शनिवार, 9 जनवरी 2016

बीजेपी के डा0 राज

tarkash photo

 

10 जनवरी
संजय दीक्षित
बीजेपी के दूसरी बार प्रदेश अध्यक्ष चुने गए धरमलाल कौशिक को अब पार्टी की खोई हुई ताकत वापिस लौटाने के लिए डा0 राज की भूमिका निभानी होगी। ये हम नहीं कह रहे हैं, पार्टी मुख्यालय में इस पर खूब चुटकी ली जा रही है। दरअसल, कौशिक की दूसरी बार हुई ताजपोशी के दौरान स्पीच में सभी ने इस बात पर जोर दिया था कि अध्यक्षजी को अब बीजेपी की खोई ताकत को वापिस लौटाने के लिए कमर कसना होगा। सभाकक्ष से बाहर निकलने के बाद पार्टी की खोई हुई ताकत पर जमकर ठहाके लगे। राजधानी के एक सीनियर मंत्री ने चुटकी ली, अध्यक्षजी को अब डा0 राज बनना होगा, तभी तो वे खोई ताकत लौटा पाएंगे। डा0 राज बोले तो जवानी और खोई हुई ताकत दिलाने वाले रायपुर के जाने-माने डाक्टर। ऐसे में, अध्यक्षजी का यह नया उपनाम हिट होना ही था।

राहू की दशा

अमित जोगी के बाद उनके पिता अजीत जोगी को ठिकाने लगाने के लिए कांग्रेस के जय-बीरु दिल्ली तो उड़े मगर उन्हें पता नहीं था कि रवाना होते वक्त राहू की दशा चालू हो गई थी। सो, जिस उत्साह के साथ गए थे, दो दिन बाद मायूसी के साथ लौट आए। अनुशासन कमेटी के प्रमुख एके एंटोनी दिल्ली से बाहर थे। कमेटी के एक दीगर मेम्बर से मिलने गए तो बताते हैं, उस रोज दादाजी के कान की मशीन खराब थी। दादाजी ने दोनों को यह कहते हुए लौटा दिया कि मशीन बन जाएगी, तो कल आकर बताना। एंटोनी के लिए अंग्रेेजी में रिपोर्ट बनाई गई थी। बाद में, चेंज कर उसे हिन्दी में तैयार करनी पड़ी। अगले दिन कान की मशीन बनने के बाद जय-बीरु ने अपनी फरियाद उनके सामने रखी। इसके बाद, रही-सही कसर सोनिया गांधी ने पूरी कर दी। मिलने का वक्त ही नहीं मिला। अब, आखिरी उम्मीद राहुल गांधी से है। बहरहाल, जोगी को इससे बड़ी राहत और क्या होगी। उन्हंें अपनी ताकत दिखाने और सेफ करने का पर्याप्त टाईम मिल गया। वैसे भी, कोई भी कार्रवाई तुरत-फुरत ही होती है। लंबा टाईम खिंचने का मतलब आप समझ सकते हैं।

पहले सत्ता, फिर…..

स्थानीय निकाय चुनावों में झटका लगने के बाद सरकार अब बोर्ड एवं कारपोरेशनों में ताजपोशी को लेकर गंभीर हो गई है। अभी लगभग दर्जन भर बोर्ड एवं निगमों में नियुक्तियां होनी हैं। मसलन, वित्त आयोग, श्रम कल्याण मंडल, वन विकास निगम, अंत्यवसायी निगम, मंडी बोर्ड, मदरसा बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग, कर्मकार मंडल, प्लानिंग कमीशन, पीएससी। इसके लिए सरकार पर पहले से काफी प्रेशर है। मगर निकाय चुनावों के बाद अब इनमें पोस्टिंग अपरिहार्य समझी जाने लगी है। सूत्रों की मानें तो मकर संक्रांति के बाद कभी भी लाल बत्ती का ऐलान हो सकता है। इसके बाद फिर, पार्टी के कप्तान धरमलाल कौशिक की टीम का ऐलान होगा। लाल बत्ती में जो बच जाएंगे, उन्हें संगठन में एडजस्ट किया जाएगा। याने पहले सत्ता, बाद में संगठन। ठीक भी है। संगठन हमेशा सत्ता के पीछे ही चलता है।

शिष्टाचार के दो रूप

होटल ताज में हुए टाउन प्लानिंग पर नेशनल सिम्फोजियम के इनोग्रेशन में सीएम के बायी ओर आवास एवं पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव अमन सिंह और दायी ओर विभागीय मंत्री राजेश मूणत और उसके बाद एक्स चीफ सिकरेट्री पी जाय उम्मेन बैठे थे। उम्मेन के लिए अमन सिंह ने न केवल अपनी कुर्सी छोड़ दी। बल्कि, उन्हें ससम्मान ले आकर उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठाई। यहीं नहीं, उन्होंने अपने हाथ से ही नेम प्लेट को भी एक्सचेंज किया। दरअसल, कुर्सी पर रहने के दौरान किसी भी सरकारी मीटिंग में सीएस हमेशा सीएम के बगल में बैठते हैं। भले ही उसमें कितने भी मंत्री होें। उम्मेन तो सबसे ज्यादा समय तक सीएस रहे हैं। करीब साढ़े तीन साल। इसलिए, अमन ने बड़ा दिल दिखाया। मगर ब्यूरोक्रेटिक शिष्टाचार का यह दृश्य हमेशा देखने के लिए थोड़े ही मिलता है। नवंबर में मंत्रालय में हुए एक कार्यक्रम में एक एक्स सीएस को अपमानित करने के लिए कुछ अफसरों ने उन्हें बैठने के लिए जान-बूझकर चैथे नम्बर की कुर्सी निर्धारित कर दी थी। एक्स सीएस ठहरे स्वाभिमानी। वे कार्यक्रम में ही नहीं गए।

फटकार पर सवाल

पांच जनवरी को कलेक्टर्स कांफ्रेंस में सीएम की पांच कलेक्टरों की कथित फटकार को लेकर अगले दिन बवाल मच गया। सीएम के करीबी अफसरों के पास सबने चढ़ाई कर दी। सबका एक ही सवाल था, साब ने हमको कब डांटा? हमें कहां डांटा? एक कलेक्टर ने सीधे सीएम के परिजनों को फोन लगा डाला। असल में, फटकार पर सवाल इसलिए खड़े हुए क्योंकि, पांच में से तीन कलेक्टर सरकार के बेहद प्रिय हैं। लगातार तीसरा और चैथा जिला कर रहे हैं तो जाहिर है, वे ऐसे-वैसे भी नहीं होंगे। खैर, कलेक्टरों को दुखित नहीं होना चाहिए। उन्हें याद होना चाहिए, 2014 के कलेक्टर्स कांफ्रेंस में मुंगेली कलेक्टर को जमकार फटकार मिली थी। तब माना गया था कि उनकी छुट्टी तय है। मगर हटाने की बात तो दूर, छह महीने बाद संभागायुक्त बनाकर सरकार ने उन्हें ईनाम दे दिया था। इसलिए, फटकार नहीं मिली है, तो अच्छी बात है। और मिली है तो भी इसे बुरा नहीं मानना चाहिए। हो सकता है, मार्च-अप्रैल में होने वाले फेरबदल में उन्हें और बेहतर जिला मिल जाए।

जब सख्त हुए सीएम

कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस में सीएम का अधिकांश समय तो कलेक्टर्स के साथ चर्चा में निकल गया। शाम पांच बजे एसपीज को मौका मिला तो उसमें घंटा भर से ज्यादा वक्त पीडब्लूडी ने ले लिया। इसके बाद डीजीपी एएन उपध्याय बोले। फिर, सीएम। एक-दो एसपी यह कहते हुए अपनी पीठ थपथपाने की कोशिश की कि जुआ और सट्टे में उनके जिले में कमी आई है। यह सुनते ही सीएम का चेहरा सख्त हो गया। बोले, चाय और पान ठेले वाले को भी पता होता है कि कहां जुआ और कहां सट्टा होता है, मगर आपलोगों को मालूम नहीं। बिना एसपी की जानकारी में मजाल नहीं, कि जुआ और सट्टा चल जाए। सीएम यहीं पर नहीं रुके। तल्खी से कहा, जुआ और सट्टा कम नहीं, बिल्कुल बंद होना चाहिए।

हाथी पर नियंत्रण

कलेक्टर्स कांफ्रेंस में जंगल विभाग के एक आला अधिकारी से हाथी समस्या पर प्रेजेंटेशन दिलाने का प्रोग्राम था। अफसर भी इसके लिए मचल रहे थे। जबकि, सीएम जानते थे कि इसमें बकवास के अलावा कुछ नहीं होने वाला। सो, उन्होंने यह कहते हुए कटाक्ष किया कि पहले हाथी पर ये नियंत्रण कर लें, फिर, प्रेजेंटेशन देंगे। सीएम के इस तेवर से जंगल विभाग के अधिकारी सकपका गए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अजीत जोगी के सबसे कठिन समय में उनके प्रिय विधायक कवासी लकमा और मनोज मंडावी साथ खड़े क्यों नहीं हुए?
2. भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव को सोनिया गांधी से मिलने का आखिर वक्त क्यों नहीं मिला?

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