संजय के दीक्षित
तरकश के तीर, 17 जनवरी 2021
सूरा प्रेमियों…बुरी खबर!
कोरोना की वैक्सिन लगनी शुरू हो गई है। जाहिर तौर पर लोगों में राहत के साथ खुशी के भाव हैं। लेकिन, जिन डाॅक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को टीके लगाए गए हैं, उनमें से कुछ लोगों पर क्या गुजर रही, उनका दर्द कोई समझ नहीं सकता। टीका लगाने से पहले उन्हें दो टूक बताया गया…अगला टीका 28 दिन बाद 13 फरवरी को लगेगी। और इसके चार हफ्ते बाद तक आप ड्रिंक नहीं कर सकते। यानी 16 जनवरी से लेकर 13 मार्च तक। लगभग दो महीने। जो ड्रिंक नहीं करते उनके लिए भले ही यह मामूली बात होगी। लेकिन, जो शौकीन हैं या रोज वाले….? उनका क्या होगा? लाॅकडाउन में दोगुने-तीगुने रेट पर अपने ब्रांड का इंतजाम कर लेने वाले सूरा प्रेमियों के लिए यह किसी दुःस्वप्न से कम नहीं होगा। इससे इतर चिंता की बात ये भी है, ड्रिंक की बंदिशों की वजह से कुछ हेल्थ अफसर और वर्कर ऐन वक्त पर गायब हो गए। ये ठीक नहीं। उन्हें समझना होगा शराब बड़ी नहीं, जान बड़ी है। ऐसे लोगों को उन परिवारों से मिलना चाहिए, जिन्होंने कोरोना में अपने प्रिये को खो दिया।
नाम का चक्कर
सेम नाम भी कई बार मुसीबत का सबब बन जाता है। 11 जनवरी को राजधानी में ऐसा ही कुछ हुआ कि दो साल से ठंडी पड़ी ब्यूरोक्रेसी में उबाल आ गया। दरअसल, फायनेंस सर्विसेज की एडिशनल डायरेक्टर गीता सोनी के बेटे के खिलाफ राजधानी के एक थाने में मारपीट का मुकदमा दर्ज हुआ। सोशल मीडिया ने अतिउत्साह में इसे महिला आईएएस के बेटे के नाम से खबर चला दी। जाहिर है, इस पर बवाल तो मचना ही था। आईएएस के व्हाट्सएप ग्रुप में इंक्लाब जैसी स्थिति निर्मित हो गई। महिला आईएएस ने लिखा, साजिशतन मेरी छबि खराब करने की कोशिश की जा रही। इसके बाद कुछ काॅमरेड आईएएस अधिकारियों ने पूरा ठीकरा पुलिस पड़ फोड़ दिया। चलिये, नाम के फेर में ही सही, आईएएस जागे तो। वरना, दो साल से व्हाट्सएप ग्रुप पर जन्मदिन के विश के अलावा अभिव्यक्ति की आजादी दिखाई नहीं पड़ रही थी।
बड़ा और छोटा
ब्यूरोक्रेसी में एक नाम के चक्कर में गफलत होना नई बात नहीं है। हाल ही में सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रसन्न्ना पी की जगह प्रसन्ना आर की पोस्टिंग कर दी थी। कुछ घंटे बाद जब चूक का अहसास हुआ तो फिर संशोधित आदेश प्रसन्ना पी के नाम से निकाला गया। इन दोनों अधिकारियों के नाम पर बड़ा कंफ्यूजन होता है। इसीलिए, जल्दी समझने के लिए लोग बड़ा प्रसन्ना, छोटा प्रसन्ना कहते हैं। बड़ा प्रसन्ना मतलब प्रसन्ना आर। और, छोटा….प्रसन्ना पी। छोटा का आशय जूनियर से है। इसी तरह पहले डीएस मिश्रा और जीएस मिश्रा में होता था। जल्दी बोलने पर लोग एक बार में समझ नहीं पाते थे। फिर डीएस मतलब दाढ़ी वाले और जीएस याने जी फाॅर गणेश।
आईएफएस में ऐसा क्यों
रिटायर पीसीसीएफ केसी यादव की कोरोना से मौत हो गई। जाहिर तौर पर इतने बड़ी घटना अगर आईएएस में हुई होती तो उनके घर वालों को भटकना नहीं पड़ता। लेकिन, केसी यादव की पत्नी सुनिति कई महीने से अफसरों का चक्कर लगा रही हैं कि कोई उनकी मदद कर दें तो पेंशन और पीएफ, ग्रेच्यूटी निकल जाए। असल में, रिटायरमेंट के चंद महीने बाद ही यादव को कोरोना ने अपना शिकार बना लिया। रिटायरमेंट के बाद जो पैसा मिलता है, वो भी पूरा नहीं मिला था। उपर से उनकी मौत को छह महीने से उपर होने जा रहा, मगर अभी भी पेंशन की फाइल भटक रही है।
सीएम की घोषणा और…
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नगरनार स्टील प्लांट को केद्र द्वारा निजी हाथों में बेचे जाने के खिलाफ बड़ा फैसला लेते हुए उसे खरीदने का ऐलान किया। लेकिन, बस्तर के जनप्रतिनिधि सीएम के इस गंभीर फैसले को समझने के लिए लगता है तैयार नहीं। हाल यह है कि बाहर से प्लांट की कमीशनिंग के लिए आ रहे एक्सपर्ट को गेट से भीतर नहीं घुसने दिया जा रहा। वो भी तब, जब मुख्यमंत्री ने सरकार का रुख स्पष्ट कर दिया है। ऐसे में, नगरनार प्लांट के प्रति एक स्वाभाविक लगाव बढ़ जाता है। बहरहाल, भिलाई स्टील प्लांट से भी वृहद और अतिआधुनिक नगरनार संयंत्र अब आखिरी स्टेज पर है। 20 हजार करोड़ के इस प्लांट में अगर बाधाएं खड़ी की गईं तो निश्चित तौर पर इसका नुकसान छत्तीसगढ़ और बस्तर का होगा। क्योंकि, सरकार ने अगर उसे खरीदना तय कर लिया है तो पहला मौका राज्य को ही मिलेगा।
चोर की दाढ़ी में तिनका
पिछले तरकश में एक सवाल था….एक रिटायर आईएएस प्रेम की गहराइयों में गोते लगा रहे हैं। इसके बाद रिटायर नौकरशाहों में जाहिर है बेचैनी बढ़नी ही थी। बताते हैं, कुछ के घर में सुबह से गृह युद्ध छिड़ गया तो कुछ की घरवाली अभी भी मुंह फुलाई हुई हैं….सवाल एक ही है….मैंने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया। एक अफसर ने चोर की दाढ़ी में तिनका की की तरह खुद ही पत्नी को तरकश पढ़वा दिया….बाबा मैं नहीं हूं। इसमें इंटरेस्टिंग यह रहा कि सवाल किसी एक रिटायर आईएएस के बारे में था लेकिन, बाद में स्तंभकार के पास फोन करके कई और अफसरों के बारे में भी लोगों ने सनसनीखेज सूचनाएं दे डाली।
एक और आयोग
29 जनवरी को बाल संरक्षण आयोग की चेयरमैन प्रभा दुबे का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। प्रभा भाजपा शासन काल में चेयरमैन बनी थी। चूकि एक्ट के तहत यह आयोग बना है, इसलिए बिना किसी गंभीर मामलों के आयोग के चेयरमैन को हटाया नहीं जा सकता। लिहाजा, सरकार बदलने के बाद भी प्रभा दुबे अपने पद पर कायम रहीं। लाल बत्ती के दावेदारों के लिए एक वैकेंसी और मिल जाएगी।
छत्तीसगढ़ स्वर्ग कैसे?
अफसरों को खुश कर सरकार को चूना लगाने वाली कंपनियों के लिए छत्तीसगढ़ किस तरह स्वर्ग है, ये आज आपको बताते हैं। झारखंड की आईटी कंपनी को छत्तीसगढ़ में रजिस्ट्री आफिस का काम मिला है। कंपनी ने चार साल पहले करीब 10 करोड़ लगाकर आफिस में कंप्यूटरीकरण का काम किया है। और इसके एवज मेें हर साल लगभग 50 करोड़ ऐंठ रही है। वो ऐसे हुआ कि कंपनी ने पिछले सरकार में अधिकारियों से रजिस्ट्री के एक पेज का 60 रुपए रेट तय करवा लिया। जमीन की एक रजिस्ट्री में लगभग 20 पेज का कागज बनता है। यानी एक रजिस्ट्री पर करीब 12 सौ रुपए का सेवा कर कंपनी को देना पड़ता है। सूबे में साल में लगभग चार लाख जमीन की रजिस्ट्री होती है। इस हिसाब से एक साल में 48 करोड़ का भुगतान कर रही सरकार। जबकि, रजिस्ट्री विभाग के अधिकारी चाहें तो अपना साफ्टवेयर बनवा सकते हैं। डा0 आलोक शुक्ला जब इतने बड़े लेवल पर धान खरीदी का साफ्टवेयर दो महीने में बनवा सकते हैं तो रजिस्ट्री विभाग क्यों नहीं। मगर अधिकारी नकारे और भ्रष्ट हों तो क्या किया जा सकता है। दिलचस्प यह है झारखंड की इस कंपनी को झारखंड में भी काम मिला था। वहां 20 रुपए रेट था। लेकिन, विरोधों के बाद झारखंड सरकार ने कंपनी से करार खतम करते हुए खुद का कंप्यूटराइजेशन कर लिया। दूसरा, तत्कालीन चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड एक बार रजिस्ट्री आफिस का मुआयना करने पहुंचे थे तो कंपनी के रेट पर हैरानी जताते हुए उन्होंने कहा था, इतना मार्जिन ठीक नहीं। रेट कम किया जाए। फिर भी रेट कम नहीं किया गया।
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