शनिवार, 1 मार्च 2014

तरकश, 2 मार्च

तरकश

अभिषेक का अभिषेक

मुख्यमंत्री के बेटे अभिषेक सिंह का अबकि राजनांदगांव लोकसभा सीट से उतारकर सक्रिय राजनीति में अभिषेक किया जा सकता है. जाहिर है, पिछले दो विधानसभा चुनावों से उनकी पालिटिकल ट्रेनिंग चल रही है. 2008 और 2013, दोनों विधानसभा चुनावों में अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र राजनांदगांव की कमान उन्होंने संभाली, बल्कि इस बार तो कवर्धा में पार्टी को जीत दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही. हालांकि विधानसभा चुनाव के समय ही उन्हें टिकट देने की खूब चर्चा रही, मगर रमन सिंह ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि अभी समय नहीं आया है. लेकिन इससे बढ़िया समय अब हो भी नहीं सकता. केंद्र में एनडीए की सरकार फ र्म होने की संभावना बढ़ती जा रही है. फि र, सांसद के रूप में कैरियर शुरू करने के अपने मायने होते हैं. केंद्र सरकार में तीन युवा मंत्री ऐसे हैं, जो पहली बार सांसद चुन कर गए हैं. सो, दिस इज राइट टाइम.

अब पीएचडी

चीफ सिकरेट्री पद से रिटायर होकर कल दिल्ली लौटे सुनिल कुमार अब पीएचडी पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे. 2010 में जामिया मिलिया यूनिर्वसिटी में पीएचडी के लिए वे सलेक्ट हुए थे, मगर छत्तीसगढ़ आ जाने के चलते रिसर्च में ब्रेेक आ गया था. पीएचडी का उनका टापिक मीडिया से रिलेटेड है. सोमवार से इस पर वे काम शुरू कर देंगे. महीनेभर में रिसर्च का उनका काम कंप्लीट हो जाएगा. इस बीच उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी मिल जाए, तो अचरज नहीं. मंत्रालय के गलियारों में जैसी चर्चा है, छत्तीसगढ़ सरकार दिल्ली में उन्हें कोई पोस्ट दे सकती है.

आईएम आईएएस

सुनिल कुमार की विदाई के बाद शुक्रवार को मंत्रालय के आईएएस अफ सरों ने खुली हवा में सांसें लीं. चीफ सिकरेट्री चैंबर का दरवाजा खुल गया और उसमें गुलदस्ते का ढेर लग गया. सुनिल कुमार के समय में डीजीपी अनिल नवानी का गुलदस्ता भी बाहर रखवा लिया गया था. मगर शुक्रवार को बदला-बदला नजारा था. मंत्रालय के सिकरेट्रीज दो साल तक भारी प्रेशर में रहे. 10 से 5 बजे तक आफि स पहुंचने की विवशता. हर दिन दो-तीन मीटिंगें. मीटिंग में सीएस क्या पूछ दें और उसी पर सार्वजनिक रूप से क्लास लें लें, इसका खौफ हमेशा मंडराता रहता था. दिल्ली, मुंबई और गोवा जाओ तो उसका कारण बताओ. पिछले दो साल से आईएएस अफ सरों ने तफ रीह के लिए बाहर जाना बंद कर दिया था. चापलूसी करने किसी को सीएस चैंबर में आने की इजाजत नहीं थी. मिलना है, तो पहले एसएमएस कर या पीए से बात कर काम बताओ, फि र अपाइंट मिलेगा. भ्रष्ट अफ सर भी कागजों पर बेहद सावधानियां बरत रहे थे कि पकड़ लिया, तो छोड़ेगा नहीं, लेकिन अब ये फ ालतू के लफ ड़े बंद हो गए हैं. और, मंत्रालय के आईएएस अब महसूस कर रहे हैं कि वे सचमुच आईएएस हैं.

पावर गेम

85 बैच के आईपीएस एएन उपध्याय के डीजीपी बन जाने के बाद इसी बैच के एन. बैजेंद्र कुमार के अब एडिशनल चीफ सिकरेट्री बनने का रास्ता खुल गया है. इसी आधार पर डीएस मिर्शा भी समय से पहले एसीएस बन गए थे. मिर्शा 82 बैच के हैं. और, इसी बैच के रामनिवास तब डीजीपी बने थे. हालांकि, सुनिल कुमार के रिटायर होने के बाद एसीएस का एक पोस्ट वैकेंट हो गया है. इस पर 84 बैच के एमके राउत एसीएस बन जाएंगे. चूंकि, अगले हफ ्ते आचार संहिता लग जाएगी, इसलिए, फि लहाल तो डीपीसी की संभावना नहीं दिख रही है. मगर पावर गेम के तहत सरकार की कोशिश होगी कि जितना जल्द हो सके, राउत और बैजेंद्र एसीएस बन जाएं.
भाग्य
एएन उपध्याय ने देश में सबसे कम उम्र का डीजीपी बनने का रिकार्ड बनाया है. वे 85 बैच के हैं और उनके बैच के संजय कुमार हिमाचल प्रदेश में डीजीपी हैं, मगर वे भी उपध्याय से आठ महीने बड़े हैं. 15 अगस्त 1959 को जन्मे उपध्याय अभी 54 साल छह महीने के हैं. सब कुछ अच्छा रहा, तो वे साढ़े पांच साल डीजीपी रहेंगे. इतनी कम उम्र का देश में किसी दूसरे आईपीएस को डीजीपी बनने का मौका नहीं मिला है. दूसरे कई राज्यों में तो 30 साल की सर्विस वाले अभी डीजी नहीं बने हैं. और, उपध्याय 29 साल में डीजीपी. इसे ही कहते हैं भाग्य. सब कुछ होने के बाद भी आखिर आनंद कुमार की ताजपोशी नहीं हो पाई.

डोंट वरी
कांग्रेस की डूबती कश्ती पर करुणा शुक्ला की सवारी को दोतरफा मजबूरी से जोड़कर देखा जा रहा है. करुणा के लिये भाजपा में कोई जगह नहीं बच गई थी. राजनांदगांव में रमन के खिलाफ प्रचार कर और राजनाथ सिंह को निशाने पर लेकर भाजपा का रास्ता उन्होंने खुद ही बंद कर लिया था. और,कांग्रेस को बिलासपुर में कोई ढ़ंग का उम्मीदवार नहीं मिल रहा था. साथ में, बोनस में अटल बिहारी का नाम मिल रहा था. सो,कांग्रेस प्रवेश हो गया. मगर बड़ा सवाल यह है कि करूणा को अगर बिलासपुर से टिकट मिल भी गया, तो कांग्रेस के गुटीय पालिटिक्स में वे कितना सफल हो पायेंगी. बिलासपुर में प्रभावी गुट क्यों चाहेगा कि उनके क्षेत्र में एक नेत्री स्थापित हो जाये. ऐसे में, भाजपा तनिक भी चिंतित नहीं है.

नये चेहरे

लेकसभा चुनाव के लिये अबकी भाजपा के लिस्ट में आधा दर्जन नये चेहरे होंगे. बिलासपुर सांसद दिलीप सिंह जूदेव और सरगुजा सांसद मुरारी सिंह के निधन के कारणदोनों सीटों पर पार्टी नये चेहरे उतारेगी. इसके अलावा, चार वर्तमान सांसदों के टिकट काटने की तैयारी है. जिन सांसदों पर सबसे अधिक खतरा मंडरा रहा है, उनमें जांजगीर, कांकेर, बस्तर और महासमुंद शामिल हैं. राजनांदगांव के सांसद मधुसूदन यादव की सीट बदलकर अबिक महासमुंद से महासुंद से उतारने की चर्चा तेज है.

पकड़

प्रदेश कांग्रेस में बरसों से जमे प्रभारी महामंत्री सुभाष शर्मा को हटाकर भूपेश बघेल ने पार्टी पर अपनी पकड़ और बढ़ा ली है. मोतीलाल वोरा के कट्टर समर्थक सुभाष पिछले 10 वर्षो से इस अहम पद पर थे. इस दौरान छ: अध्यक्ष बदल गये, मगर उन्हें कोई हिला नहीं पाया. नंदकुमार पटेल ने कोशिश की थी, लेकिन बाद में पीछे हट गये. भूपेश ने पहले अपने दो समर्थकों को महामंत्री बनाया, फिर शनिवार को शर्मा को हटाकर अपने सबसे खास गिरीश देवांगन को महामंत्री पद पर बैठा दिया. यध्दपि, कांग्रेस में यह मानने वालों की कमी नहीं कि भूपेश ने वोराजी से हरी झंडी लिये बगैर यह कदम नहीं उठाया होगा. मगर, दम तो दिखाया.

अंत में दो सवाल आपसे

1) 28 फरवरी को मंत्रालय के किन दो वरिष्ठो को सुलह के लिये एक साथ बैठाया गया ?
2) रमन सरकार ने आखिर क्या करतब दिखाया कि जिस गृहमंत्रालय ने आनंद कुमार को नो आब्जेक्शन नहीं दिया, उसने एएन उपाध्याय को 10 महिने पहले डीजी बनने की अनुमति दे दी ?

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