रविवार, 25 मई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: 500 करोड़ का स्कैम, कलेक्टर की कुर्सी

 तरकश, 25 मई 2025

संजय के. दीक्षित

500 करोड़ का स्कैम, कलेक्टर की कुर्सी

छत्तीसगढ़ में जगह-जगह से मुआवजा घोटाले की खबरें आ रही...कहीं भारतमाला सड़क का मामला है तो कहीं नहर और बिजली प्लांट के लिए भूअर्जन का। दरअसल, इस स्कैम की नींव आज से 11 साल पहले 2014 में डल गई थी। तब रायगढ़ के लारा में एनटीपीसी का प्लांट लग रहा था। धारा 3ए के प्रकाशन के बाद लारा इलाके में जमीनों के बटांकन, खरीदी-बिक्री पर रोक लग गई थी। मगर एक एसडीएम ने चार्ज लेते ही कुछ दिन के लिए रोक हटाई और फिर 300 प्लाटों को 2000 से अधिक जमीनों के ऐसे टुकड़े कर दिए गए कि एनटीपीसी का दिल्ली मुख्यालय भी हिल गया। छोटे टुकड़े करने से एनटीपीसी को 500 करोड़ की चपत लग गई। एनटीपीसी के अफसरों ने रायगढ़ के तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल से बात की। मुकेश ने इसकी जांच कराई और 1300 पेज की रिपोर्ट सरकार को भेज एसडीएम के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुशंसा की। कलेक्टर की रिपोर्ट पर सरकार ने एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल को सस्पेंड कर दिया। कलेक्टर के कहने पर रायगढ़ के तत्कालीन एसपी राहुल भगत ने एसडीएम के खिलाफ अपराध दर्ज कराया। एसडीएम गिरफ्तारी के डर से लंबे समय तक फरार रहे। कई महीने बाद उन्हें हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत मिली। फिर अफसरशाही का कमाल देखिए कि फरारी काटने वाले तीर्थराज राजाबाबू बन लगे मलाईदार पोस्टिंग काटने। इस सरकार में वे एक मंत्री के पीए बन गए। फिर चमत्कारिक रूप से राजस्व विभाग ने उन पर ऐसी मेहरबानी बरसाई कि विभागीय जांच समाप्त करने के साथ ही तीर्थराज को क्लीन चिट दे डाला। असल में, सब प्लानिंग के साथ हुआ। बिना विभाग से बिना डीई खतम किए हाई कोर्ट से केस खतम नहीं होता। और वैसा ही हुआ। बिलासपुर हाई कोर्ट ने तीर्थराज को कल बरी कर दिया। इसमें विभाग द्वारा विभागीय जांच समाप्त कर क्लीन चिट देने को भी आधार बनाया गया है। बहरहाल, हाई कोर्ट में केस होने की वजह से इस साल तीर्थराज को आईएएस अवार्ड नहीं हो पाया...उनके नाम का लिफाफा बंद कर दिया गया है। अगले साल सुब्रत साहू या मनोज पिंगुआ के साथ जीएडी सिकरेट्री रजत कुमार डीपीसी के लिए यूपीएससी जाएंगे...तब तीर्थराज को आईएएस बनने से कोई रोक नहीं पाएगा। मुकेश बंसल और राहुल भगत की आंखों के सामने वे फिर किसी जिले के कलेक्टर बन जाएंगे। तुलसीदासजी ने ठीक ही लिखा है...समरथ को नहीं दोष गोसाई।

ईओडब्लू जांच, अदृश्य आत्माएं

जाहिर है, लारा कांड के बाद सरकार यदि कौवा मारकर टांग दी होती, एसडीएम को फरार और जमानत लेने का टाईम नहीं मिला होता तो अभनपुर, बजरमुंडा, अरपा-भैंसाझाड़ जैसे मुआवजा कांड नहीं होता। अलबत्ता, इनमें से कई की ईओडब्लू जांच का ऐलान हो गया है। मगर सिस्टम अगर लारा मुआवजा कांड की तरह आरोपी अधिकारियों को क्लीन चिट देकर केस खतम कराने में मदद करता रहा तो फिर ईओडब्लू जांच का क्या मतलब? इससे अमरेश मिश्रा एंड उनकी टीम का टाईम ही खराब होगा। जाहिर है, सीजीएमएससी के कई खटराल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में अदृश्य आत्माएं बाधक बन रही हैं। आरआई भर्ती घोटाले की ईओडब्लू जांच भी किधर दबी है, पता नहीं चल रहा। सरकार चाहती हैं कि जीरो टॉलरेंस का नमूना पेश किया जाए मगर भांति-भांति की आत्माएं ऐसा होने नहीं दे रहीं।

भ्रष्टाचार का लायसेंस!

छत्तीसगढ़ का पड़ोसी राज्य तेलांगना ने सुधार की ऐतिहासिक पहल करते हुए कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार कोर्ट को समाप्त कर दिया है। क्योंकि, कोर्ट का फायदा उठा राजस्व अधिकारी वहां भ्रष्टाचार का रायता फैला रहे थे। छत्तीसगढ़ में भी अनेक बार ऐसा हुआ कि राजस्व अधिकारी कोर्ट की आड़ में बच गए। रायगढ़ एसडीएम के केस में भी हाई कोर्ट में इसी केस का हवाला दिया गया। इससे पहले एक और एसडीएम जेल से छूटने के बाद हाई कोर्ट से इसी कोर्ट का हवाला देकर बरी हो गए कि उनकी कोर्ट ने फैसला दिया है, और कोर्ट पर कोई सवाल कैसे खड़ा कर सकता है? मगर सवाल यह है कि अंग्रेजों ने अफसरों का कोर्ट इसलिए बनाया था कि राजस्व वसूली कड़ाई से हो सके। उस समय राजस्व वसूली ही सरकारों को राजस्व प्राप्ति का मुख्य जरिया होता था। अब आप बताइये, लोगों की जमीन लेकर मुआवजा बांटना प्रशासनिक काम है या न्यायिक? ये विशुद्ध रूप से प्रशासनिक काम है। मुआवजे को लेकर भारत सरकार ने एक मॉडल बनाया है। इसके लिए कोर्ट की तरह न कोई गवाही होती, न पक्ष-प्रतिपक्ष का वकील खड़े होते। सरकार और कानूनविदों को इस पहलू पर भी ध्यान देना चाहिए कि ज्यूडिशरी में हर साल गलत फैसलों की वजह से दर्जनों जज बर्खास्त किए जाते हैं। हाई कोर्ट ही उनका आर्डर निकालता है। मगर गलत फैसलों के लिए कितने कमिश्नर, कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदारों पर कार्रवाई होती है। इसका मतलब यह हुआ कि जिम्मेदारी कुछ नहीं, मगर करप्शन में कार्रवाई की तलवार लटके तो कोर्ट को ढाल बनाकर बच जाओ। ऐसा ही रहा तो फिर अभनपुर मुआवजा कांड में सस्पेंड राप्रसे अधिकारी निर्भय साहू और शशिकांत कुर्रे बच जाएंगे, तो अरपा-भैंसाझाड़ कांड में किसानों का मुआवजा फर्जी लोगों को बांट देने वाले एसडीएम भी बख्श दिए जाएंगे।

जीरो टॉलरेंस को पलीता

अरपा-भैंसाझाड़ मुआवजा कांड का जिक्र हुआ तो फिर जीरो टॉलरसें पर भी प्रश्न उठेगा। 1131 करोड़ की इस नहर में अपनों को फायदा पहुंचाने के लिए कागजों में नहर की डिजाइन बदल दी गई। किसानों का मुआवजा फर्जी लोगों को बांट दिया गया। करीब 400 करोड़ के मुआवजा कांड की जांच के लिए सिंचाई विभाग ने ईओडब्ल्ू को लिखा है। मगर यह भी सही है कि बिलासपुर कलेक्टर अवनीश शरण द्वारा कराई गई जांच में दो एसडीएम समेत राजस्व और सिंचाई विभाग के 11 लोग दोषी पाए गए। कलेक्टर ने सरकार को इनके खिलाफ कार्रवाई करने लेटर लिखा। मगर इससे पहले दिसंबर 2023 में सरकार बदलने के दौरान आपाधापी में किधर से कैसी चकरी चली कि दोषी अधिकारियों की लिस्ट में जिस एसडीएम का नाम सबसे उपर लिखा गया है, उसे एक बड़े जिले में आरटीओ की कुर्सी सौंप दी गई। एक तरफ निर्भय साहू और शशिकांत कुर्रे निलंबित हो रहे मगर आरटीओ को पता नहीं किस अदृश्य शक्ति का बरदहस्त प्राप्त है कि उनकी कुर्सी कोई हिला नहीं पा रहा। ऐसी शक्तियां ही सरकार के जीरो टॉलरेंस को पलीता लगा रही हैं।

ई-ऑफिस का खौफ

कामकाज में पारदर्शिता लाने छत्तीसगढ़ सरकार ने फाइलों के लिए ऑनलाईन सिस्टम बना दिया है...मंत्रालय में नोटशीट अब ऑनलाइन दौड़ रहीं हैं। आलम यह है कि सचिवों ने सख्ती बरतते हुए विभाग प्रमुखों से हार्ड पेपर में नोटशीट लेना बंद कर दिया है। बहरहाल, ई-ऑफिस का खौफ इंद्रावती भवन समेत राज्य स्तर के ऑफिसों के मुलाजिमों पर सिर चढ़कर बोल रहा है। असल में, वहां ये बात फैला दी गई है कि सारी नोटशीट दिल्ली स्थित डीओपीटी के सर्वर में जा रही है...डीओपीटी ने छत्तीसगढ़ के खटराल अधिकारियों पर नजर रखने यह सिस्टम शुरू कराया है...नोटशीट में कोई गल्ती हुई कि ईडी, सीबीआई या सीवीसी जांच की तलवार लटक जाएगी। इसका नतीजा यह हुआ कि जब से ई-ऑफिस चालू हुआ है, विभागाध्यक्ष कार्यालयों के अधिकारियों, कर्मचारियों की रात की नींद उड़ गई है....नोटशीट पर अब फूंक-फूंककर टिप्स लिखे जा रहे। हालांकि, अफसरों ने एक रास्ता निकाला है...मंत्रालय भेजी जाने वाली फाइलों में ई-ऑफिस का इस्तेमाल कर रहे मगर अपने नीचे या जिलों को हार्ड पेपर में। मगर जब जिलों में भी ई-ऑफिस चालू हो जाएगा तो फिर अधिकारियों, कर्मचारियों की मुसीबतें और बढ़ जाएगी। जाहिर है, सिस्टम जितना ऑनलाईन होगा, गड़बड़ियां उतनी की कम होगी। पहले बड़ी संख्या में फाइलें गुम जाती थी या दबा दी जाती थीं। ई-ऑफिस में अब ये संभव नहीं है। इससे करप्शन पर भी अंकुश लगेगा। ऐसे में, बरसों से अपने ढर्रे पर काम करने वाले सरकारी मुलाजिमों को तकलीफ तो होगी ही।

ई-टेंडरिंग की तोड़

छत्तीसगढ़ में ई-ऑफिस अभी शुरू हुआ है मगर ऑनलाइन टेंडर 2015 से चल रहा है। तब इसकी जरूरत इसलिए महसूस की गई कि खासकर, बड़े टेंडरों में मसल पावर वाले ठेकेदार धमकी, रंगदारी दिखा दूसरों को टेंडर भरने नहीं देते थे। इसलिए रास्ता निकाला गया कि ठेकेदार घर बैठे टेंडर प्रॉसेज में हिस्सा ले सके। इसके बाद सरकारी खरीदी के लिए जेम पोर्टल प्रारंभ किया गया। मगर अब इसकी भी तोड़ ढ़ूंढ ली गई है। सप्लायरों का इंटेलिजेंस इतना तगड़ा है कि स्टेट ऑफिस से उन्हें मालूम चल जाता है कि किस जिले या विभाग के लिए किस चीज की खरीदी के लिए कितना बजट स्वीकृत हुआ है। इसके बाद संबंधित ऑफिस से संपर्क कर टेंडर में ऐसा खास क्लॉज ऐड कर दिया जाता है, जो औरों के पास नहीं हो। फिर अधिकांश सप्लायरों ने दो-दो, तीन-तीन फर्जी कंपनी बना रखी है। योजनाबद्ध तरीके से एक ही सप्लायर अलग-अलग नाम से बनी अपनी तीनों कंपनियों से टेंडर भरता है, और एल1 के आधार पर उसे काम मिल जाता है। सीजीएमएससी में बहुचर्चित स्कैम में मोक्षित कारपोरेशन ने भी यही किया और बाकी विभागों मेंं भी यही चल रहा है। कई बार जिलों के ऑफिसों को पता नहीं होता कि उनके लिए कितना बजट मिला है और सप्लायर लिस्ट लेकर उनके पास पहुंच जाते हैं। सरकार इसे अगर संज्ञान लेकर इस सिस्टम के पोल को अगर ठीक कर लें तो खजाने का करोड़ों रुपए बचेगा, जो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जा रहा।

जिले का भगवान मालिक

जीपीएम कलेक्टर के लिए वह शर्मनाक दिन रहा...जब विष्णुदेव साय जैसे विनम्र मुख्यमंत्री को समाधान शिविर में तल्खी के साथ यह कहना पड़ गया कि तीन थाने का जिला भी नहीं संभल पा रहा, तो क्या मतलब। जीपीएम की तरह का छत्तीसगढ़ का एक मॉडल जिला है गरियाबंद। वहां के कलेक्टर भी सुप्रीम कोर्ट से स्टे वाले हैं...पीएससी 2003 बैच वाले। और उनके राम मिलाए जोड़ी जिला पंचायत के गैर आईएएस सीईओ...नायब तहसीलदार कैडर वाले। बड़ा सवाल है...ऐसे अफसरों से सरकार की नैया कैसे पार हो पाएगी?

बस्तर पोस्टिंग का क्रेज?

बस्तर कभी अकेला जिला होता था। बाद में कांकेर बना। फिर दंतेवाड़ा। नक्सलवाद चरम पर पहुंचा तो कोंडागांव, नारायणपुर, सुकमा और बीजापुर जिला अस्तित्व में आया। याने एक से बढ़कर सात जिला। जबकि, आबादी और काम की दृष्टि से देखें तो बस्तर चार जिले लायक भी नहीं। मगर संवेदनशीलता की वजह से सातों जिले के अपनी अहमियत थी और बस्तर पोस्टिंग का अपना क्रेज भी। मगर अब जब नक्सलवाद आखिरी सांस गिन रहा तब यह सवाल मौजूं है कि छोटे जिलों का क्या? बस्तर के ग्रामीण थानों में महीने में एकाध रिपोर्ट दर्ज नहीं हो पाती। क्योंकि, आदिवासी बड़े सरल और सहज होते हैं, वहां क्राइम के नाम पर सिर्फ नक्सली हिंसा की रिपोर्ट ही दर्ज हो पाती थीं। जाहिर है, बस्तर की पोस्टिंग का क्रेज अब कम होगा। अभी तक नक्सलवाद के नाम पर कलेक्टर, एसपी को बेहिसाब पावर और पैसे मिलते थे। कलेक्टरों को बड़ी राशि केंद्र से आती थी। तो निर्माण कार्यों का मोटा कमीशन कलेक्टर, एसपी को जाता था। आईजी को महीने का सात लाख और एसपी को हर महीने पांच लाख नगद...जिसका कोई हिसाब नहीं। नेशनल मीडिया में एक्सपोजर मिलता था, सो अलग। मगर अब सरकार ने अगर टूरिस्ट डेस्निशन बना दिया तब भी बस्तर पोस्टिंग का वैसा क्रेज नहीं रहेगा, जैसा अभी तक था। हालांकि, विष्णुदेव सरकार ने पत्रकार हत्याकांड के बाद कलेक्टर और एसपी का टेंडर करने का अधिकार समाप्त कर ऑनलाइन कर दिया है। फिर बस्तर पोस्टिंग की बात कुछ और थी।

निशाने पर अफसर या मंत्री?

छत्तीसगढ़ बीजेपी के एक पुराने नेता ने एक आईएएस अधिकारी के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकल लेवल पर सोशल मीडिया में चलवाया ही, लेटर प्रधानमंत्री कार्यालय तक भेज दिया है। ब्यूरोक्रेसी इससे हतप्रभ है और उस अफसर को जानने वाले लोग भी। इसलिए, क्योंकि आईएएस अफसर की ऐसी छबि नहीं। दरअसल, यह सीनियर नेता के कंधे पर बंदूक रखकर किसी और को निशाना बनाने जैसा मामला है। निशाने पर अफसर नहीं, मंत्री बताए जा रहे हैं। मंत्री को घेरने की चौतरफा कोशिशें हो रही हैं। चारों तरफ आदमी लगा दिए गए हैं कि कोई पोल मिले और मंत्री को निबटाया जाए। ठीक है...सियासत में एक-दूसरे को घेरना, कमजोर करना कोई नई बात नहीं, मगर इसमें अफसरों को नहीं लपेटना चाहिए।

रुमाल प्रबल की, पोस्टिंग राव की

राज्य सरकार ने लाल बत्ती की एक दूसरी लिस्ट और जारी कर दी। इसके बाद अब मार्कफेड छोड़ लगभग सारे बड़े बोर्ड और निगमों के चेयरमैन के पद भर गए हैं। इसमें सबसे मलाईदार कारपोशन ब्रेवरेज में श्रीनिवास राव मद्दी की पोस्टिंग लोगों को चौंकाई। इस पद के लिए प्रबल प्रताप सिंह जूदेव की चर्चा चल रही थी। मगर आश्चर्यजनक तौर पर उनका नाम कट गया। श्रीनिवास राव बस्तर से ताल्लुकात रखते हैं। सुभाष राव के बाद वे दूसरे दक्षिण भारतीय नेता होंगे, जिन्हें मलाईदार पद से नवाजा गया है। रमन सिंह की पहली पारी में सुभाष राव को हाउसिंग बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था। श्रीनिवास की पोस्टिंग को सियासी पंडित किरण सिंहदेव को मंत्री न बनाए जाने से जोड़कर देख रहे हैं। बीजेपी के लोग भी यह मान रहे कि श्रीनिवास को सिंहदेव के कोटे से ब्रेवरेज की कुर्सी सौंपी गई है।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. राज्य सरकार ने केदार गुप्ता की दुग्ध संघ चेयरमैन की पोस्टिंग बदलकर अपेक्स बैंक की कैसे कर दी?

2. यूपीएससी से डीजीपी का पेनल आ जाने के बाद भी पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश न निकाल सरकार अरुणदेव गौतम का बीपी क्यों बढ़ा रही है?


रविवार, 18 मई 2025

Chhattisgarh Tarkash: रायपुर राजधानी या कस्बा?

 तरकश, 18 मई 2025

संजय के. दीक्षित

रायपुर राजधानी या कस्बा?

पड़ोसी राज्य ओड़िसा को गरीब राज्य माना जाता है, मगर वहां की राजधानी भुवनेश्वर को देखकर लगता है अपना रायपुर 50 साल पीछे है। दरअसल, 25 साल में रायपुर को राजधानी बनाने, जिस तरह से सिस्टम डेवलप करना था, वो हुआ नहीं। दो-चार सड़कों का चौड़ीकरण कर सिस्टम ने वाहवाही लूट ली। आज भी रायपुर में कहीं आगजनी की घटना हो जाए, तो फायर ब्रिगेड के पास बीएसपी और सीमेंट प्लांटों का मुंह ताकने के अलावा कोई चारा नहीं, क्योंकि फायर ब्रिगेड के पास अपना कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। तीन साल पहले गोलबाजार के होटल में आग लगी तो दमकल पहुंचता, उससे पहले दो लोगों की मौत हो चुकी थी। रायपुर में सिविल डिफेंस सिस्टम का हाल पूछिए मत। पाकिस्तान के साथ तनाव के दौरान भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ के रायपुर समेत छह शहरों को मॉक ड्रील के लिए चुना। मगर सिर्फ भिलाई में इसकी खानापूर्ति हो सकी, क्योंकि सिस्टम में बैठे लोगों ने सिविल डिफेंस की कभी सुध नहीं ली। दूसरे राज्यों में जगह-जगह मॉक ड्रील हुआ और राजधानी रायपुर के लोग ताकते रह गए। पिछड़ा राज्य कहे जाने वाले झारखंड के जमशेदपुर पिछले दिनों जाना हुआ। वहां गाड़ी के ड्राईवर ने सीट बेल्ट लगाने कहा तो मैं चौंक गया। वहां बाइक में पीछे बैठे लोग भी हेलमेट लगाए हुए थे। मगर अपने रायपुर में...छत्तीसगढ़ियां, सबले बढ़िया। तेलीबांधा थाने के पास आईआईएम की छात्रा ट्रक के नीचे आकर जान गंवा बैठी। मगर हेलमेट लगाने की बात आएगी, तो पुलिस की वसूली शुरू हो जाएगी या फिर पुलिस के पास रायपुर के भईया लोगों का फोन आने लगेगा। रायपुर के लोग एयर कनेक्टिविटी पर गर्व कर सकते हैं, मगर वो भी कोल, स्टील और आयरन इंडस्ट्रीज की वजह से हुआ, उसमें सिस्टम का कोई रोल नहीं।

जोगी का विजन और स्काई वॉक

रायपुर का विवादास्पद स्काई वॉक को फिर से बनाने का फैसला एक तरह से कहें तो राजधानी को कस्बा बनाने जैसा ही है। 50 करोड़ फूंकने के बाद फिर से 37 करोड़ की स्वीकृति देना नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा पैसे में आग लगाने जैसा ही माना जाना चाहिए। सिस्टम को किसी की जिद की पूर्ति करने से पहले एक सर्वे करा लेना था कि वाकई इसकी जरूरत है क्या। मेरा दावा है कि कैबिनेट के न तो एक मंत्री इसके पक्ष में होंगे, न एक आईएएस अधिकारी। रायपुर के शास्त्री चौक पर खड़े 100 लोगों से उसकी उपयोगिता पूछ ली जाए, तो सभी एक ही जवाब देंगे, इस पर कौन चढ़ेगा? यह गंजेरी, भंगेरी और लड़के-लड़कियों के लंपटई का अड्डा बन कर रह जाएगा। ऐसे में अजीत जोगी की याद आती है। छत्तीसगढ के विकास के स्वप्नद्रष्टा जोगीजी ने तेलीबांधा से लेकर टाटीबंध और शास्त्री चौक से लेकर स्टेशन चौक तक फ्लाई ओवर बनाने का ड्राइंग-डिजाइन तैयार करा लिया था। उन्होंने सीजी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन को इसे बनाने का दायित्व सौंपा था। मुझे आज भी याद है....2004 में सीआईडीसी के तत्कालीन एमडी आईसीपी केसरी ने मुझसे कहा था, हमलोग फ्लाई ओवर का टेंडर करने जा रहे हैं। मगर पता नहीं किधर से चकरी चली कि इस पर ब्रेक लग गया। ये जरूर है कि जीई रोड के व्यापारी इसके विरोध में थे। वे नहीं चाहते थे कि फ्लाई ओवर से उनका बिजनेस मार खाए। असल में, एक परसेप्शन है कि फ्लाई ओवर बनने से उस इलाके में 30 परसेंट बिजनेस कम हो जाता है। इसलिए, रायपुर के भाई साहबों ने स्काई वॉक का ऐसा इंतजाम कर दिया कि भविष्य में कभी फ्लाई ओवर की गुंजाइश ही न रहे। जनता की गाढ़ी कमाई को पानी में बहाने से पहले नगरीय प्रशासन विभाग को एक बार और विचार करना चाहिए।

सम्मानजनक विदाई

बजट सत्र से पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने जिस गति से मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति की फाइलें दौड़ाई थीं, उससे लोगों को लगा था कि मुख्य सचिव स्तर पर समय से पहले बदलाव हो सकता है। मगर अब उनके एराइवल अधिकारियों ने भी मान लिया है कि जून से पहले कोई मौका नहीं है। अमिताभ जैन अब चार साल आठ महीने का कार्यकाल पूरा कर 30 जून को विदा होंगे। जाहिर है, यह एक बड़ा रिकार्ड होगा, जिसे तोड़ना किसी सीएस के लिए मुश्किल होगा। छत्तीसगढ़ बनने के बाद कोई मुख्य सचिव फोर ईयर क्लब में शामिल नहीं हुआ। विवेक ढांड चार साल पूरे होने के 20 दिन पहले अपना विकेट गंवा बैठे थे। पी0 जॉय उम्मेन भी करीब सवा तीन साल सीएस रहे। अमिताभ के साथ एक प्लस यह है कि उम्मेन और ढांड एक ही सरकार में आउट हो गए, मगर अमिताभ दो सरकारों में रहे और अभी भी पिच पर मुस्तैदी से टिके हुए हैं। बहरहाल, ब्यूरोक्रेसी में उत्सुकता इस बात की है कि सम्मानजनक विदाई के साथ अमिताभ को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग क्या मिलेगी। तीन साल वाला सीआईसी की कुर्सी या कोई और प्रतिष्ठित, ग्लेमरस पोस्टिंग? इसका जवाब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ही दे पाएंगे। वैसे, मई की गरमी में अमिताभ जैन सीएम के साथ पसीना बहाते देखे जा रहे, उससे लगता है कि कुछ बढ़ियां ही होगा।

गृह मंत्री का दिल्ली दौरा

पाकिस्तान के साथ तनाव जब चरम पर था, तब बस्तर में एनकाउंटर की खबरें मीडिया की सुर्खिया बनी थी। लेकिन दिल्ली से पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि गृह मंत्री विजय शर्मा को नक्सलियों के एनकाउंटर की खबरों का खंडन करना पड़ गया। हालांकि, उसके बाद सीआरपीएफ के डीजी दिल्ली से आए और प्रेस कांफ्रेंस कर 31 नक्सलियों के मारे जाने का खुलासा किया। खैर, युद्धकाल में देश के भीतर एनकाउंटर...गृह मंत्री का खंडन...ये संवेदनशील मसला है...इस पर फिलहाल नो कमेंट्स। मगर छत्तीसगढ़ के मीडिया के लिए ये हैरान करने वाला रहा कि नक्सलियों से मुठभेड़ में सीआरपीएफ के कुछ जवान जख्मी हुए...एयरलिफ्ट कर उन्हें कब दिल्ली ले जाया गया, किसी को पता नहीं चला। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उन्हें देखने जब एम्स पहुंचे, तब इसकी जानकारी पब्लिक डोमेन में आई। हालांकि, सियासी गलियारों में हैरान करने वाला गृह मंत्री विजय शर्मा की फोटो भी रही। फोटो में अमित शाह के साथ विजय शर्मा को देख लोग चौंक पड़े...सबके मुंह से बरबस यही निकला, ये कैसे हुआ? विजय शर्मा क्या अमित शाह के इतने क्लोज?

15 महीने में 57 दौरा

बस्तर से नक्सलियों का सफाया करना भारत सरकार के कितने प्रायरिटी में है कि केंद्रीय गृह मंत्री पिछले एक साल में चार बार बस्तर का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने एक बार सीआरपीएफ के कैंप में भी रात्रि विश्राम भी किया। वैसे, बस्तर का दौरा करने में सीएम विष्णुदेव साय ने अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों को पीछे छोड़ दिया है। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के 15 महीने में विष्णुदेव साय 57 बार बस्तर जा चुके हैं। हालांकि, पहले के सीएम भी बस्तर जाते थे...26 जनवरी को झंडारोहन के लिए बस्तर निश्चित था। मगर महीने में चार बार बस्तर का दौरा, ऐसा पहले नहीं हुआ। दरअसल, इसकी एक वजह यह भी है कि नक्सलियों के सफाए का डेडलाइन तय करने के साथ ही केंद्र बस्तर के डेवलपमेंट को लेकर गंभीर है। इसको देखते राज्य सरकार टूरिज्म और इंडस्ट्रीलाइजेशन का रोडमैप तैयार कर रही है। पिछले महीने सीएम दो दिन इसी काम को लेकर बस्तर में कैंप किए थे।

छुट्टियों पर ब्रेक

छत्तीसगढ़ में अनगिनत सरकारी छुट्टियों से सिस्टम कॉलेप्स होता जा रहा है। सरकारी ऑफिसों में कामकाज ठप्प हो रहा तो स्कूलों के कोर्स कंप्लीट नहीं हो पा रहे। प्रायवेट स्कूल एसोसियेशन ने सरकार को ज्ञापन दिया था, जिसमें बताया गया था कि छुट्टियों के चलते किस तरह कोर्स प्रभावित हो रहा है। इसके लिए पिछली सरकार के समय छुट्टियों में क्लास लगाने की अनुमति मांगी गई मगर इसमें कुछ हुआ नहीं। बहरहाल, फाइव डे वीक से सबसे अधिक नुकसान होता है जब किसी सप्ताह शुक्रवार या सोमवार को छुट्टी पड़ जाए। इस चक्कर में तीन दिन सब कुछ बंद। पिछले हफ्ते 10 और 11 मई को सैटर्ड और संडे था, इसके अगले दिन सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा। याने लगातार तीन दिन छुट्टी। इससे पहले पिछले महीने 11 दिन में सात छुट्टियां रहीं। 10 अप्रैल को महावीर जयंती, 12 और 13 को सर्टडे, संडे। फिर 14 को आंबेडकर जयंती, 18 को गुड फ्रायडे, 19, 20 मई को सैर्टडे, संडे। गुड गर्वर्नेंस पर काम कर रही सरकार ऐसे में चिंतित है। सुनने में आ रहा कि सरकार छुट्टियों में कटौती करने पर विचार कर रही है। हो सकता है, सभी सैटर्डे की बजाए पहले की तरह सेकेंड और थर्ड सैटर्डे को छुट्टी वाला रुल फिर से लागू कर दिया जाए।

कलेक्टरों को वार्निंग

गुड गवर्नेंस के तहत छत्तीसगढ़ सरकार अफसरों को टाईम पर ऑफिस आने ताकीद कर रही थी, जनवरी में जीएडी से कलेक्टर, एसपी के लिए जिलों में दौरे करने के निर्देश जारी हुए थे। मगर सरकार की नोटिस में ये बात आई है कि 80 परसेंट कलेक्टर घर और ऑफिस से बाहर नहीं निकल रहे। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इसको लेकर नाराज बताए जा रहे हैं। राजनांदगांव की समीक्षा बैठक में उनके भीतर की बातें जुबां पर आ गई। उन्होंने कलेक्टरों, कमिश्नरों से फिर कहा कि अपने इलाकों के दौरे में कोताही न करें। सीएम ने सख्त लहजे में इन दोनों प्रशासनिक अधिकारियों को चेताया कि कोर्ट को तभी केंसिल करें, जब कोई बेहद अर्जेंट वर्क हो। जाहिर है, पिछले हफ्ते इसी तरकश स्तंभ में हमने कलेक्टरों के कोर्ट के प्रति बेरुखी का जिक्र किया था। अधिकांश कलेक्टर इन दिनों राजस्व के मामले अपर कलेक्टरों को सौंप दे रहे हैं। चलिये, सीएम की तल्खी से शायद अब कलेक्टर और कमिश्नरों की कोर्ट में लंबित प्रकरणों की अब सुनवाई में तेजी आए।

कलेक्टर लांचिंग पैड

रायपुर विकास प्राधिकरण का गठन 2004 में हुआ था। इसके सीईओ का पोस्ट आईएएस के लिए तय किया गया। अमित कटारिया दो अलग-अलग टेन्योर में करीब तीन साल तक सीईओ रहे। अभिजीत सिंह भी आरडीए में रिपीट हुए। मगर 2018 के बाद पता नहीं, इस कुर्सी को कौन सा ग्रहण लगा कि कोई अफसर वहां टिक नहीं पा रहा। इस सरकार के सवा साल में अब तक चार सीईओ बदल चुके हैं। जनवरी 2024 में पहली लिस्ट में धमेंद्र साहू कलेक्टर बनकर गए तो उनकी जगह प्रतीक जैन को बिठाया गया। वे 10 महीने रहे। उनके बाद 14 जनवरी को कुंदन कुमार सीईओ बने। कुंदन तीन महीने में मुंगेली कलेक्टर बनकर चले गए। सरकार ने अब आकाश छिकारा को नया सीईओ बनाया है। वैसे धमेंद्र साहू से पहले अभिजीत सिंह पांच महीने, नरेंद्र शुक्ला सात महीना, प्रभात मलिक चार महीना, भीम सिंह छह महीना, ऋतुराज रघुवंशी चार महीना, अभिजीत सिंह दूसरी बार तीन महीना और चंद्रकांत वर्मा दो महीना सीईओ रहे हैं। आरडीए की पोस्टिंग की खास बात यह है कि अधिकांश सीईओ यहां से कलेक्टर बनकर निकले। अमित कटारिया रायगढ़ का कलेक्टर बनकर गए थे। इस फेहरिश्त में ऋतुराज रघुवंशी, प्रभात मलिक, अभिजीत सिंह, चंद्रकांत वर्मा, कुंदन कुमार, धमेंद्र साहू और प्रतीक जैन शामिल हैं। इन सभी के लिए आरडीए की पोस्टिंग शुभ रही थी। ऐसे में, आकाश छिकारा को नाउम्मीद नहीं होना चाहिए।

दूसरा मोक्षित

छत्तीसगढ़ को हिलाकर मोक्षित जेल चला गया तो क्या हुआ, सीजीएमएससी के खटराल अधिकारियों ने दूसरा मोक्षित ढूंढ लिया है। राजधानी रायपुर के पड़ोसी जिले के इस कंपनी को मोक्षित की जब चलती रहे तो उसने उसे फटकने नहीं दिया। मगर वह जेल चला गया तो सीजीएमएससी में उसकी इंट्री हो गई। पता चला है, पिछले दो-तीन महीने में 80 से 90 परसेंट सप्लाई का काम इसी कंपनी को दिया गया है। कारस्तानियों का मोड भी वही है, जिसके लिए सीजीएमएससी बदनाम हुआ है। अब आप कहेंगे...ईओडब्लू जांच! तो दो-दो आईएएस के जेल जाने के बाद क्या छत्तीसगढ़ में करप्शन रुक गया? सरकार की चेतावनी के बाद 1.20 लाख के पीएम आवास में 25 हजार घूस का मामला हाल ही में पकड़ा गया। कुल मिलाकर कहा जाए तो सीजीएमएससी के सिस्टम में करप्शन का वायरस घूस गया है। अब ईओडब्लू आ जाए या ईडी, सीबीआई...वायरस को क्या फर्क पड़ने वाला है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. वो कौन सी अदृश्य शक्तियां है, जो सूबे के कई खटराल और बदनाम अफसरों के लिए कवच बन जा रही?

2. वो कौन से मंत्री हैं, जिन्होंने वसूली के लिए आरगेनाइज सिस्टम तैयार कर लिया है?

शनिवार, 10 मई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: प्रशासनिक सर्जिकल स्ट्राईक

 


तरकश, 11 मई 2025

संजय के. दीक्षित

प्रशासनिक सर्जिकल स्ट्राईक

कुछ दिन पहले कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों के ट्रांसफर में सरकार ने एकाध सर्जिकल स्ट्राईक किया था। दीगर राज्य के एक बड़े नेता की सिफारिशी कलेक्टर की हरकतें जब सीमा को लांघने लगी तो सरकार ने उनकी छुट्टी कर दी। मगर टारगेट अभी भी कई हैं। सूबे में ऐसे अफसरों की कमी नहीं, जो सिफारिशों के बल पर अंगद की तरह कुर्सी पर जमे हुए हैं। किसी के लिए इस राज्य के नेता का फोन आता है, तो किसी के लिए फलां स्टेट से। पिछली कांग्रेस सरकार में एक महिला आईएएस ने दिल्ली बीजेपी के एक ऐसे बड़े आदमी से फोन कराया कि विरोधी सरकार होने के बाद भी कोई आह-उंह नहीं हुआ...स्टेट में ज्वाईनिंग का नियम तोड़ सरकार ने चुपके से ऐसे आर्डर निकाल दिया कि किसी को पता नहीं चल पाया। जबकि, ऋतु सेन को छत्तीसगढ़ आकर ज्वाईन करना पड़ा, फिर उन्हें दिल्ली में पोस्टिंग मिली। आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, ये सभी सर्विसों में हो रहा है...अफसर परिस्थितिजन्य फायदा उठा रहे हैं। कायदे से तगड़ा सर्जिकल स्ट्राईक की जरूरत है। सरकार जब तक योग्य और काबिल लोगों की फील्ड में पोस्टिंग नहीं करेगी, तब तक उसके गुड गवर्नेंस का मिशन पूरा नहीं होगा। सिफारिशी पोस्टिंग वाले 10 परसेंट अधिकारी ही सरकार के सिस्टम को पलीता लगा रहे हैं।

पीएचक्यू का टॉलरेंस

भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान मानपुर-मोहला पुलिस ने पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के फौजी के छोटे भाई को इसलिए दो दिन थाने में बिठा लिया कि उसे एक लाख रुपए रिश्वत नहीं मिला। मामला छत्तीसगढ़ से खेती-किसानी के लिए एक जोड़ी बैल खरीदकर ले जाने का था। मोहला-मानपुर पुलिस ने मवेशी तस्करी का केस बनाने की धमकी देकर उसे हिरासत में ले लिया। इस बीच पीड़ित युवक की मां चल बसी...अंत्येष्टि में टाईम पर गांव नहीं पहुंच पाने पर लोगों का गुस्सा भड़क गया। बात महाराष्ट्र से होते हुए छत्तीसगढ़ के पुलिस मुख्यालय तक पहुंची। अफसरों ने मानपुर-मोहला के बड़े अफसर को फोन लगाकर पूछा, तो उनका जवाब हैरान करने वाला था। जिले के अफसर ने कहा...सर, रिश्वत की रकम वापिस हो गई है तो अब क्या कार्रवाई की जाए। पीएचक्यू नाराज हुआ, तब जाकर अफसर ने अपने प्रिय वसूलीबाज थानेदार को सस्पेंड किया। याने दूसरे राज्य में छत्तीसगढ़ का नाम खराब करने की सजा सिर्फ थानेदार का निलंबन। इससे ज्यादा पीएचक्यू कुछ कर भी नहीं सकता। कौवा मारकर टांगने का पावर उसके पास है नहीं। कुछ एक्सट्रा रसूखदार केस में सिस्टम भी हाथ खड़ा कर देता है। ऐसे में फिर पोलिसिंग की बात करना बेमानी है।

कप्तान....पानी-पानी

इस सरकार में पुलिस मुख्यालय के अफसरों को कम-से-कम इस बात का फ्रीडम मिला है कि वे पुलिस अधिकारियों को आईना दिखा सकते हैं। इस मौके का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। पीएचक्यू के प्रेशर में 200 करोड़ का वाहन घोटाले पर नकैल कसा गया है। पिछले दिनों एसपी कांफ्रेंस में खुफिया चीफ अमित कुमार ने एसपी लोगों से दो टूक कहा कि न मैं और न डीजीपी साब...किसी ने एक टीआई की नियुक्ति को लेकर फोन किया होगा। तुमलोग अपने मन से थानेदारों की नियुक्ति कर रहे हो...फिर क्राईम काब में क्यों नहीं आ रहा। इस पर एसपी लोग बगले झांक रहे थे।

भावी CS एसी में और बेचारे...

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के साथ मुख्य सचिव अमिताभ जैन भी सुशासन तिहार में लगातार जा रहे हैं। अमिताभ के रिटायरमेंट में अब बमुश्किल 40 दिन बच गए हैं। ऐसे में, बेचारे का मई की गरमी में घूमना लोगों को इसलिए खटक रहा कि जिनको उनके बाद प्रदेश की प्रशासनिक कमान संभालनी है, वे मंत्रालय के एसी कमरों में बैठे हुए हैं और जो पिछले पांच साल में ऐसे कई दौरे कर चुके हैं, वे जाते-जाते तपती धूप का सामना कर रहे हैं। हालांकि, सरकार की भी मजबूरी है। जिन्हें चीफ सिकरेट्री बनाना है, उसे लेकर सीएम अपने साथ घूमने लगे तो फिर सारा कुछ पहले ही एक्सपोज हो जाएगा। फिर भी, नए सीएस के लिए यह अच्छा मौका था...प्रदेश की जमीनी हकीकत से वाकिफ होने का...सारे कलेक्टरों का नब्ज भी उन्हें पता चल जाता। अब 30 जून को जो नया मुख्य सचिव बनेगा, उनको क्या पता रहेगा कि सीएम का ये 36 पेज वाला एजेंडा क्या है और कलेक्टरों ने इसमें क्या रिस्पांस दिया है।

खाता-बही वाले मंत्रीजी

खरीदी-सप्लाई का हिस्सा न पहुंचने से पीए ने मंत्रीजी को चुगली कर दी...साब जिले वाला एजेंट पैसा दबा दे रहा है। फिर क्या था...मंत्रीजी ने राजनांदगांव के अधिकारियों को बुला लिया। फिर उनके सामने खाता-बही खोलकर बैठ गए...इतने की खरीदी हुई तो फिर इसका 15 परसेंट पहुंचाए क्यों नहीं? अधिकारी बेचारे गिड़गिड़ा रहे थे...सर, टेंडर नियम से हुआ है...इसमें कुछ मिलता नहीं...मगर मंत्रीजी मानने के लिए तैयार नहीं थे...दो टूक धमकी दे डाले...ऐसा नहीं चलेगा। दरअसल, मंत्रीजी सभी जिलों में एक-एक प्रायवेट वसूली एजेंट नियुक्त कर रखे हैं। इस वजह से पीए कसमसा रहे हैं। इस वजह से मंत्री के पीए और एजेंटों में टकराव की स्थिति निर्मित होती जा रही है। सही भी है...पेट की चोट पीए लोग कैसे बर्दाश्त करेंगे।

समझदार मंत्री, समझदार अफसर

होशियार मंत्री और अफसर अपने स्टॉफ की नियुक्ति के मामले में बड़े चौकस रहते हैं। वे तगड़ी स्क्रीनिंग के बाद अपने पीए अपाइंट करते हैं। रमन सरकार के दौरान दो मंत्री इस मामले में हमेशा अलर्ट रहे तो पिछली कांग्रेस सरकार में किसी भी मंत्री ने इस महत्वपूर्ण बिंदु पर ध्यान नहीं दिया। इस सरकार की, तो 10 में से सिर्फ एक मंत्री ऐसे हैं, जिनके स्टॉफ को अहम मामलों की भनक नहीं लग पाती। अफसरों के साथ भी यही है। ब्यूरोक्रेसी में जो अफसर स्टडी नहीं करता, उन्हें पीए अपने इशारों पर नचाते हैं। कई नौकरशाहों के पीए ऐसी फाइलों पर हस्ताक्षर करा लेते हैं, जिसमें जांच हो जाए तो जेल जाने से उन्हें कोई बचा नहीं पाएगा। फिर दूसरा इंपोर्टेंंट यह कि पीए लोगों से कनेक्ट होने में सबसे बड़े ब्रेकर होते हैं। वे मंत्री या अफसर से आसानी से मिलने नहीं देंगे। अगर मंत्री या अफसर से आपको बिना किसी अवरोध के मिलना है तो उसका एक ही उपाय है...पीए की खुशामद के साथ कुछ चढ़ावा चढ़ाते रहिये।

पीए की ऐसी छुट्टी

बात निकली पीए के ब्रेकर बनने की, तो एक पुरानी घटना जेहन में आ गई। बात नवंबर या दिसंबर 2011 की होगी। सुनिल कुमार उसी समय लंबे डेपुटेशन से दिल्ली से रायपुर लौटे थे, या यों कहें बुलाए गए थे। थोड़े दिन के लिए वे यहां एसीएस स्कूल शिक्षा रहे। इसके बाद जनवरी 2012 में वे पी जाय उम्मेन के हटने के बाद सीएस बन गए थे। बहरहाल, बात मुद्दे की। सुनिल कुमार से पुरानी जान-पहचान थी, ज्वाईनिंग के बाद एकाध मुलाकात हो चुकी थी। उसके बाद एक दिन मैंने उनसे मिलने के लिए फोन लगाया, उन्होंने मुझे शाम पांच बजे का टाईम दिया। नियत टाईम पर पुराने मंत्रालय पहुंच कर उनके पीए को मैंने अपना विजिटिंग कार्ड दिया। पीए के रिप्लाई से मैं सोच में पड़ गया...सुनिल कुमार तो ऐसे नहीं करते। पीए ने स्पष्ट तौर से कहा...साब अभी मीटिंग में हैं, अभी नहीं मिल सकते। मैं बरामदे में खड़ा होकर कुछ देर सोचा। फिर तय किया कि उन्हें कम-से-कम सूचित कर दूं कि मैं टाईम पर मंत्रालय पहुंच गया था। उन्हें फोन कर बताया, मैं मिलने आया था...मेरा वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि वे बोले...आइये, अंदर आ आइये। भीतर गया तो देखा कोई मीटिंग नहीं। वे किसी फाइल को पढ़ रहे थे। कुछ देर बैठने के बाद मैं पीए के बारे में बताया...सुनकर वे आवाक रह गए। उस समय पीए को बुलाकर वे डांटे या नहीं, इसे मैं रिकॉल नहीं कर पा रहा मगर अगले दिन पता चला कि पीए की वहां से छुट्टी हो गई। जाहिर है, पीए ने वह हरकत नहीं की होती तो वो सुनिल कुमार के साथ मुख्य सचिव सचिवालय भी गया होता। सार यह है कि पीए अगर आपने ढंग का नहीं रखा तो फिर आपको वो अलोकप्रिय बना देगा। क्योंकि, हर आदमी अफसर या मंत्री से पीए की शिकायत कर नहीं पाता।

32 की जगह चार

रमन सिंह सरकार के दौर में आईएफएस अफसरों का स्वर्णिम दौर रहा। तब एक समय 32 आईएफए डेपुटेशन में राज्य सरकार में विभिन्न बोर्ड और कारपोरेशनों को संभाल रहे थे। रमन सिंह की दूसरी पारी में सुब्रमणियम सिकरेट्री टू सीएम की कुर्सी तक पहुंच गए थे। नया रायपुर को बनाने वाले एसएस बजाज भी आईएफएस थे। अनिल राय लंबे समय तक पीडब्लूडी सिकरेट्री रहे तो राकेश चतुर्वेदी, संजय शुक्ला, स्व0 देवेंद्र सिंह और सुनील मिश्रा भी कई अहम पदों पर रहे। मगर अब आलम यह है कि यह संख्या चार पर सिमट गई है। अरुण प्रसाद मेंबर सिकरेट्री पौल्यूशन बोर्ड, जगदीशन डायेक्टर हार्टिकल्चर, विवेक आचार्य एमडी टूरिज्म और कल्चर तथा विश्वेष कुमार एमडी सीएसआईडीसी। दरअसल, अब आईएएस में डायरेक्टर, एमडी लेवल के अफसरों पर संख्या काफी बढ़ गई है। उधर, आईएफएस में भी उस तरह के अफसर बचे नहीं, जिनका काम अच्छा हो और राज्य सरकार में कनेक्शन भी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. वो कौन सी खास वजह है कि दूरस्थ और छोटे जिले बोर्ड परीक्षाओं में बाजी मार ले जाते हैं और बड़े शहरों के कोचिंग और ट्यूशन करने वाले बच्चे पीछे?

2. भारत-पाक में सीजफायर की खबर से छत्तीसगढ़ में वो कौन तीन लोग हैं, जो सबसे अधिक खुश हुए होंगे?




Chhattisgarh Tarkash 2025: सीएस और सीआईसी पर मौन

 तरकश, 4 मई 2025

संजय के. दीक्षित

सीएस और सीआईसी पर मौन

छत्तीसगढ़ ब्यूरोक्रेसी में इस समय नए चीफ सिकरेट्री और चीफ इंफार्मेशन कमिश्नर हॉट टॉपिक है मगर इन दोनों विषयों पर सिस्टम खामोश है। सीआईसी के लिए 16 अप्रैल को सलेक्शन कमेटी की बैठक होनी थी। मगर सीएम के बस्तर दौरे की वजह से टल गई। इसके बाद पखवाड़ा गुजर गया, अगली बैठक की कोई सुगबुगाहट नहीं है। कुछ दिन पहले तक सीएस अमिताभ जैन का सीआईसी बनना तय माना जा रहा था, किंतु रिटायर डीजीपी अशोक जुनेजा की इंट्री के बाद इस पर धूंध छा गया है। फिर भी पलड़ा अमिताभ की ही भारी बताया जा रहा है। उधर, नए मुख्य सचिव की तस्वीर भी साफ नहीं हो पा रही है। इस शीर्ष पद के लिए रेणु पिल्ले, सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल, ऋचा शर्मा और मनोज पिंगुआ पात्रता रखते हैं। पर आम परसेप्शन ये बन गया है कि मुख्य मुकाबला सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ के बीच होगा। रेणु पिल्ले, अमित या ऋचा को 80 से 90 परसेंट लोग रेस से बाहर बता रहे हैं। इन तीनों में से कोई एक नाम अगर आश्चर्यजनक रूप से सामने आ गया तो, वो किसी अद्श्य शक्ति का कमाल होगा। इसमें भारत सरकार का इंटरफेयरेंस भी एक हो सकता है। जैसे मध्यप्रदेश, ओड़िसा, राजस्थान और हरियाणा में हुआ। संभवतः यही वजह है कि सुब्रत और मनोज का नाम तो लोग ले रहे मगर कांफिडेंट कोई नहीं। आखिर, एमपी में अनुराग जैन का नाम दिल्ली से तब आ गया था, जब राज्य सरकार ने सीएस अपाइंटमेंट की नोटशीट चला दी थी। बहरहाल, छत्तीसगढ़ में देखना है मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इन पांच में से किसे मौका देते हैं।

यमराज बड़ा या पटवारी!

पंजीयन विभाग के 10 सुधारों के आगाज के मौके पर राजस्व और पंजीयन विभाग आज सबके निशाने पर रहा। यहां तक कि हवा का रुख देख राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा बोले...जनता को राजस्व विभाग के चक्कर से अब छूटकारा मिलेगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का भड़ास भी आज बाहर आ गया। पटवारी, तहसीलदारों की मनमानियों का जिक्र करते हुए उन्होंने यहां तक कह डाला कि पटवारी यमराज से बड़े हो गए हैं...जिंदा आदमी को कागज में मार देते हैं। फिर जिंदा आदमी को साबित करने महीनों, सालों कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ जाता है। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद किसी विभाग के खटराल मुलाजिमों के बारे में उनका पहली बार इस तरह गुस्सा बाहर आया होगा। वहीं, पंजीयन मंत्री ओपी चौधरी ने बताया कि सुधारों के लिए किस तरह उन्हें उंगली टेढ़ी करनी पड़ी। उन्होंने दिलचस्प किस्सा बताते हुए कहा कि 10 परसेंट जो कभी नहीं सुधरते, पंजीयन विभाग में वे आंदोलन का माहौल बनाने लगे थे। उन्होंने छह लोगों की फाइल तैयार करवाई। फिर मंत्रालय में बुलाया। बोला...देख लो, इसमें क्या करना है। उसके बाद सभी के जोश ठंडे पड़ गए। उन्होंने इसका भी खुलासा किया, उन छह फाइलों में से तीन ही सही थी, तीन फाइलों में फर्जी पेपर रखे थे। ओपी के कहने का आशय यह था कि किसी भी सुधार के लिए लंबा पापड़ बेलना पड़ता है, विरोधों का सामना करना पड़ता है। उसमें सियासत भी आड़े आती है।

कलेक्टरों की निगरानी

महत्वपूर्ण योजनाओं के क्रियान्वयन में कलेक्टरों की पुअर रिपोर्ट मिलने के बाद सीएम सचिवालय ने कलेक्टरों पर निगरानी का काम प्रारंभ कर दिया है। इसके लिए अटल मॉनिटरिंग पोर्टल बनाया गया है। इस पोर्टल से कलेक्टरों की मुश्किलें इसलिए बढ़ेगी कि अब वे आंकड़ों की बाजीगरी नहीं कर पाएंगे। जाहिर है, सीएम सचिवालय अपने स्तर पर विभागों से डेटा लेकर कलेक्टरों को आईना दिखाता रहेगा कि उनके जिले में क्या चल रहा है। सीएम सचिवालय ने उदाहरण के लिए कलेक्टरों से सभी 33 जिलों की राजस्व कोर्ट का डेटा शेयर किया है। इसमें बस्तर संभाग को छोड़ दे ंतो सरगुजा और मैदानी इलाकों का बुरा हाल है। कई जिलों में 50 परसेंट भी राजस्व मामलों का निबटारा नहीं हुआ है।

डीएमएफ में बिजी कलेक्टर

दरअसल, कलेक्टरों के राजस्व न्यायालय में दिलचस्पी न लेने की एक बड़ी वजह यह है कि राज्य बनने के बाद इस पर सिस्टम ने ध्यान नहीं दिया। मध्यप्रदेश के दौर में सन 2000 तक बड़े-बड़े कलेक्टर कोर्ट में बैठकर राजस्व केस निबटाते थे। राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ में पैसे का फ्लो ऐसे बढ़ा....ब्यूरोक्रेसी यह भूल गई कि ईश्वर ने उन्हें देश की सबसे प्रतिष्ठित सर्विस के लिए चुना है तो ईश्वर को थैंक्स के नाम पर कुछ अच्छा भी कर जाएं। जाहिर है, राज्य निर्माण के बाद नवंबर 2000 से 2002 तक सिस्टम सेट होने में लगा। 2003 से 2010 तक नौकरशाही खेत-खलिहान, फार्म हाउस बनाने में उलझी रही। इसके बाद कलेक्टरों के पास डीएमएफ आ गया। डीएमएफ के बाद कलेक्टरों के पास राजस्व कोर्ट में बैठने का फुरसत कहां। 60 फीसदी कलेक्टर सुबह से कैलकुलेटर लेकर बैठ जाते हैं...और जो थोड़े-बहुत अच्छे हैं, उन्हें लगता है कि जमीन-जायदाद के पचड़े में फालतू पड़ना क्यों? यही वजह है कि पिछले एक दशक में कलेक्टर्स अपने न्यायालयीन दायित्व को लगभग भूल गए। अधिकांश कलेक्टरों ने अपना कोर्ट अपर कलेक्टरों के हवाले कर दिया है। बहरहाल, सीएम सचिवालय ने अब मॉनिटरिंग शुरू की है...पीएस टू सीएम सुबोध सिंह इसे देख रहे हैं...उन्होंने सभी कलेक्टरों को मैसेज कर खबरदार भी किया है....तो उम्मीद करें कि छत्तीसगढ़ में कलेक्टर कोर्ट की रौनक लौटेगी।

दो को सजा, दो को ईनाम

मध्यप्रदेश के बंटवारे के बाद दो-चार स्वाभिमानी ब्यूरोक्रेट्स भोपाल से रायपुर आए थे, उनमें आईएएस केके चक्रवर्ती भी शामिल थे। उन्होंने ही 2003 में छत्तीसगढ़ का पहला विधानसभा चुनाव कराया। उसके बाद वे सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली चले गए। उनके बाद 2008 का विधानसभा चुनाव डॉ0 आलोक शुक्ला, 2009 का लोकसभा, 2013 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा चुनाव सुनील कुजूर, 2018 का विधानसभा और 2019 का लोकसभा चुनाव सुब्रत साहू तथा 2013 का विधानसभा और 2024 का लोकसभा चुनाव रीना बाबा कंगाले ने बतौर सीईओ कराया। इनमें से डॉ0 आलोक शुक्ला और सुनील कुजूर के टेन्योर के दौरान विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसा हुआ कि रमन सरकार को नागवार गुजरा। आचार संहिता में हाई प्रोफाइल डीजीपी विश्वरंजन से लेकर कई अफसरों की छुट्टी हो गई। आलम यह हुआ कि आलोक को लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ छोड़कर दिल्ली जाना पड़ गया...और सुनील कुजूर ने भले ही एक विधानसभा और दो लोकसभा चुनाव कराने का रिकार्ड बनाया, मगर सरकार की नाराजगी ऐसी तीव्र थी कि उन्हें लंबे समय तक प्रमोशन से वंचित रहना पड़ा। प्रमोटी आईपीएस राजीव श्रीवास्तव जब डीजी हो गए तो बैजेंद्र कुमार पहुंच गए सीएम के पास। उसके बाद कुजूर फिर प्रमुख सचिव बनें। अलबत्ता, सुब्रत साहू और रीना कंगाले को विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जीत का ईनाम मिला। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई थी और कांग्रेस की ऐतिहासिक विजय। सुब्रत को लोकसभा चुनाव के बाद सीएम सचिवालय की पोस्टिंग मिली तो 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की आश्चर्यजनक जीत के लिए रीना कंगाले को फूड में पोस्टिंग देकर सरकार ने बड़ा संदेश दिया है।

तीन अफसरों का पेनल

मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी नियुक्त करने के लिए राज्य सरकार ने तीन आईएएस अधिकारियों का पेनल भारत निर्वाचन आयोग को भेजा था। इनमें यशवंत कुमार, शिखा राजपूत और केडी कुंजाम शामिल है। यशवंत चूकि राजभवन में सचिव रहे हैं इसलिए प्रोफाइल बढ़ियां होने के चक्कर में वे बेचारे फंस गए। निर्वाचन आयोग ने उनके नाम पर टिक लगा दिया। हालांकि, संकेत हैं कुछ दिन बाद सरकार उन्हें निर्वाचन आयोग से इजाजत लेकर कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी देगी, जैसा कि पहले होता आया है। वैसे भी अगला विधानसभा चुनाव नवंबर 2028 में है। और ये भी आवश्यक नहीं कि यशवंत ही चुनाव कराएंगे। हो सकता है, उसके पहले उनका प्रभार बदल जाए। उनके पहले भी कई सीईओ रहे, जिन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं कराया। सुब्रत से पहले निधि छिब्बर भी विधानसभा चुनाव से पहले डेपुटेशन पर चली गईं थीं।

मंत्री और लाल बत्ती उलझी

लगता है, विष्णुदेव साय कैबिनेट का विस्तार किसी ग्रह-नक्षत्र का शिकार हो गया है। क्योंकि, पहलगाम की आतंकी घटना के बाद अब कुछ महीनों तक कम-से-कम कोई राज्य सरकार मंत्रिमंडल विस्तार या सर्जरी की बात तो नहीं ही करेगा। यही हाल लाल बत्ती में भी होगा। जिन्हें निगम-मंडलों में पोस्टिंग मिल गई, वे किस्मती रहे। सभी ने झंका-मंका के साथ अपना पदभार ग्रहण कर लिया। मगर कुछ दिनों के लिए अब इस पर ब्रेक समझिए। बीजेपी के अंदरखाने की जानकारी रखने वालों का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार पर राहू-केतु की कुदृष्टि पड़ गई है। मुख्यमंत्री को इसके लिए कोई अनुष्ठान करा लेना चाहिए। ताकि, पाकिस्तान से युद्ध ठीकठाक निबटने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार की बात बढ़ाई जा सकें।

सीएस की भाषण कला

जैसे-जैसे रिटायरमेंट का समय नजदीक आता जा रहा, सीएस अमिताभ जैन के चेहरे की रौनक बढ़ती जा रही, वैसे ही उनके भाषण कला में निखार आता जा रहा है। नवा रायपुर के एक बड़े होटल में पंजीयन विभाग के कार्यक्रम में उन्होंने ऐसे सधे और मारक अंदाज में भाषण दिया कि पूछिए मत! उन्होंने हरीत, लाल और सुधार क्रांति की बातें कर डालीं। उन्होंने राजस्व विभाग के खटराल सिस्टम को निशाने पर लेते हुए कहा कि अधिकारियों और कर्मचारियों का अधिकार कम कर ये सरकार जनता को सुविधाएं मुहैया करा रही है...ये एक बड़ा विजनरी बदलाव है।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. काफी जोर होने के बाद भी राज्य सरकार ने राहुल देव को बिलासपुर का कलेक्टर क्यों नहीं बनाया?

2. क्या आईएएस सोनमणि बोरा अगले प्रिंसिपल सिकरेट्री होम होंगे?