6 अक्टूबर
संजय दीक्षित
राजधानी रायपुर और उसके आसपास जिधर नजर डालों, उधर नौकरशाहों की जमीनें और फार्महाउसेज मिलेंगी आपको। मगर इनसे सौदा करना हो तो जरा बचके। क्योंकि, रायपुर के एक बिजनेसमैन ऐसा करके पछता रहे हैं। आईएएस ने बिजनेसमैन से 30 करोड़ में जमीन की डील की थी। 15 करोड़ रुपए एडवांस झटक लिया। मगर रजिस्ट्री के लिए बिजनेसमैन को पिछले तीन महीने से चक्कर काटना पड़ रहा है। आईएएस भी छोटे-मोटे आसामी नहीं हैं। इसलिए, बिजनेसमैन की उपर में शिकवा-शिकायत करने की हिम्मत नहीं पड़ रही हैं। यद्यपि, जमीन में कोई गडबड़ी नहीं है। नीयत में गड़बड़ी हुई है। जहां जमीन है, उसके जस्ट बगल में हाउसिंग बोर्ड का प्रोजेक्ट है। प्रोजेक्ट का ऐलान होने के चंद दिनों पहले औने-पौने दाम में जमीन खरीदी गई थी। जाहिर है, डर तो लगेगा ही। हालांकि, अब डरना नहीं चाहिए। जिस आईपीएस का खौफ था, सरकार ने उसके दांत निकाल लिए हैं। इसलिए, साब को बिजनेसमैन पर रहम करते हुए अब रजिस्ट्री कर देना चाहिए।
सीएम का गुस्सा
बजट 6800 करोड़ और खर्च सिर्फ 1100 करोड़। यह उपलब्धि है अपने पीडब्लूडी का। ऐसे में सीएम को भला गुस्सा कैसे नहीं आएगा। पिछले हफ्ते सीएम हाउस में हुई पीडब्लूडी की समीक्षा बैठक में विभाग का पारफारमेंस देखकर डाक्टर साब बिगड़ पड़े। पीडब्लूडी के अफसरों ने बताया कि एडिशनल पीसीसीएफ भूपं्रबधन मुदित कुमार फारेस्ट क्लियरेंस में रोड़ा अटका रहे हैं। तो सीएम ने कहा, बुलाओ। अमन सिंह ने मुदित को फोन लगाया, साब याद कर रहे हैं। 10 मिनट में मुदित सीएम के सामने थे। इसके बाद डाक्टर साब ने पूछा, 1100 करोड़ की ही क्यों खर्च हुआ है, तो मंत्री, अफसर सब बगले झांकने लगे। हालांकि, इस स्थिति के लिए सिस्टम को भी बरी नहीं किया जा सकता। सबसे अहम निर्माण विभाग में आखिर किस तरह के अफसरों को तैनात किया गया है। सबसे बड़ा क्लास है, उनसे रिजल्ट की अपेक्षा करना। पीडब्लूडी मंे ढाई अफसर हैं। दो आईएएस और आधा आईएफएस। आईएफएस बोले तो अनिल राय। कह सकते हैं पीडब्लूडी का बोझ उन्हीं पर है। उन्हें भी सरकार ने माध्यमिक शिक्षा मंडल में उलझा रखा है। आधे दिन बोर्ड में बैठते हैं और आधे दिन मंत्रालय में। और सुनिये। 2005 में ईएनसी से रिटायर हुए जीएस सोलंकी सड़क विकास प्राधिकरण में जीएम बनाए गए हैं। वे अभी करीब 70 साल के होंगे। डामर कांड उन्हीें के टाईम हुआ था। 9 साल पहले ईएनसी से ही रिटायर हुए पीएस क्षत्री को क्वालिटी कंट्रोल का जिम्मा सौंपा गया है। उनके ईएनसी रहते कितना क्वालिटी कंट्रोल हुआ? नहीं कर पाया, इस एज में अब वो क्या क्वालिटी देखेंगे। टेंडर सेल में भी रिटायर अफसर श्रीवास्तव। ऐसे में, उम्मीद बेमानी ही होगी।
वक्त का हर
रमन सिंह के दो मंत्री। एक लो प्रोफाइल, दूसरा हाईप्रोफाइल एन अग्रेसिव। महीने भर के भीतर दोनों गंभीर संकट में फंसे। मगर वक्त का फेर देखिए। लो प्रोफाइल मंत्री के खिलाफ गंभीर मामले थे। आखिर, अपराधिक कृत्य ही तो था। लुगाई को जेल हो जाती। मंत्री पद भी जा सकता था। मगर पुण्यायी कहिये या भरोसेमंद मिेेत्रों की मंडली। बाल बांका नहीं हुआ। बल्कि, मामला ही खतम हो गया। लेकिन, हाईप्रोफाइल मिनिस्टर की भद पिट गई। जबकि, उनके खिलाफ मामला क्या था, अभी भी लोगों को नहीं मालूम। वे किससे दुव्र्यवहार किये, इसकी किसने शिकायत की, मंत्री को भी नही पता। लेकिन, वक्त जब खराब होता है, तो उंट पर बैठने पर भी कुत्ता काट लेता है। इसलिए, आचरण ठीक रखना चाहिए, छबि दुरुस्त रखना चाहिए और संकट में काम आने वाले कुछ भरोसेमंद मित्र बनाने चाहिए।
सेहत भी, पोलिसिंग भी
बिलासपुर रेंज आईजी पवनदेव सेहत के लिए काफी कंशस रहते हैं। रायपुर में थे तो 12 से 14 किलोमीटर डेली का वाकिंग था। रायपुर में उनके पास चूकि काम कम थे, तो टाईम मिल जाता था। अब ऐसा नहीं है। सो, उन्होंने अब नई सायकिल खरीद ली हैं। टी शर्ट और लोवर पहनकर सायकिल पर सुबह-शाम निकल पड़ते हैं। न्यायधानी का एक चक्कर। सायकिल पर आईजी, कोई सोच भी नहीं सकता। इसी बहाने सभी प्वाइंट का इंस्पेक्शन हो जाता है। पुलिस वालों को पता भी नहीं चलता और अगले दिन थानेदार की पेशी हो जाती है। याने सेहत और पोलिसिंग साथ-साथ। गुड आइडिया।
छत्तीसगढि़यां सबले बढि़यां?
94 बैच की आईएएस रीचा शर्मा आखिरकार 12 साल बाद छत्तीसगढ़ लौट आईं। पढ़ाई-लिखाई की वजह से रीचा का डोमेसाइल दिल्ली हो गया है। मगर हैं मूलतः छत्तीसगढि़यां। ये अलग बात है, छत्तीसगढ़ बनने के बाद वे रहीं बहुत कम समय तक। मुश्किल से ढाई साल। 2003 में वे सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली गई थीं। वैसे, पिछले चार साल से नौकरी से गोल ही रहीं हैं। उन्होंने भांति-भांति की छुट्टियां ली। दो साल चाइल्ड केयर लीव, दो साल अवैतनिक अवकाश पर सिंगापुर में रहीं। अब, आईएएस जैसी नौकरी में इतनी छुट्टियां…..आप भी हैरान होंगे….सोच रहे होंगे, काहे के लिए आईएएस की एक सीट खराब करना। मगर यह उनका पर्सनल मामला है, इसलिए नो कमेंट। लेकिन, कुछ सवाल तो मौजूं हैं। रीचा छत्तीसगढ़ में कब तक रहेगी। छत्तीसगढ़ भवन में रेसिडेंट कमिश्नर का पोस्ट खाली हो रहा है। बीबीआर सुब्रमण्यिम के छत्तीसगढ़ आने के बाद उनकी पत्नी उमादेवी भी जल्द ही रायपुर लौटने वाली हैं। सो, रीचा का न्यू आर्डर कहीं छत्तीसगढ़ भवन के लिए निकल जाए, तो अचरज में मत पडि़येगा।
मिश्रा एसीएस और उपध्याय एडीजी
पाकिस्तानी ने पुलिस और टुरिज्म जैसे कई विभागों के वेबसाइट हैक कर ली। लेकिन, इसके लिए सरकारी विभाग भी कम जिम्मेदार नहीं है। वेबसाइट महीनों अपडेट नहीं होते। पुलिस के वेबसाइट में एएन उपध्याय अभी तक एडीजी प्रशासन थे। तो सिविल लिस्ट का हाल भी बुरा है। पुलिस का वेबसाइट हैक होने के बाद हमने छत्तीसगढ़ कैडर का सिविल लिस्ट देखा। इसे एनआइसी हैंडिल करता है। छह महीने से यह अपडेट नहीं हुआ है। 3 अक्टूबर को शाम चार बजे तक इसमें डीएस मिश्रा को एसीएस फायनेंस थे। एनके असवाल को एसीएस होम, मुकेश बंसल कलेक्टर रायगढ़, रीना कंगाले कलेक्टर कोरबा, रजत कुमार डीपीआर, विकास शील अमेरिका में। अब, आईएएस, आईपीएस की लिस्ट अपडेट नहीं हो पा रही है, तो छत्तीसगढ़ में डिजीटल इंडिया का भगवान ही मालिक है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. पुलिस महकमे में व्यापक फेरबदल की चर्चाओं में दम है या महज अफवाह?
2. राजधानी के केनाल रोड में पीडब्लूडी के तीन अफसरों को नोटिस दी गई है, उसके पीछे असली वजह क्या है?
2. राजधानी के केनाल रोड में पीडब्लूडी के तीन अफसरों को नोटिस दी गई है, उसके पीछे असली वजह क्या है?
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