शनिवार, 8 मार्च 2014

तरकश, 9 मार्च

तरकश



सस्ते में

कोरबा एसपी रतनलाल डांगी ने सोचा भी न होगा कि वे इस कदर सस्ते में आउट हो जाएंगे। विधानसभा चुनाव के ऐन पहले बिलासपुर से जब उनका कोरबा ट्रांसफर हुआ था, वे वहां जाना नहीं चाहते थे। और अब, जब वे मान लिए थे कि दिसंबर-जनवरी से पहले कुछ नहीं होने वाला। तब आचार संहिता लागू होने के दो दिन पहले उनका ट्रांसफर हो गया। वह भी बटालियन में कमांडेंट। आजकल नान आईपीएस भी कमांडेंट बन जा रहे हैं। डांगी तो दंतेवाड़ा, कोरबा और बिलासपुर जैसा जिला कर चुके हैं। ऐसे में, उनकी नई पोस्टिंग को लेकर लोगों का चैंकना स्वाभाविक था। आखिर, उनकी फिल्डिंग कमजोर कैसे पड़ गई।

सीनियरिटी का सम्मान

सीनियर होने के बाद गिरधारी नायक भले ही डीजीपी न बन सकें, मगर 3 मार्च को मंत्रालय में चुनावी तैयारियों की बैठक हुई तो वहां डीजीपी एएन उपध्याय ने उनके सम्मान का पूरा खयाल किया। चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड के एक ओर पीएस होम एनके असवाल के लिए कुर्सी लगी थी और दूसरी ओर डीजीपी के लिए। और उसके बाद वाली कुर्सी पर नायक बैठे थे। उपध्याय कुछ विलंब से पहुंचे। उन्होंने डीजीपी की कुर्सी पर बैठने के बजाए असवाल के बगल में बैठ गए। लोगों ने पूछा तो उन्होंने कहा, होम सिकरेट्री रहते हमेशा वे असवाल के बगल में बैठते रहे हैं। मगर ये कारण कतइ्र्र नहीं था। उपध्याय को शायद लगा कि डीजीपी ना बनने से नायक दुखी होंगे, उपर से पहली मीटिंग में ही उनसे पहले बैठकर उनका दिल और क्यों दुखाया जाए। सीनियर का सम्मान करके उपध्याय ने अपना बड़प्पन दिखाया।

ग्रेट

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के दौरान शराब वितरण पर जिस तरह कंट्रोल किया गया, चुनाव आयोग ने न केवल इसकी जमकर तारीफ की है। बल्कि, लोकसभा चुनाव में पूरे देश में इसे एक माडल की तरह एडाप्ट करने का संकेत दिया है। जाहिर है, टूरिज्म बोर्ड के एमडी संतोष मिश्रा को विस चुनाव के लिए लीकर आब्जर्बर बनाया गया था। और, उन्होंने इतना टाईट इंतजाम कर दिया था कि राजनीतिक दलों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। आचार संहिता लागू होने से पहले जिनने डंप कर लिया था, वही काम आया। बाकी चुनाव के दौरान तो फैक्ट्रियों से शराब निकल ही नहीं पाई। गेट पर कैमरा लगा दिए गए थे, अफसर भी तैनात थे। आयोग ने पिछले हफ्ते मिश्रा को दिल्ली बुलाया था। वहां, मुख्य चुनाव आयुक्त समेत भारत सरकार के कई सिकरेट्रीज के समक्ष मिश्रा ने अपना प्रेजेंटेशन दिया। ग्रेट……।

बेचारे

गौरव द्विवेदी और उनकी पत्नी मनिंदर कौर द्विवेदी के चक्कर में निधि छिब्बर और उनके पति विकास शील का डेपुटेशन रुक गया। निधि का डिफेंस जैसी मिनिस्ट्री में ज्वाइंट सिकरेट्री की पोस्टिंग मिल गई थी। लेकिन द्विवेदी दंपति ऐन-केन-प्रकारेण दो साल का डेपुुटेशन बढ़ाने में कामयाब रहे। जबकि, निवर्तमान चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार ने द्विवेदी को एक्सटेशन की सहमति देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि सबको अवसर मिलना चहिए। सरकार का फंडा साफ था कि दो आएंगे, तो दो जाएंगे। वैसे भी, द्विवेदी दंपति को दिल्ली गए पांच साल हो गए हैं। और आगे के लिए उन्हें स्टेट गवर्नमेंट को परमिशन चाहिए। मगर किन्हीं अदृश्य ताकत के दबाव में सरकार ने निधि और विकास का डेपुटेशन रोकते हुए द्विवेदी दंपति को एक्सटेंशन दे दिया। अब, निधि के सामने भारत सरकार द्वारा डिबार कर दिए जाने का खतरा पैदा हो गया है।

बल्ले-बल्ले

सिकरेट्री और प्रींसिपल सिकरेट्री लेवल पर अफसरों का टोटा होने का लाभ आईएफएस अफसरों को मिल रहा है। मंत्रालय में, इस समय आधा दर्जन आईएफएस विभिन्न विभागों के सिकरेट्री हैं। इनमें संजय शुक्ला आवास एवं पर्यावरण, पीसी पाण्डेय कृषि, जतीन कुमार श्रम, मुरूगन ट्राईबल, देवाशीष दास पंचायत और अनिल साहू फारेस्ट शामिल हैं। हाल में, मनोज पिंगुआ भी डेपुटेशन पर चले गए। उधर, पंचायत सिकरेट्री विवेक ढांड चीफ सिकरेट्री हो गए। इसके कारण आईएएस पर वर्क लोड काफी बढ़ गया है। आलम यह है कि पुअर परफारमेंस वाली सूची के आईएएस अफसरों के पास भी दो-दो विभाग हो गए हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कितने आईएएस अफसरों ने अभी तक देवेेंद्र नगर का बंगला खाली नहीं किया है और गृह विभाग उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की है? 
2. कितने ऐसे आईएएस और आईपीएस होंगे, जो भिलाई में बीएसपी का बंगला ले रखे हैं और राजधानी में सरकारी बंगला भी?

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