तरकश, 26 जुलाई 2020
संजय के दीक्षित
कहते हैं, राजनीत में किस्मत और वक्त का बड़ा रोल होता है। कांग्रेस नेत्री करूणा शुक्ला से ज्यादा इसे कौन समझ सकता है। अटलबिहारी बाजपेयी सरीखे लोकप्रिय नेता की भतीजी के नाते स्वाभाविक तौर पर बीजेपी में उनका वजन तो होना ही था। जाहिर है, रमन सिंह की पहली पारी में वे बेहद प्रभावशाली रहीं। खासकर, 2004 में कोरबा लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद उनका सियासी ग्राफ तेजी से उपर उठा। 2007 के बाद एक समय ऐसा भी आया, जब उनके मुख्यमंत्री बनने की चर्चाएं शुरू हो गई थी। लोग खुलेआम कहने लगे…करूणा दीदी किसी भी दिन सूबे की शीर्ष कुर्सी पर पहुंच सकती हैं। इसका खामियाजा करूणा शुक्ला को उठाना पड़ा। 2009 की लोकसभा चुनाव हार गईं। इसके बाद सिचुएशन ऐसी निर्मित हुई कि बीजेपी छोड़कर उन्होंने कांग्रेस ज्वाईन कर लिया। सरकार ने अब उन्हें समाज कल्याण बोर्ड का चेयरमैन बनाया है। इसे ही वक्त कहते हैं…कभी सीएम के लिए नाम चला था, उन्हें अब समाज कल्याण से संतोष करना पड़ा।
संजय के दीक्षित
कहते हैं, राजनीत में किस्मत और वक्त का बड़ा रोल होता है। कांग्रेस नेत्री करूणा शुक्ला से ज्यादा इसे कौन समझ सकता है। अटलबिहारी बाजपेयी सरीखे लोकप्रिय नेता की भतीजी के नाते स्वाभाविक तौर पर बीजेपी में उनका वजन तो होना ही था। जाहिर है, रमन सिंह की पहली पारी में वे बेहद प्रभावशाली रहीं। खासकर, 2004 में कोरबा लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद उनका सियासी ग्राफ तेजी से उपर उठा। 2007 के बाद एक समय ऐसा भी आया, जब उनके मुख्यमंत्री बनने की चर्चाएं शुरू हो गई थी। लोग खुलेआम कहने लगे…करूणा दीदी किसी भी दिन सूबे की शीर्ष कुर्सी पर पहुंच सकती हैं। इसका खामियाजा करूणा शुक्ला को उठाना पड़ा। 2009 की लोकसभा चुनाव हार गईं। इसके बाद सिचुएशन ऐसी निर्मित हुई कि बीजेपी छोड़कर उन्होंने कांग्रेस ज्वाईन कर लिया। सरकार ने अब उन्हें समाज कल्याण बोर्ड का चेयरमैन बनाया है। इसे ही वक्त कहते हैं…कभी सीएम के लिए नाम चला था, उन्हें अब समाज कल्याण से संतोष करना पड़ा।
धमाकेदार वापसी
छत्तीसगढ़ की राजनीति में सुभाष धुप्पड़ का नाम अपरिचित नहीं है। राज्य बनने से पहिले जिन्होंने दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल का दौर देखा है, वे सुभाष धुप्पड़ और राजेंद्र तिवारी के नाम से भली-भांति वाकिफ होंगे। दोनों विद्या भैया के लेफ्ट, राइट माने जाते थे। विद्या भैया के राज में सुभाष ने पावर का भरपूर इन्जाॅय किया। लेकिन, कभी कोई पद नहीं मिला। राज्य बनने के बाद तीन साल अजीत जोगी और उसके बाद 15 साल बीजेपी सत्ता में रही। इस दौरान सुभाष गुमनामी में ही रहे। लेकिन, भूपेश बघेल की सरकार में उन्होंने धमाकेदार वापसी की। कांग्रेस के लोग ही कह रहे हैं, विद्या भैया के समय उन्हें लाल बत्ती का सुख नहीं मिला। भूपेश बघेल ने उन्हें रायपुर विकास प्राधिकारण का चेयरमैन बनाकर एक महत्वपूर्ण सरकारी प्लेटफार्म दे दिया। धमाकेदार वापसी हुई न यह!
कोरोना में लाल बत्ती?
लाल बत्ती की दूसरी लिस्ट की आस लगाए बैठे कांग्रेस नेताओं को कोरोना ने बड़ा झटका दे दिया। इस उम्मीद में कांग्रेस नेताओं की सुबह होती थी कि शायद लिस्ट आ जाए। मगर कोरोना के बढ़ते खतरों ने उनकी उम्मीदों को अब फीका कर दिया है। दरअसल, सूबे में कोरोना का संक्रमण जिस तरह फैल रहा, उससे सरकार भी चिंतित है। सरकार की टाॅप प्रायरिटी है कि किसी तरह कोरोना का फैलाव रोका जाए। ऐसे में, यह स्पष्ट है कि अब कोरोना के बाद ही कुछ हो पाएगा।
तीन आईएएस होंगे विदा
छत्तीसगढ़ कैडर के 3 आईएएस इस महीने 31 जुलाई को रिटायर हो जाएंगे। इनमें सबसे बड़ा नाम एन बैजेंद्र कुमार का है। 85 बैच के आईएएस बैजेंद्र डेपुटेशन पर NMDC के सीएमडी हैं। उनके अलावा एमएस बंजारे और एल एन केन भी इसी महीने विदा लेंगे।
एसपी के ट्रांसफर?
पुलिस अधीक्षकों की एक छोटी लिस्ट निकलने की बड़ी चर्चाएं हैं। इनमें दो-से-तीन एसपी बदल सकते हैं। चेन बनने के चक्कर में इसमें एकाध नाम और जुड़ जाए, तो आश्चर्य नहीं। दंतेवाड़ा के एसपी डाॅ0 अभिषेक पल्लव का तीन साल हो गया है। दंतेवाड़ा में उन्होंने अच्छा काम किया है और सरकार के गुडबुक में भी हैं, तो कोई ठीक-ठाक जिला ही मिलेगा। उनकी जगह पर दंतेवाड़ा कौन जाएगा, इस पर अटकलें लगाई जा रही हैं। इसमें नारायणपुर एसपी मोहित गर्ग का नाम भी आ रहा है। अगर गर्ग दंतेवाड़ा गए तो फिर नारायणपुर खाली होगा। संकेत हैं, सरकार मंुगेली एसपी डी. श्रवण के साथ कुछ करेगी। उनका जरा गड़बड़ हो गया है….कोरबा और जगदलपुर एसपी रहने के बाद मुंगेली का एसपी बनना। हालांकि, कोरोना का संक्रमण तेज होने के कारण अब नहीं लगता कि जल्दी में कोई लिस्ट निकल पाएगी।
चूके जनाब पोस्टिंग से?
जशपुर और सूरजपुर के एसपी रह चुके एक आईपीएस को पिछली लिस्ट में कोंडागांव के एसपी बनाने की बात हुई थी। लेकिन, बताते हैं वे इसके लिए तैयार नहीं हुए। और, मामला गड़बड़ा गया। डी श्रवण की तरह वे अगर कोंडागांव चल देते तो आॅॅफ ट्रेक नहीं होते। पोस्टिंग का सिद्धांत है कि ट्रेक छूटनी नहीं चाहिए। ट्रेक पर रहने का बड़ा फायदा यह होता है कि आप सरकार के सीधे कंटेक्ट में रहते हैं।
कटघोरा माॅडल
राजधानी रायपुर जिस तरह कोरोना का हाॅट स्पाॅट बना है, वह सचमुच चिंतनीय है। अब ये कैसे हुआ…क्यों हुआ…आपदा के समय इस पर बातें नहीं होनी चाहिए। मगर ये अवश्य है कि राजधानी में बेफिजूल की गतिविधियां चालू हुई है, उसे रोकना होगा। कोरोना से बेपरवाह लोगों ने पार्टी, पिकनिक, जश्न प्रारंभ कर दिया। जाहिर है, इंडियन लोग नियम-कायदों में जरा कम विश्वास रखते हैं। बिना कार्रवाई सुनवाई होती नहीं। दो दिन पहले ही दर्जन भर लड़के-लड़कियां देर रात हुक्का और शराब पार्टी करते मिले। वो भी लाॅकडाउन में। इससे समझा जा सकता है, राजधानी की क्या स्थिति है। कटघोरा में जिस तरह कोरोना से निबटा गया, रायपुर में भी वैसा ही दम खम दिखाना होगा। हालांकि, रायपुर बड़ा है। 267 कंटेनमेंट जोन हैं। इसमें पूरी मशीनरी को झोंकना होगा। वरना, स्थिति और बिगड़ेगी।
अंत में दो सवाल आपसे
1. 31 जुलाई को रिटायर होने के बाद एन बैजेंद्र कुमार को राज्य या केंद्र सरकार में पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिलेगी?
2. क्या सरकार किसी कलेक्टर को बदलने पर विचार कर रही है?
2. क्या सरकार किसी कलेक्टर को बदलने पर विचार कर रही है?
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