रविवार, 20 जनवरी 2019

रहिमन चुप हवे बैठिए….

20 जनवरी 2019
25 साल तक ब्यूरोक्रेसी की खूब चली। दिग्विजय सिंह के समय मध्यप्रदेश में और 2000 के बाद छत्तीसगढ़ में। दिग्गी राजा ने भी नौकरशाही का कम उपयोग थोड़े किया। छत्तीसगढ़ में शुक्ल बंधुओं को टाईट रखने के लिए चुन-चुनकर कलेक्टर भेजे। आखिरी-आखिरी में बिलासपुर के कई मंत्री जब बाउंड्री को लांघने लगे तो शैलेंद्र सिंह को कलेक्टर बनाकर भेज दिया था। शैलेंद्र सिंह ने सारे नेताओं की दुकान बंद करवा दी थी। जोगी शासन काल में भी नौकरशाहों का जलवा कम नहीं रहा। और, अब रमन सरकार पर नौकरशाही हॉवी होने के आरोप बीजेपी के लीडर ही लगा रहे हैं। अलबत्ता, स्थितियां अब बदल गई हैं। आधी रात को चीफ सिकरेट्री और डीजीपी की कुर्सी खिसक गई। आईएएस, आईपीएस के ऐसे ट्रांसफर हुए कि कोई इधर गिरा, कोई उधर….। मुकेश गुप्ता, नान, जीरम, चिप्स, संवाद के खिलाफ जांच बैठ गई। ऐसे में, अफसरशाही रहीम के इस दोहा को याद कर चुपचाप बैठने में अपनी भलाई समझ रही होगी…. रहिमन चुप हवे बैठिए, देखी दिनन के फेर, जब नीके समय आईहे, बनत न लगीहे देर। चलिये, लोकसभा चुनाव के बाद शायद ये, नीके समय… आ जाए। आखिर उम्मीद पर पूरी दुनिया टिकी है।

अध्यक्ष का टोटका

विधानसभा चुनाव में शर्मनाक पराजय के बाद बीजेपी एक बार फिर आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को प्रदेश की कमान सौंपने जा रही है। बताते हैं, उनके नाम पर सहमति बन गई है….किसी भी दिन इसका ऐलान हो जाएगा। बता दें, छत्तीसगढ़ में भाजपा ने लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीते और तीनों में आदिवासी नेताओं की भूमिका अहम रही। पहली बार 2003 में डा0 रमन सिंह जरूर पार्टी के अध्यक्ष रहे लेकिन, सदन में पार्टी की बागडोर नंदकुमार साय के हाथ में रही। इसके बाद दोनों विस चुनावों में पार्टी की कमान आदिवासी लीडर के हाथ में रही। 2008 के विधानसभा चुनाव में रामसेवक पैकरा और 2013 में विष्णुदेव साय पार्टी के अध्यक्ष रहे। और, दोनों में भाजपा को फतह मिली। पिछले साल भी विष्णुदेव साय को अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी में चर्चा हुई थी। इसके पीछे आदिवासी वर्ग को साधने के साथ ही पार्टी का वह टोटका भी था कि आदिवासी अध्यक्ष रहते चुनाव में बीजेपी को जीत मिलती है। लेकिन, राज्य सभा की टिकिट के लिए सरोज पाण्डेय से शिकस्त मिलने के बाद धरमलाल कौशिक को अध्यक्ष के रूप में कंटिन्यू कर दिया गया। अब देखना दिलचस्प होगा, विष्णुदेव साय को अध्यक्ष बनाने से लोकसभा चुनाव में भाजपा का यह टोटका कितना काम आ पाता है।

गुरू गुड़ और चेला….

जूनियर अफसरों से काम कराने का जो ट्रेंड रमन सरकार में शुरू हुआ, भूपेश सरकार भी उससे बच नहीं पा रही। एसपी की पोस्टिंग में यह साफ तौर पर परिलक्षित हुई। रायपुर, बिलासपुर के बाद बड़े जिलों में रायगढ़ की गिनती होती है। किसी भी आईपीएस का वह दूसरा या तीसरा जिला होता था। एसपी के तौर पर दीपक झा का भी रायगढ़ तीसरा जिला था। उन्हें हटाकर सरकार ने राजेश अग्रवाल को एसपी बनाया है। राजेश को अचार संहिता लगने के दिन आईपीएस अवार्ड हुआ। उन्हें अभी बैच भी नहीं मिला है। बावजूद इसके, पहली बार में उन्हें रायगढ़ की कप्तानी सौंप दी गई। जबकि, 2006 बैच के आरएन दास जांजगीर और प्रशांत अग्रवाल बलौदाबाजार के एसपी है। हिट तो यह भी है कि प्रशांत पिछले साल जब राजनांदगांव के एसपी थे तो राजेश उनके एडिशनल एसपी। लेकिन, गुरू गुड़ रह गया और चेला शक्कर। सबसे बड़ी दिक्कत विजय अग्रवाल को होने वाली। राजेश के साथ ही आईपीएस बनें विजय बिलासपुर में अभी एडिशनल एसपी हैं। आईजी कभी कप्तानों की मीटिंग बुलाएंगे तो राजेश ठसके से आईजी के सामने बैठेंगे और विजय उनके लिए चाय-पानी का इंतजाम करते नजर आएंगे। वाह भाई! गजब की पोस्टिंग है।

नो कमेंट्स

आईपीएस पारुल माथुर छोटे से जिले मुंगेली की एसपी हैं। उनके पिता राजीव माथुर भी पहले मध्यप्रदेश, बाद में छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस रहे। राजीव रायपुर के आईजी रहे। पुराने लोगों को याद होगा, आईजी रहने के समय वे वेश बदलकर थानों का निरीक्षण करने पहुंच जाते थे। कांग्रेस नेताओं से कथित संबंधों को लेकर पुरानी सरकार में उन्हें वेटेज नहीं मिला। सरकार के रुख को भांप कर ही वे डेपुटेशन पर भारत सरकार चले गए थे। और, वहीं से रिटायर हो गए। जाहिर है, उनकी बेटी पारुल को भी अच्छी पोस्टिंग नहीं मिली। चार साल से उपर तक रेलवे एसपी रहीं। पिछले साल वे उस मुंगेली जिले में भेजी गई, जहां फ्रेश आईपीएस भी नहीं जाना चाहते। कांग्रेस की नई सरकार से उन्हें जरूर उम्मीद रही होगी, लेकिन, इसमें भी वैसा ही हुआ। उन्हीं की 2008 बैच की नीतू कमल जांजगीर के बाद राजधानी की एसपी बन गई और पारुल मुंगेली में ही छुट गईं। इसी तरह दास और प्रशांत से चार बैच जूनियर 2010 बैच के अभिषेक मीणा बिलासपुर जैसे बड़े जिले के एसपी हैं।

बालोद को भूली सरकार

बलोद भले ही छोटा जिला है मगर नक्सली और दल्ली राजहरा माइंस के कारण सेंसेटिव केटेगरी में आता है। लेकिन, 25 दिसंबर से वहां कप्तान की कुर्सी खाली है। आईके ऐलेसेला को हटाकर सरकार ने नारायणपुर भेजा था, उसके बाद वहां कोई पोस्टिंग नहीं हुई है। हालांकि, ऐलेसेला को सरकार ने दस दिन के भीतर ही नारायणपुर से बुलाकर ईओडब्लू में पोस्ट कर दिया। मगर बालोद को लगता है, वह भूल ही गई है। जबकि, सीएम भूपेश बघेल के दुर्ग जिला से बालोद बिल्कुल सटा है। इसके बाद भी पुलिस महकमा संज्ञान नहीं ले रहा तो यह गंभीर बात है।

पिंगुआ को पावर

आईएएस मनोज पिंगुआ डेपुटेशन से लौटने वाले है। हो सकता है, 15 फरवरी तक वे यहां ज्वाईन कर लें। हालांकि, उनका डेपुटेशन एक साल पहले पूरा हो गया था। लेकिन, बच्चों की पढ़ाई के चलते उन्होंने उसे एक साल बढ़वा लिया था। बहरहाल, रायपुर लौटने पर जाहिर है, उन्हें अच्छी पोस्टिंग मिलेगी। वैसे भी कई अफसरों के पास विभागों का ओवरलोड है। 94 बैच के आईएएस पिंगुआ प्रिंसिपल सिकरेट्री लेवल के अफसर हैं। पिछले साल ही उन्हें प्रोफार्मा प्रमोशन मिला था। दिल्ली जाने के पहिले उनके पास ट्राईबल और जीएडी था। ट्राईबल में आदिवासी बच्चों की छात्रवृत्ति हड़पने वाले शिक्षा संस्थानों के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी।

ओवरलोडेड सिकरेट्री

मंत्रालय में तीन आईएएस अफसर इतने ओवरलोडेड हो गए हैं कि उनकी घरवाली दुखी हो गई होंगी। खासकर सिकरेट्री टू सीएम गौरव द्विवेदी के पास पुराना स्कूल शिक्षा तो बरकरार है ही, उपर से माईनिंग, पब्लिक रिलेशंस, आईटी जैसे कई और विभाग जुड़ गए हैं। जबकि, सिकरेट्री टू सीएम होना ही एक बड़ा टास्क होता है। सारे विभागों की फाइलें सिकरेट्री से होकर ही सीएम तक जाती है। सिकरेट्री को सुबह-शाम सीएम हाउस भी जाना होता है। हाउस में भी विभिन्न मीटिंगे होती है। सीएस से कोआर्डिनेशन का दायित्व सिकरेट्री टू सीएम के पास होता है। उनके बाद नम्बर आता है 87 बैच के आरपी मंडल और 89 बैच के अमिताभ जैन का। मंडल के पास पंचायत पहले से था, अब गृह, जेल और परिवहन मिल गया है। पंचायत और गृह बड़े विभाग हैं। राज्य बनने के बाद गृह में हमेशा अलग सिकरेट्री रहा है। बड़े राज्यों में तो जेल और परिवहन के भी सिकरेट्री होते हैं। अमिताभ के पास फिलहाल सबसे महत्वपूर्ण फायनेंस तो है ही। इसके साथ वाणिज्य और उद्योग एवं पीडब्लूडी भी है। हालांकि, वे फायनेंस और पीडब्लूडी में पहले भी रह चुके हैं, इसलिए इनमें उन्हें दिक्कत नहीं जाएगी। वाणिज्य और उद्योग जरूर उनके लिए नया होगा। बहरहाल, पता चला है, इनमें से एक का रोज पत्नी से विवाद हो जा रहा…क्योंकि शाम को वे समय पर घर नहीं लौट पा रहे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. धुर विरोधी कहे जाने वाले रमन सरकार के कुछ मंत्री क्यों हाथ मिला रहे हैं?
2. टीएस सिंहदेव क्यों बोल गए कि अमरजीत भगत मंत्री बन सकते हैं?

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