सो, अब बारी सरकार की है।


नायक एडीजी इम्पेनल
डीजी, जेल गिरधारी नायक भारत सरकार में एडीजी के लिए इम्पेनल हो गए हैं। याने केंद्र में वे अगर डेपुटेषन पर जाएं, तो वहां एडीजी की पोसिटंंग मिलेगी। इस तरह रामनिवास के बाद वे एडीजी के तौर पर इम्पेनल होने वाले सूबे के दूसरे आर्इपीएस बन गए हैं। वैसे भी, सीनियरिटी में भी वे रामनिवास के बाद दूसरे नम्बर पर हैं। और, सब कुछ ठीक रहा तो अगले साल फरवरी में रामनिवास के रिटायर होने के बाद वे पुलिस की कमान भी संभालेंगे।    


प्रमोशन का खौफ
प्रमोशन से लोग खुश होते हैं मगर वन विभाग में उल्टा हो रहा है। डीएफओ से सीएफ बनने वाले आर्इएफएस अफसरों की रात की नींद उड़ी हुर्इ है। हालांकि, सीएफ अभी तक मलार्इदार पोसिटंग मानी जाती थी। मगर कैडर रिव्यू में सीएफ लूपलाइन वाला पद बन गया है। सर्किल में अब, सीएफ के बजाए सीसीएफ पोस्ट किए जाएंगे। ऐसे में सीएफ बनने का मतलब समझ सकते हैं। कम-से-कम पांच साल तक अरण्य में वनवास। जाहिर है, अरण्य में पांच साल काटना की पीड़ा से अफसर घबराए हुए हैं। हाल ही में प्रमोट हुए तीन अफसर सरकार को लिखकर देने वाले हैं, उन्हें प्रमोशन न दिया जाए।


वेट एंड सी
टिकिट का ऐलान करने में भाजपा और कांग्रेस, दोनों एक ही फामर्ूला अपना रही है। वह है, वेट एंड सी का।  इसलिए, टिकिट भले ही फायनल हो जाए, आचार संहिता लागू होने से पहले घोषित नहीं होने वाली। सियासी विष्लेषकों की मानें तो रणनीति के तहत दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे की सूची का इंतजार करेंगी। आचार संहिता 25 सितंबर से पांच अक्टूबर के बीच लगने का अंदेषा है। सो, यह मानकर चलिये कि 10 अक्टूबर से पहले सूची बाहर नहीं आने वाली। 


गडढे रहेंगे या.....
हर अफसर के काम करने और कराने के अपने तरीके होते हैं। उनमें पीडब्लूडी सिकरेट्री आरपी मंडल का अंदाज तो और जुदा है। किसका स्क्रू कसना है और किसको पीठ थपथपाना है, यह कोर्इ मंडल से पूछे। अब उन्होंने एक नया रास्ता निकाला है, षपथ लेने का। पिछले हफते उनकी मौजूदगी में राजनांदगांव जिले में पीडब्लूडी के इंजीनियरों को षपथ दिलार्इ गर्इ कि अक्टूबर अंत तक सड़कों पर एक भी गडढे नहीं रहेंगे। और षायद यह भी कि अक्टूबर तक गडढे रहेंगे या हम। है न अलग अंदाज। तभी तो ऐन वक्त पर विभाग बदलते-बदलते बच गया।


अंत में दो सवाल आपसे

1.    बस्तर से किस मंत्री की टिकिट खतरे में है?
2.    एक आर्इएएस अफसर का नाम बताइये, जो सैर-सपाटे के लिए सरकारी खर्चे पर महीने में चार से पांच बार उड़ान भर लेते हैं?

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