शनिवार, 15 दिसंबर 2012

तरकश, 16 दिसंबर


जय हो

गर इरादे नेक हो और कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश हो, तो सिस्टम को ठीक किया जा सकता है। भिलाई के आरटीआई कार्यकर्ता इंदरचंद सोनी ने युवा आईएएस और दुर्ग जिला पंचायत के सीईओ सेनापति को गाड़ी से बत्ती निकालने पर बाध्य कर दिया। इंदर ने लिखा-पढ़ी करके सितंबर में उनकी पीली बत्ती उतरवाई थी। मगर अन्य आईएएस-आईपीएस की तरह बत्ती सिंड्रोम के शिकार सेनापति ने इसके बाद एडीएम, एसडीएम के लिए निर्धारित लाल-नीली बत्ती लगा ली। सोनी ने फिर कलेक्टर से शिकायत की। बात नहीं बनी तो उन्होंने सोमवार को जनदर्शन में जाकर कलेक्टर को चेतावनी दे आई, आप बत्ती उतरवा दें वरना, मैं उसे पत्थर मारकर फोड़ दूंगा। भले ही इसके बाद मुझे जेल जाना पड़े, परवाह नहीं। कलेक्टर चमक गए। खामोख्वाह लफड़ा होगा। मंगलवार को उन्होंने सेनापति को निर्देश दिया और गुरूवार को उन्होंने बत्ती निकाल दी। इंदर ने अवैध बत्तीधारियों के खिलाफ अरसे से अभियान छेड़ा हुआ है। इससे पहले भी भिलाई, दुर्ग के अफसरों की गाड़ी से बत्ती निकलवा चुके हैं। काश, रायपुर में भी कोई इंदर सोनी होते। मंत्रालय से लेकर पीएचक्यू तक के अपात्र अफसर बेशर्मी के साथ पीली बत्ती लगाकर घूम रहे हैं। पीएचक्यू में तो एआईजी तक। जबकि, एडीजी को भी पीली बत्ती लगाने की पात्रता नहीं है। सिवाय रेंज आईजी के। मंत्रालय के सिकरेट्री को कौन कहें, विभागों के डायरेक्टर तक बत्ती का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। इंडस्ट्री डायरेक्टर की भी गाड़ी में आप बड़ी-सी पीली बत्ती पाएंगे। ऐसे में इंदर की याद कैसे नहीं आएगी।

डीएम-एसपी

आईजी की लिस्ट निकलने के बाद अब कलेक्टर और एसपी के नम्बर हैं। इनमें पहला नम्बर तो उन अफसरों का लगेगा, जिनका अगले साल नवंबर में तीन साल या उससे अधिक हो जाएगा। आखिर, चुनाव आयोग उन्हें हटा ही देगा, सो, खुद ही उन्हें ठीक जगहों पर शिफ्थ करने की तैयारी की जा रही है। इसके बाद आएगा, पारफारमेंस का नम्बर। इसके लपेटे में तो दर्जन भर कलेक्टर और लगभग इतने ही एसपी आ रहे हैं। सरकार के पास ऐसी रिपोर्ट है, जिसमें 27 में से 15 जिलों में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन और पोलिसिंग की स्थिति बेहद खराब है। प्रशासन की छबि बदलने के लिए उन्हें हटाना अनिवार्य हो गया है। जिलों में कहें तो रायपुर, रायगढ़, राजनांदगांव और कवर्धा और कुछ हद तक दंतेवाड़ा की स्थिति कुछ ठीक है। बाकी के भगवान ही मालिक हैं। ब्र्रजेश मिश्र दुर्ग जैसे जिले के कलेक्टर कैसे बन गए, लोग आज तक नहीं समझ पाए हैं। और तीसरा, जिन कलेक्टर और एसपी के विभिन्न जिलों में लगातार पांच साल हो गए हैं, फेरबदल में उनका भी नम्बर लग सकता है। ऐसे में अधिकांश कलेक्टरों और एसपी का ज्यादा समय अपने आकाओं को खुशामद करने में जा रहा है। ताकि, कोई ठीक-ठाक जिला मिल जाए।    

नहले पे....

छत्तीसगढ़ में पंचायत मंत्री चुनाव नहीं जीतते......कांग्रेस सरकार में अमितेष शुक्ल को चुनाव हारना पड़ा, तो रमन सिंह की पहली पारी में पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर को करारी शिकस्त मिली। 12 दिसंबर को शीतकालीन सत्र में पंचायत के तहत आने वाले शिक्षाकर्मियों के सवाल पर कांग्रेस के धर्मजीत सिंह ने पंचायत मंत्री हेमचंद यादव को निशाने पर लेते हुए कहा कि उन्हें ऐसा काम नहीं करना चाहिए कि पंचायत मंत्री के हारने की एक परंपरा बन जाए। इस पर पंचायत मंत्री कहां चूकने वाले थे। उन्होंने तपाक से कहा, नेता प्रतिपक्ष भी चुनाव नहीं जीतते। और आप ऐसा कहकर अपने नेता को क्यों डरा रहे हैं। जाहिर है, राज्य में जो भी नेता प्रतिपक्ष बना है, वह अपनी सीट नहीं बचा पाया है। भाजपा के नंदकुमार साय से लेकर कांग्रेस के महेंद्र कर्मा तक।

जोगी स्टाइल

विधानसभा में, मंत्रियों में अरबन एंड हेल्थ मिनिस्टर अमर अग्रवाल का पारफारमेंस बढि़यां रहता है। सबसे उम्दा भी कह सकते हैं। उनकी हाजिरजवाबी को विपक्ष भी मानता है। बुधवार को जब उन्होंने अजीत जोगी को उन्हीं के स्टाईल में पलटवार किया, तो सदन ठहाकों से गूंज गया। हुआ ऐसा, स्वास्थ्य विभाग के प्रश्न के दिन जोगीजी ने केंद्र की राशि से चल रही योजनाओं में राज्य के नेताओं की फोटो का मामला उठाया था। इस पर जरा अमर का जवाब सुनिये, अध्यक्ष महोदय, जब हमलोग विपक्ष में थे और जोगीजी हमारी ओर, उस समय के, उनके भाषण का एक अंश सुनाता हूं......एजेंसी हमारी तो फोटो किसकी छपेगी.....? अंदाज हू-ब-हू जोगीजी का, कांपते हुए....दांत पिसकर और दोनों हाथ से छाती ठोकते हुए। इस पर जोगीजी भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए। बाहर निकलने पर, लाबी में पक्ष-विपक्ष के विधायक जोगी स्टाईल के लिए अमर को बधाई देते नजर आए। 

प्रथम एसपी

बिलासपुर के एसपी रतनलाल डांगी देश के संभवतः पहले एसपी होंगे, जिन्हें शहर में रहना नहीं भाता। उन्होंने जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर कोनी ग्राम पंचायत के आमतौर पर सूनसान रहने वाले इलाके में अपना ठिकाना बनाया है। जाहिर है, एसपी का बंगला अपने-आप में कंट्रोल रुम से कम नहीं होता, और उस इलाके के दो-तीन किलोमीटर के सराउंडिंग के लोग अपने को सुरक्षित समझते हैं। अब, एसपी ही शहर से बाहर रहेगा, तो पोलिसिंग का अंदाजा आप लगा सकते हैं। लेकिन कप्तान को बोले कौन। आईजी अशोक जूनेजा ने उनको इशारा किया था। नए आईजी राजेश मिश्रा को पता चला तो वे भी आवाक रह गए। अब, ऐसे में लोगबाग चुटकी क्यों न लें। कह रहे हैं.....डांगी साब, लंबे समय तक कोरबा में एसपी रहे हैं और अब कोरबा नही ंतो कोरबा रोड ही सही। मगर इससे पोलिसिंग का तो बाजा बज रहा है। न्यायधानी, अपराधधानी में तब्दील होती जा रही है। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. शिक्षाकर्मियों की भरती में क्या समान काम, समान वेतन के साथ संविलयन की शर्त थी और कांग्रेस अगर सत्ता में आएगी तो क्या इन मांगों को पूरा कर देगी?
2. प्रदेश के किस आईजी द्वारा नोट गिनने वाली मशीन लेने की चर्चा है?

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