रविवार, 26 जून 2022

कलेक्टरों की बड़ी सूची

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 26 जून 2022

कलेक्टरों की बहुप्रतीक्षित ट्रांसफर की चर्चाएं फिर शुरू हो गई है। दावे तो यहां तक किए जा रहे कि जुलाई के पहले हफ्ते तक सरकार लिस्ट जारी कर देगी। असल में, कलेक्टरों का ट्रांसफर विधानसभा के बजट सत्र के बाद से ही चर्चा में है। तब मुख्यमंत्री के विस दौरे की वजह से टल गया। अब बस्तर और सरगुजा संभाग में सीएम के भेंट-मुलाकात के कार्यक्रम करीब-करीब पूरे हो गए हैं। जशपुर जिला भी आज निबट जाएगा। बचेगा सिर्फ सरगुजा और कोरिया विधानसभा। बाकी रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग संभाग के कलेक्टरों का पारफारमेंस परखने सरकार को वहां जाने की जरूरत नहीं। इन जिलों में मुख्यमंत्री के दौरे होते रहते हैं और उनके फीडबैक भी सरकार को मिलते रहते हैं। बेशक, लिस्ट इस बार काफी बड़ी होगी। 28 में से 18 से अधिक जिलों के कलेक्टर बदल जाएं, तो अचरज नहीं।

रजत रायपुर?

कलेक्टरों को लेकर ब्यूरोक्रेसी में जिस तरह की अटकलें चल रही...2012 बैच के आईएएस और बस्तर कलेक्टर रजत बंसल को राजधानी रायपुर की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। रजत रायपुर नगर निगम के कमिश्नर रहे हैं। फिर, रायपुर में कोई भी कलेक्टरी नहीं कर सकता। यहां ऐसे अफसर चाहिए, जो सबको लेकर चल सकें। रुलिंग पार्टी को वेटेज दे ही, अपोजिशन को भी बैलेंस कर चले। कुल मिलाकर रजत का नाम रायपुर के लिए सबसे उपर चल रहा है। वैसे भी, बस्तर के सात में से पांच जिलों के कलेक्टर बदले जाने के संकेत हैं। बदलने वालों में पांचों संभागीय मुख्यालयों याने जगदलपुर, रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, सरगुजा के कलेक्टर भी शमिल होंगे। सूबे के सबसे सीनियर कलेक्टर भीम सिंह की रायगढ़ से वापसी होगी। तो रायपुर कलेक्टर सौरभ कुमार, बिलासपुर कलेक्टर डॉ0 सारांश मित्तर, अंबिकापुर कलेक्टर संजीव झा, दंतेवाड़ा कलेक्टर दीपक सोनी को ठीक ठाक जिला मिल सकता है। कुल मिलाकर सरकार इस बार अगले साल चुनाव को देखते कलेक्टरों के नाम के पत्ते फेटेंगी। इस बार जो कलेक्टर अपाइंट होंगे, उनमें से कोई अगर हिट विकेट नहीं हुआ, तो वे ही विधानसभा चुनाव कराएंगे। ऐसे में, लिस्ट की संजीदगी समझी जा सकती है।

नया काम...बिल्कुल नहीं

कलेक्टरों का ट्रांसफर अब इसलिए भी अपरिहार्य हो गया है कि संभावित लिस्ट में शामिल कलेक्टरों ने पिछले कुछ महीनों से खुद को समेट लिया है। नए काम....बिल्कुल नहीं। मैदानी इलाकों के कलेक्टरों को मालूम है, मुख्यमंत्री का भेंट-मुलाकात भी अब बरसात के बाद ही होगा। सो, चिंता नहीं। दरअसल, 28 में करीब 15 कलेक्टरों को अच्छी तरह पता है कि उन्हें हटना ही है। भले ही जिला बदलेगा...फिर पुराने जिले में क्यों...नए जिले में जाकर जो करना होगा, करेंगे।

कलेक्टरों की प्रायरिटी

छत्तीसगढ़ के कलेक्टरों के कामकाज को इनोवेशन और प्रधानमंत्री अवार्ड ने बड़ा खराब किया...वरना, हमारे कलेक्टर ऐसे नहीं थे। खासकर, पिछले दशक में कलेक्टरों की लाईन, लेंग्थ एकदम बदल गई। सिर्फ और सिर्फ इनोवेशन...और उसे किसी तरह दिल्ली तक पहुंचाओ। इस चक्कर में मूल काम पीछे छूट गया। कलेक्टर लगे बिल्डिंग बनवाने। जबकि, कलेक्टरों का पहला काम है जनता की समस्याओं को कम करना और सरकार के लिए रेवन्यू बढ़ाना। इसे छोड़ कलेक्टर अपना रेवन्यू बढ़ाने लगे। बिल्डिंग बनाना पीडब्लूडी का काम है। सवाल उठते हैं, डीएमएफ का पैसा फूंक कलेक्टरों को पीठ थपथपाने का मौका क्यों दिया जाए। सरकार को इसे संज्ञान लेना चाहिए।

बुरे दिनों में प्रमोटी

एक समय था जब प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या कुल कलेक्टरों से आधे के करीब होती थी। इस सरकार में भी शुरू में 27 में 12 कलेक्टर प्रमोटी हो गए थे। मगर धीरे-धीरे प्रमोटी कलेक्टरों का पराभाव होने लगा...डायरेक्ट याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस भारी पड़ने लगे। पांच नए को मिला लें, तो छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या 33 हो गई है। नए जिलों के ओएसडी में भी डायरेक्ट आईएएस को प्राथमिकता मिली। इस वक्त बस्तर संभाग के सात जिलों में एक भी प्रमोटी नहीं हैं। जबकि, पहले सात में से कम-से-कम दो कलेक्टर प्रमोटी होते थे। रायपुर संभाग के सिर्फ बलौदाबाजार में डोमन सिंह प्रमोटी का झंडा उठाए हुए हैं। सबसे अधिक तीन कलेक्टर दुर्ग संभाग में हैं। तारन सिनहा राजनांदगांव, जनमजय मोहबे बालोद और रमेश शर्मा कवर्धा। बिलासपुर संभाग में जांजगीर में जितेंद्र शुक्ला। सरगुजा संभाग के सूरजपुर में इफ्फत आरा। याने 33 में छह प्रमोटी। हालांकि, इलेक्शन ईयर में प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या बढ़ती है। दरअसल, चुनावी साल में प्रमोटी सरकारों के लिए ज्यादा उपयोगी होते हैं। डायरेक्ट वाले हवा का रुख भांपकर तेवर दिखाने लगते हैं। अब देखना दिलचस्प होगा, अबकी लिस्ट में कितने प्रमोटी को मौका मिलता है।

उप राष्ट्रपति छत्तीसगढ़ से?

राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही अगले महीने उप राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाएगी। और अगस्त में देश को नए उप राष्ट्रपति मिल जाएंगे। नए उप राष्ट्रपति के लिए छत्तीसगढ़ बीजेपी के बड़े नेता और इस समय झारखंड के राज्यपाल का दायित्व निभा रहे रमेश बैस का नाम भी चर्चा में है। बैस रायपुर से लगातार सात बार सांसद रह चुके हैं। अटलबिहारी बाजपेयी सरकार में केंद्र में मंत्री भी। पिछले लोकसभा चुनाव में बैस को लोकसभा का टिकिट नहीं मिला। मगर बाद में उन्हें त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया। फिर उसके बाद झारखंड का। बैस कुर्मी समाज से आते हैं। राष्ट्रपति आदिवासी महिला और उप राष्ट्रपति ओबीसी में दबदबा रखने वाले कुर्मी समाज से...जाहिर है 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इसका स्वाभाविक लाभ मिलेगा। बता दें, देश में लोकसभा की ट्राईबल रिजर्व सीटों की संख्या 47 और विधानसभा की 485 हैं।

रिटायर्ड...पर पद बरकरार

ठाकुर राम सिंह राज्य निर्वाचन आयुक्त पद से पिछले महीने रिटायर हो चुके हैं। लेकिन, उनकी कुर्सी अब भी बरकरार है। आप पूछेंगे कैसे? तो राज्य निर्वाचन के नियम है कि नए आयुक्त की ताजपोशी होने तक पुराने आयुक्त पद पर बने रहेंगे। हालांकि, इसकी समय सीमा है। अधिकतम छह महीने तक। छह महीने के भीतर सरकार को नया आयुक्त हर हाल में नियुक्त करना होगा। तब तक रिटायरमेंट के बाद भी राम सिंह पद पर बनें रहेंगे।

डीडी सिंह की ताजपोशी?

नए राज्य निर्वाचन आयुक्त के लिए रिटायर्ड आईएएस डीडी सिंह का नाम सबसे प्रमुख है। डीडी पिछले साल रिटायर होने के बाद संविदा में सिकरेट्री टू सीएम हैं। हो सकता है, मुख्यमंत्री की व्यस्तता की वजह से डीडी सिंह का आदेश नहीं निकल पा रहा हो। मगर अब संकेत मिल रहे हैं, जशपुर की भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के बाद सरकार कुछ करें। राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल छह बरस का है। याने डीडी को रिटायर हुए एक साल हो गया है। अभी अगर उनकी पोस्टिंग हो गई तो वे पांच साल और इस पद पर रहेंगे। याने 2027 तक।

ठगी पर चुटकी

स्वास्थ्य और पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव की तरफ से पिछले हफ्ते थाने में ठगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। इस पर सियासत और मीडिया के लोग चुटकी ले रहे हैं...बाबा ने किस ठगी की रिपोर्ट लिखाई हैं....?

लॉ एंड आर्डर बोले तो...

रायपुर पुलिस ने शिक्षा विभाग के रिटायर्ड अधिकारी की डायरी कांड का भले ही कर्मकांड कर अफसर को जेल भेज दिया। मगर स्कूल शिक्षा विभाग के कारनामे कम होने का नाम नहीं ले रहे। पोस्टिंग से लेकर, डेपुटेशन, अटैचमेंट, खरीदी, सप्लाई, हर चीज में पैसा। शिक्षा विभाग के खटराल अधिकारियों ने बकायदा कोड वर्ड बना लिया है...यह कहकर इशारा किया जाता है लॉ एंड आर्डर। इसका मतलब ला और आर्डर। याने लाऔ और आर्डर ले लो। गजबे है भाई।

डीएम का खौफ क्यों नहीं?

जशपुर में टीसी के बदले पैसे और बकरा मांगने वाले स्कूल की मान्यता डीईओ ने निरस्त कर दिया है। इसमें खबर यह है कि मुख्यमंत्री के जशपुर दौरे से एक दिन पहले किया गया। ऐसा क्यों? सीएम का दौरा नहीं होगा, तो कार्रवाई नहीं होगी। आखिर, जिलों के कलेक्टरो का खौफ क्यों नहीं? कलेक्टरों से विभाग के अधिकारी क्यों नहीं चमकते। असल में, एकाउंटबिलीटी की समस्या है। चीफ सिकरेट्री अगर जिम्मेदारी तय करने कोई स्पश्ट नियम बना दें तो कुछ तो सिस्टम सुधरेगा।

अंत में दो सवाल आपसेरजत 

1. जिले के किस पुलिस अधिकारी के बंगले पर लजीज भोजन पकाने के लिए दिल्ली से शेफ हायर किया गया है?

2. क्या जल्द ही किसी बड़े अधिकारी का विकेट गिर सकता है क्या?


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें