रविवार, 30 जनवरी 2022

आईजी का टोटा खतम

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 30 जनवरी 2022

आईपीएस की प्रमोशन की फाइल तैयार होकर गृह विभाग में पहुंच गई है। मुख्यमंत्री से ओके होने के बाद किसी भी दिन आदेश निकल जाएगा। इसमें 97 बैच के दिपांशु काबरा आईजी से एडीजी प्रमोट होंगे। तो वहीं 2004 बैच आईजी बनेगा और 2008 बैच डीआईजी। 2004 बैच में आधा दर्जन आईपीएस हैं। अभिषेक पाठक, नेहा चंपावत, अजय यादव, बद्रीनारायण मीणा, अंकित गर्ग और संजीव शुक्ला। इनमें से अभिषेक और अंकित डेपुटेशन पर हैं। फिर भी एक साथ चार आईजी मिलेंगे। फिलहाल, आईजी की संख्या करीब आधा दर्जन है। प्रमोशन के बाद अब आईजी की टोटा जैसी स्थिति खतम हो जाएगी। अभी तक छत्तीसगढ़ में स्थिति यह थी कि जितने रेंज हैं, उतने अफसर नहीं होते थे। आईजी के प्रमोशन के साथ ही 2008 बैच के आईपीएस पारुल माथुर, प्रशांत अग्रवाल, नीतू कमल, डी. श्रवण, मिलना कुर्रे, कमललोचन कश्यप और केएल ध्रुव डीआईजी पदोन्नत होंगे। हालांकि, पिछले साल आईपीएस का प्रमोशन 11 महीने विलंब से नवंबर में हुआ था...मगर इस बार संकेत हैं, सब कुछ जल्दी होगा।      

एसपी की लिस्ट

आईपीएस का प्रमोशन चाहे जब भी हो, उसके साथ एसपी की लिस्ट भी निकलेगी। वजह यह कि दुर्ग एसपी बद्री नारायण मीणा प्रमोट होकर आईजी बन जाएंगे। और देश में आईजी बनने के बाद कप्तानी करने का दृष्टांत कहीं मिलते नहीं। एडीजी प्रमोशन के बाद रेंज आईजी का प्रभार जरूर रहा है। एमपी कैडर के आईपीएस विजय यादव एडीजी प्रमोट होने के बाद भी लंबे समय तक भोपाल रेंज के प्रभारी रहे। इसी सरकार में हिमांशु गुप्ता एडीजी बनने के बाद काफी दिनों तक दुर्ग पुलिस रेंज की कमान संभाले रहे। बहरहाल, छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक 9 जिलों के एसपी रहने का रिकार्ड बना चुके बद्री आईजी बनने के बाद कप्तानी से विदा लेंगे तो दुर्ग को नया एसपी मिलेगा। दुर्ग बड़ा जिला है। वीवीआईपी के साथ संजीदा भी। चुनाव का समय भी आ रहा है। ऐसे में, सरकार वहां किसी सीनियर लेवल के अफसर को मौका देना चाहेगी। सीनियर में डीआईजी लेवल के जीतेंद्र मीणा जगदलपुर जिला संभाल रहे हैं और दीपक झा बलौदा बाजार। डीआईजी के हिसाब से बलौदा बाजार काफी छोटा हो जाता है। प्रमोटी में डीके गर्ग और बालाजी सोमावार भी हैं। एसएसपी लेवल में डी. श्रवण रायगढ़ में कमांडेंट हैं। जाहिर है, दुर्ग एसपी की नियुक्ति के साथ ट्रांसफर का एक छोटा चेन बनेगा। 

छत्तीसगढ़ में 'का बा'

नेहा सिंह राठौड़ बिहार की लोक गायिका हैं। यूपी इलेक्शन के दौरान उनका वीडियो सांग...यूपी में 'का बा'...यूपी में धूम मचाया ही,  देश भर में मशहूर हो गया है। हालांकि, नेहा सिंह के जवाब में भाजपा ने कई लोक कलाकारों को मैदान में उतारा है। लेकिन, नेहा की प्रस्तुतिकरण का जुदा अंदाज भारी पड़ रहा है। हालांकि, यूपी में 'का बा' के थीम पर छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने रमन का चश्मा नाम से एक वीडियो वायरल किया था। वीडियो में एक युवक चौराहे पर चश्मा बेचने वाले से पूछता है, भाई कौन-कौन से चश्मा रखे हो। चश्मे वाले ने कई चश्मा दिखाया, उनमें एक रमन का चश्मा था। युवक ने पूछा, इसकी खासियत? चश्मे वाले ने बताया, इसे लगा लेने से छत्तीसगढ़ में सब जगह अमन-चैन, हरियाली और डेवलपमेंट नजर आएगा। वीडियो में दिखाया गया था सायकिल सवार युवक जैसे ही रमन का चश्मा लगाता था, छत्तीसगढ़ में चकाचौंध, चहु ओर खुशहाली और उसे उतारते ही समस्याओं और तकलीफों से जूझते लोग। ये वीडियो भी काफी हिट हुआ था। यूपी में 'का बा' को इसका अपडेट वर्जन कहा जा सकता है।       

डेढ़ लाइन का व्हाट्सएप

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने चुनावी साल की तरह अबकी गणतंत्र दिवस पर घोषणाओं की झड़ी लगा दी। ये एैसी घोषणाएं थी, जिसमें राज्य के खजाने पर कोई लोड नहीं पड़ना है....उल्टे अवैध निर्माणों को रेगुलराइज करने से 200 से 250 करोड़ रुपए सरकार के खजाने में आएंगे। मगर इस बार की खासियत यह है कि सरकार ने छोटी चीजों को पकड़ा, जिससे आम आदमी सिस्टम के चक्कर में हलाकान होता है। मसलन, अपने पेड़ काटने की अनुमति की प्रक्रिया इतना कठिन है कि आदमी पेड़ लगाना भूल जाए। सरकार ने इसका सरलीकरण किया है। महिलओं के लिए जिले में महिला सुरक्षा प्रकोष्ठ। फाइव डे वीक से मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों को खुश किया तो इंडस्ट्रीयल लैंड के आबंटन में ओबीसी को 10 फीसदी रिजर्वेशन का सौगात दिया। रिहाईशी इलाकों में कामर्सियल निर्माण की नियमितीकरण एक बड़ा फैसला था। यही नहीं, इस बार गणतंत्र दिवस का मुख्यमंत्री का भाषण समाप्त होते ही मुख्यमंत्री सचिवालय हरकत में आया। सिकरेट्री और कलेक्टरों के व्हाट्सएप ग्रुप में सीएम सचिवालय से डेढ़ लाइन का मैसेज पोस्ट हुआ....दो दिन के भीतर मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर क्रियान्यवन षुरू हो जाना चाहिए। यही वजह है कि 27 जनवरी की सुबह से मंत्रालय में नोटशीट चलने लगी।  

खुशी की बात सही...

फाइव डे वीक का ऐलान करके मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कर्मचारियों को बड़ी सौगात दी। अब वे दो दिन छुट्टी का आनंद उठा सकेंगे। जाहिर है, इसे कर्मचारियों की ओर से रिस्पांस भी मिलना ही था। सरकार को शुक्रिया बोलने अधिकारी, कर्मचारी संघों में होड़ मच गई। वाकई ये एक बड़ा फैसला था। इस दृष्टि से भी कि आखिर महीने में दो शनिवार छुट्टी रहती ही है, दो और बढ़ाना था। लेकिन, इसी के साथ एक बात और....28 जनवरी को इस स्तंभ के लेखक ने केंद्र सरकार के रायपुर में स्थित एक आफिस के प्रमुख से मिलने का वक्त मांगा। टाईम मिला साढ़े नौ बजे। मैसेज देखकर चौंका...दिल्ली में ठीक है, रायपुर में...? निर्धारित टाईम से दो मिनट पहले केंद्रीय कार्यालय पहुंच गया। पीए से पूछा साब आ गए हैं, जवाब मिला साब नौ बजे आ जाते हैं। भारत सरकार में फाइव डे वीक है इसलिए नौ बजे से दफ्तर लग जाता है। अब चूकि हफ्ते में दो दिन छुट्टी मिल गई है तो कर्मचारियों को भी टाईम का पाबंद होना चाहिए। 

राठौर की याद

ऑफिस की टाईमिंग की बात आती है तो दिवंगत डीजीपी ओपी राठौर की याद बरबस आ जाती है। शांति सेना में कई साल तक कोसोवा और बोस्निया में पोस्टेड रहे राठौर समय और अनुशासन के बेहद पक्के रहे। ठीक साढ़े नौ बजे उनकी गाड़ी पुराने पुलिस मुख्यालय में लग जाती थी। नौ बजे से लेकर साढ़े दस बजे तक डीजीपी के आफिसियल लैंडलाईन नम्बर पर


कॉल आते थे, वे खुद रिसीव करते थे...यस, राठौर बोल रहा हूं। डीजीपी से वास्ता पड़ने वाले अधिकांश लोगों को पता था कि डीजीपी सुबह के टाईम सीधे फोन उठाते हैं। लिहाजा, पीए के नाना प्रकार के नखरे से बचने के लिए अनेक लोग सुबह फोन लगाकर सीधे उनसे बात कर लेते थे। कहने का आषय यह है कि नदी उपर से नीचे बहती है। अधिकारी अगर टाईम पर आने लगे तो कर्मचारी दो-तीन दिन इधर-उधर होंगे...इससे अधिक नहीं।      

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस जिले के एसपी पर पड़ोसी जिले के एसपी को बदनाम करने कुचक्र रचने के आरोप लग रहे हैं?

2. क्या कलेक्टरों की एक छोटी लिस्ट और निकल सकती है या फिर यूं ही फैलाया जा रहा है?

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