शनिवार, 1 दिसंबर 2012

तरकश, 2 दिसंबर


उगते सूरज

रिटायर चीफ सिकरेट्री पीजाय उम्मेन को आर्इएएस अफसरों ने 11 महीने बाद ही सही, आखिरकार फेयरवेल दिया। इसके लिए राजधानी के आफिसर्स क्लब में 27 नवंबर को जोरदार जलसा हुआ। फेयरवेल भी हो जाए और विलंब को लेकर कोर्इ उंगली न उठाए, इसलिए साथ में, 30 नवंबर को रिटायर हुए कुछ और अफसरों की बिदार्इ पार्टी भी रख ली गर्इ थी। खैर, इसमें कोर्इ दिक्कत नहीं है। जब जागे, तब सवेरा। आर्इएएस अफसरों को वैसे भी उगते सूरज को सलाम करने की ही तो टे्रनिंग दी जाती है। देखा ही होगा आपने, सरकार बदलने से पहले अफसरों की निष्ठा कैसे बदल जाती है। राज्य सरकार ने इस साल जनवरी में उम्मेन को हटाकर नौकरशाही की कमान सुनील कुमार को सौप दी थी। उम्मेन को यह नागवार गुजरा और उन्होंने वीआरएस लेकर सरकार कटघरे में खड़ा कर दिया था। ऐसे में उन्हें फेयरवेल देने का मतलब समझा जा सकता है। अब सरकार पसीज गर्इ है और राज्योत्सव में उम्मेन को आउट आफ वे जाकर राष्ट्रपति से सम्मान कराया गया तो अब फेयरवेल देने में कोर्इ खतरा नहीं था। और चतुर आर्इएएस अफसरों ने इसमें देर नहीं लगार्इ। 

चेंजेज

रामनिवास यादव को डीजीपी बनाने के बाद अब उनकी टीम बनाने की कसरत शुरू हो चुकी है। बताते हैं, रमन सरकार की दूसरी पारी का यह बड़ा और आखिरी फेरबदल होगा, जिसमें जिला और रेंज ही नहीं, बलिक पुलिस मुख्यालय के अधिकारी भी इधर-से-उधर किए जाएंगे। लिस्ट में उन आर्इपीएस अफसरों का नाम सबसे उपर है, जिनका चुनाव के समय तीन साल पूरा हो जाएगा। रायपुर आर्इजी और इंटेलिजेंस चीफ मुकेश गुप्ता भी मर्इ में तीन साल पूरे कर लेंगे। सो, रायपुर में अशोक जूनेजा और जीपी सिंह में से किसी एक को मौका मिल सकता है। आर्इजी में जूनेजा का टीआरपी ज्यादा है। इसलिए उनका चांस अधिक है। अरुणदेव गौतम पीएचक्यू से दुर्ग आर्इजी बन सकते हैं। बिलासपुर के लिए आदमी बचेगा नहीं, इसलिए राजेश मिश्रा के अलावा सरकार के सामने कोर्इ चारा नहीं दिख रहा। असल में, आर्इजी लेवल पर अफसरों का टोटा है। मुकेश गुप्ता, संजय पिल्ले और आरके विज अगले महीने पदोन्नत होकर एडीजी बन जाएंगे। जीपी सिंह बिलासपुर में इंज्योर्ड होकर पेवेलियन लौट गए हैं। और अरुणदेव गौतम एक बार बिलासपुर कर चुके हैं। और चुनाव के समय पवनदेव को आर्इजी बनाने का कोर्इ जोखिम नहीं उठाएगा। फरवरी में सरगुजा आर्इजी भारत सिंह भी रिटायर हो जाएंगे। तब समस्या और गहराएगी। इधर, होम सिकरेट्री एएन उपध्याय के भी मंत्रालय से पीएचक्यू लौटने की चर्चा है। चर्चा तो डीएम अवस्थी की भी है। जाहिर है, पीएचक्यू में व्यापक उठापटक होगी।

ह्रदय परिवर्तन

पीजाय उम्मेन को जब चीफ सिकरेट्री से हटाया था तो मुख्यमंत्री ने उन्हें सीएसर्इबी का चेयरमैन बनाए रखने का आफर दिया था। यह कैबिनेट रैंक का पोस्ट है। वैसे भी, उन्हें सिर्फ चीफ सिकरेट्री से हटाया गया था, सीएसर्इबी और एनआरडीए के चेयरमैन तो वे थे ही। मगर गुस्साये उम्मेन केरल से ही वीआरएस का आवेदन भेज दिया था। मगर अब देखिए, उम्मेन का ज्यादा वक्त रायपुर में ही कट रहा है। राज्योत्सव के बाद 27 नवंबर को राजधानी में थे और अभी भी एनआरडीए के सेमिनार में हिस्सा ले रहे हैं। पता चला है, उम्मेन को गृह राज्य केरल में मन नहीं लग रहा है। सो, उम्मेन कैंप का प्रयास है, साब के लिए छत्तीसगढ़ में ही कोर्इ जुगाड़ हो जाए। इससे लाल बत्ती मिल जाएगी और गाड़ी-घोड़ा भी। उम्मेन के साथ सरकार वैसे भी दरियादिली दिखा रही है। सो, उन्हें प्रशासन अकादमी जैसी बिना काम की जगह पर कहीं पोसिटंग मिल जाए, तो अचरज की बात नहीं होगी। 

खेल

धान खरीदी के खेल के लिए मार्कफेड ऐसे ही नहीं जाना जाता है। लेकिन जरा, इस खेल को भी समझिए। साढ़े तीन करोड़ पुराने बोरों को बेचने के लिए मार्कफेड ने अप्रैल 2011 में टेंडर किया था। अलग-अलग छह जिलों में रेट आए थे एक रुपए से लेकर तीन रुपए तक। तब रेट कम होने का हवाला देकर मार्कफेड ने बोरों को बेचने से इंकार कर दिया था। अब, मार्केट में जूट के बोरों को जबर्दस्त शार्टेज चल रहा है। पुराने बोरों के रेट 20 से 24 रुपए तक पहुंच गए हैं। तो मार्कफेड ने पुराने टेंडर को फायनल करने की तैयारी शुरू कर दी है। कौडि़यों के मोल बोरों को बेचने पर एमडी के तैयार न होने पर बोर्ड से इसकी परमिशन ले ली गर्इ। साढ़े तीन करोड़ बोरों में से माना डेढ़ करोड़ बोरे खराब होंगे। दो करोड़ बोरे भी 20 रुपए के हिसाब से 40 करोड़ के होंगे। जबकि, सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर का रुल है कि 45 दिन के भीतर टेंडर का निराकरण न होने पर री-टेंडर किया जाए। यहां तो डेढ़ साल से भी अधिक समय हो चुके हैं। और सुनिये। धान खरीदी के पिक पीरियड में ऐसे समय पर पुराने बोरे बेचे जा रहे हैं, जब नए बोरे खरीद कर आ चुके हैं। सूत्रों की मानें तो पुराने बोरे की दर पर लोकल बारदाना दलालों को नए बोरे थमा दिए जाएंगे। तभी तो 5 खोखा का सौदा हुआ है और 50 पेटी एडवांस मिल गया है। इसमें कोर्इ गलत नहीं है। मार्कफेड में बैठे एक राजनीतिज्ञ की चला-चली की बेला है। इसलिए उनका प्रयास है, ज्यादा-से-ज्यादा इकठठा हो जाए। जमार्इ बाबू भी अब पावर में रहे नहीं। सो, आगे की गुंजाइश भी नहीं है।
 
हेल्थ इज.....

आपको याद होगा, मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने पिछले साल अपने मोटे- थुलथुले कर्मचारियों को फिट रखने के लिए एक-एक लाख रुपए खर्च किया था। मगर रमन सरकार तो पैरेंटस स्टेट से होशियार निकली। एक ढेला खर्च किए बिना कर्मचारियों के तंदरुस्त रखने का इंतजाम कर दिया। इसे समझना हो, तो नए मंत्रालय घूम आर्इये। पार्किंग से चार नम्बर गेट तक पहुंचने में 10 मिनट तो लगता ही है, सेक्शन इतना लंबा-चौड़ा है कि कर्मचारियों को रोज तीन से चार किलोमीटर पैदल चलने के बराबर मंत्रालय में मूवमेंट हो जाता है। दो-चार बार सचिवालय और मंत्रालय ब्लाक जाना पड़ गया तो और अधिक भी हो सकता है। कर्मचारियों की नए मंत्रालय जाने की एकमात्र खुशी यही है कि उनका तोंद अब कम हो रहा है......अधिकारियों ने अब सुबह की वाकिंग बंद कर दी है। मंत्रियों और अधिकारियों के लिए हालांकि एक नम्बर गेट है। मगर पोर्च से लिफट की दूरी ही 300 मीटर से अधिक है। इसलिए मंत्री तो मंत्रालय जा ही नहीं रहे हैं, अफसर बेचारे हांफते पहुंच रहे हैं....पुराने दिनों को याद करते हुए। पुराने मंत्रालय में पोर्च से 10 कदम की दूरी पर लिफट था। और 10 मिनट में आदमी पूरा मंत्रालय छान देता था। चलिये, हेल्थ इज वेल्थ वाला काम तो हो रहा है। 

अंत में दो सवाल आपसे
1. किन-किन नेताओं और अफसरों के कीचन से लेकर मेहमानवाजी तक का खर्चा पीडब्लूडी वहन करता है?
2. पीडब्लूडी का 100 करोड़ रुपए का जो मिसलेनियस फंड है, उसका उपयोग किस चीज में होता है?

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