शनिवार, 25 मई 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: डीजीपी अशोक जुनेजा को एक्सटेंशन?

 तरकश, 26 मई 2024

संजय के. दीक्षित

डीजीपी को एक्सटेंशन?

ठीक ही कहा गया है...वक्त बलवान होता है। वरना, विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी वाले कोई मिश्राजी हर तीसरे दिन डीजीपी अशोक जुनेजा की शिकायत लेकर चुनाव आयोग पहुंच जाते थे। तब यह स्पष्ट था कि बीजेपी की सरकार बनी तो डीजीपी बदल दिए जाएंगे। बीजेपी के आने के बाद माहौल बना भी। मीडिया में रोज ही खबरें...जुनेजा की विदाई का कभी भी आदेश निकल सकता है। नए डीजीपी के लिए राजेश मिश्रा से लेकर स्वागत दास जैसे कई नाम दौड़े। स्वागत दास के रायपुर आने की खबर भी एक रोज सोशल मीडिया में वायरल हो गई थी। मगर वक्त का खेल देखिए...दो महीना में ग्रह-नक्षत्र ऐसा बदला कि अब जुनेजा के एक्सटेंशन देने की अटकलें शुरू हो गई है। चर्चाओं को इस बात से बल मिल रहा कि बस्तर में सिक्यूरिटी फोर्सेज को जिस तरह की कामयाबी मिली है, उसमें राज्य सरकार अगर मिनिस्ट्री ऑफ होम को प्रस्ताव भेजे तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भला क्यों मना करेंगे। बस्तर में दो महीने में 50 से अधिक नक्सली मारे गए हैं। लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह तक इसे इनकैश किया है। हालांकि, जुनेजा को रिटायरमेंट के बाद करीब सवा साल का एक्सटेंशन मिल चुका है। जुनेजा अगर डीजीपी नहीं होते तो पिछले साल जून में रिटायर हो गए होते। वैसे तो वे सितंबर 2022 में प्रभारी डीजीपी बन गए थे। मगर 5 अगस्त 2022 को उन्हें रेगुलर डीजीपी बनाया गया। रेगुलर डीजीपी को दो साल का कार्यकाल दिया जाता है। लिहाजा, आने वाले 4 अगस्त को उनका कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। चूकि बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई चल रही है। सरकार में बैठे लोग भी बस्तर में नक्सलियों को उनके मांद में घुसकर मारने में जुनेजा को क्रेडिट दे रहे। दूसरा, सरकार जुनेजा के बाद उनके विकल्पों पर भी अश्वस्त नजर नहीं आ रही। इस स्थिति में, जुनेजा के एक्सटेंशन की चर्चाओं को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता।

किधर हैं...8 मिनिस्टर?

लोकसभा चुनाव का ऐलान होने के बाद से विष्णुदेव सरकार के 11 में से आठ मंत्रियों का कहीं कोई पता नहीं चल रहा है। पूरे चुनाव के दौरान तीन ही मंत्री पब्लिक डोमेन में दिखाई पड़े। दोनों डिप्टी सीएम अरुण साव और विजय शर्मा और तीसरे हाई प्रोफाइल मंत्री ओपी चौधरी। दरअसल, लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहिले कुछ मंत्री डिरेल्ड होते-होते बचे। रही-सही कसर पार्टी के प्रदेश प्रभारी नीतिन नबीन ने पूरी कर डाली। नीतीन ने सभी मंत्रियों को चेता दिया था कि लोकसभा चुनाव में मंत्रियों के इलाके में गड्ढा हुआ तो फिर खैर नहीं! अब मंत्री पद का सवाल है तो फिर इसके बाद कहां कुछ सूझता है। आठों मंत्री अपने इलाके में ही सिमटे रहे। हालांकि, छत्तीसगढ़ में वोटिंग हुए पखवाड़ा भर से ज्यादा हो गया है इसके बाद भी इन आठ मंत्रियों का कुछ पता नहीं चल रहा। मन में कहीं डर ज्यादा तो नहीं बैठ गया है।

भूपेश और विजय

छत्तीसगढ़ में ब्राम्हण मंत्रियों के लिए तरक्की के लिए कुछ खास गुंजाइश नहीं है। बावजूद इसके, डिप्टी सीएम विजय शर्मा पीछे नहीं रहते। तेवर तो उनके पास है ही, किस्मत भी उनकी भरपूर साथ दे रही है। नक्सल मोर्चे पर जो पिछले दो दशक में नहीं हुआ, वह दो महीने में हो गया। केंद्र के साथ नक्सल प्रभावित 12 राज्यों की नजरें छत्तीसगढ़ पर है कि किस तरह बस्तर में माओवादियों का खात्मा किया जा रहा है। रही बात सियासी मोर्चे की तो विजय फ्रंटफुट पर आकर खेल रहे हैं। नक्सलियों को बातचीत के ऑफर देने के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विजय शर्मा के बीच आमने-सामने की स्थिति है। चलिये ठीक है...मुख्यमंत्री रहते भूपेश बघेल ने पिछले पांच साल तक रमन सिंह के नाम को जीवंत रखा और अब विजय शर्मा से भिड़कर उनका कद बढा़ रहे हैं।

नो शक्ति केंद्र, नो परिक्रमा

अप्रैल तक सरकार को स्लो...पिछली बार से कुछ खास फर्क नहीं...कहने वाले लोग चकित हैं कि सिस्टम अचानक इतना तेजी से एक्शन मोड में कैसे आ गया। पिछले 15 दिन में सरकार में कई ऐसी चीजें हुई हैं...कई ऐसे आदेश जारी हुए हैं, जिससे एक मैसेज गया है। पहली बार स्कूल शिक्षा जैसे सबसे उपेक्षित रहे विभाग में सुधार की बातें हो रही। विभागों में विजिलेंस सेल का गठन किया जा रहा है। शिकायतों की मानिटरिंग के लिए सरकार ने नोडल अफसरों की नियुक्ति के साथ अपीलीय सिस्टम बना दिया है। जाहिर है, सरकार के बदलते तेवर से ब्यूरोक्रेसी हैरान और स्तब्ध है। जीएडी सिकरेट्री मुकेश बंसल रोज एक आदेश टपका दे रहे। कलेक्टरों की एकाउंटबिलिटी तय की जा रही। ऐसे में, नौकरशाहों की पीड़ा समझी जा सकती है। बहरहाल, ब्यूरोक्रेट्स हवा का रुख भांपने में बड़े तेज होते हैं...शक्तिकेंद्र की पहचान कर परिक्रमा चालू करने में विलंब नहीं करते। मगर दिक्कत यह है कि शक्ति वाले अफसरों को न तो शक्तिशाली कहाने में दिलचस्पी है और न ही वे परिक्रमा पसंद कर रहे। एक कप ब्लैक कॉफी पीजिए और काम की बातें कर निकल लीजिए। इससे नौकरशाही की परेशानी समझी जा सकती है। कांग्रेस की सरकार हो या फिर बीजेपी की...अधिकांश अफसरों ने परिक्रमा ही तो किया है।

भूपेश की योजनाएं...

पिछली सरकार की कई योजनाएं भी अच्छी थी। मसलन, नरवा, गड़वा, घुरवा बाड़ी में नरवा और बाड़ी अल्टीमट बोल सकते हैं। नरवा का काम अगर गति पकड़ लेता तो छत्तीसगढ़ के वाटर लेवल और सिंचाई में कुछ और बात होती। वहीं, सुपोषण के लिए हर घर में एक बाड़ी तो होनी ही चाहिए, जिसमें आम आदमी काम लायक सब्जियां उपजा सके। स्कूल शिक्षा में आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल का कंसेप्ट भी अच्छा था। मगर सरकार का क्रियान्वयन और मानिटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं थी। उपर में न कोई देखने वाला था कि कहां क्या हो रहा और क्या करना है। इस चक्कर में भूपेश बघेल की अच्छी योजनाओं ने दम तोड़ दिया या फिर नेताओं और अफसरों के लूट-खसोट का जरिया बनकर रह गई। पराकाष्ठा तो यहां तक हो गई कि आत्मानंद जैसे पवित्र आत्मा के नाम पर खोले गए स्कूलों की खरीदी में कलेक्टरों ने लूट मचा दिया। विष्णुदेव सरकार में फर्क यह है कि इस समय लगातार मानिटरिंग हो रही या मानिटरिंग का सिस्टम बनाया जा रहा है। और जाहिर सी बात है कि बिना मानिटरिंग कुछ होता नहीं।

डीडी सिंह या संजय अलंग?

लोकसभा चुनाव 2024 के बाद राज्य सरकार को पहली नियुक्ति राज्य निर्वाचन आयोग के कमिश्नर की करनी होगी। छत्तीसगढ़ में यह संवैधानिक आयोग विधानसभा चुनाव के पहले से खाली है। फिर सामने नगरीय निकाय चुनाव है। करीब तीन-चार महीने बाद ही इसकी प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। राज्य निर्वाचन आयुक्त रिटायर चीफ सिकरेट्री या उसके समकक्ष किसी अफसर को बनाया जाता है। मगर छत्तीसगढ़ में एक बार ही एक्स सीएस शिवराज सिंह इस पद को संभाल पाए। वरना, उनके अलावा रिटायर सिकरेट्री और प्रिंसिपल सिकरेट्री को इस पद पर बिठाया गया। बहरहाल, रिटायर आईएएस में अभी सिर्फ डीडी सिंह हैं। वे पिछली सरकार में रिटायर हुए थे। उसके बाद उन्हें संविदा में पोस्टिंग मिली और सीएम सचिवालय से लेकर कई अहम विभाग संभालते रहे। इस सरकार में भी उनकी संविदा नियुक्ति कंटीन्यू है। इस समय वे सिकरेट्री जीएडी हैं। जातीय समीकरणां के साथ ही इलेक्शन का तजुर्बा उनके दावे को मजबूत कर रहा है। डीडी निर्वाचन आयोग में ज्वाइंट सीईओ रह चुके हैं, जब 2013 के विधानसभा चुनाव के समय सुनील कुजूर सीईओ थे। इसके अलावे शिवराज सिंह के राज्य निर्वाचन आयुक्त रहने के दौरान उनके साथ भी काम कर चुके हैं। अगर डीडी सिंह पर सहमति नहीं बनी तो दूसरा नाम रायपुर, बिलासपुर के कमिश्नर संजय अलंग का नाम है। अलंग इसी साल 31 जुलाई को रिटायर होने वाले हैं। डीडी सिंह के साथ अलंग भी राज्य निर्वाचन आयुक्त के दावेदार हो सकते हैं। क्योंकि, इनके अलावा दूसरा कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा।

तरकश की खबर, चर्चाओं पर ब्रेक

पिछले तरकश में एसीएस ऋचा शर्मा को पोस्टिंग मिलने में लेट होने की खबर प्रकाशित हुई थी। सरकार ने इस खबर के अगले ही दिन ऋचा को पोस्टिंग दे दी। इसके साथ ही ब्यूरोक्रेसी में चल रही भांति-भांति की चर्चाओं पर भी सरकार ने विराम लगा दिया। ऋचा को लोग चीफ सिकरेट्री बताने लगे थे। दरअसल, चीफ सिकरेट्री भी उसी के आसपास अवकाश पर गए थे। ऐसे में, अटकलों और अफवाहों को पंख लगना ही था। बहरहाल, ऋचा को फॉरेस्ट की बजाए हेल्थ दिया गया होता तो राज्य के हित में बेहतर होता।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सरकार रियल इस्टेट और पंजीयन विभाग में सुधार के कदम उठा रही, उसे छत्तीसगढ़ की नौकरशाही रियल इस्टेट को बैठ जाने का खतरा बताते हुए सिस्टम को भयभीत करने का काम क्यों कर रही है?

2. छत्तीसगढ़ के किन दो मंत्रियों में निकटता कुछ ज्यादा बढ़ रही है?



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