रविवार, 31 जनवरी 2021

बाबू से त्राहि माम आईपीएस

 संजय के दीक्षित

तरकश, 31 जनवरी 2021
राज्य पुलिस सेवा के 16 अधिकारियों को आईपीएस अवार्ड हुए ढाई साल गुजर गए। लेकिन, पराकाष्ठा देखिए…उनका अभी तक बैच अलाटमेंट नहीं हुआ है। अब बैच अलाट नहीं हुआ तो फिर पे फिक्शेसन और स्थायीकरण नहीं हो सकता। कायदे से भारत सरकार के मिनिस्ट्री आॅफ होम अफेयर से आईपीएस अवार्ड होने के दो-तीन महीने के भीतर बैच अलाट हो जाता है। इसके लिए संबंधित राज्य सरकार के गृह विभाग से भारत सरकार को लेटर लिखा जाता है। लेकिन, छत्तीसगढ़ से ये लेटर अभी तक केंद्र को गया ही नहीं। जबकि, उन्हीं के साथ आईपीएस अवार्ड हुए यूपी, बिहार, झारखंड के अफसरों को कब का बैच अलाॅट हो गया। बताते हैं, मंत्रालय के एक बाबू पुलिस अधिकारियों की फाइल आगे बढ़ा नहीं रहा। उस भोपाली बाबू से पूरा पुलिस महकमा हलाकान है।


ओपी राठौर की याद

मंत्रालय में हाॅवी बाबूगिरी से दिवंगत डीजीपी ओपी राठौर की याद आ गई। नक्सल मोर्चे पर जाकर फोर्स को मोटिवेट करने वाले डीजीपी राठौर भी गृह विभाग के बाबुओें से बेहद परेशां रहते थे। उस समय छत्तीसगढ़ में सल्वा-जुडूम का आंदोलन बड़ा तेज था। बहुत सारी फाइलें मंत्रालय जाकर अटक जाती थी। तब राठौर खुद ही मंत्रालय के सेक्शन में बाबुओं के पास पहुंचकर फाइल ढूंढवाकर आगे बढ़वाते थे। खैर, वे डीजीपी थे, इसलिए बाबू उनके पहुुंचने पर काम कर देते थे। प्रमोटी आईपीएस अधिकारियों को वो दूसरा वाला आइडिया आजमाकर अपना काम करा लेना चाहिए। खामोख्वाह क्यों अपना नुकसान करवा रहे हैं।

आनंद को आनंद नहीं

तमाम चीजों के बाद भी राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आनंद मसीह को सरकार ने आईएएस अवार्ड कर दिया मगर पोस्टिंग के मामले में उनकी किस्मत काम नहीं कर रही। आईएएस अवार्ड होने के पांच महीने बाद भी सामान्य प्रशासन विभाग ने उनका आर्डर नहीं निकाला है। जबकि, 2005 बैच के डिप्टी कलेक्टरों की पोस्टिंग नोटिफिकेशन जारी होने के 15 दिनों के भीतर हो गई। बहरहाल, जाति प्रमाण पत्र केस में बर्खास्त हो चुके आनंद को बाद में हाईकोर्ट से स्टे मिल गया…उसके बाद आईएएस भी। लेकिन, आदेश न निकलने की वजह से वे रिकार्ड में अभी तक आईएएस नहीं बन पाए हैं। जाहिर है, आनंद को आईएएस बनने का आनंद नहीं आ रहा होगा।

ये ट्रेेंड ठीक नहीं

राजस्थान में एसीबी ने एसडीएम को रिश्वत लेते हुए ट्रेप कर जेल भेज दिया। मगर वहां कोई बवाल नहीं मचा। लेकिन, छत्तीसगढ़ में रिटायर एडिशनल कलेक्टर की गिरफ्तारी के विरोध में राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर लामबंद होने लगे हैं। आए दिन वे इसके लिए उच्चाधिकारियों से मुलाकात कर रहे। इससे पहले एक फाॅरेस्ट अधिकारी के खिलाफ राप्रसे अधिकारी एकजुट हो गए थे। छत्तीसगढ़ में ये एक नई परंपरा की शुरूआत हो रही। इससे पहले पिछली सरकार में इसी तरह के वर्क कुछ आईएएस भी करते थे। शुक्र है, वे अभी शांत हैं।

किधर है एसीबी

राजस्थान एसीबी की बात निकली, तो कुछ दिन पहले वहां एक आईएएस को भी दिल्ली जाकर जांच एजेंसी के अफसरों ने गिरफ्तार कर लिया। लेकिन, छत्तीसगढ़ की एसीबी और ईओडब्लू के अधिकारी किधर हैं, पता नहीं चल पा रहा। कार्रवाई के नाम पर पटवारी, बाबू जैसे इक्का-दुक्का कर्मचारियों को ट्रेप करने के अलावा एसीबी के खाते में 2020 में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं रही। छापे तो शायद एक भी नहीं पड़े। ये ठीक है कि एसीबी, ईओडब्लू के अफसर करप्शन को खत्म नहीं कर सकते।

कलेक्टरों की लिस्ट

धान खरीदी के बाद कलेक्टरों की एक लिस्ट निकलने की चर्चा है। धान खरीदी में जिन कलेक्टरों ने बढ़ियां काम किया है, उन्हें इसका ईनाम देते हुए और महत्वपूर्ण जिला दिया जा सकता है। हालांकि, सरकार से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि अभी इस पर विचार चल रहा कि कलेक्टरों का ट्रांसफर अभी किया जाए या बजट सत्र के बाद। वैसे भी धान खरीदी में सभी कलेक्टरों ने आउटस्टैंडिंग काम किया है। सरकार का सिर्फ एक लाइन का निर्देश था…धान खरीदी में कोई चूक नहीं होनी चाहिए….इसके अलावा कोई हस्तक्षेप और डांट-फटकार नहीं। फिर भी कलेक्टरों ने रिकार्ड बना डाला। वो भी बारदाना की समस्या के बाद भी। लिहाजा, अगर ट्रांसफर के लिए धान खरीदी आधार बनाया जाएगा तो सरकार की काफी मुश्किलें जाएगी। क्योंकि, इसमें मैदानी इलाकों के सभी कलेक्टरों ने बढ़-चढ़कर काम किया है।

एसपी, आईजी किसलिए?

कोरिया के मनचले टीआई की पत्नी कोरिया के एसपी, सरगुजा के आईजी के आगे न्याय के लिए गिड़गिड़ाती रही। लेकिन, एसपी, आईजी ने कोई कार्रवाई नहीं की। डीजीपी डीएम अवस्थी को हस्तक्षेप कर टीआई को सस्पेंड करना पड़ा। डीजीपी ने दो साल में दो दर्जन से अधिक टीआई को सस्पेंड किया है। चिंता की बात है….जो काम एसपी, आईजी को करनी चाहिए, वो पुलिस महकमे के मुखिया को करना पड़ रहा। सवाल यह भी है कि एसपी ऐसे खटराल इंस्पेक्टरों को संरक्षण क्यों दे रहे हैं?

नौकरशाहों से गलत आंकलन?

26 जनवरी को राजभवन की टी पार्टी में नौकरशाहों की उपस्थिति बेहद क्षीण रही। मंत्रालय से सिकरेट्री के नाम पर दो ही लोग पहुंचे। और, पीएचक्यू से भी यही कोई तीन-चार। हालांकि, अफसर जैसा समझ रहे हैं, वो अब पहले जैसा नहीं लगता….खारुन नदी में काफी पानी बह चुका है। राजधानी के पंडरी में स्मार्ट सिटी के कार्यक्रम में राज्यपाल गर्मजोशी से शिरकत की। महिला बाल विकास मंत्री, मेयर समेत तमाम लोग उपस्थित थे। खैर, नौकरशाहों को इतना कैलकुलेटिव नहीं होना चाहिए।

अच्छी खबर

मोबाइल, व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के दौर में जब पुस्तकें पढ़ने का चलन कम होता जा रहा है बिलासपुर में सेंट्रल लायब्रेरी के इनाॅग्रेशन के पांच दिन के भीतर साढ़े तीन हजार लोगों ने रजिस्ट्रेशन करा लिया। वहां नगर निगम और स्मार्ट सिटी ने मिलकर भव्य डिजिटल लायब्रेरी बनवाया है। जगदलपुर में भी नई लायब्रेरी बनी है। राजधानी में नालंदा परिसर पहले से बढ़ियां रन कर रहा है। कहने का आशय यह है कि अगर लायब्रेरी हो तो आज भी पढ़ने वाले लोग हैं। सरकार को कम-से-कम नगर निगमों को अनिवार्य करनी चाहिए कि एक लायब्रेरी बनवाए। वैसे भी, नगर निगमों का ये कर्तव्य है कि अपने नागरिकों को एजुकेट करने…उन्हें पढ़ने का वातावरण मुहैया कराएं। सिर्फ नाली तोड़ो, फिर बनाओ, फिर तोड़ो…और अवैध बिल्डिंगों को संरक्षण दें, यही काम थोड़े है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. निगम, मंडलों में लाल बत्ती की दूसरी लिस्ट किधर अटक गई है?
2. एक पुलिस कप्तान का नाम बताइये, जिनकी कीर्तिमानी पारी से लग रहा कि उन्हें अब दोबारा एसपी बनने का मौका नहीं मिलेगा?

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