वाह मंत्री जी
इस वाकये से ऐसा मैसेज जा रहा है कि मुख्यमंत्री स्तर पर हुए फैसले को विभाग के मंत्री पलट दे रहे हैं.....मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव की मौजूदगी में पिछले दिनों हुर्इ वन विभाग के कैडर रिव्यू बैठक में फारेस्ट सर्किलों में सीएफ के बजाए सीसीएफ पोस्ट करने का फैसला लिया गया था। औपचारिक स्वीकृति के लिए फाइल भारत सरकार को भेजी जानी थी। मगर इस बीच एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में वन मंत्री विक्रम उसेंंडी ने गुरूवार को नोटशीट में यह लिखते हुए अडं़गा लगा दिया, सर्किलों में सीएफ सिस्टम ही बरकरार रखा जाए। राज्य बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि सीएम के ओके होने के बाद ऐसी नोट लिखी गर्इ हो। बताते हैं, पर्दे के पीछे बड़ा खेल हुआ। मलार्इदार कुर्सी खोने से घबराए कुछ सीएफ पिछले रविवार को राजधानी के एक बड़े होटल में बैठे। तय हुआ कि किसी तरह सीसीएफ पोसिटंग को रोका जाए। चर्चा है, इसके लिए 50 पेटी का बंदोबस्त हुआ और काम हो गया।
बर्दी को थप्पड़़
पुलिस में नीचे का स्टाफ अनुशासनहीनता करें तो लाइन अटैच, निंदा, निलंबन जैसी कर्इ कार्रवार्इ और आर्इपीएस अधिकारियों के लिए सौ खून माफ। जगदलपुर में पिछले हफते मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में तैनात जवानों के साथ ऐसा ही कुछ हुआ। बस्तर के कप्तान ने तीन कांस्टेबलों को भरे कार्यक्रम में थप्पड़ जड़ दिया। जवानों का कसूर इतना था कि वे भूख पर काबू न रख पाए। सुबह छह बजे से जवानों की डयूटी लगार्इ गर्इ थी। सीएम पहुंचे 10 बजे और कार्यक्रम खतम हुआ दोपहर करीब 1 बजे। तब तक 46 डिग्री टेम्परेचर में डयूटीरत जवानों को नाश्ता कौन कहें, पानी पाउच तक नहीं मिला। सीएम कार्यक्रम स्थल से जैसे ही रवाना हुए, भूख से बिलबिला रहे जवानों ने कार्यकर्ताओं के साथ भोजन शुरू कर दिया। इसके बाद तो मत पूछिए, नक्सल इलाके में तैनाती का गुस्सा कप्तान ने जवानों पर उतार दिया। जवान तब बर्दी में थे। और पुलिस में बर्दी का बड़ा मान होता है। उस पर शासन का मोनो भी लगा रहता है। बर्दीधारी जवानों पर हाथ साफ कर कप्तान ने किसका अपमान किया, आप समझ सकते हैं। जबकि, लापरवाही अफसरों की थी। वीवीआर्इपी डयूटी में तैनात जवानों को नाश्ता-पानी का इंतजाम न करना गंभीर चूक है। और पुलिस मैन्यूल भी यही कहता है, जवानों की सुविधाओं का खयाल रखा जाना चाहिए। पर कप्तान तो कप्तान होता है। उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवार्इ कौन करें।
नए आर्इएएस
राज्य प्रशासनिक सेवाओं से आर्इएएस अवार्ड होने वाले अफसरों से सरकार को कोर्इ खास उम्मीद नहीं है। 14 में से अनिल टूटेजा, नरेंद्र शुक्ला ठीक-ठाक हैं और थोड़ा-बहुत उमेश अग्रवाल। बाकी के भगवान ही मालिक हैं। एक अफसर के बारे में सुनिये, वे कुछ दिनों तक मार्कफेड में एडिशनल एमडी रहे। और वहां के अफसरों पर प्रेशर डालकर मार्कफेड के पैसे से अपने पैरेंटस का 11 लाख से अधिक का इलाज करा डाला। इनमें प्लेन के फेयर से लेकर अनाप-शनाप बिल शामिल है। कुछ तो इतने सीधे-सादे हैं कि खामोख्वाह वे प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाते, उन्हें दो-तीन हजार भी चल जाता है। लिस्ट में 14 लोगों के नाम हैं, जिनमें से आेंकार सिंह और आर्इआर देहारी के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है, सो उनको आर्इएएस अवार्ड होना नहीं है। बचे 12। और इन 12 में से छह से सात लोग ऐसे हैं, जिन्हें कलेक्टर बनाया तो जिले का बेड़ा गर्क होना तय है। इसी वजह से सरकार को जल्दी नहीं है।
वापसी
टूरिज्म बोर्ड के एमडी तपेश झा की भले ही एक घटना विशेष की वजह से छुटटी हो गर्इ। मगर आर्इएफएस अफसरों की वापसी की इसे शुरूआत ही समझिए। सीएम के करीबी सूत्रों की मानें तो मानसून सत्र के बाद आर्इएएस अधिकारियों की एक बड़ी लिस्ट निकलेगी, उनमें बड़ी संख्या आर्इएएस अफसरों की भी होगी। तीन-चार को छोड़कर लंबे समय से सरकार के विभिन्न पदों पर जमे अफसरों को वन मुख्यालय वापस भेजा जाएगा और उनके बदले अब नए अफसरों को मौका दिया जाएगा। चुनाव के मुशिकल से साल भर बच गए हैं, सो सरकार अब सख्त है और जैसे संकेत मिल रहे हैं, काम को प्राथमिकता दी जाएगी, अब जुगाड़ नहीं चलेगा।
नया बसेरा
सबसे लंबे समय तक राज्य के डीजीपी रहे विश्वरंजन को छत्तीगसढ़ रास आ गया है। वे अब रायपुर को नया ठिकाना बनाने जा रहे हैं। उनके खमारडीह सिथत मकान में फायनल टच चल रहा है। छत्तीगसढ़ में बसने वाले वे पहले डीजी होंगे। इससे पहले प्रथम डीजी मोहन शुक्ला से लेकर आरएलएस यादव, एसके दास, अशोक दरबारी रिटायरमेंट के बाद बोरिया-बिस्तर बांधकर चले गए। ओपी राठौर का डीजी रहते देहावसान हो जाने के कुछ दिन बाद उनका परिवार गृह राज्य लौट गया था।
आदिवासी कार्ड
रमन सरकार किसी भी सूरत में आदिवासी वोटों को खिसकने नहीं देना चाहती। शायद यही वजह है कि आदिवासियों से जुड़ी योजनाओं को खासी प्राथमिकता दी जा रही है। आदिवासी बच्चों के लिए रायपुर में सर्वसुविधायुक्त हास्टल बनाने के बाद अब मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह 3 जुलार्इ को दिल्ली में ट्रार्इबल हास्टल का उदघाटन करने जा रहे हैं। 15 करोड़ में बनने वाला यह हास्टल साल भर में पूरे होने का भी कीर्तिमान बनाया है। सरकार के निर्देश थे, 2013 से पहले हास्टल बन जाना चाहिए। और अफसरों का दावा है, बाकी किसी राज्य के आदिवासी छात्रों के लिए दिल्ली में हास्टल नहीं है। चलिये, चुनाव में इसका लाभ तो मिलेगा ही।
गठजोड़
अपने करतबों की वजह से राज्य सूचना आयोग हमेशा चर्चा में रहता है। नर्इ चर्चा रायपुर नगर निगम और आयोग के बीच मधुर रिश्तों को लेकर है। शंकर नगर में आयोग तक जाने वाली टूटी-फूटी सड़क को नगर निगम ने चकाचक कर दिया है। बदले में, नगर निगम के खिलाफ आयोग में जो अपील लग रही हैं, या तो खारिज हो जा रही या ठंडे बस्ते में चली जा रही है। ठीक भी है, आखिर ताली एक हाथ से तो बजती नहीं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. हेमचंद यादव का पंचायत मंत्रालय कहां से और कौन संचालित कर रहा है?
2. टूरिज्म बोर्ड के एमडी तपेश झा को हटाने के पीछे मुख्य वजह क्या थी?
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इस वाकये से ऐसा मैसेज जा रहा है कि मुख्यमंत्री स्तर पर हुए फैसले को विभाग के मंत्री पलट दे रहे हैं.....मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव की मौजूदगी में पिछले दिनों हुर्इ वन विभाग के कैडर रिव्यू बैठक में फारेस्ट सर्किलों में सीएफ के बजाए सीसीएफ पोस्ट करने का फैसला लिया गया था। औपचारिक स्वीकृति के लिए फाइल भारत सरकार को भेजी जानी थी। मगर इस बीच एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में वन मंत्री विक्रम उसेंंडी ने गुरूवार को नोटशीट में यह लिखते हुए अडं़गा लगा दिया, सर्किलों में सीएफ सिस्टम ही बरकरार रखा जाए। राज्य बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि सीएम के ओके होने के बाद ऐसी नोट लिखी गर्इ हो। बताते हैं, पर्दे के पीछे बड़ा खेल हुआ। मलार्इदार कुर्सी खोने से घबराए कुछ सीएफ पिछले रविवार को राजधानी के एक बड़े होटल में बैठे। तय हुआ कि किसी तरह सीसीएफ पोसिटंग को रोका जाए। चर्चा है, इसके लिए 50 पेटी का बंदोबस्त हुआ और काम हो गया।
बर्दी को थप्पड़़
पुलिस में नीचे का स्टाफ अनुशासनहीनता करें तो लाइन अटैच, निंदा, निलंबन जैसी कर्इ कार्रवार्इ और आर्इपीएस अधिकारियों के लिए सौ खून माफ। जगदलपुर में पिछले हफते मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में तैनात जवानों के साथ ऐसा ही कुछ हुआ। बस्तर के कप्तान ने तीन कांस्टेबलों को भरे कार्यक्रम में थप्पड़ जड़ दिया। जवानों का कसूर इतना था कि वे भूख पर काबू न रख पाए। सुबह छह बजे से जवानों की डयूटी लगार्इ गर्इ थी। सीएम पहुंचे 10 बजे और कार्यक्रम खतम हुआ दोपहर करीब 1 बजे। तब तक 46 डिग्री टेम्परेचर में डयूटीरत जवानों को नाश्ता कौन कहें, पानी पाउच तक नहीं मिला। सीएम कार्यक्रम स्थल से जैसे ही रवाना हुए, भूख से बिलबिला रहे जवानों ने कार्यकर्ताओं के साथ भोजन शुरू कर दिया। इसके बाद तो मत पूछिए, नक्सल इलाके में तैनाती का गुस्सा कप्तान ने जवानों पर उतार दिया। जवान तब बर्दी में थे। और पुलिस में बर्दी का बड़ा मान होता है। उस पर शासन का मोनो भी लगा रहता है। बर्दीधारी जवानों पर हाथ साफ कर कप्तान ने किसका अपमान किया, आप समझ सकते हैं। जबकि, लापरवाही अफसरों की थी। वीवीआर्इपी डयूटी में तैनात जवानों को नाश्ता-पानी का इंतजाम न करना गंभीर चूक है। और पुलिस मैन्यूल भी यही कहता है, जवानों की सुविधाओं का खयाल रखा जाना चाहिए। पर कप्तान तो कप्तान होता है। उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवार्इ कौन करें।
नए आर्इएएस
राज्य प्रशासनिक सेवाओं से आर्इएएस अवार्ड होने वाले अफसरों से सरकार को कोर्इ खास उम्मीद नहीं है। 14 में से अनिल टूटेजा, नरेंद्र शुक्ला ठीक-ठाक हैं और थोड़ा-बहुत उमेश अग्रवाल। बाकी के भगवान ही मालिक हैं। एक अफसर के बारे में सुनिये, वे कुछ दिनों तक मार्कफेड में एडिशनल एमडी रहे। और वहां के अफसरों पर प्रेशर डालकर मार्कफेड के पैसे से अपने पैरेंटस का 11 लाख से अधिक का इलाज करा डाला। इनमें प्लेन के फेयर से लेकर अनाप-शनाप बिल शामिल है। कुछ तो इतने सीधे-सादे हैं कि खामोख्वाह वे प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाते, उन्हें दो-तीन हजार भी चल जाता है। लिस्ट में 14 लोगों के नाम हैं, जिनमें से आेंकार सिंह और आर्इआर देहारी के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है, सो उनको आर्इएएस अवार्ड होना नहीं है। बचे 12। और इन 12 में से छह से सात लोग ऐसे हैं, जिन्हें कलेक्टर बनाया तो जिले का बेड़ा गर्क होना तय है। इसी वजह से सरकार को जल्दी नहीं है।
वापसी
टूरिज्म बोर्ड के एमडी तपेश झा की भले ही एक घटना विशेष की वजह से छुटटी हो गर्इ। मगर आर्इएफएस अफसरों की वापसी की इसे शुरूआत ही समझिए। सीएम के करीबी सूत्रों की मानें तो मानसून सत्र के बाद आर्इएएस अधिकारियों की एक बड़ी लिस्ट निकलेगी, उनमें बड़ी संख्या आर्इएएस अफसरों की भी होगी। तीन-चार को छोड़कर लंबे समय से सरकार के विभिन्न पदों पर जमे अफसरों को वन मुख्यालय वापस भेजा जाएगा और उनके बदले अब नए अफसरों को मौका दिया जाएगा। चुनाव के मुशिकल से साल भर बच गए हैं, सो सरकार अब सख्त है और जैसे संकेत मिल रहे हैं, काम को प्राथमिकता दी जाएगी, अब जुगाड़ नहीं चलेगा।
नया बसेरा
सबसे लंबे समय तक राज्य के डीजीपी रहे विश्वरंजन को छत्तीगसढ़ रास आ गया है। वे अब रायपुर को नया ठिकाना बनाने जा रहे हैं। उनके खमारडीह सिथत मकान में फायनल टच चल रहा है। छत्तीगसढ़ में बसने वाले वे पहले डीजी होंगे। इससे पहले प्रथम डीजी मोहन शुक्ला से लेकर आरएलएस यादव, एसके दास, अशोक दरबारी रिटायरमेंट के बाद बोरिया-बिस्तर बांधकर चले गए। ओपी राठौर का डीजी रहते देहावसान हो जाने के कुछ दिन बाद उनका परिवार गृह राज्य लौट गया था।
आदिवासी कार्ड
रमन सरकार किसी भी सूरत में आदिवासी वोटों को खिसकने नहीं देना चाहती। शायद यही वजह है कि आदिवासियों से जुड़ी योजनाओं को खासी प्राथमिकता दी जा रही है। आदिवासी बच्चों के लिए रायपुर में सर्वसुविधायुक्त हास्टल बनाने के बाद अब मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह 3 जुलार्इ को दिल्ली में ट्रार्इबल हास्टल का उदघाटन करने जा रहे हैं। 15 करोड़ में बनने वाला यह हास्टल साल भर में पूरे होने का भी कीर्तिमान बनाया है। सरकार के निर्देश थे, 2013 से पहले हास्टल बन जाना चाहिए। और अफसरों का दावा है, बाकी किसी राज्य के आदिवासी छात्रों के लिए दिल्ली में हास्टल नहीं है। चलिये, चुनाव में इसका लाभ तो मिलेगा ही।
गठजोड़
अपने करतबों की वजह से राज्य सूचना आयोग हमेशा चर्चा में रहता है। नर्इ चर्चा रायपुर नगर निगम और आयोग के बीच मधुर रिश्तों को लेकर है। शंकर नगर में आयोग तक जाने वाली टूटी-फूटी सड़क को नगर निगम ने चकाचक कर दिया है। बदले में, नगर निगम के खिलाफ आयोग में जो अपील लग रही हैं, या तो खारिज हो जा रही या ठंडे बस्ते में चली जा रही है। ठीक भी है, आखिर ताली एक हाथ से तो बजती नहीं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. हेमचंद यादव का पंचायत मंत्रालय कहां से और कौन संचालित कर रहा है?
2. टूरिज्म बोर्ड के एमडी तपेश झा को हटाने के पीछे मुख्य वजह क्या थी?
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