शनिवार, 23 नवंबर 2019

दो गाड़ी, 8 कमिश्नर, कलेक्टर

24 नवंबर 2019
कमिश्नर और सात कलेक्टर दो गाड़ी में….यह थोड़ा अटपटा लग सकता है। मगर 21 नवंबर को दोपहर जब नया रायपुर के स्टार होटल मेफेयर में कमिश्नर, कलेक्टर्स गाड़ी से उतरे तो देखने वाले आवाक रह गए! जनरल पब्लिक की तरह कलेक्टर्स…? दरअसल, चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल ने जब छह दिन के भीतर दूसरी बार बस्तर के कमिश्नर, कलेक्टर्स, सीईओ को रायपुर तलब किया तो साफ तौर पर हिदायत दी गई वे अलग-अलग गाड़ियों में आकर सरकारी धन का अपव्यय करने की बजाए दो गाड़ियों में आएं। अब सीएस का हुकूम था। सो, उसका पालन करना ही था। बस्तर के सभी सातों कलेक्टर कमिश्नर बंगले में एकत्रित हुए। और, फिर वहां से एक गाड़ी में कमिश्नर और तीन कलेक्टर बैठे और दूसरी में चार कलेक्टर। इसी तरह दो अन्य गाड़ियों में सात जिला पंचायत सीईओ। होटल मेफेयर में सभी को लजीज भोजन कराया गया। कई तो धन्य हो लिए मेफेयर होटल को देखकर ही, खाने की तो पूछिए मत! लंच के बाद सभी अफसरों को मंत्रालय ले जाया गया मीटिंग के लिए। वहां फिर बस्तर संभाग के डेवलपमेंट को लेकर अफसरों की ऐसी खिंचाई हुई कि जब वे बाहर निकले तो चेहरा देखने लायक था। खुद को सुपरमैन समझने वाले कलेक्टरों को एक तो गाड़ियों में भर कर आना पड़ा और उस पर से….टांग देंगे, लटका देंगे। इसे ही कहते हैं, खिला-पिलाकर धुलाई। कागजों और सोशल मीडिया में काम करके सरकार को भ्रमित करने वाले कलेक्टरों को अब संभल जाना चाहिए।

अजब-गजब

जिस महिला आईएफएस पर 13 करोड़ के बॉटनीकल गार्डन में गड़बड़झाला करने का आरोप लगा था, वह रायपुर की डीएफओ बन गई। जंगल सफारी में पोस्टिंग के दौरान महिला आईएफएस ने नया रायपुर में 13 करोड़ का बॉटनीकल गार्डन बनवाया था। एक कांग्रेस नेता ने आरटीआई में जानकारी निकलवाई कि गार्डन में मुश्किल से तीन करोड़ भी खर्च नहीं हुए हैं। नेता ने पूरे दस्तावेज के साथ अफसर के खिलाफ ईओडब्लू में शिकायत की। शिकायत गंभीर किस्म की है, इसलिए ईओडब्लू ने जांच के लिए सरकार से अनुमति मांगी है। अनुमति की फाइल सरकार में प्रक्रियाधीन है। इससे पहिले महिला अफसर को रायपुर जैसे डिवीजन की कमान सौंप दी गई। इस चक्कर में रायपुर के डीएफओ उत्तम गुप्ता को छह महीने में ही हटना पड़ गया। उत्तम वही आईएफएस हैं, जिन्होंने पिछली सरकार के वन मंत्री के 50 लाख के फर्जी वाउचर पर दस्तखत करने से इंकार कर दिया था। इसके लिए पुरस्कृत होने की बजाए छुट्टी हो गई। है न अजब-गजब!

जय-बीरु की जोड़ी

ब्यूरोक्रेसी में कभी आईएएस आरपी मंडल और आईपीएस अशोक जुनेजा को जय-बीरु की जोड़ी कहा जाता था। दोनों पहले बिलासपुर के कलेक्टर-एसपी रहे और फिर रायपुर के। राजधानी में ये जोड़ी काफी हिट रही….दोनों हर मौके पर साथ दिखते थे। वक्त बदला….जय अब चीफ सिकरेट्री हैं और बीरु एडीजी रह गए। बीरु का जनवरी से प्रमोशन ड्यू है। अब पीएचक्यू में अफसर चुटकी ले रहे हैं…क्या बीरु को डीजी बनाने में जय मदद करेंगे। यह सवाल इसलिए भी मौजूं है कि 30 नवंबर को डीजी जेल बीके सिंह रिटायर हो रहे हैं। सरकार चाहे तो संजय पिल्ले और आरके विज के साथ अशोक जुनेजा को डीजी बनाने के लिए डीपीसी कर सकती है। भारत सरकार से इजाजत लेकर। जाहिर है, बीरु को जय से उम्मीदें तो होगी ही।

27 तक ऐलान

राज्य निर्वाचन आयोग 28 नवंबर या इससे एकाध दिन पहले नगरीय निकाय चुनाव का ऐलान कर सकता है। यह उसकी मजबूरी भी होगी। क्योंकि, पांच जनवरी तक सभी 151 नगर निगम, नगरपालिकाएं और नगर पंचायतों का गठन हो जाना चाहिए। काउंटिंग के बाद कलेक्टर विधिवत बैठक बुलाएंगे। फिर, इस बार मेयर का चुनाव भी राज्य निर्वाचन आयोग कराएगा। पहले पार्षद और महापौर का चुनाव एक ही दिन होते थे। इसलिए, आयोग का काम इसके बाद खतम हो जाता था। अब पार्षद मेयर चुनेंगे। और, यह राज्य निर्वाचन आयोग की देखरेख में होगा। लिहाजा समझा जाता है 27, 28 दिसंबर तक काउंटिंग करना अनिवार्य होगा। तभी पूरी प्रक्रिया पूरी कर 5 जनवरी तक पहली बैठक संपन्न हो पाएगी। सो, यह मानकर चलें कि 28 नवंबर तक सूबे में आचार संहिता की घोषणा हो जाएगी।

नया प्रदेश अध्यक्ष


बीजेपी के दर्जन भर नए जिलाध्यक्षों का ऐलान हो गया है। चार जिलों में निर्वाचन की प्रक्रिय पूरी की जाएगी। इसके बाद बाकी जिलों में मनोनयन कर दिया जाएगा। दरअसल, भाजपा के संविधान के अनुसार कुछ परसेंटेज जिलों में विधिवत चुनाव जरूरी है। याने 27 में से 16 जिलों में। इसके बाद पार्टी मनोनयन के लिए फ्री रहेगी। खासकर जिन जिलों में विवाद की स्थिति है, वहां मनोनयन किया जाएगा। हालांकि, भाजपा के भीतरखाने से यह भी सुनाई पड़ रहा है कि पार्टी अध्यक्ष विक्रम उसेंडी को भी बदलने पर विचार कर रही है। सत्ताधारी पार्टी और उस पर भी सीएम भूपेश बघेल जैसे आक्रमक राजनीति करने वाले नेता हों, उनके सामने उसेंडी बेहद कमजोर पड़ रहे हैं। नए अध्यक्ष को लेकर भाजपा के भीतर खुसुर-फुसुर शुरू हो गई है। नए अध्यक्ष को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं की नजर पूर्व मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह की ओर है। नया अध्यक्ष उनके पसंद का होगा या फिर पार्टी कोई हटकर फैसला करेगी। वैसे, जिला अध्यक्षों में रमन सिंह की चल रही है। इसलिए, पार्टी के बड़े नेता भी नए अध्यक्ष के बारे में खुलकर कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं।

कुजूर की ताजपोशी

निवर्तमान मुख्य सचिव सुनील कुजूर को रिटायर होने के 15 दिन के भीतर ही पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल गई। उन्हें सहकारिता निर्वाचन आयुक्त बनाया गया है। हालांकि, यह पोस्टिंग चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने वाले अफसर के लायक नहीं है। इस पद पर प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी जीएस मिश्रा पोस्टेड रहे हैं। उनसे पहिले एसीएस DS मिश्रा भी। लेकिन, मिश्रा ने भी रिटायर होने के बाद एक साल तक वेट किया। जब कहीं कोई गुंजाइश नहीं बची तब इस पोस्ट के लिए उन्होंने हां किया था। फिर, निर्वाचन की पोस्टिंग को सरकार ने पांच बरस से घटाकर दो बरस कर दिया है। किन्तु कुजूर के सामने कोई विकल्प नहीं था। सीएस लेवल का पोस्ट कहीं खाली नहीं है। रेरा में विवेक ढांड हैं और मुख्य सूचना आयुक्त एमके राउत। बिजली बोर्ड में शैलेंद्र शुक्ला हाल ही में चेयरमैन बने हैं। एक पद सूचना आयुक्त का था। लेकिन, वो और छोटा हो जाता। लिहाजा, कुजूर ने सहकारिता निर्वाचन को ही ओके कर दिया। वैसे भी, कुजूर के पास चुनाव कराने का खासा तर्जुबा है। देश में सबसे अधिक राज्यों में वे प्रेक्षक बनकर चुनाव कराने गए हैं। कई साल तक प्रदेश के निर्वाचन अधिकारी भी रहे हैं।

केडीपी को वेट

सीएस सुनील कुजूर और एसीएस केडीपी राव एक साथ रिटायर हुए थे। कुजूर को पोस्टिंग मिल गई। ऐसे में, सवाल उठता है केडीपी का क्या होगा। केडीपी की सहकारी निर्वाचन में दिलचस्पी थी। लेकिन, वो अब फुल हो गया है। अब एकमात्र बच रहा है सूचना आयुक्त। वहां भी किसी आरटीआई वाले की नियुक्ति की चर्चा हो रही है। ऐसे में, केडीपी को सूचना आयुक्त के लिए जोर लगाना पड़ेगा। तभी कुछ बात बन पाएगी। वरना, पुराना अनुभव है, पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग जितनी जल्दी मिल जाए, उतना अच्छा। धीरे-धीरे मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। गिरधारी नायक का उदाहरण सामने है। याद होगा, एक्स चीफ सिकरेट्री अशोक विजयवर्गीय ने मुख्य सूचना आयुक्त बनने के लिए सीएस जैसा पद छह महीने पहिले छोड़ दिया था। एसीएस सरजियस मिंज ने भी कुछ ऐसा ही किया था। विवेक ढांड को रिटायरमेंट से पहले ही पोस्टिंग मिल गई थी। एमके राउत को रिटायरमेंट के बाद मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति 12 दिन में मिल गई थी । सिकरेट्री सुरेंद्र जायसवाल को रिटायरमेंट की शाम को ही संविदा नियुक्ति मिल गई थी। इसी तरह का कुछ सिकरेट्री हेमंत पहारे के साथ हुआ था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. गृह और जेल विभाग से ट्रांसपोर्ट को अलग रखने के मायने क्या हैं?
2. रिटायर आईपीएस गिरधारी नायक को आपदा प्रबंधन का प्रमुख बनाने में किसने रोड़ा लगाया है?

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