शनिवार, 16 नवंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: एसपी साहबों की क्लास

 तरकश, 17 नवंबर 2024

संजय के. दीक्षित

एसपी साहबों की क्लास 

डीजीपी अशोक जुनेजा ने एसपी लोगों की इमरजेंसी बैठक बुलाई और उसमें ऐसा कुछ हुआ, जो राज्य बनने के बाद कभी नहीं हुआ। डीजी ने सबकी लानत-मलानत कर दी। बोलने में कोई मरौव्वत नहीं। एक-एक एसपी की कुंडली पहले से ही तैयार कर खुफिया चीफ अमित कुमार ने डीजी को दे दी थी। कुछ मामले डीजी के संज्ञान में भी थे कि कौन जिले में कप्तानी कर रहा है और कौन पोलिसिंग छोड़ बाकी सब कुछ। डीजीपी ने एक-एक एसपी की कारगुजारियों को सबसे सामने बताया और हिदायत भी कि अब बहुत हुआ। कुछ एसपी के बारे में ऐसी बातें सामने आई, जो एसपी जैसे पद की गरिमा के विपरीत है। उसे यहां लिखा नहीं जा सकता। रही-सही कसर इंटेलिजेंस चीफ अमित कुमार पूरी कर दी। साढ़े तीन घंटे की बैठक खतम होने के बाद साढ़े छह बजे एसपी पीएचक्यू से बाहर निकले, तो सबके चेहरे लटके हुए थे। कोई किसी को हेलो-हाय भी नहीं किया। चुपचाप अपनी गाड़ी में बैठे और निकल लिए।

बड़ी देर कर दी!

वैसे तो कहा जाता है...जब जागे, तब सबेरा। मगर छत्तीसगढ़ पुलिस के संदर्भ में ये मौजूं नहीं। सरकार बदलते ही अगर पुलिस प्रमुख ने ये रौद्र रुप दिखाया होता तो छत्तीसगढ़ पुलिस की विकट स्थिति नहीं होती। लोहारीडीह में तीन लोगों की हत्या भी शायद नहीं हुई होती और सूरजपुर में कबाड़ी के हाथों पुलिस का एक पूरा परिवार तबाह होने से बच जाता। खैर, वरिष्ठ अफसरों के लिए उपर का इशारा भी महत्वपूर्ण होता है। डीजीपी और इंट चीफ अगर हरकत में आए हैं तो समझा जाना चाहिए कि अब सब कुछ अच्छा होगा। तीन महीने बाद फरवरी फर्स्ट वीक में डीजीपी रिटायर हो जाएंगे मगर उनके इस तेवर का लाभ नए डीजीपी को मिलेगा। तब तक डीजीपी का यही रुख रहा तो छत्तीसगढ़ पुलिस कुछ हद तक पटरी पर आ जाएगी। बता दें, डीजीपी ने कहा है कि हर महीने वे रिव्यू करेंगे। ये काम अगर वे कर लिए तो काफी कुछ चीजें बदल जाएंगी।

डीजीपी साब, संरक्षण भी

बेशक छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग डिरेल्ड हो चुकी है। एसपी या उसके किसी भी पद पर होने का मतलब सिर्फ पैसा हो चुका है। मगर यह भी सही है कि अच्छे काम करने वाले एसपी को संरक्षण भी चाहिए। कवर्धा के एसपी राजेश अग्रवाल एक महीने से छुट्टी पर हैं। सिस्टम को यह भी पता लगाना चाहिए कि वास्तव में बीमार हैं या कोई और बात है। राजेश अग्रवाल की जगह जिसे कवर्धा का प्रभारी एसपी बनाया गया है, उनकी नियुक्ति कैसे हो गई, इसे भी मालूम करना चाहिए। डीजीपी साब को शायद ये पता है कि नहीं कि आज की तारीख में कोई भी अच्छा एसपी जिले में नहीं रहना चाह रहा। सभी इस कोशिश में हैं कि किसी बटालियन या फिर पीएचक्यू में ही सही...पोस्टिंग हो जाए। जाहिर सी बात है, अच्छे काम के लिए रिस्क लेना पड़ता है। उसमें खतरे भी होते हैं। सो, बिना संरक्षण के कोई अफसर आ बैल मार क्यों करेगा।

अब सिंगल कलेक्टर

बलरामपुर जिले से रिमुजिएस एक्का की विदाई के बाद अब पिछली सरकार वाले सिर्फ एक कलेक्टर बच गए हैं राहुल देव। बाकी का या तो जिला बदल गया या फिर उन्हें रायपुर वापिस बुला लिया गया। राहुल को मुंगेली में लगभग दो साल हो गया है। उनसे पहले मुंगेली में कोई भी कलेक्टर साल भर से अधिक नहीं रहा। कई तो जोर-जुगाड लगाकर चार-पांच महीने में निकल लिए। वैसे, राहुल का नाम भी कई बार बड़े जिलों के लिए चला मगर जब लिस्ट आती है, तो उनका नाम गायब रहता है। लोगों को ताज्जुब इस बात को लेकर है कि पिछली सरकार के नाम पर उन्हें हटाया भी नहीं जा रहा और न ही अपग्रेड कर बड़ा जिला दिया जा रहा।

कलेक्टर की पोस्टिंग

राहुल देव के मुंगेली के कलेक्टर बने रहने पर लोगों को ताज्जुब हो रहा, उसी तरह का आश्चर्य राजेंद्र कटारा के बलरामपुर जिले का कलेक्टर बनाने पर भी हो रहा है। राजेंद्र को बीजापुर से कुछ महीने पहले हटाया गया था, तब बीजेपी के लोगों की काफी सारी दिक्कतें बताई गई थी। मगर अब फिर बलरामपुर की कलेक्टरी? यदि ये पोस्टिंग सही है तो फिर बीजापुर से हटाना सही नहीं था?

बैचमेट के हवाले हेल्थ

कहते हैं, दो के विवाद में तीसरे को फायदा होता है। डायरेक्टर हेल्थ और एमडी एनआरएचएम के बीच भरी मीटिंग में जो हुआ, उसका खामियाजा ये हुआ कि पहले एनआरएचएम से जगदीश सोनकर को हटाया गया और अब डायरेक्टर हेल्थ से ऋतुराज रघुवंशी को। बताते हैं, इसमें एक की चक्कर में दूसरा भी निबट गया। बहरहाल, इस समय 2009 बैच की आईएएस किरण कौशल कमिश्नर हेल्थ एजुकेशन हैं और इसी बैच की डॉ0 प्रियंका शुक्ला डायरेक्टर हेल्थ और स्पेशल सिकरेट्री हेल्थ बन गई हैं। एसीएस के तौर पर मनोज पिंगुआ रहेंगे मगर सरकार की नीतियों को एग्जीक्यूट करने वाले 2009 बैच की दोनों महिला आईएएस होंगी।

ओपी की आत्मा रजत में?

वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने विधानसभा में बजट पेश करते समय जैसा भाषण दिया था, कुछ वैसा ही इंडस्ट्रियल पॉलिसी के विमोचन में इंडस्ट्री सिकरेट्री रजत कुमार ने दिया। बिना देखे, पढ़े...धड़धड़ाते हुए रजत कुमार बोल रहे थे, और लोग उन्हें देख रहे थे। मंत्री ओपी और रजत आईएएस में एक ही बैच था। 2005। ओपी बाद में इस्तीफा देकर सियासत में आ गए और रजत प्रमोट होकर अब सिकरेट्री बन गए हैं। दोनों में गहरी छनती भी है। विमोचन कार्यक्रम में ओपी भी मंच पर थे। कुल मिलाकर रजत ने औद्योगिक नीति 2024-30 की लांचिंग का ग्रेंड आयोजन कर अपनी लकीर बड़ी कर ली। इंडोर हॉल में आतिशबाजी के साथ रंगारंग आयोजन था। रजत ने बड़ा दिल दिखाकर पूर्व उद्योग सचिव अंकित आनंद को भी इस मौके पर याद ही नहीं बल्कि पॉलिसी बनाने का क्रेडिट भी दिया।

हर लिस्ट में चंदन

बलौदा बाजार कलेक्टर से हटने क़े बाद भी आईएएस चंदन कुमार कमजोर तो नहीं हुए मगर उनके साथ ये बात खास रही कि जब भी कोई आईएएस की लिस्ट निकलती है, आमतौर पर उसमें एक नाम चंदन कुमार का अवश्य होता है. कभी एक विभाग ऐड होता है तो कभी एक कम हो जाता है. दो रोज पहले सात आईएएस अफसरों का ट्रांसफर आदेश निकला, उसमें एक नाम चंदन कुमार का था. चंदन रिजल्ट देने वाले अफसर हैं मगर लगता है सिस्टम समझ नहीं पा रहा कि एक चंदन का कहां-कहां उपयोग करें.

तरकश के 16 साल

ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक घटनाओं पर आधारित साप्ताहिक स्तंभ तरकश ने 16 साल पूरा कर लिया है। छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले अखबार हरिभूमि से 2008 में इसका सफर चालू हुआ था। उसके बाद कभी रुका नहीं। किसी एक अखबार में संभवतः सबसे लंबे समय तक चलने वाला यह पहला स्तंभ होगा। इसके लिए पाठकों के साथ ही हरिभूमि पत्र समूह को आभार।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ राजस्व बोर्ड का अगला चेयरमैन कौन होगा?

2. 11 महीने होने के बाद भी छत्तीसगढ़ के अधिकांश मिनिस्टर ट्रेक पर क्यों नहीं आ रहे?

शनिवार, 9 नवंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: मंत्री की गंभीर चूक

 तरकश, 10 नवंबर 2024

संजय के. दीक्षित

मंत्री की गंभीर चूक

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति का एक लाईन ऑफ प्रोटोकॉल होता है। ये जब राज्यों के दौरे पर होते हैं तो इनकी अगुवानी करने के लिए मंत्रियों की तो दूर की बात राज्यपाल और मुख्यमंत्री को विमान लैंड करने से पहले एयरपोर्ट पहुंचना होता है। जबकि, विमान लैंड होने के बाद रनवे पर रेंगने, सिक्यूरिटी नार्म पूरा करने और दरवाजा खुलने में 20 से 25 मिनट तक लग जाता है, बावजूद इसके राज्यपाल, मुख्यमंत्री समेत वे तमाम विशिष्ट लोग एयरपोर्ट पर हाजिर रहते हैं, जिनके नाम स्वागत सूची में होते हैं। मगर छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव के अलंकरण समारोह में रायपुर पहुंचे उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ के अगुवानी में एक मंत्रीजी ने इंतेहा कर दी।

उपराष्ट्रपति का भारतीय वायु सेना का प्लेन देर शाम रायपुर के स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट पर लैंड किया। प्रोटोकॉल के अनुसार राज्यपाल रमेन डेका, सीएम विष्णुदेव साय समेत वेलकम करने वाले सभी एयरपोर्ट पहुंच चुके थे। उपराष्ट्रपति विमान से उतरे तो कतार में सबसे आगे खड़े सबसे राज्यपाल ने उनका स्वागत किया, फिर मुख्यमंत्री ने। 

इसी बीच एक मंत्रीजी तेज कदमों से चलते हुए आए और लाइन के बीच में घुस गए। ठीक उसी तरह जैसे रेलवे के टिकिट काउंटर पर लोग बीच में घुस जाते हैं। इसे देख उपराष्ट्रपति के सिक्यूरिटी अफसर बेहद नाराज हुए। उन्होंने पूछा कि व्हाइस प्रेसिडेंट के विमान से उतरने के बाद टॉप सिक्योरिटी प्रीमाइसिज में मंत्री को इंट्री कैसे मिल गई? अब कोई क्या जवाब देता...मंत्री ठहरे, सो पुलिस वाले किंकर्तव्यविमूढ़ थे।

कुल मिलाकर मंत्री जैसे जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा व्हाइस प्रेसिडेंट के प्रोटोकॉल और सिक्यूरिटी की धज्जियां उड़ाने से मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी खफा बताए जा रहे हैं...स्वाभाविक भी है, कम-से-कम मंत्री से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। लेटलतीफी के लिए मशहूर रायपुर के एक भैया ने भी 35 साल के सार्वजनिक जीवन में कभी ऐसा नहीं किया, जो नए मंत्रीजी ने कर डाला।

विजन डॉक्यूमेंट और दिवाली की खुमारी

विजन डॉक्यूमेंट-2047 बनाने वाला छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य बन गया है। अभी सिर्फ गुजरात का बना है...बाकी एमपी, राजस्थान, बिहार जैसे कई राज्य इसकी कवायद में लगे हुए हैं। मगर छत्तीसगढ़ आगे निकल गया। जाहिर है, राज्य में कोई अच्छी बात हो, तो प्रसन्नता स्वाभाविक है। मगर विजन डॉक्यूमेंट तभी प्रभावी होगा, जब आम आदमी का विजन भी बदले। लोग छुट्टियां का आनंद भी उठाएं और काम भी डटकर करें। छत्तीसगढ़ में विगत कुछ सालों से होली, दिवाली जैसे त्यौहारों में इंतेहा हो जा रही है।

इस बार दिवाली गुरूवार को थी। शुक्रवार, शनि, रविवार की तो उम्मीद बेमानी थी। लगा सोमवार से सब कुछ पटरी पर आ जाएगा। मगर पूरा हफ्ता निकल गया। सोमवार, मंगलवर को सड़कें सूनी रही। हर आदमी को तीज-त्यौहार को इंज्वाय करने का अधिकार है। मगर ये भी सोचना होगा कि एक त्यौहार में 10-10 दिन तक स्टेट ठहर जाए, तो फिर छत्तीसगढ़ गुजरात कैसे बन पाएगा? कायदे से चीफ सिकरेट्री को रायपुर आईआईएम से इस पर काम कराना चाहिए कि छत्तीसगढ़ के मेहनतकश लोगों के श्रम की यूपी, पंजाब और जम्मू में इतनी प्रशंसा क्यों होती है...वो चीजें लोकल स्तर पर क्यों नहीं?

ह्यूमन रिसोर्स का कबाड़ा

चूकि उपर बात वर्क कल्चर और ह्यूमन रिसोर्स की हो रही तो इसका भी जिक्र लाजिमी है कि छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में कलेक्टरों द्वारा नकल वगैरह करवाने के बाद भी फर्स्ट डिविजन वालों की संख्या 30 फीसदी से उपर क्यों नहीं जा पा रही। कलेक्टर और नकल...इस पर आप चौंकेंगे तो इसे क्लियर करना आवश्यक है। अधिकांश कलेक्टर अपने जिले का रिजल्ट ठीक दिखने के लिए स्कूल शिक्षा के अधिकारियों को बता देते हैं कि जैसे भी हो, जिले का परफार्मेंस खराब नहीं होना चाहिए।

बहरहाल, कालेजों का हाल भी जुदा नहीं है। सरकारी कॉलेजों में संसाधन नहीं है और मोटी फीस लेने वाले प्रायवेट इंस्टिट्यूट डिग्री बेचने वाले केंद्र बनकर रह गए हैं। प्रायवेट कालेज वालों ने बीएड, फार्मेसी जैसे पाठ्यक्रमों के लिए बिना क्लास अटेंड किए परीक्षा में बिठाने 30 से 40 हजार रुपए का रेट निर्धारित कर दिया है। ऐसे में, छत्तीसगढ़ के ह्यूमन रिसोर्स का भगवान मालिक हैं। इस हालत में कल-कारखाने वाले दूसरे राज्यों से स्किल्ड लोगों को बुलाकर काम नहीं कराएंगे तो क्या करेंगे? बता दें, राज्य बनने के 24 सालों में ह्यूमन रिसोर्स को मजबूत करने पर कभी बात ही नहीं हुई।

ठोकने वाला सीएम

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ठोकने वाले मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाते हैं। दरअसल, विधानसभा का उनका एक चर्चित भाषण है, जिसमें वे कह रहे हैं कि माफिया लोग अपराध से बाज आए वरना उन्हें ठोक देंगे। और ऐसा हुआ भी। उत्तप्रदेश में बड़ी संख्या में माफियाओं के एनकाउंटर हुए। अब छत्तीसगढ़ में भी इसकी शुरूआत हो गई है। पुलिस ने 8 नवंबर को भिलाई में एक अपराधी को मार गिराया।

बताते हैं, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। यद्यपि, मुख्यमंत्री का ऐसा स्वभाव नहीं। उनके स्वभाव से जुड़े सवाल पर मुख्यमंत्री के एक करीबी ने चुटकी ली...छत्तीसगढ़ बदल रहा है तो मुख्यमंत्री का बदलना स्वाभाविक है। छत्तीसगढ़ बदलने का तात्पर्य उनका इस बात से था कि अपराध की प्रवृति बदल रही है। जाहिर है, गैंगवार में गोलियां बरस रही हैं। खैर...महत्वपूर्ण यह है कि पुलिस अब एक्शन में दिखेगी। क्योंकि, उपर से अब ठोकने जैसे निर्देश जारी हो गए हैं।

एडीजी को नई जिम्मेदारी

एडीजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी को डीजीपी अशोक जुनेजा ने प्रशासन विभाग की जिम्मेदारी सौंपी है। हिमांशु गुप्ता के डीजी जेल अपाइंट होने के बाद से यह पद खाली था। आईजी के तौर पर बद्रीनारायण मीणा प्रशासन संभाल रहे थे। यह नियुक्ति डीजीपी की सिफारिश पर हुई है। डीजीपी ने कल्लूरी का नाम रिकमांड किया और सरकार ने ओके कर दिया। हालांकि, आदेश डीजीपी ने ही निकाला। पीएचक्यू में खुफिया और फायनेंस एंड प्रोवजनिंग के बाद प्रशासन सबसे महत्वपूर्ण विभाग माना जाता है। कह सकते हैं कल्लूरी का कद बढ़ा है।

इंद्रावती भवन का हाल खराब

सिकरेट्री की गंभीर चूक से मंत्रालय में जगह का टोटा पड़ने की तरकश की खबर के बाद स्तंभकार के पास कई लोगों के फोन आए कि विभागाध्यक्ष भवन का भी यही हाल है। इंद्रावती भवन बनाने के पीछे कंसेप्ट यही था कि पुलिस मुख्यालय और वन मुख्यालय को छोड़ सारे विभाग के लोग एक ही बिल्डिंग में बैठेंगे। इससे फाइलों की आवाजाही आसान होगी, काम स्मूथली होगा। मगर धीरे-धीरे जीएसटी, विकास भवन, पीडब्लूडी, हेल्थ जैसे कई अलग बिल्डिंगें बन गई। बावजूद इसके इंद्रावती भवन में जगह की कमी पड़ जा रही। वहां यह कोई देखने वाला भी नहीं कि जिस विभाग में कोई काम नहीं उन्हें भी उतना ही स्पेस मिला है और जिन विभागों में फाइलें दौड़ती रहती हैं, उन्हें भी उतना ही।

फिर एक सवाल यह भी है कि नगरीय निकाय चुनाव के बाद जब संसदीय सचिव अपाइंट किए जाएंगे, तो वे कहां बैठेंगे। क्योंकि सिकरेट्री ब्लॉक में कमरे न होने से मंत्री ब्लॉक में कई सचिवों को बिठाया जा रहा है। नए साल में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के बाद जीएडी सिकरेट्री अविनाश चंपावत के लिए यह एक बड़ा सिरदर्द बनेगा। क्योंकि, मंत्री ब्लॉक में बैठने वाले अधिकांश सिकरेट्री हाई प्रोफाइल वाले हैं।

प्रमोशन में ब्रेकर

छत्तीसगढ़ के आईएफएस अधिकारी आईएएस, आईपीएस अफसरों की तरह खुशकिस्मत नहीं हैं। आलम यह है कि जनवरी में पीसीसीएफ का प्रमोशन ड्यू होने के बाद नवंबर आधा निकलने वाला है मगर उनकी फाइल किधर है, इसे कोई देखने वाला नहीं। 93 बैच में आलोक कटियार हैं और 94 बैच में अरुण पाण्डेय, सुनील मिश्रा, प्रेम कुमार और अनूप विश्वास हैं।

इनमें से अनूप इसी महीने 30 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। सरकार ने इनकी अगर डीपीसी नहीं की तो अनूप के लिए बड़ा हार्डलक रहेगा। उन्हें बिना पीसीसीएफ प्रमोट हुए नौकरी से विदा लेनी पड़ेगी। हो सकता है कि इनमें से किसी अफसर विशेष के प्रमोशन को लेकर सिस्टम संशय में होगा, तो ऐसे मामलों से निबटने के लिए सिस्टम के पास बहुत सारे रास्ते होते हैं। उन्हें ड्रॉप कर बाकी की डीपीसी कराई जा सकती है।

एंटीइंकाम्बेंसी

छत्तीसगढ़ में उल्टा हो रहा है...सरकार की जगह लोकल नेताओं की एंटीइंकाम्बेंसी बढ़ती जा रही है। कई जिलों में विधायकों और संगठन के स्थानीय नेताओं ने बेईमान सिस्टम से गलबहियां कर ली है तो कई जगहों पर ईमानदार सिस्टम बुरी कदर परेशान है। कांग्रेस शासनकाल में पिछले पांच साल में जो हुआ, उसी को बीजेपी के नेता आदर्श पथ मान चुके हैं। स्थिति यह है कि अधिकारियों, ठेकेदारों से विधायकों को भी खुशामद चाहिए और संगठन के जिला स्तर के नेताओं को भी।

कांग्रेसी राज में जिस तरह जुआ, सट्टा, शराब के कारोबार पर लोकल नेताओं का वर्चस्व था, कमोवेश स्थिति बदली नहीं है। लॉ एंड आर्डर के लिए सारा ठीकरा पुलिस पर फोड़ना भी ठीक नहीं। पुलिस पर नेताओं का प्रेशर बढ़ता जा रहा। संवेदनशील मामलों में कोई मार्गदर्शन देने वाला नहीं। याने एसपी अपने स्तर पर निबटे। अगर लाठी चला दिया तो भी सस्पेंड होगा और नहीं चलाया तो भी।

ये कितना अजीब है कि रुलिंग पार्टी के लोग थानों में हुड़दंग मचाने लगे हैं। मोदी युग में कम-से-कम ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती। उपर बैठे नेताओं को कैडर को बताना चाहिए कि केंद्रीय नेतृत्व ने अगर जोर नहीं लगाया होता तो बीजेपी विपक्ष में बैठी होती। पीएम मोदी के अथक परिश्रम से बीजेपी सत्ता में आ गई है तो नेताओं को पार्टी की शुचिता का ध्यान रखना चाहिए। वरना, लोग जिस तरह कांग्रेस के समय ऐलान करने लगे थे कि इनमें से आधे विधायक भी दोबारा जीतकर नहीं आएंगे, वैसा ही कुछ बीजेपी के विधायकों के बारे में कहा जाने लगेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. लोगों को आत्मनिर्भर बनाए बिना छत्तीसगढ़ का विकास संभव है क्या?

2. क्या नगरीय और पंचायत चुनाव तक लाल बत्ती पर अब ब्रेक लग गया है?


शनिवार, 2 नवंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: सचिवों का अर्धशतक

 तरकश, 3 नवंबर 2024

संजय के. दीक्षित

सचिवों का अर्धशतक

पांच-सात साल पहले तक छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में सचिवों का ऐसा टोटा था कि स्पेशल सिकरेट्री को विभागों की कमान सौंपनी पड़ रही थी। मगर अब स्थिति ये है कि एसीएस, और प्रिंसिपल सिकरेट्री को छोड़ सिर्फ सिकरेट्री लेवल के अफसरों की संख्या 50 पहुंच गई है। वो भी तब जब इस साल 2024 में छह सचिव रिटायर हो चुके हैं। शारदा वर्मा अगले महीने दिसंबर में रिटायर होंगी।

सचिवों की संख्या में एकाएक इजाफा इसलिए भी हुआ कि छह महीने के भीतर आधा दर्जन से अधिक आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसग़ढ़ लौट आए। उपर से 2005 के बाद छत्तीसगढ का आईएएस अलॉटमेंट भी बढ़ गया। याद होगा, 2002 तक एक-एक, दो-दो आईएएस छत्तीसगढ़ को मिलते थे।

मसलन, 2002 बैच में सिर्फ दो। रोहित यादव और कमलप्रीत सिंह। 1998 और 2001 में एक भी नहीं। 1999 और 2000 में एक-एक। 2005 के बाद उत्तरोत्तर संख्या बढ़ती गई। बहरहाल, जनवरी में 2009 बैच के आईएएस भी प्रमोट होकर सचिव बन जाएंगे। इस बैच में 11 आईएएस हैं। याने जनवरी तक सचिवों की संख्या 61 पहुंच जाएगी। ऐसे में, विभागों के बंटवारे में सरकार के पास विकल्प खुले रहेंगे। जाहिर है, पुअर परफर्मेंस वाले सचिवों की दिक्कतें बढ़ेंगी। उन्हें अल्पज्ञात विभागों के सचिव होने से ही दिल को दिलासा देना होगा।

सिकरेट्री की बड़ी चूक-1

अंग्रेज जब इमारतें बनाते थे, तो 100 साल आगे की प्लानिंग करते थे। मगर इंडियन लोगों की स्थिति यह है कि दस-बारह साल में प्लानिंग ध्वस्त होने लगती है। इसका नायाब नमूना है, छत्तीसगढ़ का मंत्रालय महानदी भवन। 2012 में महानदी भवन में पुराना मंत्रालय शिफ्थ हुआ था। करोड़ों रुपए से निर्मित इस भवन में सचिवों के लिए चार फ्लोर बनाए गए हैं। एक फ्लोर में सात सचिव बैठ सकते हैं। याने एसीएस, प्रिंसिपल सिकरेट्री मिलाकर 28 सिकरेट्री।

सचिवों की संख्या अब बढ़ गई है इसलिए सचिवालय ब्लॉक में कमरे का टोटा पड़ गया है। आलम यह है कि कई सचिवों को मंत्रियों के ब्लॉक में बिठाना पड़ रहा है। ऋचा शर्मा, सोनमणि बोरा, रोहित यादव जैसे कई सिकरेट्री मिनिस्ट्रियल ब्लॉक में बैठ रहे हैं।

सिकरेट्री की बड़ी चूक-2

दरअसल, मंत्रालय भवन की प्लानिंग जब तैयार हो रही थी, तब छत्तीसगढ़ को एक-एक, दो-दो आईएएस का आबंटन मिलता था। मगर जब बिल्डिंग बनने लगी तब इसमें इजाफा हो गया। उस समय पूर्व मुख्य सचिव पी जॉय उम्मेन प्रमुख सचिव आवास और पर्यावरण विभाग थे। नया रायपुर की पूरी प्लानिंग उम्मेन के कार्यकाल के दौरान ही फाइनल हुई। उम्मेन से लेकर तब की सारी एजेंसियां यह अंदाज लगाने में गच्चा खा गई कि आगे चलकर अफसरों की संख्या बढ़ गई तो क्या होगा।

अब तीन महीने के अवकाश के बाद अगले महीने अमित कटारिया ज्वाईन करेंगे। उसके महीने भर बाद 2009 बैच के प्रमोट होने वाले 11 सचिवों की संख्या और बढ़ जाएगी। यक्ष प्रश्न यह है कि इन्हें कहां बिठाया जाएगा? और 12 साल के भीतर ही अगर नया मंत्रालय भवन बनाने या एक्सटेंशन करने की नौबत आ जाए तो क्या यह मजाक नहीं होगा? ब्यूरोक्रेसी को भविष्य के लिए इससे सबक लेनी चाहिए।

सुबोध सिंह की पोस्टिंग

97 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस सुबोध सिंह को भारत सरकार में पोस्टिंग मिल गई है। उन्हें स्टील मिनिस्ट्री में एडवाइजर बनाया गया है। रायगढ़, बिलासपुर और रायपुर की चार बार कलेक्टरी कर चुके सुबोध 2020 में सेंट्रल डेपुटेशन पर गए थे। याने उनका तीन साल कंप्लीट हो चुका है। राज्य सरकार अगर प्रयास करें तो सुबोध को रिलीव करने में भारत सरकार को कोई दिक्कत नहीं होगी। सूबे में सचिवों की संख्या भले ही 50 पहुंच गई है मगर सुबोध जैसे अफसरों की संख्या अभी भी महसूस की जा रही है।

कबाड़ी, पुलिस और पॉलिटिक्स

छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में कबाड़ी को पुलिसिया और राजनीतिक संरक्षण की वजह से कैसा बवाल हुआ, ये किसी से छुपा नहीं है। सरकार को सूरजपुर के पुलिस अधीक्षक को हटाना पड़ गया। बावजूद इसके, पुलिस का सिस्टम सबक नहीं ले रहा है। कबाड़ी को बचाने की इसी हफ्ते ताजा घटना रायपुर से लगे धमतरी जिले के कुरूद में हुई।

रायपुर-विशाखापट्टनम सिक्स लेन ग्रीन कारिडोर बना रही लखनउ की कंट्रक्शन कंपनी का 29 टन सरिया का ट्रक पार हो गया। इसमें कंपनी के कुछ स्टाफ भी शामिल रहे। कंपनी ने खुद ही तीन लोगों को पकड़कर कुरूद पुलिस के हवाले किया। पकड़े गए लोगों ने बताया कि ट्रक को कुरूद के एक राईस मिल में अनलोड किया गया। उसके बाद एक कबाड़ी उसे खरीदकर ले गया। इसके बाद भी पुलिस ने रिपोर्ट लिखने में खेल कर दिया।

एक तो दूसरे दिन एफआईआर दर्ज हुआ। पहले दिन पुलिस ने यह कहकर आरोपियों को कंपनी के लोगों के सुपूर्द कर दिया कि कल लेकर आईयेगा। उसके बाद 8 लाख की सरिया को एफआईआर में 80 हजार की चोरी कर दिया गया। जाहिर है, कबाड़ी और राईस मिलर को बचाने यह किया गया। चूकि चोरी की राशि कम हो गई, इसलिए केस कमजोर पड़ जाएगा। बता दें, राईस मिलर और कबाड़ी को बचाने पुलिस पर भारी प्रेशर था...पुलिस दबाव में आ भी गई।

मंत्री पद की दावेदारी

रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव का परिणाम 23 नवंबर को आएगा। मगर रिजल्ट क्या आएगा, इस पर सियासी प्रेक्षकों को कोई उलझन नहीं है। भाजपा भी जानती है रिजल्ट क्या आएगा और कांग्रेस भी। खैर, सत्ताधारी पार्टी के सुनील सोनी अगर चुनाव जीते तो मंत्री पद का एक दावेदार और बढ़ जाएगा।

इस समय विष्णुदेव कैबिनेट में दो पद खाली हैं। बृजमोहन अग्रवाल के सांसद चुने जाने के बाद रायपुर से इस समय कोई मंत्री नहीं है। लिहाजा, राजेश मूणत की दावेदारी है तो पुरंदर मिश्रा भी महाप्रभु जगन्नाथ से चमत्कार की आस लगाए बैठे हैं। अब ओबीसी से सुनील सोनी भी मैदान में होंगे। लेकिन महत्वपूर्ण यह भी है कि कैबिनेट के 9 मंत्रियों में से ओबीसी कोटे से इस समय छह मंत्री हैं। याने 66 परसेंट।

चूकि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की राजनीति ट्राईबल और ओबीसी की धुव्रीकरण की है, इसलिए ओबीसी से एक मंत्री और बनाया जा सकता है। तब सात ओबीसी मंत्री हो जाएंगे। सत्ताधारी पार्टी के लिए यह परफेक्ट समीकरण होगा। आदिवासी मुख्यमंत्री प्लस दो आदिवासी, एक अनुसूचित जाति, सात ओबीसी और दो जनरल केटेगरी से मंत्री।

इससे स्पष्ट है कि मंत्रिमंडल की दो रिक्त सीटों में ओबीसी और जनरल से एक-एक को मौका मिलेगा। अब मंत्री बनने वाले दो भाग्यशाली विधायक कौन होंगे, ये तो नहीं पता, मगर ये अवश्य है कि अब हेड काउंटिंग के लिए मंत्री नहीं बनाया जाएगा। पार्टी अब परफार्मेंस को प्राथमिकता देगी। क्योंकि, ओबीसी और जनरल में रिजल्ट देने वाले विधायकों की कमी नहीं है।

तीन साल चुनाव में

विष्णुदेव साय सरकार का एक साल लगभग निकल गया है। आखिरी साल चुनावी वर्ष होता है। उसमें उद्घाटन और चुनाव में माहौल बनाने के लिए शिलान्यास के काम होते हैं। बचा तीन साल। इसी में नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव होगे। सरकार को इसी पीरियड में अपना बेस्ट दिखाना है। लिहाजा, मंत्रियों के साथ अब सचिवों के लिए अगला तीन साल चुनौतीपूर्ण होंगे।

इसी तीन साल में प्लानिंग करनी होगी और उसका क्रियान्वयन भी। इसके लिए सरकार को बेस्ट अफसरों की फारवर्ड टीम तैयार करनी होगी...उसके कंधे पर हाथ रखना होगा...बिना पुख्ता संरक्षण के अफसर रिस्क लेकर काम करते नहीं। पिछली सरकार ने टीम बनाने में चूक की। इससे उसे खामियाजा यह उठाना पड़ा कि भूपेश बघेल जैसे कमांडर के होने के बाद भी बीजेपी उसे परास्त करने में कामयाब हो गई।

अंत में दो सवाल

1. दिवाली, होली जैसे त्यौहारों की डेट में कंफ्यूजन पैदा करने से किसका हित सध रहा है?

2. दिल्ली में रेजिडेंट कमिश्नर बनने के लिए आईएएस अफसर इतना जोर क्यों मार रहे हैं?


शनिवार, 26 अक्तूबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: अफसरों की दिवाली खराब

 तरकश, 27 अक्टूबर 2024

संजय के. दीक्षित

अफसरों की दिवाली खराब

छत्तीसगढ़ के 19 आईएएस अधिकारियों की दिवाली खराब हो गई। चुनाव आयोग ने उन्हें आब्जर्बर बना दिया है। पहली बार छत्तीसगढ़ की लिस्ट में महिला आईएएस के भी नाम हैं। विदित है, महाराष्ट्र और झारखंड में दो चरणों में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए सभी अधिकारियों को 28 अक्टूबर को संबंधित जिलों में रिपोटिंग करने कहा गया है।

इसके तीसरे दिन ही दिवाली है, सो उन्हें अब घर आने का मौका मिलेगा नहीं। लक्ष्मीपूजा के त्यौहार में ऐन समय अफसरों के बाहर रहने से क्या-क्या नुकसान होगा....उनकी पीड़ा को यहां कुरेदना ठीक नहीं। चीफ इलेक्शन कमिश्नर राजीव कुमार को कम-से-कम दिवाली का खयाल तो करना था।

भरोसे की पिटाई

बलरामपुर बवाल का वीडियो देखकर छत्तीसगढ़ का आम आदमी हिल गया। बड़ा भयावह दृश्य था....छत्तीसगढ़िया, सबले बढ़ियां...कहे जाने वाले प्रदेश की महिलाओं ने पुलिस पार्टी पर हमला बोल दिया। थाने के सामने एक महिला बत्ती लगी पुलिस की गाड़ी के शीशे को पत्थर बरसा रही थी तो दूसरी महिला जूती निकालकर महिला एडिशनल एसपी की पिटाई करती दिखी।

वीडियो देख सरगुजा रेंज पुलिस, पुलिस मुख्यालय और गृह विभाग के मुख्तारों को पता नहीं कैसा लगा....मगर अकल्पनीय हालात देख छत्तीसगढ़ का आम आदमी हतप्रभ है। भयभीत भी। दरअसल, पुलिस आम आदमी के भरोसे की प्रतीक होती है।

रसूखदार आदमी रसूख के बल पर और पैसे वाले पैसे के बल पर अपना काम करा लेता है। मगर समाज के 95 परसेंट लोग अपनी जान-माल की सुरक्षा को लेकर पुलिस पर निर्भर होते हैं। इस 95 परसेंट पर जब भी कोई संकट आता है तो सीधे थाने दौड़ता है। मगर उसका विश्वास इस तरह जूती से पिटेगा तो घबराना वाजिब है।

हनुमानजी प्रसन्न नहीं!

छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा शपथ लेने के बाद पहली बार पुलिस मुख्यालय पहुंचे थे, तो उन्होंने वहां बजरंगबली की पूजा की थी, नारियल फोड़ने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ हुआ था। मगर पुलिस पर संकट देखकर लगता है, पूजा से हनुमानजी प्रसन्न नहीं हुए। वरना ऐसा थोड़े होता है...डंडे बरसाने वाली पुलिस पर ही डंडे बरस रहे...।

कवर्धा में गृह मंत्री के दो करीबी लोगों को हिंसा में जान गंवानी पड़ गई। एसपी, एडिशनल एसपी का लगातार निलंबन और छुट्टी की कार्रवाई भी प्रभावी नहीं हो पा रही। गृह विभाग को काशी के किसी अच्छे पंडित से अनुष्ठान करा पुलिस की ग्रह-दशा को शांत करने का प्रयास करना चाहिए।

सवाल 73 विधानसभा सीटों का

बस्तर में नक्सल मोर्चे पर फोर्स को बड़ी कामयाबी मिल रही है। गृह विभाग और पुलिस महकमा इसके लिए सराहना का पात्र है। मगर बस्तर की सफलता मैदानी इलाकों में पुलिस की अ-क्षमता से धुल जा रही है। सिस्टम को यह भी ध्यान रखना होगा कि बस्तर में विधानसभा की केवल 17 सीटें हैं। 73 सीटें मैदानी इलाकों में हैं।

बिहार में लालू यादव और यूपी में मुलायम सिंह यादव के परिवार की सत्ता का अंत हुआ तो इसकी एक बड़ी वजह लॉ एंड आर्डर रही। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बदली तो उसके पीछे कानून-व्यवस्था भी एक कारण रहा। याद होगा, डेढ़ साल पहले रायपुर शहर में नशे में युवती ने एक युवक की चाकू मारकर हत्या कर दी थी। इसलिए, पीएचक्यू को लॉ एंड आर्डर को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।

सस्पेंशन या जूते

छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग के ध्वस्त होने के पीछे बड़ी वजह है पुलिस का लोकलाइजेशन। मध्यप्रदेश में आज भी सिपाहियों को गृह जिले में पोस्टिंग नहीं मिलती। मगर छत्तीसगढ़ में ये वर्जनाएं ऐसी टूटी कि अब नेताजी लोगों की कृपा से पुलिसकर्मियों को उनके गांव के नजदीकी थाने में पोस्टिंग मिल जा रही। कई जिलों की स्थिति ये हो गई है कि लोकल पुलिस का परसेंटेज 70 से 80 पहुंच गया है।

बलौदा बाजार की हिंसा में भी इसे महसूस किया गया, जब भीड़ को देखकर पुलिस मौके से गायब हो गई। असल में, वर्दी वालों से तिमारदारी कराना नेताओं को गर्व की अनुभूति कराता है और जाहिर है, पुलिस वाले नेताओं के जब लटर-पटर वाले काम करेंगे, तो उसकी कीमत भी वसूलेंगे ही।

सूबे में इससे सबसे बड़ा नुकसान पोलिसिंग का हुआ है। पुलिस का पूरा सिस्टम काम धाम छोड़ उगाही में जुट गया। दूसरी बड़ी वजह है...लॉ एंड आर्डर का अनुभव नहीं होना है। पुलिस में गिने-चुने अफसर भी नहीं हैं, जिन्हें विषम परिस्थितियों को संभालने का अनुभव हो। बलरामपुर बवाल में सबको पता था कि मृतक बंगलादेशी रिफ्यूजी परिवार से है। बंगाल और बंग्लादेश में प्रतिरोध का एक अलग तरीका होता है।

ममता बनर्जी जैसी मुख्यमंत्री डॉक्टरों से नहीं निबट पा रही तो बंग्लादेश में लोगों ने ऐसी लड़ाई लड़ी कि पीएम शेख हसीना को राजपाट छोड़ इंडिया भागना पड़ा। ऐसे में, सवाल उठता है...सरगुजा और बलरामपुर के पुलिस अधिकारियों ने अंडरस्टीमेट कैसे कर लिया। जो चूक सूरजपुर पुलिस ने की, उसी की पुनरावृत्ति बलरामपुर में भी हुई। बाहर से फोर्स बुलाकर अगर तुरंत तैनाती कर दी गई होती तो भीड़ को थाने में घुसने का मौका नहीं मिलता।

तीसरा, पुलिस को उग्र भीड़ से निबटने के लिए फ्री हैंड चाहिए। पुलिस के सामने दोहरा संकट है। बल प्रयोग किया तो सस्पेंड और बल प्रयोग नहीं तो बलरामपुर की तरह पीठ पर जूते खाओ। कवर्धा के लोहारीडीह कांड में अगर एसपी को हटाना ही था तो फिर एडिशनल एसपी को सस्पेंड करने का क्या तुक?

पुलिस को अगर टाईट करनी है तो आपको उसे संरक्षण भी देना होगा। छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग को अगर जिंदा रखनी है तो गृह और पुलिस महकमे को इस पर चिंतन करनी चाहिए।

कड़े और अलोकप्रिय फैसले

सरकार ने तेज-तर्रार नेता विजय शर्मा को गृह मंत्रालय की कमान सौंपी हैं तो उन्हें डिरेल्ड हो चुकी पोलिसिंग को पटरी पर लाने कुछ कड़े और अलोकप्रिय फैसले लेने पड़ेंगे। इसके लिए सबसे पहले पुलिस में राजनीतिक हस्तक्षेप बंद करना होगा। ट्रांसफर, पोस्टिंग में कुछ साल नो सिफारिश। स्टेट लेवल पर भर्ती नहीं कर सकते तो जिला लेवल पर तो ना ही हो।

पुलिस की भर्ती रेंज स्तर हो और उसमें जिले का विकल्प न दिया जाए। याने संबंधित रेंज के किसी भी जिले में सिपाहियों की पोस्टिंग की जा सकती है। इससे खटराल सिपाहियों को अपराधियों से गठजोड़ टूटेगा। पहले पुलिस के इंफर्मर होते थे, आजकल अपराधियों के इंफर्मर पुलिस हो गई है। ऐसे में, पुलिस का भगवान मालिक है।

कप्तानी का रिकार्ड

आरआर याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईपीएस में कप्तानी का रिकार्ड बद्री नारायण मीणा और संतोष सिंह के नाम दर्ज है तो स्टेट सर्विस वाले आईपीएस में प्रशांत ठाकुर सबसे आगे हैं। प्रशांत जशपुर, जांजगीर, बेमेतरा, बलौदा बाजार, दुर्ग, धमतरी जिले के एसपी रह चुके हैं। सूरजपुर में हेड कांस्टेबल की पत्नी और बेटी की हत्या के बाद सरकार ने उन्हें वहां का एसपी अपाइंट किया है। सूरजपुर उनका सातवां जिला हुआ। बद्री और संतोष को छोड़ दें तो सात जिला किसी आरआर वाले आईपीएस ने भी नहीं किया होगा।

वीवीआईपी कलेक्टर

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपने गृह जिले जशपुर के कलेक्टर के लिए रोहित व्यास को चुना है। सत्ता से नजदीकी दिखाने वाला जशपुर का एक बड़ा वर्ग कलेक्टर के रूप में जिपं के पूर्व सीईओ को देखना चाहता था। मगर सीएम ने रोहित का नाम ओके कर दिया।

दरअसल, कोरोना के समय बगीचा के एसडीएम रहे रोहित की वर्किंग को सीएम भलीभांति जानते थे। 2017 बैच के आईएएस रोहित के बारे में आम धारणा है कि वे अनावश्यक राजनीतिक प्रेशर में नहीं आते।

कलेक्टर से सीपीआर

छत्तीसगढ़ में यह दूसरा मौका है, जब सरकार ने कलेक्टर को जिले से बुलाकर सीपीआर याने जनसंपर्क प्रमुख बनाया है। इससे पहले 2014 में ओपी चौधरी को दंतेवाड़ा कलेक्टर से रायपुर बुलाकर डीपीआर बनाया गया था। बाद में ओपी यहीं से जांजगीर कलेक्टर बनकर गए और वहां से फिर रायपुर कलेक्टर बनें। उनके बाद जशपुर कलेक्टर डॉ0 रवि मित्तल को कलेक्टर से जनसंपर्क प्रमुख बनाया गया है।

हालांकि, राज्य बनने से पहले सुनिल कुमार रायपुर कलेक्टर से डीपीआर बने थे। उस समय अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे। वे एक दिन के दौरे पर रायपुर आए थे। और लौटे तो दूसरे दिन सुनिल कुमार को डीपीआर बनाने का आदेश हो गया। बहरहाल, खास बात यह है कि जशपुर दौरे में सीएम ने तीन कलेक्टरों समेत 10 आईएएस अधिकारियों को बदलने के आदेश पर साइन किया तो कलेक्टर के रूप में रवि वहीं थे। सोशल मीडिया में आदेश वायरल होते ही रवि को बधाइयां मिलने लगी।

ऐसा ही कुछ 2016 में हुआ था...जब मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह ने मंच से ऐलान किया किया था कि आपके कलेक्टर मुकेश बंसल को मैं बड़ा काम कराने के लिए रायपुर ले जा रहा हूं...तो सभा स्थल पर मुकेश को बधाइयों का तांता लग गया था। बता दें, रवि मित्तल की सहायक कलेक्टर के रूप में पहली पोस्टिंग राजनांदगांव रही और मुकेश से ही उन्हें प्रशासन का प्रारंभिक गुरूज्ञान मिला।

दिलफेंक प्रोफेसर

राजधानी रायपुर के एक दिलफेंक प्रोफेसर की चर्चा इन दिनों बड़ी सरगर्म है। वे कपड़े की भांति अपना दिल बदलते हैं। उनके खिलंदरपन से परेशान होकर पत्नी ने संबंध विच्छेद कर लिया, इसके बाद भी प्रोफेसर साब का दिल समझने को तैयार नहीं हैं। अलबत्ता, सिक्सटी प्लस उम्र भी उनके हौसले पर कोई असर नहीं डाल पा रहा। रामविचार जी को देखना चाहिए, कहीं कुछ उंच-नीच हो गया तो खामोख्वाह बदनामी होगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सांसद बृजमोहन के खासमखास सुनील सोनी को रायपुर दक्षिण से टिकिट मिलने के बाद कांग्रेस क्या दमखम के साथ चुनाव लड़ेगी?

2. राज्य मानवाधिकार आयोग में किस रिटायर अफसर की पोस्टिंग हो रही है?

रविवार, 20 अक्तूबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: हाफ पैंट में अपराधी, लहू विहीन पुलिस

 तरकश, 20 अक्टूबर 2024

संजय के. दीक्षित

हाफ पैंट में अपराधी, लहू विहीन पुलिस

सूरजपुर घटना को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बंद कमरे में पुलिस अधिकारियों की जमकर क्लास ली। उनका प्वाइंटेड प्रश्न था...आरोपी जब एक दिन पहले थाने में आकर धमका गया था तो पुलिस एक्शन में क्यों नहीं आई? अपराधियों के खिलाफ पुलिस सख्ती क्यों नहीं बरत रही? सीएम का गुस्सा जायज था। वैसे गुस्से में आम पब्लिक भी है और सूबे के 70 हजार पुलिस परिवार भी। पुलिस ने बलरामपुर बस स्टैंड में नाटकीय ढंग से मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी की, उससे पुलिस परिवारों का खून खौल गया। आरोपी हाफ पैंट में ठसन के साथ चल रहा था और पुलिस उसके साथ फोटो और वीडियो बनवा रही थी। पुलिस अधिकारियों के मानसिक दिवालियापन की पराकाष्ठा तब हो गई, जब हाफ पैंट में ही आरोपी को प्रेस के सामने पेश कर दिया। जिस समय पुलिस बलरामपुर में अपराधी के साथ फोटो सेशन करवा रही थी, उसी दौरान टीवी पर यूपी के बहराइच कांड के जख्मी आरोपी का वीडियो चल रहे थे, जिसमें वह कराह रहा था...साब गल्ती हो गई, अब कभी ऐसा नहीं होगा। एनकाउंटर में दोनों के पैर में गोली लगी थी। और हमारी छत्तीसगढ़ की पुलिस...? बताते हैं, मुख्य आरोपी को बचाने उसके पुलिसिया खैरख्वाह एक्टिव हो गए थे। योजनाबद्ध ढंग से उसे गढ़वा से बुलाया गया, यह गारंटी देकर कि कुछ नहीं होगा, आ जाओ। फिर स्टोरी प्लांट की गई...गढ़वा से अंबिकापुर आ रहा था। तभी पुलिस को इनपुट मिले और उसे बलरामपुर बस स्टैंड में दबोच लिया गया। पता नहीं, छत्तीसगढ़ पुलिस में पानी बचा है या नहीं। हेड कांस्टेबल के घर में घुसकर पत्नी और बेटी की हत्या हो जाती है, उसके बाद भी लहू गरम नहीं होता। मुख्य आरोपी के अहसान से दबे सूरजपुर पुलिस का एक धड़ा उसे बचाने में जुट गया है। जाहिर है, सीजी पुलिस के लिए आजकल सबसे बड़ा रुपैया हो गया है...ईमान-धरम सब पीछे।

पुलिस अफसर और जुआ

राजधानी रायपुर से लगे अमलेश्वर में कुछ सीनियर राजपत्रित पुलिस अधिकारी हाई प्रोफाइल जुआ खिलवा रहे थे। खुफिया चीफ अमित कुमार को इसकी भनक लग गई। उन्होंने अधिकारियों को बुलवाकर जमकर हड़काया। दिल्ली से 12 साल बाद छत्तीसगढ़ लौटे अमित हैरान थे कि छत्तीसगढ़ पुलिस को आखिर क्या हो गया है...पैसे के लिए पुलिस इतनी नीचे गिर जाएगी! दरअसल, अतीत में जो हुआ, वह पोलिसिंग को चौपट कर दिया। वर्दी वालों को पैसे की ऐसी लत लग गई कि छत्तीसगढ़ में कौन अफसर काबिल और कौन नाकाबिल...इसका भेद खतम हो गया है। सट्टा और जुआ ने कई उर्जावान अफसरों का कैरियर चौपट कर डाला। हालत यह है कि सरकार एक आईजी लॉ एंड आर्डर बनाना चाहती है मगर इसके लायक कोई अफसर नहीं दिखाई पड़ रहा।

महिला पुलिस और उपयोगिता

छत्तीसगढ़ पुलिस की ट्रेनिंग चौपट हो गई है, उपर से लाखों रुपए खर्च कर ट्रेनिंग हो रही, उसका भी उपयोग नहीं किया जा रहा। सूबे में ढाई-तीन दर्जन महिला डीएसपी, एडि. एसपी होंगी। इनमें से अधिकांश बटालियन या फिर चिटफंड और आईयूसीएडब्लू में पोस्टेड हैं। सवाल उठता है कि पीएससी में सलेक्ट होकर सीट अकुपाई करने वाली महिला पुलिस अधिकारी फील्ड में काम क्यों नहीं करना चाहतीं और पुलिस मुख्यालय पोस्टिंग के समय इस पर गौर क्यों नहीं करता? महिला पुलिस अधिकारी एसी चेंबर, गाड़ी, बंगला और अर्दली से ही संतुष्ट क्यों हो जा रही...पीएचक्यू को इसकी स्टडी करानी चाहिए। हालांकि, इससे इंकार नहीं कि महिला अधिकारियों के लिए व्यवस्थागत खामियां भी है। छत्तीसगढ़ में एक से बढ़कर एक गृह मंत्री और डीजीपी हुए मगर आज तक किसी ने ये नहीं सोचा कि महिला सिपाही या अधिकारी को फील्ड में ड्यूटी लगाई जाएगी तो वे वॉशरुम कहां जाएंगी। वीआईपी के लिए चलित शौचालय का बंदोबस्त हो जाता है मगर किराये की गाड़ी के नाम पर हर साल कई करोड़ रुपए बहाने वाली पुलिस अपने महिला स्टाफ के लिए एक मोबाइल टॉयलेट नहीं खरीद सकती। दूसरा, पीएचक्यू को ये भी देखना चाहिए कि पुरूष प्रभुत्व सिस्टम में महिला अफसरों के साथ कोई नाइंसाफी तो नहीं हो रही। बहरहाल, समाज में डे-टू-डे महिला अपराध बढ़ रहे, तब महिला पुलिस अधिकारियों की फील्ड पोस्टिंग और जरूरी हो जाती है।

ब्यूरोक्रेसी और रिफार्म

जब देश में अंग्रेजों के टाईम के कानून बदले जा रहे हैं...तब छत्तीसगढ़ का राजस्व विभाग ने तहसीलदारों के आगे घूटने टेकते हुए उन्हें अंग्रेजों की बनाई न्यायालयीन संरक्षण उपलब्ध करा दिया। याने अब बिना विभागीय अनुमति के तहसीलदारों, नायब तहसीदारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। असल में, नौकरशाही के साथ दिक्कत यह है कि सिस्टम के सुधार में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं होती। चूकि, इसमें रिस्क होता है, इसलिए ब्यूरोक्रेसी की सिंगल लाईन होती है...जैसा चल रहा, चलने दो। खैर...छत्तीसगढ़ का पड़ोसी राज्य तेलांगना ने राजस्व न्यायालय को समाप्त कर दिया है। मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश जैसे कई राज्यों में ़ऋण पुस्तिका की भी अब आवश्यता नहीं। अनेक ऐसे स्टेट हैं, जहां रजिस्ट्री होते ही आटोमेटिक नामंतरण हो जाता है। और इधर छत्तीसगढ़ में....। राजस्व महकमे के मुलाजिमों से वैसे भी पब्लिक त्राहि माम कर रही है। खुद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी एकाधिक बार स्वीकार कर चुके हैं कि सबसे अधिक उनके पास राजस्व विभाग की शिकायतें आती है। कलेक्टर कांफ्रेंस में पहली बार अबकी राजस्व, बंटवारा और नामंतरण का एजेंडा सबसे उपर रखा गया था। बावजूद इसके राजस्व विभाग ने राजस्व अधिकारियों के आगे नतमस्तक हो गया, तो फिर क्या कहा जा सकता है।

फिर बर्खास्त क्यों नहीं?

जाहिर है, राजस्व अधिकारी आएं-बाएं फैसला पारित करते हैं और न्यायालय की आड़ में बच जाते हैं। उनके गलत फैसलों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती। राजस्व विभाग में कोई विजिलेंस सेल नहीं है। जबकि, ज्यूडिशरी में निगरानी का अपना एक सिस्टम है। जजों को विशेष संरक्षण मिला है मगर वो अगर गलत फैसला देते हैं, तो हाई कोर्ट के राडार पर आते हैं और साल में 10-12 जजों की बर्खास्तगी भी होती है। किन्तु गलत फैसले के लिए आपने कभी एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार को बर्खास्त होते देखा है? जब दोषपूर्ण फैसलों पर राजस्व अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं तो फिर उन्हें विशेष संरक्षण क्यों? सिस्टम को इस पर विचार करना चाहिए। क्योंकि, सबसे अधिक अगर किसी विभाग में करप्शन है तो वह राजस्व विभाग है। पिछले हफ्ते एक महिला आईएएस ने किसी रिश्तेदार के नाम पर एक जमीन का नामंतरण कराया। उन्हें नामंतरण और सीमांकन के लिए दो लाख रुपए देने पड़े, तब जाकर काम हो पाया। दरअसल, अंग्रेजी शासन के प्रारंभ में कलेक्टरों को फांसी देने का अधिकार होता था। बाद में ये पावर ले लिया गया। मगर सिविल मामलों का अधिकार इसलिए उनके पास यथावत रखा क्योंकि, उस समय लगान से ही सरकार को मुख्य राजस्व प्राप्त होता था। उस समय सरकार के पास पैसे होते नहीं थे। इसीलिए कलेक्टर नाम पड़ा...रेवेन्यू कलेक्ट करने वाला। राजस्व अमलों को न्यायालयीन अधिकार करप्शन को ढकने का एक बड़ा प्रोटेक्शन बन गया है।

आईएएस की पोस्टिंग

2004 बैच के आईएएस अमित कटारिया अगले महीने छुट्टी से लौट आएंगे। वे एक सितंबर को सात साल का डेपुटेशन कंप्लीट कर दिल्ली से लौटे थे। ज्वाईन करने के बाद वे दो महीने के अवकाश पर चले गए थे। अगले महीने वे लौटेंगे तो सचिव स्तर पर एक सर्जरी होगी। कटारिया चूकि भारत सरकार से लौट रहे हैं, इसलिए उन्हें ठीकठाक ही पोस्टिंग मिलेगी। कटारिया कवर्धा, रायगढ़ और बस्तर के कलेक्टर के साथ ही नगर निगम कमिश्नर रह चुके हैं। निगम कमिश्नर के तौर पर रायपुर में मंत्रालय, मोतीबाग, बस स्टैंड के आसपास के बेजा कब्जा हटाने में अमित की अहम भूमिका रही।

पिंगुआ को वेट

एसीएस मनोज पिंगुआ के पास इस समय चार विभाग हैं। गृह, जेल, हेल्थ और मेडिकल एजुकेशन। छत्तीसगढ़ लेवल के अन्य राज्यों में इन चारों विभाग के लिए चार अलग-अलग सिकरेट्री होते हैं। रजत और रोहित यादव के दिल्ली से लौटने पर हुई सर्जरी में हेल्थ से पिंगुआ से हेल्थ हटने की चर्चाएं थी मगर ऐसा हुआ नहीं। अब अमित कटारिया छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं तो फिर कहा जा रहा कि उन्हें हेल्थ दिया जाएगा। मगर अंदर से जो खबरें आ रही, उसके मुताबिक पिंगुआ को विभागों के लोड से हल्का होने के लिए अभी और इंतजार करना होगा। क्योंकि, अमित को एक डिप्टी सीएम का विभाग मिलने वाला है।

बिफोर प्रमोशन

छत्तीसगढ़ में सचिवों की भरमार हो गई है मगर प्रमुख सचिव स्तर पर अधिकारियों की भारी कमी है। इसको देखते चर्चा है 2000 बैच के साथ ही 2002 बैच का पिं्रसिपल सिकरेट्री पद प्रमोशन दे दिया जाएगा। मंत्रालय में सिस्टम का बैकबोन होता है। याने क्रिकेट की भाषा में कहा जाए तो मध्यक्रम के बल्लेबाज। छत्तीसगढ़ में सिर्फ दो ही पीएस हैं। निहारिका बारिक और सोनमणि बोरा। गौरव द्विवेदी, मनिंदर कौर द्विवेदी और सुबोध सिंह पीएस हैं मगर वे इस समय सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। 99 बैच के बोरा पिछले साल प्रमुख सचिव बने थे। उनके बाद 2000 बैच में शहला निगार हैं। जनवरी में शहला भी पीएस बन जाएंगी। उनके बाद 2001 बैच खाली है। 2002 में डॉ0 रोहित यादव और डॉ0 कमलप्रीत सिंह हैं। प्रमुख सचिव के पोस्ट भी काफी हैं। सो, समझा जाता है शहला के साथ रोहित और कमलप्रीत भी प्रमुख सचिव बन जाएंगे। इससे पहले कई बार ऐसा हो चुका है जब समय से पहले अफसरों को प्रमोशन दिया गया। सीके खेतान और आरपी मंडल को छह महीने पहले प्रमुख सचिव बना दिया गया था। तो पिछली सरकार में रेणु पिल्ले को छह महीने पहले एसीएस बनाया गया तो सुब्रत साहू डेढ़ साल पहले एसीएस प्रमोट हो गए थे। प्रमुख सचिव की संख्या बढने पर सरकार के पास विकल्प रहेगा कि वह कुछ महत्वपूर्ण विभागों में सचिव के उपर प्रमुख सचिव पोस्ट कर दें। मध्यप्रदेश में चूकि अधिकारियों की संख्या काफी है, इसलिए वहां लगभग सारे विभागों में प्रमुख सचिव रहते हैं। कई में सिकरेट्री, प्रिंसिपल सिकरेट्री के उपर एडिशनल चीफ सिकरेट्री भी होते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ऋता शांडिल्य पीएससी की कार्यकारी अध्यक्ष बनी रहेंगी या किसी शिक्षाविद को पूर्णकालिक चेयरमैन बनाया जाएगा?

2. मुख्यमंत्री के बाद क्या अब मंत्री और अधिकारी भी नया रायपुर जाएंगे रहने?


शनिवार, 5 अक्तूबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: सीएम विष्णु देव ने बदली जांच कमेटी

 तरकश, 6 अक्टूबर 2024

संजय के. दीक्षित

सीएम विष्णु देव ने बदली जांच कमेटी

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पिछले 24 सालों से भ्रष्टाचार का गढ़ बना पाठ्य पुस्तक निगम के किताब घोटाले में सरकार इतने गुस्से में है कि दो जांच कमेटी बन गई। दरअसल, स्कूल शिक्षा विभाग इस समय मुख्यमंत्री संभाल रहे हैं। सो, मीडिया में जैसे ही खबर आई...अफसरों ने आनन-फानन में पांच सदस्यीय जांच कमेटी गठित कर दी। मगर कमेटी में अफसरों के नाम देखकर सीएम नाराज हो गए। कमेटी में निगम के आईएएस एमडी ही प्रमुख बन गए थे। पापुनि के राप्रसे अधिकारी कैडर के जीएम मेम्बर। मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे एक-एक किताब का हिसाब चाहिए...कि किन परिस्थितियों में लाखों किताबें ज्यादा छप गई। उन्होंने अफसरों से पूछा...कौन आईएएस निःपक्ष जांच कर सकता है। इस पर उन्हें एसीएस रेणु पिल्ले का नाम सुझाया गया। अफसरों ने तुरंत पिल्ले जांच कमेटी का आर्डर निकाल दिया। रेणु पिल्ले का नाम सामने आने के बाद अब अफसरों से लेकर पेपर सप्लायरों तक की नीदें उड़ गई है। क्योंकि, अभी तक पाठ्य पुस्तक निगम में पोस्टिंग ही कमाने के लिए होती थी। एक मोटे अनुमान के तहत निगम के चेयरमैन से लेकर एमडी और जीएम को साल में गिरे हालत में दो खोखा की आवक बन जाती है। अब रेणु पिल्ले की जांच के बाद सबका पोल खुल जाएगा। क्योंकि, वे अपनी नहीं सुनती।

मंत्रियों, अधिकारियों की मुसीबत

नया रायपुर में तीन साल से अफसरों के बंगले बनकर तैयार हैं मगर कोई यहां से जाना चाह नहीं रहा। मंत्रियों में सिर्फ रामविचार नेताम शिफ्थ हुए हैं। मगर अब खुद सीएम विष्णुदेव ने पहल कर आज गृह प्रवेश कर लिया है। आज रात में वे नए रायपुर के नए घर में ही रुक रहे। इस खबर के बाद मंत्रियों और अधिकारियों के चेहरे पर तनाव बढेगा। क्योंकि, जब मुख्यमंत्री चले गए नया रायपुर तो उन्हें भी एक दिन जाना पड़ेगा ही। वैसे भी नई सरकार नए रायपुर की बसाहट को लेकर काफी संवेदनशील है।

अफसरों को प्रोटेक्शन

अच्छे अफसरों को जब सिस्टम से प्रोटेक्शन मिलता है तो वे अपना बेस्ट देने का प्रयास करते हैं। मगर जब लगता है कि हालात फेवरेबल नहीं तो फिर उनका हौसला कमजोर पड़ने लगता है। रायपुर जेल प्रकरण में कुछ ऐसा ही हुआ। विपक्ष के दिग्गज नेता इस इश्यू को तीन दिन खेल गए। पहले दिन जेल में आरोपी से मुलाकात...अगले दिन प्रेस कांफ्रेंस और तीसरे दिन सीजेआई को लेटर। मगर सरकार से न किसी मंत्री का बयान आया और न ही सत्ताधारी पार्टी के किसी नेता ने मुंह खोला। यहां तक कि हर बॉल को आगे बढ़कर खेलने वाले विभागीय मंत्री विजय शर्मा भी खामोश रहे। ऐसे में, अफसरों से अच्छा करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। क्योंकि, यह सच्चाई है कि कई बार अच्छा और फास्ट करने के चक्कर में कई बार थोड़ा इधर-उधर हो जाता है। वैसे, अच्छे अधिकारियों को संरक्षण न मिलने वाला मामला पिछली सरकार में भी रहा। वक्त को देखते रीढ़ वाले अधिकारियों ने खुद को समेट लिया था...मालूम था कि जरा सा इधर-से-उधर हुआ तो छुट्टी होने में देर नहीं। अलबत्ता, खोटे सिक्कों ने खूब मौज काटा...सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट आत्मानंद अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती से लेकर सप्लाई तक का पैसा कई कलेक्टर खा गए। बहरहाल, पते की बात यह है कि ब्यूरोक्रेट्स तभी जोखिम लेकर काम करते हैं, जब उन्हें ये भरोसा रहे कि उंच-नीच होने पर उसे समझने वाला आदमी है। वरना, फिर बैकफुट पर रहना मुनासिब समझता है। आखिर, काम करें या न करें...गाड़ी-घोड़ा, बंगला, नौकर-चाकर तो 60 बरस तक मिलेगा ही।

कमाल के गडकरी

केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नीतीन गडकरी के कामकाज के स्टाईल के अनेक किस्से वैसे तो सुनने को मिलते हैं मगर 30 सितंबर को दिल्ली में हुई हाई प्रोफाइल मीटिंग को छत्तीसगढ़ के जिन अफसरों ने अटैंड किया, उसे लाइव देखा। गडकरी का छत्तीसगढ़ की सड़क परियोजनों के होम वर्क को देखकर लोग हैरान थे। जितनी जानकारियां छत्तीसगढ़ के लोगों को नहीं थी, उसके ज्यादा गडकरी बिना कोई कागज देखे जुबानी बोल गए। गडकरी को यहां तक पता था कि किन छह जिलों में सड़कों का निर्माण कार्य स्लो चल रहा है। उन्होंने उन जिलों का बकायदा नाम लेकर कहा कि इन जिलों के कलेक्टरों के साथ नियमित रिव्यू कर प्राब्लम को शार्ट आउट किया जाए। ये अलग बात है कि हफ्ता भर बीत गया, अभी तक किसी रिव्यू की खबर नहीं दिखाई पड़ी है।

उल्टा-पुल्टा

गडकरीजी कुछ भी कह लें, छत्तीसगढ़ में सिस्टम अपने हिसाब से ही चलता है। उसका नमूना है, रायपुर-विशाखापत्तनम सिक्स लेन रोड। छत्तीसगढ़ की यह पहली क्लोज डोर सड़क होगी। इसके बन जाने से रायपुर से वाइजेक की 14 घंटे की दूरी सात घंटे में सिमट जाएगी। मगर दो-तीन साल पहले अभनपुर के एसडीएम ने भूखंडों को टुकड़ों में बेचने का ऐसा गुल खिलाया कि नेशनल हाईवे पर 78 करोड़ की चोट बैठ जा रही। एनएच वाले 2022 में रायपुर कलेक्टर से जांच की गुहार लगाई मगर कलेक्टर क्या कर लेंगे, उसमें कई बड़े नेताओं के भी क्लेम हैं। सो, कलेक्टर्स उस फाइल में हाथ नहीं डाल पा रहे। ताजा अपडेट यह है कि जिस दिन गडकरीजी दिल्ली में काम प्रभावित न होने की टिप्स दे रहे थे, उसी दिन किसानों ने एक्सप्रेसवे का काम रोक दिया। बताते हैं, संगठन के एक नेताजी ने अभनपुर के राजस्व अधिकार को फोन कर दिया कि बिना 78 करोड़ मुआवजा मिले बगैर काम प्रारंभ नहीं होना चाहिए। अब आप बताइये...ऐसा उल्टा-पुल्टा काम होगा तो दिल्ली में बैठे गडकरी जी क्या कर लेंगे?

पोस्टिंग के लिए नो वेट

पीएमओ में डेपुटेशन कर छत्तीसगढ़ लौटे आईएएस डॉ0 रोहित यादव को उर्जा विभाग का सिकरेट्री बनाने के साथ उन्हें बिजली कंपनियों के चेयरमैन का दायित्व सौंपा गया है। रोहित ने पीएमओ में पांच साल इंफ्रास्ट्रक्चर डिपार्टमेंट संभाला है, जिसमें 13 विभाग आते हैं। इनमें उर्जा महत्वपूर्ण है। हो सकता है कि इसी को देखते सरकार ने रोहित को बिजली की पूरी कमान सौंप दी। मगर उनकी पोस्टिंग में एक खबर और है कि डेपुटेशन से लौटने के तीसरे दिन विभाग पाने वाले वे पहले आईएएस बन गए हैं। पिछले 20 साल में अपवादस्वरूप सुनिल कुमार को छोड़ दें तो ऐसा याद नहीं कि दिल्ली से लौटने वाले आईएएस को किसी सरकार ने तीन दिन के भीतर पोस्टिंग दे दी हो। अमिताभ जैन, अमित अग्रवाल, गौरव द्विवेदी, सोनमणि बोरा जैसे अनेक नौकरशाहों को महीना भर तक वेट करना पड़ गया था। हालांकि, इस सरकार में मुकेश बंसल और रजत कुमार को भी हफ्ते भर के भीतर पदास्थपना मिल गई थी। चलिए ये अच्छी बात है। सरकारों को डेपुटेशन से लौटने वाले अधिकारियों के प्रति धारणा बदलनी चाहिए। आखिर, वे स्टेट से एनओसी मिलने के बाद ही तो प्रतिनियुक्ति पर जाते हैं।

मंत्रिमंडल का विस्तार!

तरकश के पिछले स्तंभ में इस बात का जिक्र किया गया था कि सत्ताधारी पार्टी का एक खेमा निगम चुनाव से पहले कुछ आयोगों में नियुक्तियों के साथ ही दो नए मंत्रियों को शपथ दिलाने के पक्ष में है। इस खेमे के नेताओं का मानना है कि सरकार का कामकाज और अच्छा होने के साथ ही कार्यकर्ताओं में एक पॉजीटिव संदेश जाएगा। इसके बाद आयोगों में नियुक्तियां प्रारंभ हो गई है। युवा आयोग के बाद छत्तीसगढ़ पिछड़ा वर्ग आयोग चेयरमैन का भी आदेश निकल गया है। इसको देखते बीजेपी के विधायकों में मंत्रिमंडल के शपथ को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है। मंत्री पद के दर्जन भर से अधिक दावेदार पता लगाने में जुटे हैं कि अंदरखाने में क्या चल रहा है? क्या नए मंत्रियों का शपथ होगा और होगा तो उसका नंबर लगेगा या नहीं?

पार्टी पीछे, लाल बत्ती आगे

जब से सीएम विष्णुदेव ने बोर्ड, आयोगों में पॉलीटिकल नियुक्तियां शुरू की है, बीजेपी नेताओं को रोज रात में लाल बत्ती के सपने आ रहे हैं। नवरात्रि में विशेष पूजापाठ के साथ दिल्ली के भी चक्कर लगाए जा रहे...शायद यहां से नहीं तो कुछ उधर से जुगाड़ निकल जाए। बता दें बीजेपी के नेताओं का इस समय एक सूत्रीय एजेंडा है...किसी तरह किसी बोर्ड या निगम में अध्यक्ष बन जाएं और ये नहीं हुआ तो किसी ठीकठाक बोर्ड-निगम मेम्बर ही सही। यही वजह है, बीजेपी मुख्यालय में देर रात तक पार्टी नेताओं का जमघट लग रहा है। बीजेपी के कई नेता प्रदेश मुख्यालय में ही निवास करते हैं, इसलिए होटलों से तैयार होकर लोग सुबह-सुबह पार्टी मुख्यालय धमक जा रहे। लिहाजा, इस समय बीजेपी पीछे है...लाल बत्ती आगे हो गई है।

अंत में एक सवाल आपसे

1. किस मंत्री का एक गुप्त स्थान में विशेष तांत्रिक अनुष्ठान चल रहा है?


रविवार, 29 सितंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: कैबिनेट में नए मंत्री

 तरकश, 29 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

कैबिनेट में नए मंत्री?

नगरीय निकाय चुनाव के बाद ही विष्णुदेव साय कैबिनेट में दो नए मंत्रियों की इंट्री होगी, यह धारणा पलट भी सकती है। बीजेपी के अंदरखाने में इस बात पर मंथन चल रहा कि इलेक्शन से पहले नए मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल करना कितना फायदेमंद होगा। दरअसल, मंत्रियों पर विभागों का लोड काफी बढ़ गया है। राज्य बनने के बाद कैबिनेट में कभी भी एक से अधिक सीटें खाली नहीं रहीं। 12 मंत्रियों के कोटे वाले छत्तीसगढ़ में इस समय दो मंत्रियों की जगह खाली है। याने लगभग 17 फीसदी की वैकेंसी। इसका असर कामकाज पर पड़ रहा है। राजकाज में मुख्यमंत्री को सपोर्ट करने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने दो डिप्टी सीएम का फार्मूला लाया था, वह लगभग सभी सूबों में निरर्थक ही साबित हो रहा है। वैसे भी छत्तीसगढ़ के दोनों उप मुख्यमंत्रियों का समय बहुत अच्छा नहीं चल रहा। फिर उन्हें अभी उतना तजुर्बा भी नहीं कि किसी मुश्किल घड़ी में वे सरकार के खेवनहार साबित हो सकें। उधर, दो मंत्री पेंशनधारी की तरह काम कर रहे हैं। याने दिन-दुनिया में क्या हो रहा, इसमें कोई रुचि नहीं। जैसे उमर हो जाने पर आदमी बाल-बच्चों को धंधापानी सौंप विश्राम के मोड में आ जाता है, उसी तरह की स्थिति इन दोनों मंत्रियों की है। उनके करीबी लोग विभाग संभाल रहे हैं। तीन नए मंत्री इतनी जल्दी में लगते हैं मानो पांच साल के लिए शपथ नहीं लिए हों। अलबत्ता, सामने नगरीय निकाय चुनाव है...और भूपेश बघेल जैसा हर बॉल को उठाकर मारने वाला विपक्ष का नेता। ऐसे में, संगठन के कुछ गंभीर नेता जल्द मंत्रिमंडल के विस्तार के पक्ष में हैं। अब देखना है कि अंतिम फैसला क्या होता है। और होता भी है तो किसका नंबर लगता है। क्योंकि, नए से लेकर पुराने तक दर्जन भर विधायक शेरवानी सिलवाकर तैयार बैठे हैं।

बड़ी घटनाएं और राजनीति

छत्तीसगढ़ में पिछले नौ महीने में दो बड़ी घटनाएं हुई हैं। पहला बलौदा बाजार आगजनी और दूसरा कवर्धा की हिंसा। बलौदा बाजार के सामाजिक विवाद में राजनीति का तड़का पड़ा और हिंसा ने उग्र रूप ले लिया। इसी तरह का कुछ कवर्धा में हुआ...साहू समाज के तीन लोग काल के गाल में समा गए। इनमें एक पूर्व मंत्री का आदमी था तो दो लोग वर्तमान मंत्री के बेहद करीबी। पूर्व मंत्री के विश्वासप्राप्त एक ने अपनी पत्नी से दुष्कर्म की थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। आरोपी के जमानत पर छूटकर आने के बाद रिपोर्ट दर्ज कराने वाले की फांसी पर लटकी लाश मिली। इस पर भड़के ग्रामीणों ने दुष्कर्म के आरोपी के साथ उसके घर को फूंक डाला। और तीसरे साहू युवक की अग्निकांड में पुलिस की कथित पिटाई से मौत हो गई। यकीनन, बलौदा बाजार हो या फिर कवर्धा हिंसा...निश्चित तौर पर दोनों घटनाएं सूझबूझ से रोकी जा सकती थी। मगर दोनों घटनाओं को लोकल एडमिनिस्ट्रेशन ने बेहद हल्के में लिया और नेताओं ने भी।

चुनाव टाईम पर

ओबीसी आरक्षण के चक्कर में नगरीय निकाय चुनाव दो-एक महीने आगे खिसकने की चर्चाएं है। राजनीतिक पार्टियां यह मानकर चल रहीं कि जनवरी, फरवरी से पहले चुनाव संभव नहीं। मगर इस भ्रम में रहने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है। ओबीसी कल्याण आयोग जिस गति से काम कर रहा, उससे स्पष्ट हो गया है कि न रिपोर्ट में देरी होगी और न चुनाव टलेगा। याने दिसंबर में ही वोटिंग होगी। बता दें, आयोग का सर्वे कंप्लीट हो गया है। अब कंप्यूटर में उसे फीड करने का काम चल रहा है। पिछड़ी जातियों का पूरा कैलकुलेशन करके आयोग 15 अक्टूबर तक अंतरिम रिपोर्ट सरकार को सौंप देगा। पिछले चुनाव की बात करें तो 2019 के नगरीय निकाय चुनाव की अधिसूचना 15 नवंबर को जारी हुई थी। इस बार भी इसी के आसपास चुनाव का ऐलान किया जाएगा। दिसंबर में 15 से 20 के बीच वोटिंग होगी और 31 दिसंबर से पहले रिजल्ट आ जाएगा। महापौरों का कार्यकाल 4 जनवरी 2025 को समाप्त हो रहा है। सो, राज्य निर्वाचन से जुड़े अधिकारिक सूत्रों का दावा है कि 4 जनवरी से पहले नगरीय परिषद का गठन हो जाएगा।

ओबीसी को झटका?

ओबीसी आयोग के सर्वे में पिछड़ी जातियों को आरक्षण का हल्का झटका लग सकता है। क्योंकि, इससे पहले कभी नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी को जनसंख्या के आधार पर आरक्षण नहीं दिया गया। इस चक्कर में बस्तर, सरगुजा जैसे इलाके जहां ओबीसी का प्रतिशत कम है, वहां भी मैदानी इलाकों की तरह उनकी 25 परसेंट सीटें मिल जाती थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत करार देते हुए ओबीसी के पॉपुलेशन और सामाजिक-आर्थिक आधार पर सीटें आरक्षित करने का आदेश दिया है। साथ ही कंडिशन यह भी है कि बिना ओबीसी की सीटें पुनर्निधारित किए नगरीय निकाय चुनाव न कराया जाए। इसी चक्कर में महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में चुनाव लटका हुआ है। एमपी में अभी हाल में चुनाव हुआ, मगर नए ओबीसी आरक्षण के साथ। छत्तीसगढ़ में भी दो साल पहले ओबीसी कल्याण आयोग का गठन हो जाना था। विलंब को देखते राज्य सरकार ने आरएस विश्वकर्मा जैसे रिजल्ट देने वाले रिटायर आईएएस को इसकी जिम्मेदारी सौंपी। विश्वकर्मा कमेटी ने उन आशंकाओं को निर्मूल करार दिया, जिसमें तय मानकर चला जा रहा था कि आयोग की रिपोर्ट में देरी की वजह से चुनाव आगे जाएगा। बहरहाल, बस्तर, सरगुजा जैसे इलाकों में ओबीसी की कुछ सीटें कम होंगी मगर यह भी सही है कि मैदानी इलाकों में बढ़ेंगी। वैसे जिन इलाकों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी कम है, वहां उनकी भी सीटें कम होंगी। फिर भी ओबीसी को नुकसान थोड़ा ज्यादा होगा क्योंकि बस्तर और सरगुजा के रिमोट आदिवासी इलाकों में पिछड़ा वर्ग की आबादी बेहद कम है।

स्टार प्रचारक

सीएम विष्णुदेव साय दो दिन झारखंड के सिमडेगा में थे। सिमडेगा उनके गृह क्षेत्र कुनकुरी से लगा हुआ है। सीएम बनने से पहले से विष्णुदेव का झारखंड के सीमावर्ती इलाकों से बढ़ियां सामाजिक कनेक्शन रहा है। तभी मुख्यमंत्री को देखने के लिए सिमडेगा में ऐसी भीड़ उमड़ी कि वहां के पॉटिशियन हैरान थे। बताते हैं, पार्टी आसन्न चुनाव में इसका पूरा उपयोग करेगी। विष्णुदेव को स्टार प्रचारक बनाने वाली है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को लगता है छत्तीसगढ़ से लगी झारखंड की दर्जन भर सीटों पर विष्णुदेव साय के प्रचार से पार्टी को लाभ मिल सकता है।

आईएएस पोस्टिंग

मंत्रालय में सचिव स्तर पर एक छोटी सर्जरी और होगी। वह इसलिए कि अक्टूबर फर्स्ट वीक में रोहित यादव छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। रोहित 2002 बैच के सिकरेट्री रैंक के आईएएस हैं। 2017 में वे केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु के पीएस बनकर सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली गए थे। मगर बाद में उन्होंने अच्छा जंप करते हुए पहले स्टील मिनिस्ट्री में ज्वाइंट सिकरेट्री बनें...और इसके कुछ दिन बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की पोस्टिंग। बहरहाल, पांच साल का टेन्योर कंप्लीट करने के बाद पीएमओ से वे रिलीव हो गए हैं। छत्तीसगढ़ लौटने के बाद उन्हें कोई ठीकठाक ही पोस्टिंग मिलेगी। क्योंकि, एक तो वे पीएमओ से आ रहे हैं और दूसरा वहां वे इंफ्र्रास्ट्रक्चर देख रहे थे। पीएमओ में इंफ्रास्ट्रक्चर को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

सक्रिय राज्यपाल

छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल रमेन डेका सक्रियता के मामले में पहले के राज्यपालों से आगे हैं। वे खूब दौरे कर रहे हैं और प्रशासनिक अफसरों की बैठकें भी। इससे पहले आईपीएस बैकग्राउंड के पूर्व राज्यपाल नरसिम्हन राजधानी के अफसरों को समय-समय पर अवश्य बुलाकर बात करते थे मगर जिलों में कभी इतना सक्रिय नहीं रहे। हालांकि, उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। फिर भी नरसिम्हन के चलते उस समय के सीएम डॉ0 रमन सिंह को कभी उलझन का सामना नहीं करना पड़ा। नए राज्यपाल रमेन डेका भी किसी तरह के विवादों में नहीं पड़ना चाहते। तभी बैठकों से पहले ये जरूर क्लियर कर देते हैं कि ये समीक्षा नहीं है, उनका उद्देश्य सिर्फ जानकारी लेना और प्रायरटी वाली योजनाओं को बताना है। जिला प्रशासन की बैठकों में राज्यपाल का उन्हीं मुद्दों पर जोर रहता है, जो केंद्र की टॉप प्रायरिटी वाली योजनाएं हैं। जाहिर है, राज्य सरकार को भी इससे कोई दिक्कत नहीं होगी। फिर विष्णुदेव साय जैसे सहज सीएम को तो और नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विष्णुदेव कैबिनेट में कौन से दो मंत्री पेंशनभोगी टाईप काम कर रहे हैं?

2. इस बात में कोई सत्यता है कि प्रधानमंत्री सड़क योजना कोई ठेकेदार चला रहा है?