शनिवार, 21 जून 2025

Chhattisgarh Tarkash: 7 एसडीएम सस्पेंड, मगर....

 तरकश, 22 जून 2025

संजय के. दीक्षित

7 एसडीएम सस्पेंड, मगर....

छत्तीसगढ़ बनने के 24 बरस में राज्य प्रशासनिक सेवा के सिर्फ दो अफसरों के निलंबित होने का स्मरण आता है। मगर विष्णुदेव सरकार के पिछले एक साल के भीतर सात एसडीएम सस्पेंड हो चुके हैं। टेकराम माहेश्वरी और भागीरथ खांडे रिश्वत लेते ट्रेप हुए तो निर्भया साहू, आनंदस्वरूप तिवारी, शशिकांत कुर्रे और अशोक कुमार मार्बल पर मुआवजा स्कैम में गाज गिरी। वहीं, प्रेमप्रकाश शर्मा पाठ्य पुस्तक घोटाले में निलबित हुए। इसके अलावे राजस्व और ट्रेप मामलों में सुपरिटेंडेंट इंजीनियर से लेकर अब तक 70 से ज्यादा तहसीलदार, नायब तहसीलदार, दरोगा, टीआई गिरफ्तार और सस्पेंड हो चुके हैं। बावजूद इसके छत्तीसगढ़ में करप्शन का लेवल कम नहीं हो पा रहा बल्कि पिछली कांग्रेस सरकार से टक्कर लेने की स्थिति में है। तो सिस्टम में बैठे लोगों के लिए सोचने का विषय है कि साल भर के भीतर सात-सात एसडीएम सस्पेंड...छह तो छह महीने में। फिर भी खटराल तंत्र में वो खौफ क्यों नहीं बन पा रहा, जिसकी इस समय बड़ी जरूरत है। भ्रष्टाचार की बीमारी लाइलाज बन छत्तीसगढ़ की प्रगति को निगल जाए, इससे पहले सरकार को कोई हाइपरसोनिक कदम उठाना चाहिए।

ऐसे चीफ सिकरेट्री-1

छत्तीसगढ़ के पुराने लोगों को याद होगा...2008 के विधानसभा चुनाव में रमन सरकार की नैया एक रुपए किलो चावल के सहारे पार हो गई थी। मगर 2013 के चुनाव के लिए कोई एजेंडा नहीं था। रमन सिंह के रणनीतिकारों ने सिस्टम में अनुशासन लाकर सरकार की साफ-सुथरी छबि का मैसेज देने का रास्ता निकाला। इसके लिए दिल्ली में डेपुटेशन पर पोस्टेड सुनिल कुमार को आग्रह पूर्वक बुलाकर चीफ सिकरेट्री बनाया गया। इसके बाद बीजेपी 2013 का विस चुनाव जीती भी। बहरहाल, बात वर्तमान की। पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ के सिस्टम में जिस तरह भ्रष्टाचार का विष बेल फैला है, उसे कोई शीर्ष स्तर पर बैठा सख्त नौकरशाह ही अंकुश लगा सकता है...सरकार के सुशासन की कोशिशों में सुरखाब के पंख लगा सकता है। हालांकि, सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड अमित अग्रवाल के भले ही चीफ सिकरेट्री बनने की संभावनाएं कम प्रतीत हो रही हैं मगर यह कड़वा सत्य यह है कि उनके नाम से ब्यूरोक्रेसी तक घबरा रही है। जाहिर है, ऐसे

ऐसे चीफ सिकरेट्री-2

चीफ सिकरेट्री का पद इतना महत्वपूर्ण है कि उसमें थोड़ा लचीलापन न हो तो सरकार का कामधाम ठहर सा जाएगा। यही वजह है कि 99 परसेंट सरकारें यस मैन चीफ सिकरेट्री ही पसंद करती है। ध्यान रहे, सुनिल कुमार को रमन सरकार ने दिल्ली से बुलाया जरूर, मगर फरवरी 2013 में उनके एक्सटेंशन के लिए कोई प्रयास भी नहीं किया। जबकि, झीरम कांड के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री के समक्ष वे अपनी उपयोगिता प्रमाणित कर चुके थे। वाकई, तेज नौकरशाहों को झेलना कठिन होता है मगर ये भी सही है कि ऐसे अफसर फाइलों में सरकार को फंसने नहीं देते। एक सिकरेट्री टू सीएम की पोस्टिंग पर सवाल उठा तो सुनिल कुमार ने दिमाग दौड़ाते हुए बकायदा संविदा कानून बनवा दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि हाई कोर्ट से पीआईएल खारिज हो गया।

ऐसे चीफ सिकरेट्री-3

छत्तीसगढ़ बनने के बाद अभी तक 12 चीफ सिकरेट्री अपाइंट हो चुके हैं। अरुण कुमार से लेकर एसके मिश्र, अशोक विजयवर्गीय, आरपी बगाई, शिवराज सिंह, पी0 जॉय उम्मेन, सुनिल कुमार, विवेक ढांड, अजय सिंह, सुनील कुजूर, आरपी मंडल, अमिताभ जैन। मगर इनमें से किसी के नाम से सिकरेट्री, कलेक्टर से लेकर सरकारी मुलाजिम घबराते थे, उनमें चार नाम प्रमुख हैं। आरपी बगाई, शिवराज सिंह, सुनील कुमार और विवेक ढांड। इसमें दिलचस्प यह है कि ये चारों अफसर एक ही सरकार, एक ही मुख्यमंत्री के दौरान मुख्य सचिव रहे। बचे आठ में से अजय सिंह सरकार बदलने का शिकार होकर विकेट गंवा बैठे तो आरपी मंडल का कार्यकाल कोरोना का भेंट चढ़ गया। इनमें सबसे सरल और सहज कहा जाए तो अशोक विजयवर्गीय और सुनील कुजूर का नाम सबसे उपर आएगा। उधर, 80 बरस के एसके मिश्रा अभी भी काफी सक्रिय हैं। और, अमिताभ जैन सबसे लंबे कार्यकाल का ऐसा रिकार्ड बनाकर जा रहे कि निकट भविष्य में उसे कोई तोड़ नहीं सकता। अमित अग्रवाल के पास पूरे पांच साल जरूर हैं मगर वैसे अफसर इतना लंबा चलते नहीं। मनोज पिंगुआ बने तो वे सीएस के फोर ईयर क्लब में शामिल अवश्य हो जाएंगे मगर अमिताभ का रिकार्ड नहीं ब्रेक कर पाएंगे।

ईडी की तरह ईओडब्लू

खबर है, भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के तहत सरकार अब एसीबी को स्ट्रांग करने जा रही है। बिल्कुल ईडी की तरह। ईओडब्लू और एसीबी को अब संसाधनों से लैस किया जाएगा। थोक में वहां अफसरों को भेजने के लिए नोटशीट चल चुकी है। चलिये...सरकार का आइडिया बढ़ियां है। आखिर, मोदीजी की छबि चमकाने में ईडी का हाथ रहा ही। छत्तीसगढ़ में करप्शन से पब्लिक इतना त्रस्त हो चुकी है कि एक चुनाव तो करप्शन पर चोट कर निकाला जा सकता है। पिछली कांग्रेस सरकार सिर्फ और सिर्फ करप्शन के इश्यू पर पिट गई, वरना 2018 के चुनाव में 15 सीट पर आ चुकी बीजेपी के लिए कम-से-कम 10 साल तक कोई संभावनाएं नहीं थी। नो दाउट, कांग्रेस सरकार की कई योजनाएं अच्छी थीं, मगर उसका क्रियान्वयन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। बहरहाल, बात ईओडब्लू को ईडी की तरह बनाने की, तो उसे ईडी की तरह पावर भी देना होगा। किस अफसर को पूछताछ के लिए बुलाना है किसे नहीं, इसमें भेदभाव और भाई साहबों का दखल न हो। तभी ईओडब्लू को मजबूत करने का फायदा 2028 के विधानसभा चुनाव में मिल सकेगा।

सबसे सीनियर कलेक्टर

2009 बैच के अवनीश शरण और 2010 बैच के कार्तिकेय गोयल के रायपुर वापसी के बाद अब छत्तीसगढ़ में 2011 बैच वाले सबसे सीनियर कलेक्टर हो गए हैं। इस बैच के इस समय पांच आईएएस अधिकारी जिला संभाल रहे हैं। सर्वेश भूरे राजनांदगांव, दीपक सोनी बलौदा बाजार, नीलेश श्रीरसागर कांकेर, भोस्कर विलास संदीपन अंबिकापुर और जन्मजय मोहबे जांजगीर। हालांकि, ये अलग बात है कि सीनियरिटी के हिसाब से इनमें से अधिकांश को बड़ा जिला नहीं मिला है। और अभी उम्मीद भी नहीं है। क्योंकि, ’ए’ केटेगरी वाले तीनों जिलों में वैकेंसी नहीं है। रायपुर में गौरव सिंह मजबूती से क्रीज पर टिके हुए हैं तो बिलासपुर और दुर्ग वाले अभी-अभी क्रीज पर उतरे हैं। छत्तीसगढ़ में ’ए’ और ’बी’ के बीच में एक ’बी प्लस’ केटेगरी भी है। वो हैं कोरबा, दंतेवाड़ा, रायगढ़ और राजनांदगांव। इनमें कोरबा को छोड़ तीनों में नए कलेक्टर हैं। उन्हें हटाया नहीं जा सकता। आगामी फेरबदल में 2011 बैच वालों के लिए फिलहाल कोरबा ही एक बचता है, जहां के लिए वे भगवान विष्णुदेव को वे खुश करने का प्रयास कर सकते हैं।

पूर्णकालिक डीजीपी

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कल 22 जून को रायपुर आ रहे हैं। रात्रि विश्राम करने के बाद वे अगले दिन बस्तर जाएंगे। अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे में नए मंत्रियों और नए चीफ सिकरेट्री का नाम भले ही फायनल न हो मगर अंदेशा है कि पूर्णकालिक डीजीपी का नाम जरूर तय हो जाएगा। क्योंकि, ये विषय अब सरकार के औरा से जु़ड़ गया है। अगर यूपीएससी से पेनल नहीं आया होता तो बात अलग थी। दो नामों का पेनल आए महीना भर होने जा रहा है। अरुणदेव गौतम को सरकार ने प्रभारी डीजीपी बनाया है तो निश्चित तौर पर वे सरकार के पसंदीदा भी होंगे। मगर आर्डर नहीं निकल पा रहा तो संदेश ये जा रहा कि सिस्टम किसी प्रेशर की वजह से कश्मकश में है। सो, कश्मकश दूर करने के लिए संभावना है कि अमित शाह के दौरे में कम-से-कम पूर्णकालिक डीजीपी का नाम तय हो जाएगा।

गृह मंत्री का खौफ

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे की तैयारी में अफसरशाही कई दिन से बेहद व्यस्त चल रही है। खासकर, गृह और पुलिस मुख्यालय के अफसर। मंत्रालय के गलियारों में काफी हलचल है। दरअसल, अमित शाह ऐसे मंत्री हैं, जिनका मीटिंग यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी से ज्यादा कठिन होता है। बता दें, अमित शाह का खौफ सरकार के लोगों को ही नहीं बल्कि संगठन के नेताओं पर भी सिर चढ़कर बोलता है। 2019 का वाकया याद होगा, जब एक हारे हुए विधायक ने सरकार की पराजय का ठीकरा रमन सिंह और उनके अफसरों पर फोड़ने का प्रयास किया तो अमित शाह ने उन्हें यह कहते हुए झिड़क दिया था कि कांग्रेस के गढ़ रहे छत्तीसगढ़ में बीजेपी का 15 साल तक शासन करना आसान नहीं था। बहरहाल, अमित शाह की बैठकों में शामिल होने वाले अफसर बताते हैं...चाहे जितनी भी तैयारी कर के जाओ, वे ऐसे कठिन सवाल पूछ देंगे, जिसका जवाब तैयार नहीं रहता। अमित शाह का होम वर्क इतना तगड़ा होता है, उन्हें फेस कर पाना अच्छे-अच्छे अधिकारियों के वश की बात नहीं होती।

हॉट टॉपिक

छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और उसके वास्ता रखने वालों के बीच इस समय सबसे हॉट टॉपिक है...नेक्स्ट चीफ सिकरेट्री कौन? दरअसल, मुख्य सचिव अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में अब पांच वर्किंग डे बच गया है। 23 से 27 जून। 28 और 29 को शनिवार, रविवार अवकाश है। और उसके अगले दिन 30 को दोपहर तक नए सीएस का आदेश निकल जाएगा। यह पहली बार है कि ब्यूरोक्रेसी के बड़े अधिकारियों को भी समझ में नहीं आ पा रहा कि उंट किस करवट बैठेगा? सूबे के प्रशासनिक मुखिया के लिए पांच अफसर पात्रता रखते हैं। दिल्ली स्तर पर अगर फैसला होगा तो अमित अग्रवाल और ऋचा शर्मा हो सकती हैं तो स्टेट लेवल पर सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ में टक्कर है। हालांकि, सीनियरिटी के हिसाब से देखें तो एसीएस रेणु पिल्ले का नाम सबसे उपर आएगा। मगर उनके नाम की चर्चा इसलिए नहीं है क्योंकि, जनरल परसेप्शन बन गया है...नियम-कायदों से इंच भर भी समझौता नहीं करने वाले आजकल सीएस बनते नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सारे पैरामीटर पर अगर सहमति की बात की जाए तो चीफ सिकरेट्री के लिए आईएएस सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल और मनोज पिंगुआ में से किसका पलड़ा भारी रहेगा?

2. इसमें कितनी सत्यता है कि छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल विस्तार भाई साहब लोगों की पसंद-नापसंद की वजह से लटक जा रही है?


शनिवार, 14 जून 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: मंत्री का कमाऊं पीएस

 तरकश, 15 जून 2025

संजय के. दीक्षित

मंत्री का कमाऊं पीएस

सीएम सचिवालय ने कुछ अरसा पहले मंत्रियों के पीए और पीएस की निगरानी शुरू की थी, उसमें पता नहीं कितने को ट्रेस किया गया। मगर अब भी हालत जुदा नहीं है। एक बड़े मंत्री के पीएस कई बड़े मालदार विभागों के होने के बाद भी जनहित वाले छोटे विभागों को भी नहीं बख्श रहे। छोटी सप्लाई और टेंडरों में कमीशन चाहिए, तो बाबुओं की पोस्टिंगों में भी रोकड़ा होना। वो भी हर तीन महीने में रिचार्ज की अनिवार्यता। मंत्रीजी का अच्छा भला फ्यूचर खटराल पीएस के फेर में दांव पर लगता जा रहा। जाहिर है, उनकी गिनती सबसे अधिक कमीशन वाले मंत्री में होने लगी है। वो अब उसे झटक भी नहीं सकते, क्योंकि उसने थैली देकर आदत खराब कर डाली है, दूसरा घरवाली के साथ परिजनों का खास बन गया है। ऐसा ही रहा तो अगले चुनाव में मंत्री जी की सीट भी खतरे में पड़ जाएगी। क्योंकि, पीएस कोई घर छोड़ नहीं रहे। सो, इलाके के अपने लोग भी अब नाराज हो रहे हैं।

लाल बत्ती, नो वैकेंसी

लगभग सभी छोटे-बड़े निगम-बोर्डों में सरकार राजनीतिक नियुक्तियां कर चुकी हैं। आखिरी था ब्रेवरेज कारपोरेशन और अपेक्स बैंक चेयरमैन...वो भी कंप्लीट हो गया। केदार गुप्ता के रिजेक्ट करने से दुग्ध संघ खाली है मगर उसमें कोई जाना चाह नहीं रहा है...केदार ने इसकी रेटिंग डाउन कर दिया है। कादम्बरी जैसे झुनझुना वाले बोर्ड का भी यही हाल है। सरकारी नियुक्तियों में पीएससी जरूर बचा है। छत्तीसगढ़ में ऐसे कई दृष्टांत हैं, जिसमें प्रोफसर और अफसरों के अलावा जनप्रतिनिधियों को पीएससी मेंबर बनाया गया। अब बल्क में बचा है तो वह है बोर्डो में मेंबर। मगर इसमें गाड़ी और लेटरहेड पर लिखने के अलावा कुछ मिलता नहीं। बोर्ड, निगम के मेंबर में भी अगर कोई बाजीगरी दिखा ले तो बात अलग है। आगे चलकर जिला सहकारी बैंकों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष में नियुक्तियां जरूर होगी। अलबत्ता, राज्य स्तर के बोर्ड और निगमों में चेयरमैन लेवल की अब कोई रिक्तियां नहीं हैं।

जांच में रोड़ा, पर्दे के पीछे कौन?

राज्य सरकार जीरो टॉलरेंस नीति के तहत जो मामले सामने आ रहे हैं, उसकी जांच में कोई कोताही नहीं बरत रही...ताबड़तोड़ घोषणाएं की जा रही। मगर यह भी सही है कि कोई भी जांच अंजाम तक नहीं पहुंच पा रही...बल्कि उससे पहले ही डिरेल्ड हो जा रही है। सीजीएमएसी से लेकर आरआई प्रमोशन स्कैम तक की ईओडब्लू जांच में यही हुआ। 1131 करोड़ की अरपा-भैंसाझाड़ मुआवजा घोटाले की ईओडब्लू जांच के लिए मुख्यमंत्री ने बैठक में घोषणा की। मगर महीना भर ज्यादा हो गया, अभी तक जांच एजेंसी को कोई चिठ्ठी नहीं भेजी गई है। सीएम के बैठक के मिनिट्स में उसे ऐसे शामिल किया गया, जैसे ईओडब्लू जांच कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। सवाल उठता है, जांच में आखिर रोड़े कौन अटका रहा है? सरकार की इसकी पहचान करनी चाहिए कि कौन वो शख्सियत है, जो पर्दे के पीछे से सरकार को डैमेज कर रहा है।

सीएस, डीजीपी साथ-साथ

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद यह पहला मौका होगा, जब चीफ सिकरेट्री और डीजीपी का सलेक्शन लगभग साथ-साथ होना है। नवंबर 2000 के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ। तब अरुण कुमार सीएस और श्रीमोहन शुक्ला डीजी पुलिस नियुक्त हुए थे। छत्तीसगढ़ में अभी तक 12 मुख्य सचिव और 11 डीजीपी अपाइंट हुए हैं। अरुणदेव गौतम अभी प्रभारी हैं...सरकार की इनायत अगर कंटीन्यू रही तो वे छत्तीसगढ़ के 12वें डीजीपी बनेंगे। बहरहाल, अशोक जुनेजा को छह महीने का एक्सटेंशन नहीं मिला होता तो सीएस और डीजीपी की एक साथ नियुक्ति वाली स्थिति नहीं आती। एक्सटेंशन की वजह से जुनेजा सितंबर 2024 की बजाए फरवरी 2025 में रिटायर हुए और यूपीएससी से क्लियर होकर पेनल आते-आते जून आ गया। इसी जून में मुख्य सचिव अमिताभ जैन का भी रिटायरमेंट है। प्रशासन और पुलिस के इन दोनों शीर्ष पदों पर राज्य सरकार का च्वाइस कसौटी पर रहेगा। इन नियुक्तियों से पता चलेगा कि सरकार आखिर किस लाइन पर चलना चाहती है।

प्रभारवाद में डीजीपी

यूपीएससी से दो आईपीएस अधिकारियों के नामों का पेनल आने के 20 दिन बाद भी अभी तक पूर्णकालिक डीजीपी पोस्ट करने की सरकार स्तर पर कोई सुगबुगाहट नहीं है। और जैसे हालात दिख रहे हैं, उससे प्रतीत होता है कि अरुणदेव गौतम प्रभारी डीजीपी बने रहने के अलावा कोई चारा नहीं है। वैसे कई राज्यों में प्रभार में डीजीपी चल रहे हैं। यूपी देश का पहला राज्य होगा, जहां कई साल से पूर्णकालिक डीजीपी नहीं बने। प्रभारी डीजीपी प्रशांत कुमार के रिटायर होने पर राजीव कृष्ण प्रभारी डीजीपी बने हैं। वो भी छह आईपीएस अधिकारियों के सुपरसीड करके। असल में, सभी राज्यों की अपनी-अपनी मजबूरियां होती हैं। कहीं सीनियर अफसर सरकार के पसंद के नहीं होता तो कहीं पसंद का होता है तो दूसरे तरह के जैक-एप्रोच नियुक्ति में बाधा बनकर खड़े हो जाते हैं। अब छत्तीसगढ़ में किस तरह का ब्रेकर है...ये तो नहीं पता। मगर कुछ तो है। ऐसे में, लगता है कि प्रभारवाद अभी जारी रहेगा।

सीएस का काउंटडाउन

चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में ठीक 15 दिन बच गए हैं। 30 जून को चार साल सात महीने का रिकार्ड पारी खेल कर वे पेवेलियन लौट जाएंगे। ऐसे में, लोगों की जिज्ञासाएं हिलोरें मार रहीं...छत्तीसगढ़ का अगला प्रशासनिक मुखिया कौन बनेगा। जाहिर है, डीजीपी की तरह चीफ सिकरेट्री में प्रभारवाद होता नहीं। होना भी नहीं चाहिए...राज्य का प्रशासनिक मुखिया ही प्रभारी हो जाएगा तो फिर उसकी कौन सुनेगा। फिलवक्त पांच आईएएस अफसर चीफ सिकरेट्री के लिए एलिजिबल हैं। रेणु पिल्ले, सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल, ऋचा शर्मा और मनोज पिंगुआ। हालांकि, कुछ दिनों से रेस में सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ आगे बताए जा रहे थे। धर्मेद्र प्रधान अगर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाते तो इनमें से एक का पलड़ा निश्चित तौर से भारी हो जाता। मगर ऐसा हुआ नहीं। उधर, सालों से सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड अमित अग्रवाल के बारे में पहले खबर आई थी कि वे छत्तीसगढ़ लौटने इच्छुक नहीं हैं। मगर पिछले हफ्ते से ब्यूरोक्रेसी में ये चर्चाएं जोर पकड़ने लगी है कि सरकार अगर बुलाए तो वे चीफ सिकरेट्री बनने के लिए रायपुर आ सकते हैं। उनके कुछ बैचमेटों ने इसकी तस्दीक की है। इससे मामला पेचीदा हो चला है। अमित अग्रवाल के रायपुर लौटने के संदर्भ में अगर कोई बात होगी तो निश्चित तौर पर दिल्ली में पीएम और केंद्रीय गृह मंत्री से सीएम की मुलाकात में आई होगी। और अगर अमित अग्रवाल अगर नहीं आए तो फिर मुख्य मुकाबला सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ में होगा। सुब्रत 91 बैच के आईएएस हैं और मनोज 94 बैच के। इनमें से जिसका मुकद्दर बुलंद होगा, वह 30 जून को अमिताभ जैन से कार्यभार ग्रहण करेगा।

आईएएस रजिस्ट्रार

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का चर्चित स्लोगन था...अमीर धरती के गरीब लोग। इस विरोधाभास को दूर करने उन्होंने सूबे के ह्यूमन रिसोर्स की मजबूती के लिए कई स्तर पर कोशिशें शुरू की थी। जोगी ने सबसे पहले विश्वविद्यालयों में डायरेक्ट आईएएस अधिकारियों को रजिस्ट्रार बनाया। एक समय रायपुर, बिनासपुर दोनों में आईएएस रजिस्ट्रार होते थे। अभी के प्रमुख सचिव सोनमणि बोरा यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार रह चुके हैं। मगर उसके बाद...? उसके बाद हायर एजुकेशन को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। इस समय छत्तीसगढ़ के एक को छोड़कर सभी विश्वविद्यालयों का प्रशासन गुरूजी लोग संभाल रहे हैं। कुलसचिवों की नियुक्ति सरकार ने नहीं, कुलपतियों ने खुद से कर लिया है। तरीका वही...प्रभारवाद। जाहिर है, अफसर कैडर का रजिस्ट्रार रहता है तो उसकी एकाउंटबिलिटी रहती है। गलत होने पर वह अड़ सकता है। मगर असिस्टेंट प्रोफेसरों और प्रोफेसरों की कहां मजाल कि वह कुलपतियों से अलग जाए। लिहाजा, कुलपतियों के दोनों हाथ घी में सिर कढ़ाई में है।

कुलपति बोले तो बड़ा बाबू

एक समय था, जब कुलपतियों के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा होती थी। उनका अलग प्रोटोकॉल और औरा था। वीसी को नेक्स्ट टू गवर्नर कहा जाता था। कार्यक्रमों में वीसी मुख्यमंत्री और राज्यपालों के बगल में बिठाए जाते थे। मगर छत्तीसगढ़ बनने के बाद पैसे कमाने के चक्कर में कुलपतियों का ऐसा पतन हुआ कि उनकी स्थिति बड़े बाबू से ज्यादा नहीं रह गई है। सूटकेश वाले कुलपतियों का क्वालिटी एजुकेशन और रिसर्च से कोई वास्ता नहीं,...उनका एक ही मोटो है, जितना खर्चा किया, वह ब्याज समेत निकल आए। जाहिर है, ऐसे में निर्माण कार्यों और नियुक्तियों पर गिद्ध दृष्टि रहेगी ही। जितना ज्यादा कंक्रीट की इमारतें खड़ी करेंगे, कमीशन उतना अधिक मिलेगा। फिर थोक के भाव में होने वाली नियुक्तियां तो हॉट केक है ही। बस्तर यूनिवर्सिटी की नियुक्यिं में आप सभी ने देखा ही, बाकी यूनिवर्सिटी का हाल भी जुदा नहीं है। वो चाहे संघ के नाम पर कुलपति बनने वाले हो या फिर सूटकेस वाले, छत्तीसगढ़ में सभी कुलपतियों ने कारटेल बनाकर अपना रेट तय कर लिया है। असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए 30 से 35, एसोसियेट प्रोफसर याने रीडर के लिए 50 और प्रोफेसर के लिए 75 लाख। अब आप कैलकुलेटर से जोड़ लीजिए कि 5 साल में अगर 50 नियुक्ति भी कर ली तो कई खोखा का इंतजाम हो गया। याने अपनी संतानों के साथ नाती-पोता के लिए भी व्यवस्था। संघ की दुहाई और गांधी जी को कोसने वाले एक कुलपति ने तो तबाही मचा दी है...डेली वेजेज की कर्मचारियों की पोस्टिंग भी गांधीजी के बिना नहीं करते।

संघ-कांग्रेस का कॉकटेल

कुलपतियों की नियुक्ति में अब कोई विचाराधारा नहीं रह गया है। संघ के हैं या कांग्रेस के, बिना सूटकेस कुछ नहीं होने वाला। यह बाती छिपी नहीं है कि पिछली कांग्रेस सरकार में एक संघ परिवार के प्रोफेसर ने कैसे कुलपति की कुर्सी जुगाड़ी। उनके लिए संघ वालों ने प्रयास किया तो कांग्रेस के लोगों ने भी लॉबिंग की। ये तो हुआ एप्रोच। मगर सिर्फ इससे काम नहीं चलने वाला...जमाना बदल गया है। एप्रोच तो पहुंच और बात आगे बढ़ाने के लिए है...सूटकेस मस्ट है। संघ-कांग्रेस के एप्रोच वाले प्रोफसर साब ने बाजार से ब्याज पर पैसा लिया था। प्राध्यापकों की नियुक्तियां कर अब वे पैसे लौटा रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि कांग्रेस की जगह भाजपा के कुछ असंतुष्ट नेता ही विपक्ष का रोल निभा रहे हैं?

2. छंटनी होने की अभी दूर-दूर तक कोई खबर नहीं, फिर एक मंत्री का बंगला सूनसान क्यों रहने लगा है?

रविवार, 8 जून 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: अफसरशाही का सेफ गेम

 तरकश, 8 जून 2025

संजय के. दीक्षित

अफसरशाही का सेफ गेम

अफसरशाही ने सेफ गेम खेलने के लिए दिमाग तो अच्छा दौड़ाया था मगर नम्बर रांग डायल हो गया। बात कर रहे हैं कि नया रायपुर और पुराने रायपुर के बीच सेड़ीखेरी के प्राइम लोकेशन में नेताओं, अफसरो और जजों की आवासीय योजना की। पिछली सरकार ने 2022 में इसके लिए 23 एकड़ जमीन आबंटित की थी। इसमें 134 प्लॉट काटे गए। इनमें से विधायकों और सांसदों को 49 प्लॉट मिले। तब तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की डबल बेंच ने सरकारी जमीन पर बड़ा फैसला दे दिया। तेलांगना के एक केस में नवंबर 2024 में 64 पेज के आदेश में डबल बेंच ने कहा कि किसी भी वर्ग विशेष को सरकारी जमीन रियायती दर पर नहीं दी जा सकती। अगर प्लॉट दे भी दिया गया हो तो उसे निरस्त कर पैसा वापिस किया जाए। सीजेआई के इस फैसले से अफसरशाही ने जोरदार आइडिया निकाला। प्लान हुआ, पहले जजों को प्लॉट अलॉट कर दिया जाए, फिर अफसरों का। ताकि, कोई कानूनी अड़चन न आए। इसके लिए बिलासपुर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से संपर्क किया गया। खुशामदी लहजे की नुमाइश हुई...सर, किन-किन जज साहबों को प्लॉट देना है, आपलोग ही फायनल कर उनके नाम और एड्रेस दे दीजिए, बाकी चिंता की कोई बात नहीं...हमलोग सब कर लेंगे। बताते हैं, रजिस्ट्रार जनरल से होते हुए मामला चीफ जस्टिस रमेश सिनहा तक पहुंचा। सीजे इसे सुनते ही भड़क गए। बोले, बिल्कुल नहीं...सुप्रीम कोर्ट जब इस पर रोक लगा चुकी है, तब जजों को सरकारी प्लॉट कैसे दिया जा सकता है। इसके बाद रजिस्ट्रार जनरल ने पत्र लिखकर बता दिया कि जजों को प्लॉट देना सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा, ऐसा कतई संभव नहीं है। इससे अफसरशाही सकपका गई। जजों को पहले प्लॉट देने की होशियारी में पूरे 85 प्लॉट अधर में लटक गए हैं। इसमें जजों के बाद ऑल इंडिया सर्विस के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों को प्लॉट दिया जाना था। मगर अब न उगलते बन रहा और न निगलते।

बड़ा खेल, बड़ी चूक

रजिस्ट्रार जनरल के पत्र को अफसरशाही ने चतुराई दिखाते हुए दबा दिया कि ज्यादा बवेला मचा तो फिर आगे से अधिकारियों को सरकारी प्लॉट मिलना मुश्किल हो जाएगा। मगर इस पत्र को दबाने का नुकसान यह हुआ कि रायपुर एयरपोर्ट के पास विधायकों की बनने वाली कालोनी के लिए रायपुर जिला प्रशासन ने बस्तियों को हटाने की नोटिस जारी कर दी। जाहिर है, जिला प्रशासन को अगर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पत्र की जानकारी होती तो शायद ऐसा नहीं होता। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के आदेश के बाद तो किसी वर्ग विशेष को प्लॉट दिया ही नहीं जा सकता। भले ही वो जनप्रतिनिधि हो, जज या अफसर। यहां तक कि सेड़ीखेरी में राज्य प्रशासनिक सेवा को प्लॉट मिला है, उस पर भी अब खतरे मंडराने लगे हैं। फिर विधायकों की कॉलोनी कैसे बन सकती है? जाहिर है, जो चीज बननी ही नहीं, उसके लिए सरकार की किरकिरी हो गई कि माननीयों के लिए गरीबों की बस्ती उजाड़ी जा रही है।

DGP के लिए आरटीआई

यूपीएससी ने डीजीपी के लिए दो नामों को पेनल राज्य सरकार को भेज दिया है। हालांकि, नाम चार आईपीएस अधिकारियों के गए थे। मगर आधे कट गए। इससे खफा होकर एक आईपीएस ने आरटीआई लगाकर यूपीएससी से जानकारी मांगी है कि किस आधार पर उनका नाम पेनल से काटा गया। बताते हैं, जिन दो आईपीएस अफसरो ंके खिलाफ केस थे, वे सभी क्लियर हो गए हैं। फिर, पेनल अगर तीन का भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि, नाम पर टिक तो मुख्यमंत्री को लगाना था। पुलिस महकमा हैरान है कि दो नाम आखिर कटे कैसे। डीपीसी में चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन गए थे। अमिताभ का ऐसा स्वभाव नहीं कि वे किसी का नाम कटवाएं। अब, यूपीएससी में किसी ने कंप्लेन किया होगा तो बात दीगर है।

मंत्रालय में रिफार्म?

सामान्य प्रशासन विभाग ने मंत्रालय में अटैचमेंट समाप्त करने के लिए विभागों से तीन दिन में रिपोर्ट मांगी है। जीएडी को यह बात खटक रहा है कि 200 से अधिक अधिकारी, कर्मचारी मंत्रालय में लंबे समय से बिना बताए मंत्रालय में अटैच हैं। स्थिति यह हो गई है कि वहां बैठने की अब जगह नहीं पुर पा रही। जीएडी की शिकायत कुछ हद तक ठीक है...मगर प्रश्न यह भी है कि सचिवों को बाहर से अधिकारियों, कर्मचारियों को मंत्रालय लाने की जरूरत क्यों पड़ी? इस बात से इंकार नहीं कि 50 परसेंट लोग जोर-जुगाड़ लगाकर मंत्रालय में घुस आए होंगे, मगर 50 परसेंट तो काम के होंगे। जीएडी को सचिवों से पूछना चाहिए कि क्या मजबूरी थी कि उन्हें बाहर से कर्मचारियों को बुलाना पड़ा। पता ये भी करना चाहिए कि मंत्रालय के स्टॉफ कार्यकुशलता में कितने माहिर हैं, कितने अनुशासित भी। पावरफुल आईएएस उनका कुछ कर सकते हैं क्या? सुनिल कुमार जैसे अब तक के सबसे तेज-तर्रार चीफ सिकरेट्री नौकरशाहों को तो कस दिए थे मगर उससे नीचे देखने की कभी कोशिश नहीं की। वो तो गनीमत है कि भोपाल वाले अब नहीं के बराबर है, वरना दसेक साल पहले मंत्रालय में नौकरशाहों से ज्यादा नीचे वालों की तूती बोलती थी।

IAS, डिप्टी कलेक्टर और भृत्य बराबर

समानता का यह अधिकार छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में ही देखने को मिल सकता है। वहां आईएएस और डिप्टी कलेक्टर भी डिप्टी सिकरेट्री हैं तथा भृत्य कैडर वाले भी। दरअसल, मंत्रालय में हर पांच साल में प्रमोशन का प्रावधान है। सो, वहां प्यून में भर्ती होने वाले पांच साल में बाबू प्रमोट हो जाते हैं और फिर उसके बाद सेक्शन ऑफिसर, अंडर सिकरेट्री से होते हुए उप सचिव बन जाते हैं। वहीं, सीनियर डिप्टी कलेक्टर भी मंत्रालय में डिप्टी सिकरेट्री बनते हैं तो आठ साल की सर्विस वाले आईएएस भी। 2017 बैच के आईएएस इस समय मंत्रालय में डिप्टी सिकरेट्री हैं। मंत्रालय के इस प्रमोशन सिस्टम से बाकी कर्मचारियों को ईर्ष्या हो सकती है।

2 बड़े रिफार्म

इस हफ्ते छत्तीसगढ़ में दो बड़े रिफार्म किए गए। पहला, कम संख्या वाले 10 हजार से अधिक स्कूलों को दूसरे स्कूलों में मर्ज कर दिया गया और 13 हजार अतिशेष शिक्षकों को शिक्षक विहीन स्कूलों में पोस्ट किया गया। हालांकि, अतिशेष के नाम पर बीईओ और डीईओ ने तबाही मचाते हुए कई खोखा का खेला कर डाला। फिर भी सुधार की दिशा में इसे बड़ा कदम माना जा रहा है...राज्य बनने के बाद कभी भी इतने बड़े स्तर पर युक्तियुक्तकरण नहीं किया गया। और न ही शिक्षक विहीन स्कूलों की सुध ली गई। जाहिर है, 211 स्कूलों में एक भी बच्चे नहीं थे, फिर भी बरसों से शिक्षक और स्कूल चल रहे थे। दूसरा रिफार्म है...आवास और पर्यावरण विभाग की किफायती जन आवास योजना। लोवर मीडिल और मीडिल क्लास को इस योजना से कम कीमत में सुव्यवस्थित कॉलोनियों में मकान मुहैया हो सकेगा। दावा है कि इससे छोटे मकानों की कीमत 30 परसेंट तक कम हो जाएगी। वहीं, रियल इस्टेट में इंवेस्टमेंट बढ़ेगा।

मंत्रिमंडल विस्तार का जिन्न

सीएम विष्णुदेव साय की दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के साथ ही मंत्रिमंडल विस्तार का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है। सोशल मीडिया में फिर अटकलों का दौर शुरू हो गया है। मगर इस बार विश्वास का संकट है। असल में, दो बार शपथ होते-होते मामला टांय-टांय फुस्स हो गया था। पहली बार दिसंबर 2024 में शपथ के लिए राज्यपाल का बस्तर दौरा निरस्त हो गया था। सो, इस बार मंत्रिमंडल विस्तार की खबर अगर सही भी होगी, तब भी राजभवन से जब तक अधिकृत जानकारी नहीं आएगी, कोई भरोसा नहीं करने वाला। यहां तक कि दावेदारों को भी यकीं नहीं होगा...बेचारे कई बार ठगे से रह गए।

माटीपुत्र की आखिरी लड़ाई

प्रदेश के सबसे सीनियर आईएफएस अधिकारी सुधीर अग्रवाल हक की आखिरी लड़ाई लड़ने सुप्रीम कोर्ट की देहरी पर पहुंच चुके हैं। हालांकि, हेड ऑफ फॉरेस्ट बनने के लिए उनके पास अब टाईम नहीं बचा है। दो-एक महीने में रिटायर हो जाएंगे, मगर उम्मीद पर दुनिया टिकी है तो फिर सुधीर पीछे क्यों रहते? असल में, दिसंबर 2023 में सरकार बदली तो सुधीर बेहद आशान्वित थे कि पिछली सरकार में बेहद पावरफुल रहे श्रीनिवास राव की जगह उन्हें कुर्सी मिल जाएगी। मगर ऐसा हुआ नहीं तो इसका ठीकरा सूटकेस और गांधीजी पर नहीं फोड़ना चाहिए। 80 हजार स्केल वाले सीएस, डीजीपी और पीसीसीएफ जैसे शीर्ष पदों के लिए हथेली में रेखाएं भी होनी चाहिए। हथेली में भाग्य रेखा प्रबल हो सारी व्यवस्थाएं अपने आप हो जाती हैं।

प्रमोटी आईएएस पावरफुल!

ऐसा नहीं कह सकते कि प्रमोटी आईएएस अधिकारियों की पिछली सरकार में ही चलती थी। इस सरकार में भी कुछ अफसरों का रुतबा कायम है। आरआई प्रमोशन घोटाले में सरकार ने ईओडब्लू जांच का ऐलान किया था। मीडिया में खबर आई कि ईओडब्लू ने 40 या 45 बिंदुओं पर जवाब मांगा है। मगर उसके बाद कुछ नहीं हुआ। ये भी पता नहीं चल पा रहा कि एफआईआर वगैरह दर्ज भी हुआ है या नहीं। दरअसल, जमीन-जायदाद वाले विभाग में पूरा जीवन समर्पित कर देने वाले अफसर ने उपर के न जाने के कितने प्रभावशाली अधिकारियों और मंत्रियों, नेताओं के लैंड मैनेजमेंट में हाथ बंटाया होगा। नई सरकार को इसकी जानकारी नहीं रही होगी, इसलिए केस ईओडब्लू को दे दिया। मगर सिस्टम के ऐसे उपयोगी लोगों के खिलाफ भला जांच कैसे हो सकती है?

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि अच्छी पोस्टिंग के लिए काम के साथ 20 से 25 परसेंट लॉबिंग काम करती है?

2. मंत्रिमंडल की सर्जरी की खबर से कौन-कौन से मंत्री को रात में नींद की गोली लेनी पड़ रही है?

सोमवार, 2 जून 2025

छत्तीसगढ़ः ऐसे नेता, ऐसा तंत्र

 तरकश, 1 जून 2025

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ः ऐसे नेता, ऐसा तंत्र

बात 2005-06 के आसपास की होगी। तत्कालीन राज्य सरकार का सिकलसेल पर बड़ा जोर था। मैंने भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इस पर कई स्टोरी की। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे कलाम के हाथों मुझे सिकलसेल पर शोध करने के लिए फेलोशिप मिला। तब डॉ0 कृष्णमूर्ति बांधी हेल्थ मिनिस्टर थे। उस दौरान राज्य सरकार ने फैसला किया था कि सिकलसेल का एक राष्ट्रीय स्तर का संस्थान बनाया जाएगा। अब खबर है कि वर्तमान सरकार ने इसके लिए प्रयास तेज किया है...बिल्डिंग का निर्माण प्रारंभ होने वाला है। याने घोषणा के बाद बिल्डिंग का काम शुरू करने में दो दशक निकल गए। सिकलसेल मूलतः ओबीसी और आदिवासियों में पाई जाने वाली बीमारी है। इससे सूबे में हर साल 10 हजार से अधिक मौतें होती हैं। सात फीसदी बच्चे छह-सात साल के भीतर काल के गाल में समा जाते हैं। और अगर बच गए तो 50 से 55 तक ही चल पाते हैं। सियासी दृष्टि से छत्तीसगढ़ ओबीसी और आदिवासी डोमिनेटिंग स्टेट रहा है। इन समुदायों से कैबिनेट में हमेशा पांच से सात मंत्री रहे हैं। पिछली कांग्रेस सरकार तो ओबीसी अवधारणा पर ही बनी थी। उसके बाद भी सिकलसेल संस्थान अभी जमीन से उपर नहीं उठ पाया तो समझ सकते हैं कि छत्तीसगढ़ के ओबीसी नेता क्या कर रहे और तंत्र कैसा काम कर रहा है। और जब ओबीसी नेताओं को अपनों के मरने की चिंता नहीं तो अधिकारियों का क्या? बहरहाल, इस बीरबल की खिचड़ी वाले सिकलसेल संस्थान से यह भी साफ हो गया है कि आम आदमी की जानमाल को लेकर छत्तीसगढ़ का सिस्टम कितना गंभीर है।

देवपुरूष के नाम पर महापाप

भाजपा में पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी का दर्जा पितृ पुरूष से भी उपर है...पार्टी के लोग उन्हें प्रातः स्मरणीय मानते हैं। मगर पैसे के लिए लोग इतना नीचे गिर सकते हैं, यह इससे स्पष्ट होता है कि छत्तीसगढ़ के नगरीय निकायों में लगाई जाने वाली अटलजी की 183 प्रतिमाओं में भी पैसे खाने का बंदोबस्त कर लिया गया है। असल में, सभी निकायों में अटल चौक बनाने के लिए नगरीय प्रशासन विभाग ने 45 करोड़ रुपए स्वीकृत किया था। इसके लिए टेंडर हो गए हैं। मगर टेंडर से इतर प्रतिमा के लिए अनाधिकृत रूप से पांच फर्मों के नाम तय किए गए हैं। रायपुर से नगरीय निकायों के अधिकारियों और ठेकेदारों पर प्रेशर डाला जा रहा कि उन पांच लोगों से ही धातु की प्रतिमा खरीदी जाए। यह महज सुनी-सुनाई बात नहीं है। पद्यश्री नेल्सन समेत कई मूर्तिकारों ने नगरीय प्रशासन डायरेक्टर से इसकी लिखित शिकायत की है। अटलजी की प्रतिमा में कमीनशनखोरी...यह महापाप होगा। जिम्मेदार लोगों को सोचना चाहिए डायन भी एक घर छोड़कर चलती है...बीजेपी के लिए अटलजी तो देवपुरूष जैसे हैं।

20 हजार करोड़ का फटका!

सालों से एक परसेप्शन बना है कि सरकारें अधिकांश केस हार जाती है। मगर छत्तीसगढ़ में तो गजबे हो रहा है, जिस मामले का कोई सिर पैर नहीं, उस केस में भी हाई कोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट से सरकार को इसलिए झटका लग गया कि ढंग से न पक्ष रखा गया और न पेपर प्रस्तुत किया गया। मामला शिक्षकों के क्रमोन्नत वेतनमान का है। 2.10 लाख शिक्षकों में से एक महिला शिक्षक क्रमोन्नत वेतनमान के लिए कोर्ट पहुंच गई। महिला शिक्षिका के पति वकील हैं, उन्होंने केस लगा दिया। और फिर इस मामले में सरकार कोर्ट-दर-कोर्ट हारते चले गई। अब आलम यह है कि सभी शिक्षकों को अगर क्रमोन्नत वेतनमान का भुगतान करना पड़ा तो यह करीब 20 हजार करोड़ बैठेगा। याने स्कूल शिक्षा विभाग का चार साल का बजट एक झटके में निकल जाएगा। जाहिर है, 20 हजार करोड़ का फिगर सुन स्कूल शिक्षा विभाग के साथ वित्त विभाग के लोगों के हाथ-पांव फुल गए हैं। सरकार को कायदे से लीगल डिपार्टमेंट पर और इंवेस्ट की जरूरत है...आखिर, सरकारी कामकाज का ये भी एक महत्वपूर्ण पार्ट है।

आईएएस के दो पोस्ट

सामान्य प्रशासन विभाग ने एलॉयड सर्विस कोटे के आईएएस के खाली के हुए दो पदों के लिए आवेदन मंगाया है। अनुराग पाण्डेय और शारदा वर्मा के रिटायर होने के बाद ये दोनों पद खाली हुए हैं। इस समय इस कोटे वाले सिर्फ एक आईएएस गोपाल वर्मा कवर्धा के कलेक्टर हैं। बता दें, आईएएस बनने के लिए तीन रास्ते होते हैं। पहला यूपीएससी क्लियर करके। दूसरा पीएससी में डिप्टी कलेक्टर सलेक्ट होने के करीब 15 साल बाद प्रमोट होकर। और तीसरा रास्ता है अन्य विभागों से मेरिट के आधार पर सलेक्ट होकर। छत्तीसगढ़ में इसके लिए तीन पदों का कोटा हैं। इस कोटे से सबसे पहले आलोक अवस्थी आईएएस बने थे। इसके बाद अनुराग पाण्डेय, शारदा वर्मा और गोपाल वर्मा की लाटरी खुली। यह पहला मौका है कि इस समय एक साथ दो पद के लिए सलेक्शन होना है। इसमें आवेदन करने के लिए छह जून लास्ट डेट है। आमतौर पर सरकार जिसे चाहती है, उसी का सलेक्शन होता है। चीफ सिकरेट्री की अध्यक्षता में स्क्रीनिंग कमेटी नामों को पेनल बनाती है। फिर यूपीएससी में डीपीसी होती है, उसमें सीएस भी एक मेंबर होते हैं। यूपीएससी वाले भी जानते हैं कि एलॉयड सर्विस से आईएएस कैसे बना जाता है, याने सब जाना-समझा मामला होता है। जाहिर है, जिसका पौव्वा भारी होगा, वह आईएएस बन जाएगा। रमन सरकार के दौरान जनसंपर्क के एक अधिकारी का नाम पर लगभग तय हो गया था मगर संघ का पसंद कोई और था, इस चक्कर में किरदार बदल गया। देखना है अब इस बार किन दो अधिकारियों की किस्मत खुलती है।

सचिव स्तर पर ट्रांसफर

सुशासन तिहार के बाद छत्तीसगढ़ में मंत्रालय में कुछ बदलाव किया जाएगा। दरअसल, अंबलगन पी0 और अलरमेल मंगई सेंट्रल डेपुटेशन पर जा रहे। इसके अलावे विपिन मांझी और केएल चौहान का इस महीने रिटायरमेंट है। विपिन सूचना आयोग में सचिव हैं और चौहान बिलासपुर के अपर आयुक्त। वहीं, अंबलगन संस्कृति और पर्यटन विभाग के सचिव थे तो अलरमेल सिकरेट्री लेबर और पंजीयन के साथ लेबर आयुक्त थीं। इन विभागों में सरकार को नई पोस्टिंग करनी होगी। ऐसे में, मंत्रालय सचिव स्तर पर एक आदेश निकलना तय है।

सिकरेट्री की फौज

छत्तीसगढ़ में 2008 से लेकर 2018 तक एक ऐसा भी दौर था, जब सचिव स्तर पर अफसरों का बड़ा टोटा था। आलम यह था कि जूनियर अफसरों को बड़े-बड़े विभाग सौंपे जा रहे थे। मगर सचिवों की अब ऐसी फौज खड़ी हो गई है कि डायरेक्टर और एमडी के पदों पर सिकरेट्री लेवल के आईएएस अधिकारियों को बिठाए जा रहे हैं। जाहिर है, अब च्वाइस की कोई कमी नहीं है। इस समय चीफ सिकरेट्र्री अमिताभ जैन को मिलाकर पूरे 52 सिकरेट्री हैं। इनमें सेंट्रल डुपेटेशन वाले अफसर शामिल नहीं है...अंबलगन और अलरमेल भी नहीं। इसके अलावा जनवरी 2028 तक 2010, 11 और 12 बैच के 29 और आईएएस सिकरेट्री प्रमोट हो जाएंगे। सबसे बड़ा बैच है 2012। 2010 में सात, 2011 में 10 और 2012 में 12 आईएएस हैं। याने जनवरी 2028 में 2012 बैच भी सिकरेट्री बन जाएगा। जबकि, आरआर वालों में रिटायर होने वालों की संख्या दो-तीन से ज्यादा नहीं है। अमिताभ जैन अगले महीने रिटायर होंगे, उनके बाद रेणु पिल्ले 2027 और सुब्रत साहू जुलाई 2028 में। इस तरह से देखा जाए तो जनवरी 2028 में सचिवों की संख्या 75 से उपर पहुंच जाएंगी।

डीजीपी को बोनस नहीं

छत्तीसगढ़ में रिटायर डीजीपी अशोक जुनेजा पहले पुलिस प्रमुख रहे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन के तहत दो साल की पोस्टिंग के फेर में 11 महीने का बोनस मिल गया। दरअसल, डीजीपी का पूर्णकालिक आदेश निकलने में देरी होने की वजह से उन्हें यह फायदा हुआ। वे सितंबर 2021 में प्रभारी डीजीपी बन गए थे। और पूर्णकालिक का आदेश हुआ अगस्त 2022 में। पूर्णकालिक डीजीपी में दो साल का टेन्योर मिलता है। भले ही रिटायरमेंट में छह महीने बचा हो मगर पोस्टिंग डेट से दो साल का कार्यकाल रहता है। ये और बात की...भारत सरकार ने जुनेजा को छह महीने का एक्सटेंशन दे दिया। इसलिए वे फरवरी 2025 में रिटायर हुए। इस तरह उन्हें 11 प्लस छह याने 17 महीने का एक्स्ट्रा लाभ मिल गया। मगर इस समय यूपीएससी से पेनल में दो अफसरों के नाम आए हैं, उन्हें इसका लाभ नहीं मिलेगा। क्योंकि, अगर अरुणदेव गौतम डीजीपी बनते हैं तो उनका करीब दो साल बाद जुलाई 2028 में रिटायरमेंट है। याने वैसे भी दो साल ही बचा है उनके कार्यकाल में। हिमांशु गुप्ता का भी जून 2029 में रिटायरमेंट है। बोनस टाईम का फायदा हिमांशु को भी नहीं होगा। हां अगर राज्य सरकार लेट कर दो महीने बाद पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश निकाले तो फिर गौतम को दो महीने का फायदा मिल जाएगा।

थैंक्स गॉड, जान बची

सुशासन तिहार का टेंशन तो सभी अधिकारियों को था मगर कलेक्टर, एसपी की जान ज्यादा सांसत में थी...न जाने क्या चूक हो जाए, और निबटा दिए जाएं। मुख्यमंत्री ने पहले ही दिन यह कहते हुए डरा दिया था कि कोई भी गड़बड़ी पाई गई तो सीधे कलेक्टर-एसपी सस्पेंड होंगे। मगर सब कुछ गुडी-गुडी निकल गया तो आज शाम इन अफसरों ने थैंक्स गॉड कहा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. यूपीएससी से पेनल आने के बाद पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश निकलने में विलंब की वजह क्या है?

2. क्या ये सही है कि सुशासन तिहार में पुअर पारफर्मेंस की वजह से कुछ कलेक्टरों को बदला जा सकता है?


रविवार, 25 मई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: 500 करोड़ का स्कैम, कलेक्टर की कुर्सी

 तरकश, 25 मई 2025

संजय के. दीक्षित

500 करोड़ का स्कैम, कलेक्टर की कुर्सी

छत्तीसगढ़ में जगह-जगह से मुआवजा घोटाले की खबरें आ रही...कहीं भारतमाला सड़क का मामला है तो कहीं नहर और बिजली प्लांट के लिए भूअर्जन का। दरअसल, इस स्कैम की नींव आज से 11 साल पहले 2014 में डल गई थी। तब रायगढ़ के लारा में एनटीपीसी का प्लांट लग रहा था। धारा 3ए के प्रकाशन के बाद लारा इलाके में जमीनों के बटांकन, खरीदी-बिक्री पर रोक लग गई थी। मगर एक एसडीएम ने चार्ज लेते ही कुछ दिन के लिए रोक हटाई और फिर 300 प्लाटों को 2000 से अधिक जमीनों के ऐसे टुकड़े कर दिए गए कि एनटीपीसी का दिल्ली मुख्यालय भी हिल गया। छोटे टुकड़े करने से एनटीपीसी को 500 करोड़ की चपत लग गई। एनटीपीसी के अफसरों ने रायगढ़ के तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल से बात की। मुकेश ने इसकी जांच कराई और 1300 पेज की रिपोर्ट सरकार को भेज एसडीएम के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुशंसा की। कलेक्टर की रिपोर्ट पर सरकार ने एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल को सस्पेंड कर दिया। कलेक्टर के कहने पर रायगढ़ के तत्कालीन एसपी राहुल भगत ने एसडीएम के खिलाफ अपराध दर्ज कराया। एसडीएम गिरफ्तारी के डर से लंबे समय तक फरार रहे। कई महीने बाद उन्हें हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत मिली। फिर अफसरशाही का कमाल देखिए कि फरारी काटने वाले तीर्थराज राजाबाबू बन लगे मलाईदार पोस्टिंग काटने। इस सरकार में वे एक मंत्री के पीए बन गए। फिर चमत्कारिक रूप से राजस्व विभाग ने उन पर ऐसी मेहरबानी बरसाई कि विभागीय जांच समाप्त करने के साथ ही तीर्थराज को क्लीन चिट दे डाला। असल में, सब प्लानिंग के साथ हुआ। बिना विभाग से बिना डीई खतम किए हाई कोर्ट से केस खतम नहीं होता। और वैसा ही हुआ। बिलासपुर हाई कोर्ट ने तीर्थराज को कल बरी कर दिया। इसमें विभाग द्वारा विभागीय जांच समाप्त कर क्लीन चिट देने को भी आधार बनाया गया है। बहरहाल, हाई कोर्ट में केस होने की वजह से इस साल तीर्थराज को आईएएस अवार्ड नहीं हो पाया...उनके नाम का लिफाफा बंद कर दिया गया है। अगले साल सुब्रत साहू या मनोज पिंगुआ के साथ जीएडी सिकरेट्री रजत कुमार डीपीसी के लिए यूपीएससी जाएंगे...तब तीर्थराज को आईएएस बनने से कोई रोक नहीं पाएगा। मुकेश बंसल और राहुल भगत की आंखों के सामने वे फिर किसी जिले के कलेक्टर बन जाएंगे। तुलसीदासजी ने ठीक ही लिखा है...समरथ को नहीं दोष गोसाई।

ईओडब्लू जांच, अदृश्य आत्माएं

जाहिर है, लारा कांड के बाद सरकार यदि कौवा मारकर टांग दी होती, एसडीएम को फरार और जमानत लेने का टाईम नहीं मिला होता तो अभनपुर, बजरमुंडा, अरपा-भैंसाझाड़ जैसे मुआवजा कांड नहीं होता। अलबत्ता, इनमें से कई की ईओडब्लू जांच का ऐलान हो गया है। मगर सिस्टम अगर लारा मुआवजा कांड की तरह आरोपी अधिकारियों को क्लीन चिट देकर केस खतम कराने में मदद करता रहा तो फिर ईओडब्लू जांच का क्या मतलब? इससे अमरेश मिश्रा एंड उनकी टीम का टाईम ही खराब होगा। जाहिर है, सीजीएमएससी के कई खटराल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में अदृश्य आत्माएं बाधक बन रही हैं। आरआई भर्ती घोटाले की ईओडब्लू जांच भी किधर दबी है, पता नहीं चल रहा। सरकार चाहती हैं कि जीरो टॉलरेंस का नमूना पेश किया जाए मगर भांति-भांति की आत्माएं ऐसा होने नहीं दे रहीं।

भ्रष्टाचार का लायसेंस!

छत्तीसगढ़ का पड़ोसी राज्य तेलांगना ने सुधार की ऐतिहासिक पहल करते हुए कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार कोर्ट को समाप्त कर दिया है। क्योंकि, कोर्ट का फायदा उठा राजस्व अधिकारी वहां भ्रष्टाचार का रायता फैला रहे थे। छत्तीसगढ़ में भी अनेक बार ऐसा हुआ कि राजस्व अधिकारी कोर्ट की आड़ में बच गए। रायगढ़ एसडीएम के केस में भी हाई कोर्ट में इसी केस का हवाला दिया गया। इससे पहले एक और एसडीएम जेल से छूटने के बाद हाई कोर्ट से इसी कोर्ट का हवाला देकर बरी हो गए कि उनकी कोर्ट ने फैसला दिया है, और कोर्ट पर कोई सवाल कैसे खड़ा कर सकता है? मगर सवाल यह है कि अंग्रेजों ने अफसरों का कोर्ट इसलिए बनाया था कि राजस्व वसूली कड़ाई से हो सके। उस समय राजस्व वसूली ही सरकारों को राजस्व प्राप्ति का मुख्य जरिया होता था। अब आप बताइये, लोगों की जमीन लेकर मुआवजा बांटना प्रशासनिक काम है या न्यायिक? ये विशुद्ध रूप से प्रशासनिक काम है। मुआवजे को लेकर भारत सरकार ने एक मॉडल बनाया है। इसके लिए कोर्ट की तरह न कोई गवाही होती, न पक्ष-प्रतिपक्ष का वकील खड़े होते। सरकार और कानूनविदों को इस पहलू पर भी ध्यान देना चाहिए कि ज्यूडिशरी में हर साल गलत फैसलों की वजह से दर्जनों जज बर्खास्त किए जाते हैं। हाई कोर्ट ही उनका आर्डर निकालता है। मगर गलत फैसलों के लिए कितने कमिश्नर, कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदारों पर कार्रवाई होती है। इसका मतलब यह हुआ कि जिम्मेदारी कुछ नहीं, मगर करप्शन में कार्रवाई की तलवार लटके तो कोर्ट को ढाल बनाकर बच जाओ। ऐसा ही रहा तो फिर अभनपुर मुआवजा कांड में सस्पेंड राप्रसे अधिकारी निर्भय साहू और शशिकांत कुर्रे बच जाएंगे, तो अरपा-भैंसाझाड़ कांड में किसानों का मुआवजा फर्जी लोगों को बांट देने वाले एसडीएम भी बख्श दिए जाएंगे।

जीरो टॉलरेंस को पलीता

अरपा-भैंसाझाड़ मुआवजा कांड का जिक्र हुआ तो फिर जीरो टॉलरसें पर भी प्रश्न उठेगा। 1131 करोड़ की इस नहर में अपनों को फायदा पहुंचाने के लिए कागजों में नहर की डिजाइन बदल दी गई। किसानों का मुआवजा फर्जी लोगों को बांट दिया गया। करीब 400 करोड़ के मुआवजा कांड की जांच के लिए सिंचाई विभाग ने ईओडब्ल्ू को लिखा है। मगर यह भी सही है कि बिलासपुर कलेक्टर अवनीश शरण द्वारा कराई गई जांच में दो एसडीएम समेत राजस्व और सिंचाई विभाग के 11 लोग दोषी पाए गए। कलेक्टर ने सरकार को इनके खिलाफ कार्रवाई करने लेटर लिखा। मगर इससे पहले दिसंबर 2023 में सरकार बदलने के दौरान आपाधापी में किधर से कैसी चकरी चली कि दोषी अधिकारियों की लिस्ट में जिस एसडीएम का नाम सबसे उपर लिखा गया है, उसे एक बड़े जिले में आरटीओ की कुर्सी सौंप दी गई। एक तरफ निर्भय साहू और शशिकांत कुर्रे निलंबित हो रहे मगर आरटीओ को पता नहीं किस अदृश्य शक्ति का बरदहस्त प्राप्त है कि उनकी कुर्सी कोई हिला नहीं पा रहा। ऐसी शक्तियां ही सरकार के जीरो टॉलरेंस को पलीता लगा रही हैं।

ई-ऑफिस का खौफ

कामकाज में पारदर्शिता लाने छत्तीसगढ़ सरकार ने फाइलों के लिए ऑनलाईन सिस्टम बना दिया है...मंत्रालय में नोटशीट अब ऑनलाइन दौड़ रहीं हैं। आलम यह है कि सचिवों ने सख्ती बरतते हुए विभाग प्रमुखों से हार्ड पेपर में नोटशीट लेना बंद कर दिया है। बहरहाल, ई-ऑफिस का खौफ इंद्रावती भवन समेत राज्य स्तर के ऑफिसों के मुलाजिमों पर सिर चढ़कर बोल रहा है। असल में, वहां ये बात फैला दी गई है कि सारी नोटशीट दिल्ली स्थित डीओपीटी के सर्वर में जा रही है...डीओपीटी ने छत्तीसगढ़ के खटराल अधिकारियों पर नजर रखने यह सिस्टम शुरू कराया है...नोटशीट में कोई गल्ती हुई कि ईडी, सीबीआई या सीवीसी जांच की तलवार लटक जाएगी। इसका नतीजा यह हुआ कि जब से ई-ऑफिस चालू हुआ है, विभागाध्यक्ष कार्यालयों के अधिकारियों, कर्मचारियों की रात की नींद उड़ गई है....नोटशीट पर अब फूंक-फूंककर टिप्स लिखे जा रहे। हालांकि, अफसरों ने एक रास्ता निकाला है...मंत्रालय भेजी जाने वाली फाइलों में ई-ऑफिस का इस्तेमाल कर रहे मगर अपने नीचे या जिलों को हार्ड पेपर में। मगर जब जिलों में भी ई-ऑफिस चालू हो जाएगा तो फिर अधिकारियों, कर्मचारियों की मुसीबतें और बढ़ जाएगी। जाहिर है, सिस्टम जितना ऑनलाईन होगा, गड़बड़ियां उतनी की कम होगी। पहले बड़ी संख्या में फाइलें गुम जाती थी या दबा दी जाती थीं। ई-ऑफिस में अब ये संभव नहीं है। इससे करप्शन पर भी अंकुश लगेगा। ऐसे में, बरसों से अपने ढर्रे पर काम करने वाले सरकारी मुलाजिमों को तकलीफ तो होगी ही।

ई-टेंडरिंग की तोड़

छत्तीसगढ़ में ई-ऑफिस अभी शुरू हुआ है मगर ऑनलाइन टेंडर 2015 से चल रहा है। तब इसकी जरूरत इसलिए महसूस की गई कि खासकर, बड़े टेंडरों में मसल पावर वाले ठेकेदार धमकी, रंगदारी दिखा दूसरों को टेंडर भरने नहीं देते थे। इसलिए रास्ता निकाला गया कि ठेकेदार घर बैठे टेंडर प्रॉसेज में हिस्सा ले सके। इसके बाद सरकारी खरीदी के लिए जेम पोर्टल प्रारंभ किया गया। मगर अब इसकी भी तोड़ ढ़ूंढ ली गई है। सप्लायरों का इंटेलिजेंस इतना तगड़ा है कि स्टेट ऑफिस से उन्हें मालूम चल जाता है कि किस जिले या विभाग के लिए किस चीज की खरीदी के लिए कितना बजट स्वीकृत हुआ है। इसके बाद संबंधित ऑफिस से संपर्क कर टेंडर में ऐसा खास क्लॉज ऐड कर दिया जाता है, जो औरों के पास नहीं हो। फिर अधिकांश सप्लायरों ने दो-दो, तीन-तीन फर्जी कंपनी बना रखी है। योजनाबद्ध तरीके से एक ही सप्लायर अलग-अलग नाम से बनी अपनी तीनों कंपनियों से टेंडर भरता है, और एल1 के आधार पर उसे काम मिल जाता है। सीजीएमएससी में बहुचर्चित स्कैम में मोक्षित कारपोरेशन ने भी यही किया और बाकी विभागों मेंं भी यही चल रहा है। कई बार जिलों के ऑफिसों को पता नहीं होता कि उनके लिए कितना बजट मिला है और सप्लायर लिस्ट लेकर उनके पास पहुंच जाते हैं। सरकार इसे अगर संज्ञान लेकर इस सिस्टम के पोल को अगर ठीक कर लें तो खजाने का करोड़ों रुपए बचेगा, जो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जा रहा।

जिले का भगवान मालिक

जीपीएम कलेक्टर के लिए वह शर्मनाक दिन रहा...जब विष्णुदेव साय जैसे विनम्र मुख्यमंत्री को समाधान शिविर में तल्खी के साथ यह कहना पड़ गया कि तीन थाने का जिला भी नहीं संभल पा रहा, तो क्या मतलब। जीपीएम की तरह का छत्तीसगढ़ का एक मॉडल जिला है गरियाबंद। वहां के कलेक्टर भी सुप्रीम कोर्ट से स्टे वाले हैं...पीएससी 2003 बैच वाले। और उनके राम मिलाए जोड़ी जिला पंचायत के गैर आईएएस सीईओ...नायब तहसीलदार कैडर वाले। बड़ा सवाल है...ऐसे अफसरों से सरकार की नैया कैसे पार हो पाएगी?

बस्तर पोस्टिंग का क्रेज?

बस्तर कभी अकेला जिला होता था। बाद में कांकेर बना। फिर दंतेवाड़ा। नक्सलवाद चरम पर पहुंचा तो कोंडागांव, नारायणपुर, सुकमा और बीजापुर जिला अस्तित्व में आया। याने एक से बढ़कर सात जिला। जबकि, आबादी और काम की दृष्टि से देखें तो बस्तर चार जिले लायक भी नहीं। मगर संवेदनशीलता की वजह से सातों जिले के अपनी अहमियत थी और बस्तर पोस्टिंग का अपना क्रेज भी। मगर अब जब नक्सलवाद आखिरी सांस गिन रहा तब यह सवाल मौजूं है कि छोटे जिलों का क्या? बस्तर के ग्रामीण थानों में महीने में एकाध रिपोर्ट दर्ज नहीं हो पाती। क्योंकि, आदिवासी बड़े सरल और सहज होते हैं, वहां क्राइम के नाम पर सिर्फ नक्सली हिंसा की रिपोर्ट ही दर्ज हो पाती थीं। जाहिर है, बस्तर की पोस्टिंग का क्रेज अब कम होगा। अभी तक नक्सलवाद के नाम पर कलेक्टर, एसपी को बेहिसाब पावर और पैसे मिलते थे। कलेक्टरों को बड़ी राशि केंद्र से आती थी। तो निर्माण कार्यों का मोटा कमीशन कलेक्टर, एसपी को जाता था। आईजी को महीने का सात लाख और एसपी को हर महीने पांच लाख नगद...जिसका कोई हिसाब नहीं। नेशनल मीडिया में एक्सपोजर मिलता था, सो अलग। मगर अब सरकार ने अगर टूरिस्ट डेस्निशन बना दिया तब भी बस्तर पोस्टिंग का वैसा क्रेज नहीं रहेगा, जैसा अभी तक था। हालांकि, विष्णुदेव सरकार ने पत्रकार हत्याकांड के बाद कलेक्टर और एसपी का टेंडर करने का अधिकार समाप्त कर ऑनलाइन कर दिया है। फिर बस्तर पोस्टिंग की बात कुछ और थी।

निशाने पर अफसर या मंत्री?

छत्तीसगढ़ बीजेपी के एक पुराने नेता ने एक आईएएस अधिकारी के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकल लेवल पर सोशल मीडिया में चलवाया ही, लेटर प्रधानमंत्री कार्यालय तक भेज दिया है। ब्यूरोक्रेसी इससे हतप्रभ है और उस अफसर को जानने वाले लोग भी। इसलिए, क्योंकि आईएएस अफसर की ऐसी छबि नहीं। दरअसल, यह सीनियर नेता के कंधे पर बंदूक रखकर किसी और को निशाना बनाने जैसा मामला है। निशाने पर अफसर नहीं, मंत्री बताए जा रहे हैं। मंत्री को घेरने की चौतरफा कोशिशें हो रही हैं। चारों तरफ आदमी लगा दिए गए हैं कि कोई पोल मिले और मंत्री को निबटाया जाए। ठीक है...सियासत में एक-दूसरे को घेरना, कमजोर करना कोई नई बात नहीं, मगर इसमें अफसरों को नहीं लपेटना चाहिए।

रुमाल प्रबल की, पोस्टिंग राव की

राज्य सरकार ने लाल बत्ती की एक दूसरी लिस्ट और जारी कर दी। इसके बाद अब मार्कफेड छोड़ लगभग सारे बड़े बोर्ड और निगमों के चेयरमैन के पद भर गए हैं। इसमें सबसे मलाईदार कारपोशन ब्रेवरेज में श्रीनिवास राव मद्दी की पोस्टिंग लोगों को चौंकाई। इस पद के लिए प्रबल प्रताप सिंह जूदेव की चर्चा चल रही थी। मगर आश्चर्यजनक तौर पर उनका नाम कट गया। श्रीनिवास राव बस्तर से ताल्लुकात रखते हैं। सुभाष राव के बाद वे दूसरे दक्षिण भारतीय नेता होंगे, जिन्हें मलाईदार पद से नवाजा गया है। रमन सिंह की पहली पारी में सुभाष राव को हाउसिंग बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था। श्रीनिवास की पोस्टिंग को सियासी पंडित किरण सिंहदेव को मंत्री न बनाए जाने से जोड़कर देख रहे हैं। बीजेपी के लोग भी यह मान रहे कि श्रीनिवास को सिंहदेव के कोटे से ब्रेवरेज की कुर्सी सौंपी गई है।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. राज्य सरकार ने केदार गुप्ता की दुग्ध संघ चेयरमैन की पोस्टिंग बदलकर अपेक्स बैंक की कैसे कर दी?

2. यूपीएससी से डीजीपी का पेनल आ जाने के बाद भी पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश न निकाल सरकार अरुणदेव गौतम का बीपी क्यों बढ़ा रही है?


रविवार, 18 मई 2025

Chhattisgarh Tarkash: रायपुर राजधानी या कस्बा?

 तरकश, 18 मई 2025

संजय के. दीक्षित

रायपुर राजधानी या कस्बा?

पड़ोसी राज्य ओड़िसा को गरीब राज्य माना जाता है, मगर वहां की राजधानी भुवनेश्वर को देखकर लगता है अपना रायपुर 50 साल पीछे है। दरअसल, 25 साल में रायपुर को राजधानी बनाने, जिस तरह से सिस्टम डेवलप करना था, वो हुआ नहीं। दो-चार सड़कों का चौड़ीकरण कर सिस्टम ने वाहवाही लूट ली। आज भी रायपुर में कहीं आगजनी की घटना हो जाए, तो फायर ब्रिगेड के पास बीएसपी और सीमेंट प्लांटों का मुंह ताकने के अलावा कोई चारा नहीं, क्योंकि फायर ब्रिगेड के पास अपना कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। तीन साल पहले गोलबाजार के होटल में आग लगी तो दमकल पहुंचता, उससे पहले दो लोगों की मौत हो चुकी थी। रायपुर में सिविल डिफेंस सिस्टम का हाल पूछिए मत। पाकिस्तान के साथ तनाव के दौरान भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ के रायपुर समेत छह शहरों को मॉक ड्रील के लिए चुना। मगर सिर्फ भिलाई में इसकी खानापूर्ति हो सकी, क्योंकि सिस्टम में बैठे लोगों ने सिविल डिफेंस की कभी सुध नहीं ली। दूसरे राज्यों में जगह-जगह मॉक ड्रील हुआ और राजधानी रायपुर के लोग ताकते रह गए। पिछड़ा राज्य कहे जाने वाले झारखंड के जमशेदपुर पिछले दिनों जाना हुआ। वहां गाड़ी के ड्राईवर ने सीट बेल्ट लगाने कहा तो मैं चौंक गया। वहां बाइक में पीछे बैठे लोग भी हेलमेट लगाए हुए थे। मगर अपने रायपुर में...छत्तीसगढ़ियां, सबले बढ़िया। तेलीबांधा थाने के पास आईआईएम की छात्रा ट्रक के नीचे आकर जान गंवा बैठी। मगर हेलमेट लगाने की बात आएगी, तो पुलिस की वसूली शुरू हो जाएगी या फिर पुलिस के पास रायपुर के भईया लोगों का फोन आने लगेगा। रायपुर के लोग एयर कनेक्टिविटी पर गर्व कर सकते हैं, मगर वो भी कोल, स्टील और आयरन इंडस्ट्रीज की वजह से हुआ, उसमें सिस्टम का कोई रोल नहीं।

जोगी का विजन और स्काई वॉक

रायपुर का विवादास्पद स्काई वॉक को फिर से बनाने का फैसला एक तरह से कहें तो राजधानी को कस्बा बनाने जैसा ही है। 50 करोड़ फूंकने के बाद फिर से 37 करोड़ की स्वीकृति देना नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा पैसे में आग लगाने जैसा ही माना जाना चाहिए। सिस्टम को किसी की जिद की पूर्ति करने से पहले एक सर्वे करा लेना था कि वाकई इसकी जरूरत है क्या। मेरा दावा है कि कैबिनेट के न तो एक मंत्री इसके पक्ष में होंगे, न एक आईएएस अधिकारी। रायपुर के शास्त्री चौक पर खड़े 100 लोगों से उसकी उपयोगिता पूछ ली जाए, तो सभी एक ही जवाब देंगे, इस पर कौन चढ़ेगा? यह गंजेरी, भंगेरी और लड़के-लड़कियों के लंपटई का अड्डा बन कर रह जाएगा। ऐसे में अजीत जोगी की याद आती है। छत्तीसगढ के विकास के स्वप्नद्रष्टा जोगीजी ने तेलीबांधा से लेकर टाटीबंध और शास्त्री चौक से लेकर स्टेशन चौक तक फ्लाई ओवर बनाने का ड्राइंग-डिजाइन तैयार करा लिया था। उन्होंने सीजी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन को इसे बनाने का दायित्व सौंपा था। मुझे आज भी याद है....2004 में सीआईडीसी के तत्कालीन एमडी आईसीपी केसरी ने मुझसे कहा था, हमलोग फ्लाई ओवर का टेंडर करने जा रहे हैं। मगर पता नहीं किधर से चकरी चली कि इस पर ब्रेक लग गया। ये जरूर है कि जीई रोड के व्यापारी इसके विरोध में थे। वे नहीं चाहते थे कि फ्लाई ओवर से उनका बिजनेस मार खाए। असल में, एक परसेप्शन है कि फ्लाई ओवर बनने से उस इलाके में 30 परसेंट बिजनेस कम हो जाता है। इसलिए, रायपुर के भाई साहबों ने स्काई वॉक का ऐसा इंतजाम कर दिया कि भविष्य में कभी फ्लाई ओवर की गुंजाइश ही न रहे। जनता की गाढ़ी कमाई को पानी में बहाने से पहले नगरीय प्रशासन विभाग को एक बार और विचार करना चाहिए।

सम्मानजनक विदाई

बजट सत्र से पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने जिस गति से मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति की फाइलें दौड़ाई थीं, उससे लोगों को लगा था कि मुख्य सचिव स्तर पर समय से पहले बदलाव हो सकता है। मगर अब उनके एराइवल अधिकारियों ने भी मान लिया है कि जून से पहले कोई मौका नहीं है। अमिताभ जैन अब चार साल आठ महीने का कार्यकाल पूरा कर 30 जून को विदा होंगे। जाहिर है, यह एक बड़ा रिकार्ड होगा, जिसे तोड़ना किसी सीएस के लिए मुश्किल होगा। छत्तीसगढ़ बनने के बाद कोई मुख्य सचिव फोर ईयर क्लब में शामिल नहीं हुआ। विवेक ढांड चार साल पूरे होने के 20 दिन पहले अपना विकेट गंवा बैठे थे। पी0 जॉय उम्मेन भी करीब सवा तीन साल सीएस रहे। अमिताभ के साथ एक प्लस यह है कि उम्मेन और ढांड एक ही सरकार में आउट हो गए, मगर अमिताभ दो सरकारों में रहे और अभी भी पिच पर मुस्तैदी से टिके हुए हैं। बहरहाल, ब्यूरोक्रेसी में उत्सुकता इस बात की है कि सम्मानजनक विदाई के साथ अमिताभ को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग क्या मिलेगी। तीन साल वाला सीआईसी की कुर्सी या कोई और प्रतिष्ठित, ग्लेमरस पोस्टिंग? इसका जवाब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ही दे पाएंगे। वैसे, मई की गरमी में अमिताभ जैन सीएम के साथ पसीना बहाते देखे जा रहे, उससे लगता है कि कुछ बढ़ियां ही होगा।

गृह मंत्री का दिल्ली दौरा

पाकिस्तान के साथ तनाव जब चरम पर था, तब बस्तर में एनकाउंटर की खबरें मीडिया की सुर्खिया बनी थी। लेकिन दिल्ली से पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि गृह मंत्री विजय शर्मा को नक्सलियों के एनकाउंटर की खबरों का खंडन करना पड़ गया। हालांकि, उसके बाद सीआरपीएफ के डीजी दिल्ली से आए और प्रेस कांफ्रेंस कर 31 नक्सलियों के मारे जाने का खुलासा किया। खैर, युद्धकाल में देश के भीतर एनकाउंटर...गृह मंत्री का खंडन...ये संवेदनशील मसला है...इस पर फिलहाल नो कमेंट्स। मगर छत्तीसगढ़ के मीडिया के लिए ये हैरान करने वाला रहा कि नक्सलियों से मुठभेड़ में सीआरपीएफ के कुछ जवान जख्मी हुए...एयरलिफ्ट कर उन्हें कब दिल्ली ले जाया गया, किसी को पता नहीं चला। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उन्हें देखने जब एम्स पहुंचे, तब इसकी जानकारी पब्लिक डोमेन में आई। हालांकि, सियासी गलियारों में हैरान करने वाला गृह मंत्री विजय शर्मा की फोटो भी रही। फोटो में अमित शाह के साथ विजय शर्मा को देख लोग चौंक पड़े...सबके मुंह से बरबस यही निकला, ये कैसे हुआ? विजय शर्मा क्या अमित शाह के इतने क्लोज?

15 महीने में 57 दौरा

बस्तर से नक्सलियों का सफाया करना भारत सरकार के कितने प्रायरिटी में है कि केंद्रीय गृह मंत्री पिछले एक साल में चार बार बस्तर का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने एक बार सीआरपीएफ के कैंप में भी रात्रि विश्राम भी किया। वैसे, बस्तर का दौरा करने में सीएम विष्णुदेव साय ने अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों को पीछे छोड़ दिया है। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के 15 महीने में विष्णुदेव साय 57 बार बस्तर जा चुके हैं। हालांकि, पहले के सीएम भी बस्तर जाते थे...26 जनवरी को झंडारोहन के लिए बस्तर निश्चित था। मगर महीने में चार बार बस्तर का दौरा, ऐसा पहले नहीं हुआ। दरअसल, इसकी एक वजह यह भी है कि नक्सलियों के सफाए का डेडलाइन तय करने के साथ ही केंद्र बस्तर के डेवलपमेंट को लेकर गंभीर है। इसको देखते राज्य सरकार टूरिज्म और इंडस्ट्रीलाइजेशन का रोडमैप तैयार कर रही है। पिछले महीने सीएम दो दिन इसी काम को लेकर बस्तर में कैंप किए थे।

छुट्टियों पर ब्रेक

छत्तीसगढ़ में अनगिनत सरकारी छुट्टियों से सिस्टम कॉलेप्स होता जा रहा है। सरकारी ऑफिसों में कामकाज ठप्प हो रहा तो स्कूलों के कोर्स कंप्लीट नहीं हो पा रहे। प्रायवेट स्कूल एसोसियेशन ने सरकार को ज्ञापन दिया था, जिसमें बताया गया था कि छुट्टियों के चलते किस तरह कोर्स प्रभावित हो रहा है। इसके लिए पिछली सरकार के समय छुट्टियों में क्लास लगाने की अनुमति मांगी गई मगर इसमें कुछ हुआ नहीं। बहरहाल, फाइव डे वीक से सबसे अधिक नुकसान होता है जब किसी सप्ताह शुक्रवार या सोमवार को छुट्टी पड़ जाए। इस चक्कर में तीन दिन सब कुछ बंद। पिछले हफ्ते 10 और 11 मई को सैटर्ड और संडे था, इसके अगले दिन सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा। याने लगातार तीन दिन छुट्टी। इससे पहले पिछले महीने 11 दिन में सात छुट्टियां रहीं। 10 अप्रैल को महावीर जयंती, 12 और 13 को सर्टडे, संडे। फिर 14 को आंबेडकर जयंती, 18 को गुड फ्रायडे, 19, 20 मई को सैर्टडे, संडे। गुड गर्वर्नेंस पर काम कर रही सरकार ऐसे में चिंतित है। सुनने में आ रहा कि सरकार छुट्टियों में कटौती करने पर विचार कर रही है। हो सकता है, सभी सैटर्डे की बजाए पहले की तरह सेकेंड और थर्ड सैटर्डे को छुट्टी वाला रुल फिर से लागू कर दिया जाए।

कलेक्टरों को वार्निंग

गुड गवर्नेंस के तहत छत्तीसगढ़ सरकार अफसरों को टाईम पर ऑफिस आने ताकीद कर रही थी, जनवरी में जीएडी से कलेक्टर, एसपी के लिए जिलों में दौरे करने के निर्देश जारी हुए थे। मगर सरकार की नोटिस में ये बात आई है कि 80 परसेंट कलेक्टर घर और ऑफिस से बाहर नहीं निकल रहे। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इसको लेकर नाराज बताए जा रहे हैं। राजनांदगांव की समीक्षा बैठक में उनके भीतर की बातें जुबां पर आ गई। उन्होंने कलेक्टरों, कमिश्नरों से फिर कहा कि अपने इलाकों के दौरे में कोताही न करें। सीएम ने सख्त लहजे में इन दोनों प्रशासनिक अधिकारियों को चेताया कि कोर्ट को तभी केंसिल करें, जब कोई बेहद अर्जेंट वर्क हो। जाहिर है, पिछले हफ्ते इसी तरकश स्तंभ में हमने कलेक्टरों के कोर्ट के प्रति बेरुखी का जिक्र किया था। अधिकांश कलेक्टर इन दिनों राजस्व के मामले अपर कलेक्टरों को सौंप दे रहे हैं। चलिये, सीएम की तल्खी से शायद अब कलेक्टर और कमिश्नरों की कोर्ट में लंबित प्रकरणों की अब सुनवाई में तेजी आए।

कलेक्टर लांचिंग पैड

रायपुर विकास प्राधिकरण का गठन 2004 में हुआ था। इसके सीईओ का पोस्ट आईएएस के लिए तय किया गया। अमित कटारिया दो अलग-अलग टेन्योर में करीब तीन साल तक सीईओ रहे। अभिजीत सिंह भी आरडीए में रिपीट हुए। मगर 2018 के बाद पता नहीं, इस कुर्सी को कौन सा ग्रहण लगा कि कोई अफसर वहां टिक नहीं पा रहा। इस सरकार के सवा साल में अब तक चार सीईओ बदल चुके हैं। जनवरी 2024 में पहली लिस्ट में धमेंद्र साहू कलेक्टर बनकर गए तो उनकी जगह प्रतीक जैन को बिठाया गया। वे 10 महीने रहे। उनके बाद 14 जनवरी को कुंदन कुमार सीईओ बने। कुंदन तीन महीने में मुंगेली कलेक्टर बनकर चले गए। सरकार ने अब आकाश छिकारा को नया सीईओ बनाया है। वैसे धमेंद्र साहू से पहले अभिजीत सिंह पांच महीने, नरेंद्र शुक्ला सात महीना, प्रभात मलिक चार महीना, भीम सिंह छह महीना, ऋतुराज रघुवंशी चार महीना, अभिजीत सिंह दूसरी बार तीन महीना और चंद्रकांत वर्मा दो महीना सीईओ रहे हैं। आरडीए की पोस्टिंग की खास बात यह है कि अधिकांश सीईओ यहां से कलेक्टर बनकर निकले। अमित कटारिया रायगढ़ का कलेक्टर बनकर गए थे। इस फेहरिश्त में ऋतुराज रघुवंशी, प्रभात मलिक, अभिजीत सिंह, चंद्रकांत वर्मा, कुंदन कुमार, धमेंद्र साहू और प्रतीक जैन शामिल हैं। इन सभी के लिए आरडीए की पोस्टिंग शुभ रही थी। ऐसे में, आकाश छिकारा को नाउम्मीद नहीं होना चाहिए।

दूसरा मोक्षित

छत्तीसगढ़ को हिलाकर मोक्षित जेल चला गया तो क्या हुआ, सीजीएमएससी के खटराल अधिकारियों ने दूसरा मोक्षित ढूंढ लिया है। राजधानी रायपुर के पड़ोसी जिले के इस कंपनी को मोक्षित की जब चलती रहे तो उसने उसे फटकने नहीं दिया। मगर वह जेल चला गया तो सीजीएमएससी में उसकी इंट्री हो गई। पता चला है, पिछले दो-तीन महीने में 80 से 90 परसेंट सप्लाई का काम इसी कंपनी को दिया गया है। कारस्तानियों का मोड भी वही है, जिसके लिए सीजीएमएससी बदनाम हुआ है। अब आप कहेंगे...ईओडब्लू जांच! तो दो-दो आईएएस के जेल जाने के बाद क्या छत्तीसगढ़ में करप्शन रुक गया? सरकार की चेतावनी के बाद 1.20 लाख के पीएम आवास में 25 हजार घूस का मामला हाल ही में पकड़ा गया। कुल मिलाकर कहा जाए तो सीजीएमएससी के सिस्टम में करप्शन का वायरस घूस गया है। अब ईओडब्लू आ जाए या ईडी, सीबीआई...वायरस को क्या फर्क पड़ने वाला है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. वो कौन सी अदृश्य शक्तियां है, जो सूबे के कई खटराल और बदनाम अफसरों के लिए कवच बन जा रही?

2. वो कौन से मंत्री हैं, जिन्होंने वसूली के लिए आरगेनाइज सिस्टम तैयार कर लिया है?

शनिवार, 10 मई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: प्रशासनिक सर्जिकल स्ट्राईक

 


तरकश, 11 मई 2025

संजय के. दीक्षित

प्रशासनिक सर्जिकल स्ट्राईक

कुछ दिन पहले कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों के ट्रांसफर में सरकार ने एकाध सर्जिकल स्ट्राईक किया था। दीगर राज्य के एक बड़े नेता की सिफारिशी कलेक्टर की हरकतें जब सीमा को लांघने लगी तो सरकार ने उनकी छुट्टी कर दी। मगर टारगेट अभी भी कई हैं। सूबे में ऐसे अफसरों की कमी नहीं, जो सिफारिशों के बल पर अंगद की तरह कुर्सी पर जमे हुए हैं। किसी के लिए इस राज्य के नेता का फोन आता है, तो किसी के लिए फलां स्टेट से। पिछली कांग्रेस सरकार में एक महिला आईएएस ने दिल्ली बीजेपी के एक ऐसे बड़े आदमी से फोन कराया कि विरोधी सरकार होने के बाद भी कोई आह-उंह नहीं हुआ...स्टेट में ज्वाईनिंग का नियम तोड़ सरकार ने चुपके से ऐसे आर्डर निकाल दिया कि किसी को पता नहीं चल पाया। जबकि, ऋतु सेन को छत्तीसगढ़ आकर ज्वाईन करना पड़ा, फिर उन्हें दिल्ली में पोस्टिंग मिली। आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, ये सभी सर्विसों में हो रहा है...अफसर परिस्थितिजन्य फायदा उठा रहे हैं। कायदे से तगड़ा सर्जिकल स्ट्राईक की जरूरत है। सरकार जब तक योग्य और काबिल लोगों की फील्ड में पोस्टिंग नहीं करेगी, तब तक उसके गुड गवर्नेंस का मिशन पूरा नहीं होगा। सिफारिशी पोस्टिंग वाले 10 परसेंट अधिकारी ही सरकार के सिस्टम को पलीता लगा रहे हैं।

पीएचक्यू का टॉलरेंस

भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान मानपुर-मोहला पुलिस ने पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के फौजी के छोटे भाई को इसलिए दो दिन थाने में बिठा लिया कि उसे एक लाख रुपए रिश्वत नहीं मिला। मामला छत्तीसगढ़ से खेती-किसानी के लिए एक जोड़ी बैल खरीदकर ले जाने का था। मोहला-मानपुर पुलिस ने मवेशी तस्करी का केस बनाने की धमकी देकर उसे हिरासत में ले लिया। इस बीच पीड़ित युवक की मां चल बसी...अंत्येष्टि में टाईम पर गांव नहीं पहुंच पाने पर लोगों का गुस्सा भड़क गया। बात महाराष्ट्र से होते हुए छत्तीसगढ़ के पुलिस मुख्यालय तक पहुंची। अफसरों ने मानपुर-मोहला के बड़े अफसर को फोन लगाकर पूछा, तो उनका जवाब हैरान करने वाला था। जिले के अफसर ने कहा...सर, रिश्वत की रकम वापिस हो गई है तो अब क्या कार्रवाई की जाए। पीएचक्यू नाराज हुआ, तब जाकर अफसर ने अपने प्रिय वसूलीबाज थानेदार को सस्पेंड किया। याने दूसरे राज्य में छत्तीसगढ़ का नाम खराब करने की सजा सिर्फ थानेदार का निलंबन। इससे ज्यादा पीएचक्यू कुछ कर भी नहीं सकता। कौवा मारकर टांगने का पावर उसके पास है नहीं। कुछ एक्सट्रा रसूखदार केस में सिस्टम भी हाथ खड़ा कर देता है। ऐसे में फिर पोलिसिंग की बात करना बेमानी है।

कप्तान....पानी-पानी

इस सरकार में पुलिस मुख्यालय के अफसरों को कम-से-कम इस बात का फ्रीडम मिला है कि वे पुलिस अधिकारियों को आईना दिखा सकते हैं। इस मौके का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। पीएचक्यू के प्रेशर में 200 करोड़ का वाहन घोटाले पर नकैल कसा गया है। पिछले दिनों एसपी कांफ्रेंस में खुफिया चीफ अमित कुमार ने एसपी लोगों से दो टूक कहा कि न मैं और न डीजीपी साब...किसी ने एक टीआई की नियुक्ति को लेकर फोन किया होगा। तुमलोग अपने मन से थानेदारों की नियुक्ति कर रहे हो...फिर क्राईम काब में क्यों नहीं आ रहा। इस पर एसपी लोग बगले झांक रहे थे।

भावी CS एसी में और बेचारे...

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के साथ मुख्य सचिव अमिताभ जैन भी सुशासन तिहार में लगातार जा रहे हैं। अमिताभ के रिटायरमेंट में अब बमुश्किल 40 दिन बच गए हैं। ऐसे में, बेचारे का मई की गरमी में घूमना लोगों को इसलिए खटक रहा कि जिनको उनके बाद प्रदेश की प्रशासनिक कमान संभालनी है, वे मंत्रालय के एसी कमरों में बैठे हुए हैं और जो पिछले पांच साल में ऐसे कई दौरे कर चुके हैं, वे जाते-जाते तपती धूप का सामना कर रहे हैं। हालांकि, सरकार की भी मजबूरी है। जिन्हें चीफ सिकरेट्री बनाना है, उसे लेकर सीएम अपने साथ घूमने लगे तो फिर सारा कुछ पहले ही एक्सपोज हो जाएगा। फिर भी, नए सीएस के लिए यह अच्छा मौका था...प्रदेश की जमीनी हकीकत से वाकिफ होने का...सारे कलेक्टरों का नब्ज भी उन्हें पता चल जाता। अब 30 जून को जो नया मुख्य सचिव बनेगा, उनको क्या पता रहेगा कि सीएम का ये 36 पेज वाला एजेंडा क्या है और कलेक्टरों ने इसमें क्या रिस्पांस दिया है।

खाता-बही वाले मंत्रीजी

खरीदी-सप्लाई का हिस्सा न पहुंचने से पीए ने मंत्रीजी को चुगली कर दी...साब जिले वाला एजेंट पैसा दबा दे रहा है। फिर क्या था...मंत्रीजी ने राजनांदगांव के अधिकारियों को बुला लिया। फिर उनके सामने खाता-बही खोलकर बैठ गए...इतने की खरीदी हुई तो फिर इसका 15 परसेंट पहुंचाए क्यों नहीं? अधिकारी बेचारे गिड़गिड़ा रहे थे...सर, टेंडर नियम से हुआ है...इसमें कुछ मिलता नहीं...मगर मंत्रीजी मानने के लिए तैयार नहीं थे...दो टूक धमकी दे डाले...ऐसा नहीं चलेगा। दरअसल, मंत्रीजी सभी जिलों में एक-एक प्रायवेट वसूली एजेंट नियुक्त कर रखे हैं। इस वजह से पीए कसमसा रहे हैं। इस वजह से मंत्री के पीए और एजेंटों में टकराव की स्थिति निर्मित होती जा रही है। सही भी है...पेट की चोट पीए लोग कैसे बर्दाश्त करेंगे।

समझदार मंत्री, समझदार अफसर

होशियार मंत्री और अफसर अपने स्टॉफ की नियुक्ति के मामले में बड़े चौकस रहते हैं। वे तगड़ी स्क्रीनिंग के बाद अपने पीए अपाइंट करते हैं। रमन सरकार के दौरान दो मंत्री इस मामले में हमेशा अलर्ट रहे तो पिछली कांग्रेस सरकार में किसी भी मंत्री ने इस महत्वपूर्ण बिंदु पर ध्यान नहीं दिया। इस सरकार की, तो 10 में से सिर्फ एक मंत्री ऐसे हैं, जिनके स्टॉफ को अहम मामलों की भनक नहीं लग पाती। अफसरों के साथ भी यही है। ब्यूरोक्रेसी में जो अफसर स्टडी नहीं करता, उन्हें पीए अपने इशारों पर नचाते हैं। कई नौकरशाहों के पीए ऐसी फाइलों पर हस्ताक्षर करा लेते हैं, जिसमें जांच हो जाए तो जेल जाने से उन्हें कोई बचा नहीं पाएगा। फिर दूसरा इंपोर्टेंंट यह कि पीए लोगों से कनेक्ट होने में सबसे बड़े ब्रेकर होते हैं। वे मंत्री या अफसर से आसानी से मिलने नहीं देंगे। अगर मंत्री या अफसर से आपको बिना किसी अवरोध के मिलना है तो उसका एक ही उपाय है...पीए की खुशामद के साथ कुछ चढ़ावा चढ़ाते रहिये।

पीए की ऐसी छुट्टी

बात निकली पीए के ब्रेकर बनने की, तो एक पुरानी घटना जेहन में आ गई। बात नवंबर या दिसंबर 2011 की होगी। सुनिल कुमार उसी समय लंबे डेपुटेशन से दिल्ली से रायपुर लौटे थे, या यों कहें बुलाए गए थे। थोड़े दिन के लिए वे यहां एसीएस स्कूल शिक्षा रहे। इसके बाद जनवरी 2012 में वे पी जाय उम्मेन के हटने के बाद सीएस बन गए थे। बहरहाल, बात मुद्दे की। सुनिल कुमार से पुरानी जान-पहचान थी, ज्वाईनिंग के बाद एकाध मुलाकात हो चुकी थी। उसके बाद एक दिन मैंने उनसे मिलने के लिए फोन लगाया, उन्होंने मुझे शाम पांच बजे का टाईम दिया। नियत टाईम पर पुराने मंत्रालय पहुंच कर उनके पीए को मैंने अपना विजिटिंग कार्ड दिया। पीए के रिप्लाई से मैं सोच में पड़ गया...सुनिल कुमार तो ऐसे नहीं करते। पीए ने स्पष्ट तौर से कहा...साब अभी मीटिंग में हैं, अभी नहीं मिल सकते। मैं बरामदे में खड़ा होकर कुछ देर सोचा। फिर तय किया कि उन्हें कम-से-कम सूचित कर दूं कि मैं टाईम पर मंत्रालय पहुंच गया था। उन्हें फोन कर बताया, मैं मिलने आया था...मेरा वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि वे बोले...आइये, अंदर आ आइये। भीतर गया तो देखा कोई मीटिंग नहीं। वे किसी फाइल को पढ़ रहे थे। कुछ देर बैठने के बाद मैं पीए के बारे में बताया...सुनकर वे आवाक रह गए। उस समय पीए को बुलाकर वे डांटे या नहीं, इसे मैं रिकॉल नहीं कर पा रहा मगर अगले दिन पता चला कि पीए की वहां से छुट्टी हो गई। जाहिर है, पीए ने वह हरकत नहीं की होती तो वो सुनिल कुमार के साथ मुख्य सचिव सचिवालय भी गया होता। सार यह है कि पीए अगर आपने ढंग का नहीं रखा तो फिर आपको वो अलोकप्रिय बना देगा। क्योंकि, हर आदमी अफसर या मंत्री से पीए की शिकायत कर नहीं पाता।

32 की जगह चार

रमन सिंह सरकार के दौर में आईएफएस अफसरों का स्वर्णिम दौर रहा। तब एक समय 32 आईएफए डेपुटेशन में राज्य सरकार में विभिन्न बोर्ड और कारपोरेशनों को संभाल रहे थे। रमन सिंह की दूसरी पारी में सुब्रमणियम सिकरेट्री टू सीएम की कुर्सी तक पहुंच गए थे। नया रायपुर को बनाने वाले एसएस बजाज भी आईएफएस थे। अनिल राय लंबे समय तक पीडब्लूडी सिकरेट्री रहे तो राकेश चतुर्वेदी, संजय शुक्ला, स्व0 देवेंद्र सिंह और सुनील मिश्रा भी कई अहम पदों पर रहे। मगर अब आलम यह है कि यह संख्या चार पर सिमट गई है। अरुण प्रसाद मेंबर सिकरेट्री पौल्यूशन बोर्ड, जगदीशन डायेक्टर हार्टिकल्चर, विवेक आचार्य एमडी टूरिज्म और कल्चर तथा विश्वेष कुमार एमडी सीएसआईडीसी। दरअसल, अब आईएएस में डायरेक्टर, एमडी लेवल के अफसरों पर संख्या काफी बढ़ गई है। उधर, आईएफएस में भी उस तरह के अफसर बचे नहीं, जिनका काम अच्छा हो और राज्य सरकार में कनेक्शन भी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. वो कौन सी खास वजह है कि दूरस्थ और छोटे जिले बोर्ड परीक्षाओं में बाजी मार ले जाते हैं और बड़े शहरों के कोचिंग और ट्यूशन करने वाले बच्चे पीछे?

2. भारत-पाक में सीजफायर की खबर से छत्तीसगढ़ में वो कौन तीन लोग हैं, जो सबसे अधिक खुश हुए होंगे?