संजय के. दीक्षित
तरकश, 26 दिसंबर 2021
बिहार विधानसभा में पिछले हफ्ते एक अजीब वाकया हुआ। लेबर मिनिस्टर जीवेश मिश्रा की गाड़ी विधानसभा की पोर्च में खड़ी थी...गाड़ी में मंत्रीजी बैठे थे। मगर पुलिस वालों ने एक न सुनी...उनकी गाड़ी साइड करवा दी कि पटना के कलेक्टर, एसपी साहब की गाड़ी आ रही है। विधानसभा सत्र के दौरान मंत्री, एमएलए साब लोग ज्यादा पावरफुल हो जाते हैं। लेकिन, पटना में अफसरों के लिए मंत्री की गाडी किनार लगवा दी गई। मंत्रीजी ने तुरंत सदन के भीतर जाकर मामला उठाया...बोले...जब एक मंत्री के साथ अधिकारी ऐसा व्यवहार करेंगे तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा। स्पीकर ने उन्हें यह बोलकर बिठा दिया कि देखते हैं....। जाहिर है, उसमें कुछ होना नहीं था, इसलिए कुछ नहीं हुआ। पटना के कलेक्टर, एसपी सरकार के बेहद क्लोज हैं, ऐसे में मंत्री लोग समझदार थे....समझ गए। एक घटना छत्तीसगढ़ के मुंगेली में भी हुई है। लेकिन पटना से बिल्कुल उलट। यहां जिला पंचायत के आईएएस सीईओ रोहित व्यास को महिला सदस्य ने चप्पल लेकर मारने दौड़ा दी। वाकई! ये छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ। अफसर इसे अलार्मिंग मानें।
सीनियर जिम्मेदार-1
मुंगेली जिपं सीईओ रोहित व्यास के साथ दुर्व्यवहार की घटना हुई, उसके लिए क्या सीनियर अफसर जिम्मेदार नहीं हैं? रोहित नए आईएएस हैं। मुंगेली कैसा जिला है, निष्चित रूप से वे वाकिफ नहीं होंगे। वो भी महिला सदस्य...लैला नानकू भिखारी जैसी तेज। महिला नेत्री को इससे क्या मतलब कि आप प्रमोटी आईएएस हो या आरआर। आडियो में सुना ही जा रहा...रोहित बोल रहे, एसपी साब से बात करता हूं....महिला नेत्री कह रही...एसपी साहब क्या कर लेंगे, बुला लो। फिर मुंगेली के एसपी भी बहुत बड़े वाले। महिला नेत्री प्रतिनिधिमंडल के साथ जातिगत गाली देने की शिकायत लेकर पहुंचती है....वो भी डायरेक्ट आईएएस के खिलाफ। एसपी बोलते हैं...आप सभी का स्वागत है...जांच के बाद कार्रवाई होगी। बहरहाल, सीनियर अफसर अगर रोहित को मुंगेली की हकीकत बता दिए होते तो यकीनन ब्यूरोक्रेसी को हिलाने वाली ये घटना नहीं होती।
सीनियर जिम्मेदार-2
पहले आईएएस अफसरों में बड़ा मेलजोल रहता था। प्रोबेशनर और जूनियर अफसर कलेक्टर, एसपी के बड़े घनिष्ठ हो जाते थे। कई बार परिवार के सदस्य की तरह। कलेक्टर, एसपी जूनियर अफसरों को डांटते भी थे, सीखाते भी थे और साथ में बिठाकर दो-एक पैग पिला भी देते थे। इससे नए अधिकारियों का स्ट्रेस खतम हो जाता था। मगर 2014-15 के बाद सीनियर-जूनियर अफसरों के बीच ये इंटरेक्शन धीरे-धीे खतम होते गए। आज अगर अमृत टोपनो स्ट्रेस में नौकरी से इस्तीफा देने की बात करते हैं तो कोई ऐसा सीनियर नहीं है, जो दो-चार गाली बके, डांटे और फिर पुचकारकर बता दे कि ये सब जीवन का हिस्सा है।
और ताकतवर
नगरीय निकाय चुनाव के इस तरह के नतीजों का दावा तो कांग्रेस के नेता भी नहीं कर पा रहे थे। सियासी पंडितों का भी तर्क था... भिलाई, चरौंदा और रिसाली में प्रबुद्ध वर्ग के वोटर ज्यादा हैं...शहरी मतदाता सरकार की नीतियों से बहुत खुश नहीं हैं। मगर जब रिजल्ट आया तो इन तीनों में कांग्रेस का परचम फहरा गया। स्थानीय चुनावों में रुलिंग पार्टी जीतती है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। बीजेपी के 15 साल के दौरान बिलासपुर, रायपुर, कोरबा, राजनांदगांव, भिलाई जैसे कई निगमों में कांग्रेस का महापौर रहा। जाहिर है, सियासत के इस सेमिफायनल में मिली जीत से सीएम भूपेश और ताकतवर हुए हैं।
आईपीएस की निगरानी
सर्विस रिव्यू कमेटी की अनुशंसा पर सरकार ने चार आईपीएस अफसरों के नाम भारत सरकार को भेजे हैं। इनमें से तीन को फोर्सली रिटायर और एक को निगरानी। निगरानी का मतलब होता है, संदिग्ध गतिविधियों को वॉच करना। याने पुख्ता सबूत नहीं है, मगर शक है। बीजेपी सरकार में लांग कुमेर को भी निगरानी में डाला गया था। ये अलग बात है कि वे डेपुटेशन पर अपने होम स्टेट नागालैंड जाकर डीजीपी बन गए। बहरहाल, जिन तीन आईपीएस को फोर्सली रिटायर करना है, उसमें से एक के बारे में पिछले तरकश में जिक्र किया गया था। सर्विस रिव्यू कमेटी के चेयरमैन चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन थे। मेम्बर में डीजीपी अशोक जुनेजा, एसीएस होम सुब्रत साहू और राजस्थान के डीजी डीएल सोनी। दरअसल, नियमानुसार चीफ सिकरेट्री ने राजस्थान के चीफ सिकरेट्री से एक डीजी लेवल के अफसर का नाम मांगे थे। सीएस ने 88 बैच के आईपीएस सोनी को भेज दिया। 4 दिसंबर को मीटिंग हुई। और, चार नाम तय किए गए। पिछली सरकार में सीएस विवेक ढांड की अध्यक्षता वाली रिव्यू कमेटी ने आईपीएस राजकुमार देवांगन, एएम जुरी और केसी अग्रवाल के नाम फोर्सली रिटायरमेंट के लिए भेजे थे। भारत सरकार ने तीनों को रिटायर कर दिया था। हालांकि, जुरी और अग्रवाल कैट से स्टे ले आए थे। देवांगन का कैरियर जरूर खतम हो गया।
बेचारे मंत्रीजी
एक मंत्रीजी को नगरीय निकाय चुनाव में प्रभारी बनाया गया था। वहां सत्ताधारी पार्टी पिछड़ गई। अब मंत्री की हालत पतली हो रही है। मंत्रिमंडल की सर्जरी में जिन तीन के नाम पब्लिक डोमेन में हैं, उनमें एक नाम उनका भी है। ऐसे में, उनकी चिंता समझी जा सकती है। पता चला है, मंत्रीजी ने अपने लोगों को फ्री हैंड दे दिया है...जो बोले...वो दे दो। मगर किसी भी सूरत में निकाय प्रमुख पार्टी का बनना चाहिए।
न्यू ईयर गिफ्ट
आईएएस अफसरों का प्रमोशन लगभग फायनल स्टेज में है। 97 बैच के सुबोध सिंह, निहारिका बारिक और एम गीता प्रमुख सचिव बनेंगे। और 2006 बैच के अंकित आनंद, श्रुति सिंह, पी0 दयानंद, सीआर प्रसन्ना, अलेक्स पाल मेनन, भुवनेश यादव और एस भारतीदासन सिकरेट्री। सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही इन्हें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से न्यू ईयर गिफ्ट मिल सकता है।
नीयत पर सवाल
10 अक्टूबर के तरकश में-तेरे घर के सामने शिर्षक से स्तंभकार ने लिखा था कि नौकरशाहों को उपकृत करने एनआरडीए उनके सेक्टर के सामने रेलवे स्टेशन बनवा रहा। और यह बात सही निकली। रेलवे ने चार में से तीन के टेंडर निरस्त कर अब सिर्फ अफसरों की जमीन के पास वाले स्टेशन का टेंडर जारी कर दिया है। 30 दिसंबर को टेंडर भरा जाएगा। दरअसल, एनआरडीए ने सेक्टर 15 के सामने स्टेशन होने का हवाला देकर धड़ाधड़ पूरे प्लाट सेल कर डाले। उसमें कई नौकरशाहों ने दो-दो, तीन-तीन प्लाट खरीद डाले या फिर अपने नाते-रिश्तेदारों को खरीदवा दिए...10 साल बाद नवा रायपुर जब ठीक-ठाक हो जाएगा तो मस्त रहेंगे। बताते हैं, इस सेक्टर के 80 फीसदी प्लाट अफसरों या उनके रिश्तेदारों के नाम पर हैं। लेकिन, मामला तब गड़बड़ा गया जब रोकड़ा के अभाव में स्टेशन का प्रोजेक्ट बाइंडअप होने लगा। ऐसे में, नौकरशाहों की नाराजगी समझी जा सकती है...घर के सामने स्टेशन बनेगा, सोचकर पैसा फंसाए थे। अफसरों के गुस्से को देख एनआरडीए ने सिर्फ एक स्टेशन का रि-टेंडर किया है। वह सेक्टर 15 के बगल वाला। नौकरशाहों को इस तरह उपकृत करने से एनआरडीए की नीयत पर सवाल तो उठेंगे ही।
खड़मास में शपथ!
यह तय हो चुका है कि चारों नगर निगमों में सत्ताधारी पार्टी का महापौर बनेगा। अब सवाल है, परिषद का गठन कब होगा? नियम यह है कि राजपत्र में नोटिफिकेशन प्रकाशित होने के बाद 15 दिन के भीतर परिषद गठित होगा। राज्य निर्वाचन आयोग ने 24 दिसंबर को राजपत्र में प्रकाशित किया है। लिहाजा, 8 जनवरी तक महापौर एवं नगरपालिका, नगर पंचायत प्रमुखों को शपथ लेना होगा। इस समय खड़मास चल रहा होगा। लेकिन, किया कुछ नहीं जा सकता...नियम मतलब नियम।
अंत में दो सवाल आपसे
1. सर्विस रिव्यू कमेटी ने आईपीएस अफसर का नाम निगरानी सूची में रखने की सिफारिश की है?
2. मंत्रिमंडल की सर्जरी की चर्चा शुरू होने के बाद किस मंत्री को रात में नींद की गोली लेनी पड़ रही है?
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