शुक्रवार, 10 मई 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: वोटर चुप, परसेप्शन हॉवी...

 तरकश, 5 मई 2024

संजय के. दीक्षित

वोटर चुप, परसेप्शन भारी

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव 2023 के दौरान जिस तरह परसेप्शन हॉवी रहा, कुछ इसी तरह की स्थिति लोकसभा चुनाव में भी दिखाई पड़ रही है। विधानसभा चुनाव में कोई भी यह कहने की स्थिति में नहीं था कि बीजेपी सरकार बना लेगी। बीजेपी के पैरोकार भी यही कहते रहे...38 से 40 तक पहुंच जाएगी तो बाकी काम अमित भाई साब कर लेंगे। अलबत्ता, बीजेपी 50 क्रॉस कर जाएगी...पार्टी के बड़े नेताओं को ऐसा कभी सपना भी नहीं आया होगा। सबसे बड़ा परसेप्शन किसानों और छत्तीसगढ़ियावाद को लेकर था। तब ये बोलने वालों की भी कमी नहीं थी कि कांग्रेस को 68 नहीं, पर 50 से 53 सीट मिलने में कोई दिक्कत नहीं होगी। मगर जब नतीजे आए तो बड़े-बड़े सियासी पंडितों के पूर्वानुमान फेल हो गए तो परसेप्शन धरे रह गए। लोकसभा चुनाव में भी परसेप्शन हॉवी है। लोग उंगलियों पर बता दे रहे...इन सीटों पर लड़ाई है, ये-ये सीटें टफ हैं। जबकि, वोटर खामोश है। दरअसल, अब के वोटर मुखर नहीं, मगर किसको वोट देना है, वह पहले से मन बना लेता है। 2018 के ऐन विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस पार्टी के भीतर जिस तरह की ऑडियो, वीडियो की घटनाएं हुई थीं, उससे लगा था कि कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती है। मगर रिजल्ट आया तो 15 साल की सरकार वाली बीजेपी 15 सीट पर सिमट गई। कहने का आशय यह है कि मुठ्ठी भर लोग जैसा परसेप्शन बनाते हैं, छत्तीसगढ़ में वह नतीजों में नहीं उतर पाता। लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को भी यकीन नहीं था कि उसे 11 में नौ सीटें मिल जाएगी। सो, यह मानकर चलिए के नतीजे परसेप्शन से इतर आएंगे।

कार्यकर्ता नहीं, पब्लिक

बीजेपी भले ही पांच साल तक सत्ता से बाहर रही। मगर लोकसभा चुनाव में जो स्थिति दिखाई पड़ रही है, उस पर बीजेपी के एक सीनियर नेता ने दिलचस्प टिप्पणी की। उन्होंने कहा, जनता ही कार्यकर्ता की भूमिका निभा रहे हैं। दरअसल, 15 साल सत्ता में रही बीजेपी के कार्यकर्ता अभी भी जमीन पर नहीं आए हैं। पार्टी में कार्यकर्ताओं की नई पौध आई नहीं, और पुराने इतने मोटा गए हैं कि उन्हें अपने काम-धंधे से फुरसत नहीं। लिहाजा, बड़े नेता चुनाव में जरूर मेहनत कर रहे हैं, मगर कार्यकर्ताओं में वो बात नहीं, जैसा बीजेपी कैडर में होता है।

अफसरों का दम

गुड गवर्नेंस का काम उपर से प्रारंभ होना चाहिए...तभी वह प्रभावशाली ढंग से नीचे लागू हो पाएगा। इस बात का संदर्भ छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में अधिकारियों, कर्मचारियों की हाजिरी दर्ज करने बायोमेट्रिक सिस्टम लगाए जाने से है। सरकार की मंशा अच्छी है। छत्तीसगढ़ को बने 24 बरस हो गए। मगर दुर्भाग्य की बात यह कि उपर से लेकर नीचे तक...सूबे में वर्किंग कल्चर नहीं बन पाया। न मंत्रालय में अफसर सही समय पर आते हैं और न जिलों में कलेक्टर, एसपी। जब बड़े जिले होते थे तो कलेक्टर, एसपी सहज रूप से उपलब्ध होते थे मगर अब एक-एक, दो-दो ब्लॉकों के जिले होने के बाद भी कलेक्टर, एसपी को ढूंढते रह जाइयेगा। वे सिर्फ सप्लायरों और ठेकेदारों के लिए सुलभ होते हैं। खैर बात मंत्रालय और बायोमेट्रिक सिस्टम की। मंत्रालय में पहले भी बायोमेट्रिक लगाने का प्रयास हुआ मगर कर्मचारियों के विरोध की वजह से उसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया। सुनील कुमार जैसे अब तक के सबसे तेज-तर्रार चीफ सिकरेट्री के समय अफसर अपने आप समय पर आने लगे थे मगर कर्मचारियों का वे भी कुछ नहीं कर पाए। दरअसल, मंत्रालय के कर्मचारियों का तगड़ा यूनियन हैं। कह सकते हैं...अधिकारी भी उनसे घबराते हैं। क्योंकि, वे सबका कच्चा-चिठ्ठा उनके पास हैं। अब सरकार ने बायोमेट्रिक लगाने का फैसला किया है, तो अफसरों को इसके लिए दम दिखाना होगा। क्योंकि, काम और प्रदेश का विकास तो बाद की बात है। पहले मुलाजिम आफिस में टाईम पर आएं तो। और जब प्रदेश के सबसे बड़े पावर सेंटर में बायोमेट्रिक सिस्टम नहीं लग पाएगा तो फिर नीचे के आफिसों के लिए उसे कैसे जायज ठहराया जा सकता है?

मार्कफेड नहीं, मालफेड

मार्कफेड के एक एमडी होते थे टीएस छतवाल। राज्य निर्माण के दौरान पावरफुल पदों पर रहे। पीडब्लूडी सिकरेट्री भी। मगर 2004 में हमने इस शीर्षक से एक खबर लगाई थी...बोरियों के सरदार। छतवाल के खिलाफ जांच हुई। डीई भी। इंक्रीमेंट वगैरह रोकने का भी कुछ हुआ था। इस पुराने दृष्टांत को लिखने का मकसद यह बताना है कि मार्कफेड में घपले-घोटाले आज से नहीं सालों से चल रहे हैं। अतीत में कई आईएएस अधिकारी मार्कफेड के एमडी रहते जांच के शिकार हुए। उन्हें विभागीय जांच का सामना करना पड़ा। ये जरूर है कि एमडी रहे किसी अफसर की गिरफ्तारी पहली बार हुई है। मनोज सोनी की। मार्कफेड के बारे में अधिकांश लोगों को पता नहीं होगा कि छत्तीसगढ़ का यह सबसे बड़ा और बोरियो में नोट बटोरने वाला बोर्ड है। साल में 50 हजार करोड़ से ज्यादा का कारोबार होता है। इस बोर्ड के दो-एक एमडी को छोड़ दें, तो अधिकांश यहां से 25-50 करोड़ बटोर कर ही निकले। सीधा सा फंडा है... प्रमोटी आईएएस गिरे हालत में 25 खोखा और डायरेक्ट वाले 40 से 50। ट्रांसपोर्ट महकमे की तरह मार्कफेड में बोरियों में पैसा आता है। ईडी की रिपोर्ट को मानें तो राईस मिलरों के प्रोत्साहन राशि की आधी किस्तों में ही 175 करोड़ का खेला हो गया तो धान खरीदी, बारदाना यानी बोरियो की खरीदी, ट्रांसपोर्टिंग समेत मार्कफेड में ऐसे कई बड़े होल हैं, जहां से बोरियों में पैसे निकलते हैं। कायदे से मार्कफेड का नाम बदलकर मालफेड कर देना चाहिए। याने मार्केटिंग फेडरेशन नहीं, माल फेडरेशन इसका सही नाम होगा।

नया रायपुर गुलजार-1

नई सरकार आने के बाद नया रायपुर की बसाहट की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सुना है, मंत्री, मिनिस्टर अगले छह महीने में नया रायपुर शिफ्थ हो जाएंगे। वहीं, कई अफसर भी अब नया रायपुर जा रहे हैं। एसीएस सुब्रत साहू इसी हफ्ते नवा रायपुर जा रहे हैं। नया रायपुर में सबसे पहले मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रीना बाबा कंगाले गई थीं। उनके बाद आईपीएस सदानंद। फिर आरपी मंडल गए। मंडल तब चीफ सिकरेट्री थे। उन्होंने काफी प्रयास किया मगर बाकी अफसरों को ले जाने में सफल नहीं हो पाए। नवा रायपुर में आर. संगीता, सुनील जैन, चंदन कुमार, पुष्पेंद्र मीणा, नीलम नामदेव एक्का जैसे कई अफसर शिफ्ट हो चुके हैं। जाहिर है, नया रायपुर के गुलजार होने को लेकर अब उम्मीदें बन रही हैं।

नया रायपुर गुलजार-2

छत्तीसगढ़ में बीजेपी की नई सरकार आने के बाद एनआरडीए ने नया रायपुर को आईटी हब बनाने की कोशिशें शुरू कर दी है। अभी पिछले दिनों दो आईटी कंपनियों के साथ सरकार का एमओयू हुआ, उनके लिए सीबीटी बिल्डिंग में फर्निशिंग का काम प्रारंभ हो चुका है। खबर है, एकाध महीने में इन दोनों आईटी कंपनियों में वर्किंग शुरू हो जाएगी। दोनों में करीब एक हजार इम्प्लाई की भर्ती की जा रही है। यकबयक एक हजार लोगों की आमदरफ्त बढ़ने से निश्चित तौर पर नया रायपुर की रौनक बढ़ेगी।

दूसरे आईपीएस अफसर

राज्य सरकार की सर्विस रिव्यू कमेटी की अनुशंसा पर अभी तक दो आईएएस और तीन आईपीएस अधिकारियों को भारत सरकार द्वारा फोर्सली रिटायर किया गया है। आईएएस में बीएल अग्रवाल और अजयपाल सिंह। आईपीएस में केसी अग्रवाल, एएम जूरी और जीपी सिंह। भारत सरकार के फैसले के खिलाफ केसी अग्रवाल और जीपी सिंह ने कैट से फरियाद की और दोनों के पक्ष में फैसला भी आया। राज्य पुलिस सेवा से आईपीएस प्रमोट हुए केसी अग्रवाल ने कैट के जरिये धमाकेदार वापसी करते हुए सरगुजा के आईजी भी बने। अब नंबर जीपी सिंह का है। वे डायरेक्ट आईपीएस हैं। नौकरी भी करीब पांच साल बची है। जाहिर है, बीजेपी गवर्नेमेंट में उनकी पोस्टिंग भी ठीकठाक ही मिलेगी।

अफसरों की तफरीह

छत्तीसगढ़ सरकार अब उच्छृंखलता बरतने वाले आईएएस, आईपीएस अधिकारियों को लेकर गंभीर हो गई है। दरअसल, अभी कुछ दिनों पहले दो जिलों के कलेक्टर, एसपी रायपुर में एक साथ मॉल में तफरीह करते पाए गए। जीएडी और पुलिस महकमे से पता किया गया तो किसी ने भी इसकी सूचना वरिष्ठ अफसरों को नहीं दी थी। याने बिना बताए मुख्यालय छोड़ा था। इसके बाद सरकार हरकत में आई। जीएडी ने आदेश जारी किया कि बिना अवकाश या सूचना दिए मंत्रालय या विभाग प्रमुख रायपुर नहीं छोड़ेगा। कलेक्टर, एसपी को जिला मुख्यालय छोड़ने से पहले सीनियर अफसरों को सूचित करना होगा। अगर अवकाश पर जा रहे तो चीफ सिकेरट्री से अनुमति लेनी होगी। यही सिस्टम भी है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. लोकसभा चुनाव में 3 ही मंत्रियों की उपस्थिति जान पड़ रही, बाकी मंत्री अपने क्षेत्र में ही क्यों सिमट गए हैं?

2. क्या वजह है कि इस बार पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह छत्तीसगढ़ पर खास फोकस किए हैं?


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