शनिवार, 2 जून 2012

तरकश, 3 जून


ऐसी बिदाई

एसवी प्रभात को लाभ पहुंचाने के लिए राज्य सरकार ने आखिर क्या नहीं किया। राज्य बनने के बाद डेपुटेशन पर बार-बार निकल जाने वाले प्रभात अप्रैल में रायपुर लौटे तो रिटायरमेंट में महीना भर बचा था। पेंशन वगैरह बढ़ जाए, इसके लिए सबसे पहले फटाफट डीपीसी करके उन्हें एसीएस बनाया गया। चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार अवकाश पर गए तो उन्हें प्रभारी सीएस का का चार्ज भी मिल गया। और-तो-और, सीएस के चेम्बर में बिठाए गए। प्रभात ने भी हफ्ते भर तक नौकरशाही की इस जलवेदार कुर्सी का खूब लुफ्त उठाया। सीएस स्टाईल में चेम्बर के बाहर दिन भर लाल बत्ती जलती रही। मगर उनके लिए आखिरी दिन अच्छा नहीं रहा। 31 मई की शाम जब वे रिटायर हुए, मुख्यमंत्री समेत सारे सिकरेट्रीज योजना आयोग की बैठक में दिल्ली में थे। सो, बिदाई पार्टी कौन कहें, बुके देने वाला भी कोई नहीं था। और दिन की तरह शाम 6 बजे चपरासी बैग लेकर गाड़ी तक पहुंचा आया। अब, आईएएस एसोसियेशन से बिदाई पार्टी आयोजित करने की उम्मीद भी नहंी की जा सकती। एसोसियेशन के सिकरेट्री सुबोध सिंह मसूरी में ट्रेनिंग कर रहे हैं। और प्रेसिडेंट नारायण सिंह को भला क्या पड़ी है। वैसे भी, मुंह के सामने से निवाला छीनने के बाद, कोप भवन वाली ही उनकी हालात है।

गलत परंपरा


और अब, सत्ता के गलियारों में इन दिनों इसकी चर्चा खूब है, सरकार एसवी प्रभात को प्रशासनिक अकादमी में संविदा अपांटमेंट देने की तैयारी कर रही है। इसके लिए फाइल मूव हो चुकी है। और कभी भी आदेश निकल सकता है। यद्यपि, प्रशासनिक अकादमी कोई पावरफुल पोस्टिंग नहीं मानी जाती। मगर रिटायरमेंट के बाद पीली बत्ती वाली गाड़ी, बंगला, नौकर-चाकर मुफ्त में बना रहे और पेंशन के अलावे 50 हजार रुपए मिल जाए, तो इसमें हर्ज क्या है। पर, इसका मैसेज अच्छा नहीं जाएगा। सवाल तो अभी से उठने लगे हैं, जो अफसर छत्तीसगढ़ को पिछड़ा और फालतू जगह समझते हुए 12 साल में यहां साल भर भी नहीं रहा, उस पर आखिर इतनी नजरे इनायत क्यों?

इधर भी

80 हजार स्केल वाले राज्य के सीएस, डीजीपी और पीसीसीएफ को नौकरी में रहते हुए भी सब मिलाकर डेढ़ लाख रुपए वेतन नहीं बनता। मगर रिटायर चीफ सिकरेट्री एसके मिश्रा इससे कम नहीं उठा रहे। राज्य वित्त आयोग के सलाहकार के तौर पर हर महीने उन्हें 80 हजार रुपए एकमुश्त मानदेय मिलता है। उन्हें आयोग के चेयरमैन अजय चंद्राकर की सिफारिश पर अपाइंट किया गया है। रमन सरकार की पहली पारी में चंद्राकर जब उच्च शिक्षा मंत्री थे, इंदिरा मिश्रा उनकी एसीएस थीं और तब मिश्रा भी सीएस थे। सो, संबंध पुराना है। हालांकि, चंद्राकर ने मिश्रा को आयोग में लाने की अनुशंसा भर की थी, बाकी मानदेय वगैरह का कमाल तो मिश्राजी ने करा लिया।

बिखराव

राहुल गांधी पिछले महीने आए थे, पार्टी को एकजुट करने के लिए। मगर उनके दौरे के बाद तो लगता है, कांग्रेस और बिखर गई। पिछले 15 दिन में पार्टी में जिस तरह एक-दूसरे को निबटाने का खेल तेज हुआ है, उससे पुराने कांगे्रसी भी मानने लगे हैं, ऐसा ही रहा तो अगले चुनाव में भाजपा को कुछ करना नहीं पडे़गा। नंदकुमार पटेल को हटाकर आदिवासी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की खबर जोर-शोर से प्रसारित कराने के पीछे भी तो आखिर कांग्रेसी ही हैं। भोपाल में छत्तीसगढ़ बनने को लेकर दिए गए बयान को भाजपाई नेताओं तक सबसे पहले कांग्रेसियों ने ही पहुंचाया। अब पटेल अपनी कुर्सी बचाएं या पार्टी को चार्ज करें। जाहिर है, पहले तो अपनी कुर्सी ही बचाएंगे। तब तक भाजपा बहुत आगे निकल गई रहेगी। नगरीय निकायों और पंचायत सम्मेलनों के जरिये भाजपा ने कार्यकर्ताओं को चार्ज करना आखिर शुरू कर ही दिया है।

खेल में खेल

खेल विभाग में एक इतना बड़ा खेल हो गया है कि जांच हो जाए, तो अपराधिक प्रकरण बन सकता है। मामला है, नियम-कायदों को ताक पर रखते हुए अपने चहेते को परमानेंट कोच बनाने का। न तो उसके लिए विज्ञापन निकला और न ही कोई इंटरव्यू हुआ। कोच भी साफ्ट बाल का बनाया गया है, जिसकी न तो कोई अहमियत है और न ही उसमें सीखाने की जरूरत पड़ती। इसमें उंगलियां आईजी लेवल के एक बड़े अधिकारी की ओर उठ रही है।

फिर वही

आपको याद होगा, आउटर में जब भी कोई छेड़छाड़ की घटना होती है, राजधानी पुलिस हर बार वही रिकार्डेड टेप चला देती है.......आउटर में पेट्रोलिंग की जाएगी, प्रेमी जोड़ों को समझाइस दी जाएगी और न जाने क्या-क्या। अलबत्ता, पुलिस के इस अभियान का आलम यह रहा है कि अखबारों में जब तक घटना जीवित रहती है, पुलिस की सक्रियता उतने ही समय तक रहती है। भाठागांव मामला चूकि बिरादरी से जुड़ा था, इसलिए पुलिस कुछ ज्यादा ही एक्टिव रही। मगर अब सब पुराने ढर्रे पर है। ठीक उसी तरह, राजधानी में कोई बड़ी वारदात होती है, तो पुलिस कम्यूनिटी पोलिसिंग की राग अलापने लगती है। उसके बाद फिर वही..., सब ठंडे बस्ते में। ऐसे में रायपुर को अपराधियों की राजधानी बनने से भला कौन रोक पाएगा।  

देर आए.....


एक अच्छी खबर है, हाउसिंग बोर्ड के मकानों के पंजीयन के समय के रेट में अब कोई बढ़ोतरी नहीं होगी। बोर्ड अभी तक रा मैटेरियल महंगा होने की आड़ में मकान पूर्ण होते तक 20 से 40 फीसदी तक ज्यादा वसूल लेता था। मगर अफसरों ने जो रास्ता निकाला है कि उसमें किसी को नुकसान नहीं होगा। योजना के तहत बोर्ड कुछ मकानों का अपने पास रखेगा। जाहिर है, आवास कंप्लीट होते-होते रेट लगभग दुुगुना हो जाता है। बोर्ड ने उन मकानों को बढ़ी हुई दर में बेचकर घाटे की भरपाई करेगा। इससे बोर्ड रेट बढ़ाने की बदनामी से बच सकेगा। आखिर, सरकार की छबि चमकाने वाले अधिकारी जब हाउसिंग बोर्ड से जुड़े हैं, तो इसका लाभ बोर्ड को तो मिलेगा ही। जनसंपर्क आयुक्त बैजेंद्र कुमार आवास पर्यावरण विभाग के पीएस हैं और संचालक जनसंपर्क सोनमणि बोरा बोर्ड के कमिश्नर जो हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. चीफ सिकरेट्री बनने से महरुम नारायण सिंह को क्या राजस्व मंडल का चेयरमैन बनाने के आश्वासन से खामोश हैं?
2. राहुल गांधी के दौरे के बाद राज्य के किस संवैधानिक पोस्ट पर बदलाव की चर्चा है?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें