शनिवार, 10 सितंबर 2016

कहीं साजिश तो नहीं?

11 सितंबर

संजय दीक्षित
राजनांदगांव बोले तो वीवीआईपी डिस्ट्रिक्ट….सीएम का निर्वाचन जिला। उस जिले के फूड आफिसर संजय दुबे को एसीबी ने 1.40 हजार रिश्वत लेते हुए ट्रेप किया। दुबे को पिछले साल ही राज्योत्सव में चावल की अफरातफरी के मामले में सस्पेंड किया गया था। उसका ट्रेक रिकार्ड कैसा रहा है, यह सबको पता था। ऐसे में, सवाल उठते हंै कि फिर उसे वीवीआईपी जिले के फूड विभाग की कमान कैसे सौंप दी गई। जबकि, रायपुर में वह असिस्टेंट फूड आफिसर है। और, सीएम के जिले में प्रमोशन देकर फूड आफिसर का एडिशनल चार्ज दे दिया गया। इसमे गलती संजय दुबे की नहीं है। आदमी को कहीं भी बिठा दीजिए, मूल स्वभाव भला कैसे बदल जाएगा। चूक उसकी पोस्टिंग करने वालों की है……गलती सरकार के रणनीतिकारों की है। सीएम के जिले में सीएम के लोगों के बिना एप्रूवल के पदास्थापना होनी नहीं चाहिए। पर ऐसा हो नहीं रहा। राजनांदगांव में ऐसे अफसरों की फौज है, जो या तो काम नहीं कर रहे हैं या फिर दो-चार नेताओं को खुश कर अपना काम कर रहे हैं। स्कूल शिक्षा विभाग के एक अफसर को हटाने के लिए कई बार नोटशीट चली। इस बार भी उसका ट्रांसफर नहीं हुआ। अब, वह अफसर वहां के लोगों को चैलेंज कर रहा है। यही हाल सिंचाई विभाग का है। वैसे, अधिकांश विभागों ने अपने सड़ियल अफसरों को वहां पोस्ट कर दिया है। कुछ साल पहले का आपको याद होगा। पीएमजीएसवाय के ईई भी एसीबी के हत्थे चढ़ गया था। जबकि, सीएम के जिले में ठोक बजाकर अफसर पोस्ट किए जाते हैं। और, ऐसा नहीं हो रहा है तो बातें तो होगी ही। यही कि, वीवीआईपी जिले के साथ साजिश तो नहीं।

अफसर की बद-दुआएं!

फूड विभाग के व्हाट्सएप ग्रुप में झगड़े का पिछले तरकश में जिक्र हुआ था। उसमें एडिशनल डायरेक्टर राजीव जायसवाल ने जिस अफसर को गेहंू चोर, चावल चोर लिखा था, वह असिस्टेंट फूड आफिसर संजय दुबे को निशाना बनाकर लिखा गया था। दुबे ने जायसवाल को आईएएस अवार्ड न होने पर तंज कसा था। इस पर जायसवाल ने जवाबी हमला किया। तो चोर-चोर, मौसेरे भाई की तरह भ्रष्ट आफिसर्स दुबे के साथ हो गए थे। आखिर में जायसवाल को खेद व्यक्त करना पड़ा। मगर लगता है, जायसवाल की बद्-दुआएं दुबे को लग गई। हफ्ते भर में दुबे को जेल की हवा खानी पड़ गई।

महिला आईएएस को प्रताड़ना

मंत्रालय में एक अहम विभाग के सिकरेट्री ने एक महिला आईएएस को इतना प्रताड़ित किया कि सरकार ने महिला आईएएस का विभाग बदलना ही मुनासिब समझा। बताते हैं, विभाग का पूरा काम महिला आईएएस करती थी। मगर सीएम के सामने उसका पूरा क्रेडिट सिकरेट्री उठा ले जाते थे। अलबत्ता, बात-बात में महिला अफसर को फटकारना भी। विभाग का पूरा बोझ उन्होंने महिला आईएएस पर डाल दिया था। इससे दुखी होकर वह लंबी छुट्टी पर चली गई थी। सीएम सचिवालय को इसका पता चला तो डाक्टर साब को वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया। और, तय हुआ कि महिला आईएएस का विभाग चेंज कर दिया जाए। सिकरेट्री हैं मेष राशि वाले। समझते हैं, सबसे काबिल वे ही हैं। लेकिन, दो साल में काबिलियत कुछ दिखा नहीं पाए। सो, फ्रस्टेशन तो निकलेगा ही ना।

दो राहे पर सरकार

नान घोटाले में सरकार दो राहे में फंस गई है। एसीबी ने आरोपी अफसरों के खिलाफ व्यापक भ्रष्टाचार का केस बनाते हुए कोर्ट में चालान पेश कर चुकी है। उधर, अनिल टुटेजा प्रकरण में हाईकोर्ट में सरकार ने पीडीएस की जोरदार वकालत की है। इससे पहिले विधानसभा में भी मंत्री ने कहा था कि छत्तीसगढ़ के पीडीएस का कोई जवाब नहीं है। ऐसे में यह चर्चा निराधार नहीं लगता कि डा0 आलोक शुक्ला और टुटेज के इश्यू में सरकार कहीं पुनर्विचार के लिए भारत सरकार को लेटर न लिख दें।

2009 बैच क्लोज

समीर विश्नोई के कोंडागांव कलेक्टर बनने के बाद 2009 बैच क्लोज हो गया है। इस बैच के सभी छह अफसर अभी कलेक्टर हैं। 2010 बैच अब कलेक्टर का दावेदार हो गया है। इस बैच में चार आईएएस हैं। सारांश मित्तर, जेपी मौर्य, रानू साहू और कार्तिकेय गोयल। हालांकि, इस साल इनका चांस लगता नहीं।

गौरव को एक्सटेंशन

आईएएस दंपति गौरव द्विवेदी और मनिंदर कौर द्विवेदी को भारत सरकार में दो साल का फिर एक्सटेंशन मिल गया है। दोनों 2009 में डेपुटेशन पर मसूरी गए थे। वहां से वे दिल्ली आए। हालांकि, 2014 में उनका पांच साल पूरा हो गया था। मगर उस समय भी दो साल का एक्सटेंशन मिल गया था। और, इस बार फिर। इस तरह सात साल से अधिक समय तक डेपुटेशन पर रहने वाले बीबीआर सुब्रमण्यिम के बाद दूसरे आईएएस हो गए हैं। सुब्रमण्यिम की ऐसी सेटिंग थी कि उनके लिए पीएम मनमोहन सिंह ने सीएम को लेटर लिख दिया था कि क्या मुझे अपने पंसद से एक आईएएस रखने का अधिकार नहीं है। बहरहाल, गौरव वहां आईटी देख रहे हैं। उन्हीं के निर्देशन में भारत सरकार के एप बन रहे हैं। इसी बेस पर उन्हें एक्सटेंशन मिला है। वरना, सात साल के बाद काफी मुश्किल होता है।

वीरता को पुरस्कार

राजनांदगांव में नक्सलियों फ्रंट पर जोरदार काम करने वाले बीएसएफ के अफसर वायपी सिंह को सरकार ने वीरता का पुरस्कार दिया। उन्हें राज्य सेवा में संवियलन करते हुए उन्हें राज्य पुलिस सेवा का 97 बैच दिया गया है। इसमें अहम यह है कि वायपी ने इसके लिए कोई आवेदन नही दिया था। मगर सीएम ने अपने जिले में उनका काम देखकर खुद इसके लिए पहल की। हो सकता है, रापुसे के अफसरों को यह नागवार गुजरे। वायपी के चलते 2008 बैच के एक अफसर को आईपीएस अवार्ड होने में एक साल की देरी होगी। मगर वीरता को इनाम तो मिलना चाहिए न।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रिश्वत लेते पकड़े गए फूड आफिसर संजय पाण्डेय को रायपुर के किस मंत्री का संरक्षण प्राप्त था?
2. न्यायपालिका पर गंभीर सवाल उठाने वाले आईएएस अलेक्स पाल मेनन को क्या सरकार सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ देगी?

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