तरकश, 17 नवंबर 2024
संजय के. दीक्षित
एसपी साहबों की क्लास
डीजीपी अशोक जुनेजा ने एसपी लोगों की इमरजेंसी बैठक बुलाई और उसमें ऐसा कुछ हुआ, जो राज्य बनने के बाद कभी नहीं हुआ। डीजी ने सबकी लानत-मलानत कर दी। बोलने में कोई मरौव्वत नहीं। एक-एक एसपी की कुंडली पहले से ही तैयार कर खुफिया चीफ अमित कुमार ने डीजी को दे दी थी। कुछ मामले डीजी के संज्ञान में भी थे कि कौन जिले में कप्तानी कर रहा है और कौन पोलिसिंग छोड़ बाकी सब कुछ। डीजीपी ने एक-एक एसपी की कारगुजारियों को सबसे सामने बताया और हिदायत भी कि अब बहुत हुआ। कुछ एसपी के बारे में ऐसी बातें सामने आई, जो एसपी जैसे पद की गरिमा के विपरीत है। उसे यहां लिखा नहीं जा सकता। रही-सही कसर इंटेलिजेंस चीफ अमित कुमार पूरी कर दी। साढ़े तीन घंटे की बैठक खतम होने के बाद साढ़े छह बजे एसपी पीएचक्यू से बाहर निकले, तो सबके चेहरे लटके हुए थे। कोई किसी को हेलो-हाय भी नहीं किया। चुपचाप अपनी गाड़ी में बैठे और निकल लिए।
बड़ी देर कर दी!
वैसे तो कहा जाता है...जब जागे, तब सबेरा। मगर छत्तीसगढ़ पुलिस के संदर्भ में ये मौजूं नहीं। सरकार बदलते ही अगर पुलिस प्रमुख ने ये रौद्र रुप दिखाया होता तो छत्तीसगढ़ पुलिस की विकट स्थिति नहीं होती। लोहारीडीह में तीन लोगों की हत्या भी शायद नहीं हुई होती और सूरजपुर में कबाड़ी के हाथों पुलिस का एक पूरा परिवार तबाह होने से बच जाता। खैर, वरिष्ठ अफसरों के लिए उपर का इशारा भी महत्वपूर्ण होता है। डीजीपी और इंट चीफ अगर हरकत में आए हैं तो समझा जाना चाहिए कि अब सब कुछ अच्छा होगा। तीन महीने बाद फरवरी फर्स्ट वीक में डीजीपी रिटायर हो जाएंगे मगर उनके इस तेवर का लाभ नए डीजीपी को मिलेगा। तब तक डीजीपी का यही रुख रहा तो छत्तीसगढ़ पुलिस कुछ हद तक पटरी पर आ जाएगी। बता दें, डीजीपी ने कहा है कि हर महीने वे रिव्यू करेंगे। ये काम अगर वे कर लिए तो काफी कुछ चीजें बदल जाएंगी।
डीजीपी साब, संरक्षण भी
बेशक छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग डिरेल्ड हो चुकी है। एसपी या उसके किसी भी पद पर होने का मतलब सिर्फ पैसा हो चुका है। मगर यह भी सही है कि अच्छे काम करने वाले एसपी को संरक्षण भी चाहिए। कवर्धा के एसपी राजेश अग्रवाल एक महीने से छुट्टी पर हैं। सिस्टम को यह भी पता लगाना चाहिए कि वास्तव में बीमार हैं या कोई और बात है। राजेश अग्रवाल की जगह जिसे कवर्धा का प्रभारी एसपी बनाया गया है, उनकी नियुक्ति कैसे हो गई, इसे भी मालूम करना चाहिए। डीजीपी साब को शायद ये पता है कि नहीं कि आज की तारीख में कोई भी अच्छा एसपी जिले में नहीं रहना चाह रहा। सभी इस कोशिश में हैं कि किसी बटालियन या फिर पीएचक्यू में ही सही...पोस्टिंग हो जाए। जाहिर सी बात है, अच्छे काम के लिए रिस्क लेना पड़ता है। उसमें खतरे भी होते हैं। सो, बिना संरक्षण के कोई अफसर आ बैल मार क्यों करेगा।
अब सिंगल कलेक्टर
बलरामपुर जिले से रिमुजिएस एक्का की विदाई के बाद अब पिछली सरकार वाले सिर्फ एक कलेक्टर बच गए हैं राहुल देव। बाकी का या तो जिला बदल गया या फिर उन्हें रायपुर वापिस बुला लिया गया। राहुल को मुंगेली में लगभग दो साल हो गया है। उनसे पहले मुंगेली में कोई भी कलेक्टर साल भर से अधिक नहीं रहा। कई तो जोर-जुगाड लगाकर चार-पांच महीने में निकल लिए। वैसे, राहुल का नाम भी कई बार बड़े जिलों के लिए चला मगर जब लिस्ट आती है, तो उनका नाम गायब रहता है। लोगों को ताज्जुब इस बात को लेकर है कि पिछली सरकार के नाम पर उन्हें हटाया भी नहीं जा रहा और न ही अपग्रेड कर बड़ा जिला दिया जा रहा।
कलेक्टर की पोस्टिंग
राहुल देव के मुंगेली के कलेक्टर बने रहने पर लोगों को ताज्जुब हो रहा, उसी तरह का आश्चर्य राजेंद्र कटारा के बलरामपुर जिले का कलेक्टर बनाने पर भी हो रहा है। राजेंद्र को बीजापुर से कुछ महीने पहले हटाया गया था, तब बीजेपी के लोगों की काफी सारी दिक्कतें बताई गई थी। मगर अब फिर बलरामपुर की कलेक्टरी? यदि ये पोस्टिंग सही है तो फिर बीजापुर से हटाना सही नहीं था?
बैचमेट के हवाले हेल्थ
कहते हैं, दो के विवाद में तीसरे को फायदा होता है। डायरेक्टर हेल्थ और एमडी एनआरएचएम के बीच भरी मीटिंग में जो हुआ, उसका खामियाजा ये हुआ कि पहले एनआरएचएम से जगदीश सोनकर को हटाया गया और अब डायरेक्टर हेल्थ से ऋतुराज रघुवंशी को। बताते हैं, इसमें एक की चक्कर में दूसरा भी निबट गया। बहरहाल, इस समय 2009 बैच की आईएएस किरण कौशल कमिश्नर हेल्थ एजुकेशन हैं और इसी बैच की डॉ0 प्रियंका शुक्ला डायरेक्टर हेल्थ और स्पेशल सिकरेट्री हेल्थ बन गई हैं। एसीएस के तौर पर मनोज पिंगुआ रहेंगे मगर सरकार की नीतियों को एग्जीक्यूट करने वाले 2009 बैच की दोनों महिला आईएएस होंगी।
ओपी की आत्मा रजत में?
वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने विधानसभा में बजट पेश करते समय जैसा भाषण दिया था, कुछ वैसा ही इंडस्ट्रियल पॉलिसी के विमोचन में इंडस्ट्री सिकरेट्री रजत कुमार ने दिया। बिना देखे, पढ़े...धड़धड़ाते हुए रजत कुमार बोल रहे थे, और लोग उन्हें देख रहे थे। मंत्री ओपी और रजत आईएएस में एक ही बैच था। 2005। ओपी बाद में इस्तीफा देकर सियासत में आ गए और रजत प्रमोट होकर अब सिकरेट्री बन गए हैं। दोनों में गहरी छनती भी है। विमोचन कार्यक्रम में ओपी भी मंच पर थे। कुल मिलाकर रजत ने औद्योगिक नीति 2024-30 की लांचिंग का ग्रेंड आयोजन कर अपनी लकीर बड़ी कर ली। इंडोर हॉल में आतिशबाजी के साथ रंगारंग आयोजन था। रजत ने बड़ा दिल दिखाकर पूर्व उद्योग सचिव अंकित आनंद को भी इस मौके पर याद ही नहीं बल्कि पॉलिसी बनाने का क्रेडिट भी दिया।
हर लिस्ट में चंदन
बलौदा बाजार कलेक्टर से हटने क़े बाद भी आईएएस चंदन कुमार कमजोर तो नहीं हुए मगर उनके साथ ये बात खास रही कि जब भी कोई आईएएस की लिस्ट निकलती है, आमतौर पर उसमें एक नाम चंदन कुमार का अवश्य होता है. कभी एक विभाग ऐड होता है तो कभी एक कम हो जाता है. दो रोज पहले सात आईएएस अफसरों का ट्रांसफर आदेश निकला, उसमें एक नाम चंदन कुमार का था. चंदन रिजल्ट देने वाले अफसर हैं मगर लगता है सिस्टम समझ नहीं पा रहा कि एक चंदन का कहां-कहां उपयोग करें.
तरकश के 16 साल
ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक घटनाओं पर आधारित साप्ताहिक स्तंभ तरकश ने 16 साल पूरा कर लिया है। छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले अखबार हरिभूमि से 2008 में इसका सफर चालू हुआ था। उसके बाद कभी रुका नहीं। किसी एक अखबार में संभवतः सबसे लंबे समय तक चलने वाला यह पहला स्तंभ होगा। इसके लिए पाठकों के साथ ही हरिभूमि पत्र समूह को आभार।
अंत में दो सवाल आपसे
1. छत्तीसगढ़ राजस्व बोर्ड का अगला चेयरमैन कौन होगा?
2. 11 महीने होने के बाद भी छत्तीसगढ़ के अधिकांश मिनिस्टर ट्रेक पर क्यों नहीं आ रहे?