रविवार, 27 अप्रैल 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: जांच का असर, 32 करोड़ की बचत

 तरकश, 27 अप्रैल 2025

संजय के. दीक्षित

जांच का असर, 32 करोड़ की बचत

पाठ्य पुस्तक निगम के चर्चित घपले की जांच का ऐसा असर हुआ कि पेपर का रेट इस बार गिरकर 77 रुपए प्रति किलो पर आ गया। जबकि पिछले साल 109 रुपए किलो से टेंडर हुआ था। सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए करीब 50 लाख पुस्तकें छापने के लिए पापुनि हर साल करीब 10 हजार टन पेपर की खरीदी करता है। 77 रुपए के हिसाब से इस बार 77 करोड़ ही खर्च हुआ। याने खजाने का 32 करोड़ बच गया। पापुनि से जुड़े लोगों की मानें तो 30 परसेंट रेट गिरने के बाद भी 77 करोड़ में से आठ-से-दस करोड़ बंट जाएगा। तो फिर इसे यूं समझा जाए कि पिछले साल करीब 40 करोड़ का खेला हुआ। बता दें, विधानसभा चुनाव 2023 से महीने भर पहले नवंबर 2023 में ही रेट फायनल कर पेपर सप्लाई का आर्डर दे दिया गया था। पापुनि की किताबें कबाड़ में पाए जाने के बाद बवाल मचा तो पता चला बीजेपी वाले खाए पीए कुछ नहीं, गिलास फोड़े बारह आना वाला हाल हो गया। याने आवश्यकता से अधिक पुस्तकें छपवाने के खेल की पृष्ठभूमि विधानसभा चुनाव से पहले बनी और विकास उपाध्याय ने ठीकरा फोड़ दिया सरकार के माथे। अलबत्ता, पापुनि ने जांच के नाम पर खटराल अधिकारियों की कमेटी बनाकर खानापूर्ति करने का प्रयास किया। मगर सीएम विष्णुदेव साय बिगड़ पड़े...बोले, सबसे बढ़ियां जांच कौन करेगा, बताया गया रेणु पिल्ले। पिल्ले कमेटी की जांच का ऐसा असर हुआ कि इस बार पेपर का रेट धराशायी हो गया। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब इतना कम रेट गया होगा। बता दें, डेढ़ दशक पहले एक मंत्री ने अपना रेट 25 प्रतिशत फिक्स कर दिया था, उसके बाद पापुनि में घोटाला चरम पर पहुंच गया था। शुक्र है, पापुनि की व्यवस्था पटरी पर आ गई, खजाने का 32 करोड़ बचा सो अलग।

ऐतिहासिक राहत और 'डंडी'

विष्णुदेव साय सरकार ने जमीन-जायदाद के नामंतरण के मामले में ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सिस्टम को ऑटोमेटिक कर दिया। याने रजिस्ट्री होते ही अब अपने आप रिकार्ड में आपका नाम चढ़ जाएगा। सरकार के इस फैसले से लोगों का न केवल सिरदर्द कम होगा बल्कि साल में हजार करोड़ का भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगा। मगर इसके साथ ही सरकार के लिए संज्ञान लेने लायक प्वाइंट यह है कि राजस्व विभाग ने तीन ऐसी शर्ते जोड़ दी है, उससे सरकार का मूल उद्देश्य के पूरा होने पर संशय है। पहला, कोई विवाद नहीं होनी चाहिए, दूसरा जिओ रेफ्रेंस और तीसरा बटांकन। छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों में बटांकन का काम पूरा नहीं हुआ है। सूबे में सिर्फ रायगढ़ और राजनांदगांव जिले में 70 परसेंट बटांकन हुआ है। यही हाल, जिओ रेफें्रस का है। पिछले दसेक साल से कई कंपनियां इस पर काम कर रही मगर आज तक यह कंप्लीट नहीं हुआ। और शिकायत तो कोई शरारत करते हुए एक अर्जी दे देगा रजिस्ट्री विभाग में, तो उसका आटोमेटिक नामंतरण नहीं होगा। याने मामला फिर तहसीलदार के पास जाएगा। राजस्व विभाग के अधिकारियों ने पिछली सरकार में भी यही खेला किया था। तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल ने गणतंत्र दिवस के भाषण में नामंतरण के सरलीकरण की घोषणा की थी। उसके बाद आईएएस निरंजन दास की अध्यक्षता में तीन आईएएस अधिकारियों की कमेटी बनी। निरंजन दास कमेटी ने भी पटवारी, तहसीलदारों के पक्ष में रिपोर्ट देते हुए कहा कि 14 दिन में अगर नामंतरण नहीं हुआ तो तहसीलदार की कोर्ट में प्रकरण दर्ज हो जाएगा। याने कमेटी ने पेचीदगियां और बढ़ा दी। बहरहाल, वर्तमान सरकार ने बड़ा फैसला किया है...उसकी नीयत नेक है...इसे लागू होने में अभी हफ्ते भर का टाईम है। 3 मई को इसका उद्घाटन किया जाएगा। तीनों शर्तों को अगर शिथिल कर दिया जाए, तो आम आदमी के लिए सचमुच...अकल्पनीय राहत होगी।

2005 बैच, 5 कलेक्टर

पीएससी के चर्चित 2005 बैच के इस समय पांच कलेक्टर हो गए। तीन पहले से थे, दो अभी बने हैं। छत्तीसगढ़ में ऐसा संयोग पहली बार हुआ है कि एक बैच के पांच-पांच अफसरों को जिला मिल गया हो। हालांकि, इसमें कोई गलत नहीं है। हर आईएएस का सपना होता है कलेक्टर बनना। पहले के समय में बेचारे सुरेंद्र बेहार जैसे कई अफसर बिना जिला किए ही रिटायर हो गए। मगर बात 2005 बैच के संदर्भ में तो, सरकार को 360 डिग्री वाला मानिटरिंग सिस्टम स्ट्रांग करना होगा। वरना, 2005 बैच के अधिकारियों का जैसे-जैसे रिटायरमेंट का वक्त आ रहा...इन बेचारों का लीगल खर्चा बढ़ता जा रहा है। जाहिर है, सुप्रीम कोर्ट के सिर्फ एक स्टे पर इनकी नौकरी अटकी हुई हैं। वरना, बिलासपुर हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने तो इनकी नियुक्ति निरस्त कर सड़क पर ला दिया था। वो तो भला हो देश के सबसे बड़े और महंगे वकील हरीश साल्वे का, जिनके चलते सुप्रीम कोर्ट से स्टे मिल गया। नौ साल से यह स्टे कंटिन्यू कर रहा है। राहत की बात यह कि राज्य सरकारों ने भी स्टे हटवाने कोई प्रयास नहीं किया। उपर से नजरे इनायत ऐसी कि पिछली सरकार में उन्हें आईएएस भी अवार्ड हो गया।

समरथ को नहीं दोष गोसाई

यह आठवां आश्चर्य होगा कि सीजीएमएससी के इतने कारनामों के बाद भी एमडी का बाल बांका नहीं हुआ। चार कॉलेजों के टेंडर में 500 करोड़ का स्कैम के बाद भी सीजीएमएससी में सब कुछ अनवरत चल रहा है, मानो कुछ हुआ ही नहीं। दरअसल, पीएससी का 2005 बैच धनबल से इतना ताकतवर है कि बेचारी वर्षा डोंगरे दो दशक से संघर्ष करते-करते थक गई। पिछली सरकार ने उल्टे वर्षा को सस्पेंड कर दिया था। एक दूसरे आरटीआई कार्यकर्ता को लग्जरी रिसोर्ट बनवाकर उनका मुंह बंद करा दिया गया। 2005 बैच के अफसर दबी जुबां से मानते हैं कि पोस्टिंग के हिसाब से हमें योगदान देना पड़ता है। जैसे कलेक्टर या मलाईदार बोर्ड या निगम में हैं तो फिर महीने का हेवी हिस्सेदारी उन्हें निभानी पड़ती है। ऐसे में वर्षा डोंगरे क्या कर लेगी, जब पूरा सिस्टम समरथ के साथ है...सुप्रीम कोर्ट से जब तक स्टे हटेगा, तब तक सभी रिटायर हो चुके होंगे। भगवान सिंह उईके तो अगले साल दिसंबर में ही रिटायरमेंट है। हमारे कहने का यह आशय कतई नहीं कि 2005 बैच वाले सारे-के-सारे बैकडोर वाले हैं....मगर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने नियुक्ति निरस्त की थी, तो कुछ तो उन्होंने देखा ही होगा। वैसे, पीएससी ने भी कोर्ट में गलती मान ली थी, मगर एक्शन कुछ लिया नहीं। पुणे की पूजा खेड़कर का मामला नेशनल लेवल पर उछल गया इसलिए यूपीएससी ने पूजा का आईएएस निरस्त कर दिया। और छत्तीसगढ़ में....छत्तीसगढ़िया सबले बढ़ियां...यहां जेल जा चुकी बारहवीं की फर्जी टॉपर पोरा बाई सरकारी नौकरी कर रही है...और भर्ती निरस्त हो चुकी अफसर कलेक्टरी।

सूचना आयोग का औचित्य?

पीएससी 2005 की बात चली तो सूचना आयोग की अहमियत पर भी चर्चा लाजिमी है। 2005 में ही सूचना आयोग की स्थापना हुई थी। 20 साल में एकमात्र बड़ी सूचना पीएसससी की ही निकली थी। आरटीआई से ही खुलासा हुआ था कि पीएससी 2005 परीक्षा में किस तरह पैसे और पहुंच के बल पर मेरिट लिस्ट पलट दी गई। इसके बाद फिर सूचना आयोग ने फिर कोई ऐसी जानकारी नहीं दी। एक तरह से कहें तो अब ये सफेद हाथी की तरह हो गया है। हालांकि, दिक्कत सूचना आयुक्तों की नहीं, उन्हें नियुक्त करने वालों की है। मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त ऐसे अधिकारियों को बनाया जाता है, जो पूरी सरकारी नौकरी के दौरान मामलों पर पर्दा डालने का काम करते हैं। रिटायरमेंट के बाद अगर उन्हें सूचना आयुक्त बना दिया जाएगा तो उनसे जानकारी का खुलासा करने की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है।

तहसीलदारों का बोझ हल्का

नामंतरण का अधिकार रजिस्ट्री अधिकारी को देकर राज्य सरकार ने तहसीलदारों का न केवल जेब हल्का किया बल्कि उनके कंधों का बोझ भी हल्का कर दिया है। नामंतरण के लिए 14 दिन टाईम लिमिट था मगर बात नहीं बनी तो महीनों फाइल लटकी रहती थी। कभी वीआईपी ड्यूटी का बहाना तो कभी वुनाव का। सरकार ने एक झटके में तहसीलदारों का दोनों बोझ हल्का कर दिया है।

रिटायरमेंट से पहले मान

आईएएस टोपेश्वर वर्मा से काम राजस्व बोर्ड चेयरमैन का लिया जा रहा था और पोस्ट मेंबर का था। मेंबर की हैसियत से वे प्रभारी चेयरमैन के तौर पर काम कर रहे थे। राज्य सरकार ने आईएएस के फेरबदल में इस विडंबना को दूर करते हुए टोपेश्वर को चेयरमैन की पोस्टिंग दे दी है। टोपेश्वर का इसी साल अक्टूबर में रिटायरमेंट है। रेवेन्यू बोर्ड का चेयरमैन मुख्य सचिव के समकक्ष पद है। उपर से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भांजी दामाद होने के बाद भी सरकार ने टोपेश्वर का कद बढ़ाने में दिल छोटा नहीं किया। पूर्व सीएम के एक भांजी दामाद गृह मंत्री विजय शर्मा के गृह जिले कवर्धा के कलेक्टर हैं। अब आप ये मत समझिएगा कि पूर्व मुख्यमंत्री का इस सरकार में चल रही है। कवर्धा वाला मामला विशुद्ध तौर से गृह मंत्रीजी के दोस्ती का है, और टोपेश्वर का सरकार की उदारता का।

कांग्रेस मंत्री का मॉल और बीजेपी प्रेम

रायगढ़ के रहने वाले केके गुप्ता छत्तीसगढ़ बनने से पहले दिग्विजय सिंह सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे। कारोबारी परिवार से ताल्लुकात रखने वाले गुप्ता का रायगढ में होटल खुला तो बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री ने फीता काटा था। बिलासपुर के मॉल के समय भी ऐसा ही हुआ। राजधानी रायपुर के एक पुराने मॉल का भी बीजेपी के मुख्यमंत्री ने उद्घाटन किया। कल रायपुर के जोरा मॉल के उद्घाटन में मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपमुख्यमंत्री से लेकर बीजेपी के सारे बड़े नेता फोटो में नजर आए, कांग्रेस के एक भी नहीं। पूर्व मंत्री का कारोबार जिस ढंग से बढ़ रहा है, कहीं ऐसा तो नहीं कि वे बीजेपी ज्वाईन कर लें।

दिल्ली स्टाईल में ट्रांसफर

आईएएस के ट्रांसफर इस बार भारत सरकार के स्टाईल में हुए। अभी तक एक अधिकारी के पास कई-कई एचओडी और मंत्री होते थे। इसमें दिक्कत यह होती थी कि कई बार सेम टाईम में दो-दो मंत्रियों की बैठक हो जाती थी। विधानसभा सत्र के दौरान ब्रीफिंग में भी ये कठिनाई आती थी। सरकार ने अब एकजाई करके एक एचओडी, एक मिनिस्टर कर दिया है। याने अफसरों को अब इधर-उधर भागना नहीं पड़ेगा। उनका एक एचओडी होगा और एक मंत्री। राजस्व पर भी सरकार ने पहली बार ध्यान दिया है। राजस्व बोर्ड वन मैन आर्मी की तरह काम कर रहा था, सरकार ने एक मेम्बर और बिठाया है। रायपुर, दुर्ग संभागों में सर्वाधिक केसों को देखते दोनों संभागों में एक-एक अपर आयुक्त की पोस्टिंग की गई है। अबकी पोस्टिंग में इस सरकार, उस सरकार वाला लेबल हटा दिया गया है। याने पिछले सरकार वाले अफसरों को भी उनके काम के हिसाब से पोस्टिंग दी गई है।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. आपकी नजर में रिटायर डीजीपी अशोक जुनेजा के मुख्य सूचना आयुक्त बनने की संभावना कितना प्रतिशत है?

2. मीनल चौबे के महापौर बनने के बाद अगर राजेश मूणत मंत्री बन गए तो फिर बृजमोहन अग्रवाल खेमे का क्या होगा?


रविवार, 13 अप्रैल 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: मुलाकात टैक्स 25 हजार

 तरकश, 13 अप्रैल 2025

संजय के. दीक्षित

मुलाकात टैक्स 25 हजार

ये दीया तले अंधेरा, जैसा मामला है। रायपुर में एक बड़े साब से किसी आरगेनाइजेशन को मिलना है, तो उसके लिए नजराना याने मुलाकात टैक्स देना पड़ता है। नजराना भी हल्का-फुल्का नहीं...25 हजार से उपर का। हाल ही की बात है, एक रेपुटेडेट संस्था के प्रतिनिधियों ने साब से मिलने के लिए टाईम मांगा। टाईम तो मिल गया मगर साथ में पीए का टका सा निर्देश भी मिला...ठीकठाक कोई गिफ्ट लेते आइयेगा। संस्था के लोगों के लिए ये नया अनुभव था। फिर भी सम्मानजनक गिफ्ट खरीद लिया। मिलने पहुंचे तो सवाल हुआ...कितने का है? बोले, 12 हजार का। प्रशासनिक महिला अफसर बोली...नहीं चलेगा। जहां से लेकर आए हैं, वहां जाकर वीडियोकॉल कर दिखाइये। संस्था वाले गिफ्ट शॉप गए। वीडियोकॉल पर महिला अफसर ने 35 हजार का गिफ्ट सलेक्ट किया। तब जाकर बात बनी। खैर, ये तो छोटी बात है, कई संस्थाओं में मेंबरों की नियुक्तियों के लिए रेट फिक्स कर दिया गया है। बड़ी नियुक्तियों का तो और बड़ा रेट। संभव है, बड़े साब को इन चीजों का भान न हो। अगर ऐसा है तो उन्हें अपने तंत्र पर निगरानी बढ़ानी चाहिए। वरना, मोदीजी का 360 डिग्री वाला राडार एक्टिव हुआ, तो फिर मुश्किलें बढ़ जाएंगी। रायपुर के लोगों ने बड़े लोगों का अच्छा-खासा कैरियर चौपट होते देखा है।

कलेक्टर बहादुर अली

ऋचा शर्मा और मनोज पिंगुआ ने आईएएस अफसरों को बुलाकर उन्हें शुचिता का पालन करने की समझाइश दी थी। बताया था कि ब्यूरोक्रेसी के इस बुरे दौर में बहादुर अली बनकर कैडर की और छीछालेदर मत कराओ। मगर नौकरशाहों के जिंस में करप्शन का वायरस ऐसा घुस गया है कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन उनके भले की बात कर रहा है, कौन जेल में है, और कौन जेल जाने वाला है। हम बात कर रहे हैं सूबे के एक स्मार्ट क्लेक्टर की। डीएमएफ में सप्लाई का काम करने के लिए उन्होंने अपने साले को बुला लिया है। फर्जी कंपनी बनाकर साला अब पूरे जिले में डीएमएफ और अपने जीजा का झंडा बुलंद कर रहा है। मगर ऐसी बातें छुपती कहां है। छोटी जगह है...पुराने सप्लायरों के पेट पर चोट पहुंचेगी तो वे चुप थोड़े ही बैठेंगे....इसकी कानाफूसी अब राजधानी रायपुर पहुंचने लगी है। ऐसे में, ऋचा और मनोज का कर लेंगे। उन्होंने तो रास्ता दिखाने का काम किया था। अब कोई अपना कब्र खोदने पर अमादा है, तो कोई कुछ नहीं कर सकता।

बड़ी जांच और 3 सवाल

राज्य सरकार ने अभनपुर भारतमाला मुआवजा घोटाले की ईओडब्लू जांच का ऐलान किया था। मगर राजस्व विभाग ने चौंकाने वाला फैसला लेते हुए जांच का दायरा बढ़ाकर 11 जिलों में किया ही, पांचों कमिश्नरों से इसकी रिपोर्ट मांग ली है। जाहिर है, इन ग्यारहों जिलों में नेशनल हाईवे के मुआवजे की बंदरबांट की जांच हो गई तो दर्जन भर से अधिक आईएएस, आईपीएस सलाखों के पीछे जाएंगे, इससे कुछ अधिक राजनेताओं की फजीहत होगी। सैकड़ों सेठ-साहूकारों के खिलाफ केस दर्ज होगा, जिन्होंने भारत सरकार के पैसे को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जाहिर है, ईमानदारी से इस स्कैम की जांच हो गई तो इतना बड़ा बम फूटेगा कि शायद उसके बाद करप्शन से लोग तोबा कर लें। यही वजह है...राजस्व विभाग की इस मेगा जांच पर स्वाभाविक जिज्ञासा और सवाल खड़े हो रहे हैं। पहला, राजस्व विभाग की कड़ाई से जांच वाली छबि नहीं रही। इसलिए आशंका ये व्यक्त की जा रही कि ईओडब्लू जांच से घबरा लिंगारान करने के लिए कहीं कमिश्नरों से जांच तो नहीं कराई जा रही। दूसरा, जांच के लिए कमिश्नरों को पत्र लिखा गया है, उसकी भाषा से प्रतीत होता है, किसी को बख्शा नहीं जाएगा। क्योंकि, लेटर में लिखा है कि अनियमितता का पूरा डिटेल अपने वेबसाइट पर अपलोड करें। गड़बड़ियों की जानकारी ऑनलाइन होते ही प्रदेश में रायता फैल जाएगा...इतने बड़े-बड़े चेहरे बेनकाब होंगे कि छत्तीसगढ़ हिल जाएगा। और तीसरा सवाल यह है कि क्या भारत सरकार या केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय ने कोई पेंच फंसाया है? अभनपुर स्कैम की जांच के लिए नेशनल हाईव के चीफ विजिलेंस आफिसर ने 2021 से 2024 के बीच कई बार पत्र लिखा था, उसके बाद भी राजस्व विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की। कुल मिलाकर इस जांच के पीछे कोई बड़ा राज छिपा है।

सीएस के दावेदार

पिछली सरकार में एसीएस टू सीएम रहे आईएएस सुब्रत साहू का नाम अभी तक मुख्य सचिव के दावेदारों में नहीं लिया जा रहा था। मगर पिछले एक हफ्ते में आश्चर्यजनक रूप से उनकी नाम की चर्चाएं तेज हो गई हैं। सीएस के लिए इस समय पांच दावेदार हैं। रेणु पिल्ले और ऋचा शर्मा के नाम को अलग कर दें तो तीन बचते हैं। सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल और मनोज पिंगुआ। अमित दिल्ली में हैं। अमित शाह उन्हें यहां भेज दें तो बात अलग है। या फिर किसी ईश्वरीय चमत्कार से नारी शक्ति में से कोई दुर्गा बनकर प्रगट हो जाए। वरना, सलेक्शन सुब्रत और मनोज में से होना है। दोनों को तराजू पर तौला जा रहा है। सरकार के मापदंड में जो खरा उतरेगा, उसके नाम पर मुहर लग जाएगा। अब ये अलग बात है कि सलेक्शन के लिए मापदंड क्या रखे गए हैं...जैसा चल रहा है, चलते रहने देना या फिर बदनाम ब्यूरोक्रेसी की छबि बदलना।

एमडी और सीईओ का रहमोकरम

निगम-मंडलों में पोस्टिंग को लेकर राजनीतिज्ञों में बड़ी उत्सुकता रहती है। उन्हें लगता है चेयरमैन बन गए तो फिर तो जलवे होंगे। मगर वास्तविकता से इसका कोई संबंध नहीं होता। पांच-सात मलाईदार निगमों में भी सीईओ और एमडी के रहमोकरम से कुछ मिल जाए, तो बात अलग है। वरना, थोड़ा नवाबी दिखाए तो फिर गाड़ी के डीजल, पेट्रोल पर सवाल उठभ् जाएंगे...आपको इतने की पात्रता है, इससे अधिक नहीं। दरअसल, सरकारें नेताओं को खुश करने के लिए निगम-मंडलों में पोस्टिंग दे देती है वरना इनका कोई संवैधानिक अस्त्तिव नहीं है। पूरा पावर एमडी और सीईओ में समाहित होता है। टेंडर फायनल करने से लेकर चेक काटने तक। सभी एमडी, सीईओ आईएएस होते हैं। वे उन्हीं चेयरमैनों की थोड़ा-बहुत भाव देते हैं, जो दबंग हो, साथ ही सरकार से करीबी ताल्लुकात। दोनों में से कोई एक हुआ तब भी बात नहीं बनेगी। इस बार निगम की पोस्टिंग के बाद एक मलाईदार चेयरमैन से एमडी मिलने पहुंची तो भावविह्वल होकर उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल दिया...एमडी साहिबा से आत्मीय मुलाकात हुई। अब आप समझ सकते हैं...आगे क्या होगा। चेयरमैनों को अपना सम्मान बनाए रखना है तो सरकार को चाहिए कि संजय श्रीवास्तव से दो दिन की ट्रेनिंग दिला दें कि घोड़े की सवारी कैसे करनी चाहिए। संजय इसमें माहिर हो चुके हैं।

बीरबल की खिचड़ी

छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल का विस्तार बीरबल की खिचड़ी हो गई है, जो पकने का नाम नहीं ले रही है। दिसंबर में शपथ होते-होते नहीं हुआ और इस बार तो बेचारे एक भावी मंत्रीजी ने पंडरी से लीनेन का कपड़ा लेकर दर्जी से रातोरात कुर्ता और जैकेट सिलवाया, क्योंकि दिसंबर में बनवाए थे, वो थोड़ा टाईट हो गया था। इस बार उन्होंने बधाइयां भी स्वीकार करना शुरू कर दी थी। मगर राजभवन में शपथ लेने का ख्वाब बिखर गया, जब 9 अप्रैल को देर शाम तक शपथ का कोई फोन नहीं आया। बताते हैं, दिसंबर में एक बड़े नाम पर ब्रेक लग गया और इस बार एक छोटे नाम पर उपर में सहमति नहीं बन पाई। बहरहाल, इस बार मिं़त्रमंडल विस्तार को ऐसा करंट लगा कि अब जब तक अधिकारिक घोषणा नहीं होगी, कोई भरोसा नहीं करेगा। दिक्कत यह है कि सौदान सिंह टाईप दिल्ली में दमदारी से बात रखने वाला छत्तीसगढ़ बीजेपी में कोई पर्सनाल्टी नहीं है। इसका नुकसान राज्य का हो रहा है। कैबिनेट में दो-दो, तीन-तीन पद लंबे समय से खाली हैं।

अजब एसडीएम, गजब करप्शन

शासन-प्रशासन में करप्शन के भांति-भांति के किस्से अपन सुनते हैं। मगर ये जरा हटकर है। बिलासपुर के एक एसडीएम और पटवारी ने हॉरिजंटल नहर को वर्टिकल बना दिया। दरअसल, कोविड काल में जब लोग जान बचाने बदहवास थे, तब 1141 करोड़ के नहर के मुआवजा के खेल में एसडीएम और पटवारी व्यस्त थे। दोनों ने नहर के एलाइनमेंट में आएं-बाएं चेंज करके कइयों को करोड़पति बना दिया और खुद भी कई खोखा भीतर कर लिया। बिलासपुर शहर से लगे सकरी में एक फर्जी व्यक्ति को साढ़े तीन करोड़ का मुआवजा देने कागजों में नहर को 200 मीटर शो कर, जिस जमीन का 20 लाख एकड़ रेट था, उसे 12.5 करोड़ रुपए एकड़ के हिसाब से मुआवजा दे दिया। वो भी जिसकी जमीन थी, उसे नहीं किसी और को। उन्हें लगा कि कोविड में कौन बचेगा, कौन नहीं? फिर देखा जाएगा। मगर उनकी सोच गलत निकली। जिसकी जमीन थी, वह कोविड में बच गया और प्रगट होकर शिकायत कर दी। शिकायत में एसडीएम समेत राजस्व विभाग के छह मुलाजिम दोषी पाए गए। मगर वक्त का खेल देखिए कि अभनपुर मुआवजा घोटाले में दो राप्रसे अधिकारी कुर्रे और साहूजी सस्पेंड हो गए मगर अरपा भैंसाझाड़ नहर वाले एसडीएम तिवारीजी बड़े चतुर निकले...जुगाड़ लगा वे बिलासपुर में नोट छापने वाली जगह पर बैठ गए। है न कमाल की बात। ठीक कहते हैं, समरथ को, नहीं, दोष गोसाई।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. किस ब्यूरोक्रेट्स ने अपने लाड़ले के लिए 75 लाख का घोड़ा खरीदा है?

2. चाणक्य ने ऐसा क्यों कहा है, राजा को राजकाज में अतिसंकोची नहीं होनी चाहिए?


रविवार, 6 अप्रैल 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: चाल, चरित्र और लाल बत्ती

 तरकश, 6 अप्रैल 2025

संजय के. दीक्षित

चाल, चरित्र और लाल बत्ती

आखिरकार, सत्ताधारी पार्टी के 36 नेताओं को निगम-मंडलों में पोस्टिंग मिल गई। इनमें जमीन की दलाली और चापलूसी के लिए ख्यात कुछ गुरूघंटाल अच्छी पोस्टिंग पाने में कामयाब हो गए। बावजूद इसके पार्टी ने चाल-चलन और चरित्र को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। सरकार बनने के बाद छह महीने तक जिन नेताओं ने मौके का फायदा उठाकर जमकर तोड़ी की, पार्टी ने उन्हें लाल बत्ती से आंखें फेर लिया। शौकीन मिजाजी को लेकर चर्चित कुछ नेताओं को झटका देकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की गई है। लाल बत्ती के लिए सरकार और संगठन ने जो पैरामीटर सेट किया था, उनमें पार्टी के लिए परिश्रम के साथ छबि और आचरण मुख्य था। यही वजह रही कि काली कमाई वाले कुछ कारोबारी नेता अटैची लेकर घूमते रहे...मगर उनकी दाल नहीं गल पाई।

एक निगम, दो पार्टनर

रमन सरकार की तीसरी पारी में बीजेपी नेता छगन मूंदड़ा सीएसआईडीसी के चेयरमैन रहे। कांग्रेस गवर्नमेंट में यह पद खाली रहा। सरकार ने इसमें पोस्टिंग की जरूरत नहीं समझी। मगर विष्णुदेव सरकार ने राजीव अग्रवाल को सीएसआईडीसी का चेयरमैन बनाया है। राजीव रायपुर बीजेपी के शहर अध्यक्ष रहे हैं। वे छगन मूंदड़ा के बिजनेस पार्टनर हैं। छगन और राजीव ने मिलकर रायपुर रियल इस्टेट कंपनी बनाई थी। चलिये, सीएसआईडीसी में छगन के अनुभवों का लाभ राजीव को मिलेगा। दूसरा, सबसे महत्वपूर्ण यह कि वैश्य समुदाय को अब रंज नहीं रहेगा कि नई सरकार में उन्हें वेटेज नहीं दिया जा रहा।

सबसे बड़ा बोर्ड

ऐसे तो कहा जाए तो साल में 25 हजार करोड़ से अधिक का कारोबार करने वाला मार्केटिंग फेडरेशन याने मार्कफेड छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा बोर्ड (फेडरेशन) होगा। मगर नेताओं की नोटिस में न होने से सबसे अधिक आकर्षण सीएसआईडीसी, क्रेडा, माईनिंग कारपोरेशन, पाठ्य पुस्तक निगम, नागरिक आपूर्ति निगम, ब्रेवरेज कारपोरेशन जैसे बोर्ड-निगमों का रहता है। अलबत्ता, बिना मगजमारी के झोली भरने वाली निगम है तो वह है पाठ्य पुस्तक निगम की। एकदम साफ-सुथरा काम। साल में एक बार 50 लाख पुस्तकों के लिए पेपर और प्रिंटिंग का टेंडर होता है, और गिरे हालत में चार-पांच खोखा का इंतजाम। ब्रेवरेज कारपोरेशन में भी बिना मेहनत का सब कुछ आता है। ब्रेवरेज में प्रबल प्रताप की दावेदारी प्रबल होने के बाद भी पता नहीं वे कैसे चूक गए।

लाल बत्ती के बाद फुल स्टॉप  

मोतीलाल वोरा को छोड़ दें तो अविभाजित मध्यप्रदेश और पृथक छत्तीसगढ़ में कोई ऐसा चेहरा नहीं, जो निगम-मंडल अध्यक्ष की कुर्सी के बाद सियासत में शिखर पर जा पाया या नाम कमाया हो। अपवाद के तौर पर मोतीलाल वोरा राज्य परिवहन संघ के अध्यक्ष रहे, उसके बाद मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री तक पहुंचे। उनके अलावा कनक तिवारी हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन रहे और रामानुजलाल यादव माईनिंग कारपोरेशन के। दोनों का सियासी कैरियर इसी के साथ खतम हो गया। छत्तीसगढ़ बनने के बाद 25 सालों में कोई ऐसा निगम-मंडल के अध्यक्ष का नाम आपके ध्यान में नहीं होगा, जो उसके बाद राजनीतिक कैरियर आगे बढ़ा हो। गौरीशंकर अग्रवाल जरूर माईनिंग कारपोरेशन के चेयरमैन रहने के बाद विधानसभा अध्यक्ष बनें। मगर उन्हें अगले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। उनका भी सियासी कैरियर अब खतम ही समझिए। छत्तीसगढ़ बनने के बाद चार मुख्यमंत्री बनें और चारों सरकारों में 65 से अधिक मंत्री रहे, मगर किसी का भी बैकग्राउंड निगम और मंडल वाला नहीं रहा। बहरहाल, अभी जिन 36 नेताओं को पोस्टिंग मिली है, उनमें कई अच्छे और बढियां काम करने वाले चेहरे हैं, उन्हें किसी अच्छे पंडित से 'ग्रह-दशा' ठीक करा लेनी चाहिए। नहीं हो तो अटल श्रीवास्तव से मशिवरा कर लें। अपवादस्वरूप पर्यटन बोर्ड के चेयरमैन रहने के बाद वे विधायक बनने में कामयाब रहे, वो भी मोदी गांरटी की लहर में।

हाईटेक लोक सुराज

लोक सुराज अभियान को इस बार गुड गवर्नेंस से जोड़ा जा रहा है। नाम भी रखा गया है सुशासन तिहार। इस बार शिकायत नहीं, सरकार समाधान पर जोर दे रही है। इसलिए शिकायत पेटी नहीं, समाधान पेटी और समाधान शिविर की बातें हो रही। इस बार टेक्नॉलॉजी का भरपूर इस्तेमाल किया जाएगा। शिकायतों के लिए पंचायत मुख्यालयों में समाधान पेटी रखी जाएगी, तो लोग चलते-फिरते मोबाइल से भी अपने प्राब्लम पोर्टल पर दर्ज कर सकेंगे। साफ्टवेयर ऐसा तैयार किया जा रहा कि मोबाइल नंबर टाईप कर आवेदन की स्थिति का पता चल जाएगा। किस जिले में कितने आवेदन आए और उसका कैसे निबटारा हुआ...सीएम सचिवालय से इसकी सत्त मानिटरिंग की व्यवस्था बनाई जा रही है। पूरा सीएम सचिवालय पखवाड़े भर से इस काम में जुटा हुआ है। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों और प्रभारी सचिवों का महीने भर का दौरा कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है।

ईओडब्लू जांच और ब्रेकर!

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव सरकार शुरू से गुड गवर्नेंस को प्रायरिटी दे रही है। जाहिर है, सरकार बनते ही मंत्रियों को आईआईएम में क्लास कराई गई थी। सुशासन की दिशा में सरकार ने कई फैसले भी किए हैं। मुख्यमंत्री ने कई मौकों पर कहा है...करप्शन में किसी को बख्शा नहीं जाएगा। अभनपुर भारतमाला परियोजना में 324 करोड़ के घोटाले में उन्होंने ईओडब्लू जांच का ऐलान करने में देर नहीं लगाई। मगर यह भी सही है कि सिस्टम में बैठे कुछ लोग सरकार के गुड गवर्नेंस लाने की कोशिशों में रोड़े अटका रहे हैं। आलम यह है कि अभनपुर मुआवजा घोटाले की जांच की 12 मार्च को घोषणा हुई और उसकी नोटशीट सामान्य प्रशासन विभाग की फाइलों की ढेर से बाहर निकल नहीं पा रही है। सिस्टम को गुड गवर्नेंस के ऐसे 'ब्रेकरों ' पर नजर रखनी चाहिए।

कलेक्टरों का ट्रांसफर

सुशासन तिहार से पहले कलेक्टरों के ट्रांफसर की चर्चाएं बड़ी गर्म है। पिछले बुधवार को लिस्ट निकलने की अटकलें ब्यूरोक्रेसी में बड़ी तेज थी। हालांकि, सस्पेंस इस पर भी है कि लोक सुराज से पहले ट्रांसफर होंगे या बाद में। इसमें ताजा अपडेट है...लोक सुराज से पहले कलेक्टरों की एक लिस्ट निकलेगी। अमित शाह के दौरे के बाद इस पर मंत्रणा होगी कि किन-किन जिलों में बदलाव किया जाए। वैसे लिस्ट बहुत बड़ी नहीं होगी। पांच-सात जिले इसकी चपेट में आ सकते हैं। 8 अप्रैल से सुशासन तिहार शुरू होने वाला है। ऐसे में लगता है कि दो-एक दिन में सरकार को इस पर फैसला लेना होगा।

नए सीआईसी और परसेप्शन

मुख्य सूचना आयुक्त का इंटरव्यू देने चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन और निर्वतमान डीजीपी अशोक जुनेजा एक साथ हंसते-मुस्कराते सर्किट हाउस पहुंचे थे...उसको लेकर प्रशासनिक हल्को में तरह-तरह की बातें हो रही हैं। लोग जुनेजा को लेकर दावे कर रहे हैं...वे ऐसे ही दिल्ली से फ्लाइट पकड़कर सीआईसी का इंटरव्यू देने थोड़े आए होंगे। मगर सवाल है, जुनेजा अगर सीआईसी तो फिर चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन का क्या? अमिताभ को लोग बिजली कंपनियों का चेयरमैन बना दे रहे हैं। दलील भी कि एसके मिश्रा और शिवराज सिंह सीएस से रिटायरमेंट के बाद इस पद को संभाल चुके हैं। मगर ये बातें हैं...बातें का क्या। फैसला मुख्यमंत्री को लेना है। कई बार परसेप्शन कुछ और बनता है और होता कुछ और है।

चीफ सिकरेट्री की विदाई

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के ढाई दशक में 11 मुख्य सचिव हुए हैं। अमिताभ जैन 12वें हैं। इन 11 में से आठ की विदाई सामान्य रही। सुनिल कुमार के लिए तो कैबिनेट की बैठक बुलाई गई थी। मगर तीन मुख्य सचिवों की किस्मत वैसी नहीं रही। एक तरह से कहें तो बेआबरु होकर तेरे कूचे...सरीखी स्थिति रही। पी. जॉय उम्मेन को रमन सिंह सरकार ने हटाया तो खफा होकर उन्होंने वीआरएस ले लिया। यद्यपि, सरकार ने उन्हें सरकारी बिजली कंपनी का चेयरमैन पद पर कंटिन्यू करने का ऑफर दिया था। मगर छुट्टी में रहने के दौरान हटा देना उन्हें अपमानजनक लगा और केरल से ही वीआरएस के लिए अप्लाई कर दिया। उनसे पहले आरपी बगाई से भी राज्य सरकार के रिश्ते अत्यधिक खराब हो गए थे। चूकि उनका कार्यकाल कम बचा था, इसलिए उन्हें हटाया नहीं गया मगर पुराने लोगों को याद होगा कि नक्सल सलाहकार केपीएस गिल को लेकर चीफ सिकरेट्री और सरकार के बीच कैसी खटास आ गई थी। दरअसल, केपीएस गिल को बगाई के सुझाव पर सरकार ने एडवाइजर बनाया था मगर गिल के शाही शौक और नित नए डिमांड से सरकार आजिज आ गई थी। उपर से केपीएस के पक्ष में बगाई की वकालत। इसका नतीजा यह हुआ कि सरकार और सीएस के बीच रिश्ते काफी तल्ख हो गए थे। सरकार के तेवर भांप आईएएस एसोसियेशन की बगाई की विदाई देने की हिम्मत नहीं पड़ी। इसके बाद तीसरा नंबर विवेक ढांड का रहा। हालांकि, उनका मामला सार्वजनिक नहीं हो पाया। ढांड का रेरा चेयरमैन में सलेक्शन हो चुका था। समझा जा रहा था कि रिटायर होने के बाद वे नई जिम्मेदारी संभालेंगे। सरकार और उनके रिश्ते में दूरियां तब सामने आई, जब रमन सिंह और उनकी टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे से यकबयक ढांड का नाम कट गया। उसके बाद एक रोज अचानक खबर आ गई कि ढांड ने वीआरएस लिया और अजय सिंह को नया मुख्य सचिव बनाया गया। जाहिर है, सीएस के तौर पर ढांड का अंतिम समय अच्छा नहीं रहा। इस मामले में अपने अमिताभ जैन का जवाब नहीं। पिछली सरकार ने सीएस बनाया। सरकार बदली...पांचवा साल चल रहा, मगर ना काहू से दोस्ती, ना काहू से वैर। सबसे अधिक समय तक सीएस की कुर्सी पर रहने का कीर्तिमान बनाने के बाद भी अमिताभ जैन सभी के लिए कंफर्ट...सभी के लिए ठीक रहे।

सीएस और डीजीपी की छुट्टी

छत्तीसगढ के 25 बरसों में सिर्फ तीन बार सरकार बदली है। पहली बार 2003 में। फिर 2018 और 2023 में। 2003 में अजीत जोगी सरकार बदली तो एसके मिश्रा चीफ सिकरेट्री थे। रमन सरकार ने उन्हें रिटायर होते तक कंटिन्यू ही नहीं किया, बल्कि बाद में सीएसईबी चेयरमैन की पोस्टिंग भी दी। 2018 में जब कांग्रेस सरकार बनी तो अजय सिंह मुख्य सचिव थे। अजय को महीने भर में हटा दिया गया। उनकी जगह सुनील कुजूर को नया सीएस बनाया गया। 2023 में जब सरकार बदली तो अमिताभ जैन चीफ सिकरेट्री थे, वे अभी भी कंटिन्यू कर रहे हैं। पोस्टिंग के मामले में बेहद किस्मती रहे अजय सिंह का चीफ सिकरेट्री के तौर पर हार्ड लक रहा। सरकार बदलने पर हटाए जाने वाले एकमात्र सीएस के रूप में उनका नाम दर्ज हो गया। रही बात डीजीपी की तो सरकार बदलने के बाद डीजीपी हमेशा टारगेट पर रहे, सिर्फ अशोक जुनेजा को छोड़। 2003 में बीजेपी की सरकार बनने के थोड़े दिन बाद ही अशोक दरबार को बदल दिया गया। 2018 में एएन उपध्याय को सरकार गठित होने के 24 घंटे के भीतर हटाया गया। सिर्फ जुनेजा ऐसे आईपीएस रहे, जो रमन सिंह सरकार में खुफिया चीफ रहने के बाद भी कांग्रेस सरकार में डीजीपी बने और फिर बीजेपी सरकार में अपना कार्यकाल कंप्लीट किया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या छत्तीसगढ़ के अगले चीफ सिकरेट्री अमित अग्रवाल होंगे?

2. बोर्ड-निगमों की पोस्टिंग में रायपुर जिले को सबसे अधिक जगह मिलने के बाद क्या नए मंत्रियों में रायपुर की संभावना खतम समझा जाए?