रविवार, 20 जनवरी 2019

कांग्रेस के गढ़ में कमल!

यह सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ कांग्र्रेस का गढ़ रहा है। जनता पार्टी की लहर में मध्यप्रदेश के समय सबसे अधिक छत्तीसगढ़ से कांग्रेस को सीटें मिली थी। तो अभी भी देश में कांग्रेस कहीं मजबूत है तो वह है, छत्तीसगढ़। इसके बाद भी बीजेपी पिछले 15 साल से राज कर रही है तो उसे इसका गुमान नहीं होना चाहिए। याद होगा, एक विधायक ने पिछले साल अमित शाह के रायपुर विजिट में जब सरकार की शिकायत की तो शाह ने उस विधायक को लगभग झिड़की देते हुए कहा था कि यह मत भूलिये.....कांग्रेस के गढ़ में यहां तीन बार सरकार बनी है। बीजेपी नेता भी मानते हैं, 2003 में अगर जोगी सरकार की एंटी इंकाम्बेंसी और दूसरा, एनसीपी नहीं होती तो कांग्रेस की सरकार रिपीट हो गई होती। 2008 में सस्ता चावल की वजह से सरकार जरूर बन गई। मगर याद कीजिए....इतनी बड़ी सौगात देने के बाद भी सीटों की संख्या में कोई फर्क नहीं पड़ा। वास्तव में चावल योजना के बाद तो बीजेपी की सीटें 60 से उपर चली जानी चाहिए थी। 2013 में भी बीजेपी ने सतनामी समाज की मदद लेकर सरकार बनाने में कामयाब रही। 10 में से नौ अजा सीटें बीजेपी की झोली में चली गई। जबकि, आरक्षण की वजह से कांग्रेस इस कंफीडेंस में रही कि अजा सीटों पर बीजेपी का सूपड़ा साफ हो जाएगा। 10 में से पांच सीटें भी अगर कांग्रेस लेने में सफल हो गई होती तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होती। इस बार भी भाजपा की उम्मीद की वजह सिर्फ थर्ड फ्रंट है।
47 और 52
भाजपा नेताओं को पूर्ण विश्वास है कि वह सरकार बनाने के जादुई आंकड़े जुटा लेगी। उसे लगता है, कम-से-कम 47 सीटें उसे मिल जाएगी। याने बहुमत से एक अधिक। इसमें एकाध कम भी हुआ तो बीजेपी के पास बहुत सारे तवे हैं, उस पर वह रोटी सेंक लेगी। वहीं, कांग्रेस स्पष्ट तौर पर यह मानकर चल रही है कि उसे गिरे हालत में भी 52 सीटें मिल रही है। टीएस सिंहदेव को यकीन है.....हम 52 मानकर चल रहे हैं। उससे अधिक भी आ जाए तो आश्चर्य नहीं। वहीं, भूपेश बघेल को इससे भी अधिक की उम्मीद है। भूपेश की मानें तो बदलाव की हवा में थर्ड फ्रंट की कोई भूमिका नहीं रह जाती।

सडन डेथ


90 में से करीब दस सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी और कांग्रेस में कांटे का मुकाबला है। इसमें सडन डेथ से फैसला होगा। 2013 के विस चुनाव में भी दो-एक सीटों पर दो सौ से छह सौ मतों से जीत-हार तय हुई थी। सडन डेट वाली सीटों में इस बार दो-एक मंत्रियों का मामला भी हो सकता है। वे भी पांच सौ-हजार वोट से अपनी सीट निकालेंगे या फिर सब कुछ गवांएंगे। सियासी प्रेक्ष़्ाक भी मानते हैं, सडन डेथ वाली सीटें निर्णायक होंगी।   

नो चेंज या बड़ी उठापटक


यह बात स्पष्ट है कि सरकार अगर रिपीट हुई तो प्रशासनिक हल्को में बड़ा बदलाव नहीं होगा। कांग्रेस की सरकार बनने की आस में दो-चार अफसरों ने गुलाटी मारने की कोशिश की है, सिर्फ उन्हें ही बियाबान में भेजा जाएगा। 2011 बैच के आईएएस को कलेक्टर बनाया जाएगा। इसके अलावा बाकी चेंजेस लोकसभा चुनाव के बाद ही होंगे। लेकिन, सरकर कांग्रेस की बनी तो फिर पूछिए मत! पूरा उलटफेर हो जाएगा। 27 में से 15 से अधिक जिलों के कलेक्टर-एसपी बदल दिए जाएंगे। मंत्रालय में भी मेजर सर्जरी होगी। उस पर अगर भूपेश बघेल सीएम बनें तो सीएस, डीजीपी समेत मंत्रालय से लेकर तहसीलों तक के अफसर चेंज हो जाएंगे। टीएस, महंत या ताम्रध्वज को मौका मिलने पर उतना बड़ा चेंज नहीं होगा। हो सकता है, डीजीपी न बदलें। नौकरशाही फिलहाल तेल की धार समझने में लगी है। कुछ आईएएस, आईपीएस दोनों ओर सीटों की फीडबैक दे रहे हैं। याने डबल नावों की सवारी। हालांकि, पहले थर्ड फ्रंट और अब एग्जिट पोल ने ब्यूरोक्रेसी को कंफ्यूज कर दिया है। आखिर वे किधर हाथ बढ़ाएं?

भूपेश का गेटअप


कांग्रेस में सीएम के चार सक्रिय दावेदार हैं। भूपेश बघेल, चरणदास महंत, टीएस सिंहदेेव और ताम्रध्वज साहू। ऐसा कहा जा रहा है कि चारों ने अपने मंत्रिमंडल का प्रारुप तैयार कर लिया है। लेकिन, बॉडी लैग्वेज, कंफीडेंस और गेटअप तो भूपेश का दिख रहा है। जबर्दस्त जोश में दिख रहे हैं। एग्जिट पोल के दौरान टीवी पर उनका गेटअप और आत्मविश्वास कुछ अलग दिखा। तो क्या ऐसा मान लें कि दिल्ली से उन्हें कोई इशारा मिल गया है। हालांकि, ये तो उनके विरोधी भी मानते हैं कि कांग्रेस की जमीन तो भूपेश ने ही तैयार की। लेकिन, बचे तीनों भी कोई कसर नहीं उठा रखेंगे। 

सिकरेट्री टू सीएम


हालांकि, 11 दिसंबर को दोपहर तक ही स्पष्ट हो पाएगा कि सरकार किसकी बन रही है। मगर, सरकार बदलने की स्थिति में नौकरशाहों की सबसे अधिक नजर सिकरेट्री टू सीएम पद पर गड़ी हुई है। सरकार में मुख्यमंत्री के बाद अघोषित तौर पर सबसे कोई ताकतवार पद होता है तो वह है सिकरेट्री टू सीएम। मध्यप्रदेश के समय दिग्विजय सिंह सरकार में भी लोगों ने इसे देखा तो रमन सिंह गवर्नमेंट में पिछले 15 साल से लोग देख ही रहे हैं। रमन सरकार में अमन सिंह ने इसे और क्रेजी बना दिया है। दरअसल, मुख्यमंत्री अपने सबसे भरोसेमंद अफसर को सिकरेट्री अपाइंट करते हैं। सीएम सचिवालय के जरिये ही फाइलें मुख्यमंत्री तक पहुंचती है। इसे ऐसा कह सकते हैं, सीएम का सबसे अधिक राजदार उनका सिकरेट्री होता है। उसका कंपीटटेंट होना सबसे पहली शर्त होती है। सीएम सचिवालय के अफसरों के लिए सीएम हाउस का दरवाजा हमेशा खुला होता है। अभी अमन सिंह के साथ सुबोध सिंह और रजत कुमार सचिवालय में हैं। सरकार अगर बदली तो मानकर चलें, कम-से-कम नए सचिवालय में तीन आईएएस अपाइंट होंगे। और नहीं तो....फिर बदलने का सवाल ही पैदा नहीं होगा। बल्कि, सबका रुतबा और बढ़ जाएगा।

पुनिया  भी मौजूद


11 को काउंटिंग को लेकर कांग्रेस इतना उत्साहित है कि जश्न मनाने की तैयारी भी शुरू हो गई है। प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया भी 11 को सुबह रायपुर पहुंच रहे हैं। पुनिया को कांग्रेस नेताओं ने बुलाया है। मतगणना के दौरान वे राजीव भवन में मौजूद रहेंगे।   

अंत में दो सवाल आपसे


1. ब्यूरोक्रेसी के लिए सबसे उपयुक्त मुख्यमंत्री कौन रहेगा?
2. जोगी कांग्रेस-बसपा को आप कितनी सीटें मिलने की उम्मीद कर रहे हैं?

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