22 दिसंबर 2019
नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे 24 दिसंबर को आएंगे। इससे पहिले राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। दरअसल, आयोग के पास टाईम भी नहीं है। 15 फरवरी तक ग्राम पंचायत, जनपद और जिला पंचायतों के पदाधिकारियों को शपथ दिलाने की प्रक्रिया निबटानी पड़ेगी। खबर है, नगरीय निकाय के रिजल्ट के एक-दो दिन के भीतर ही आयोग पंचायत चुनाव का ऐलान कर देगा। इसके साथ ही कोड ऑफ कंडक्ट फिर प्रभावशील हो जाएगा। इसका मतलब ये हुआ कि आचार संहिता की वजह से डेढ़ महीने से सरकारी कामधाम ठप पड़ा है, वो 20 फरवरी तक फुरसत समझिए। छत्तीसगढ़ के साथ यही बिडंबना है, राज्य सरकार के पांच साल में से सवा साल आचार संहिता में गुजर जाता है। विधानसभा चुनाव के लिए पिछले साल 6 अक्टूबर को कोड ऑफ कंडक्ट लगा था। वह दिसंबर एंड में खतम हुआ। जनवरी नया साल में निकल गया। फरवरी में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई। मई एंड में लोस चुनाव संपन्न हुआ तो जून में बरसात शुरू हो गई। अक्टूबर बरसात, दशहरा और दिवाली में निकल गया। नवंबर में ठाकुर राम सिंह ने नगरीय निकाय चुनाव का बिगुल फूंक दिया। और, अब पंचायत चुनाव। वैसे, कम-से-कम इस साल तो ये ठीक है, फरवरी में बजट पेश हो जाएगा। इसके बाद नया बजट, नया काम।
नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे 24 दिसंबर को आएंगे। इससे पहिले राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। दरअसल, आयोग के पास टाईम भी नहीं है। 15 फरवरी तक ग्राम पंचायत, जनपद और जिला पंचायतों के पदाधिकारियों को शपथ दिलाने की प्रक्रिया निबटानी पड़ेगी। खबर है, नगरीय निकाय के रिजल्ट के एक-दो दिन के भीतर ही आयोग पंचायत चुनाव का ऐलान कर देगा। इसके साथ ही कोड ऑफ कंडक्ट फिर प्रभावशील हो जाएगा। इसका मतलब ये हुआ कि आचार संहिता की वजह से डेढ़ महीने से सरकारी कामधाम ठप पड़ा है, वो 20 फरवरी तक फुरसत समझिए। छत्तीसगढ़ के साथ यही बिडंबना है, राज्य सरकार के पांच साल में से सवा साल आचार संहिता में गुजर जाता है। विधानसभा चुनाव के लिए पिछले साल 6 अक्टूबर को कोड ऑफ कंडक्ट लगा था। वह दिसंबर एंड में खतम हुआ। जनवरी नया साल में निकल गया। फरवरी में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई। मई एंड में लोस चुनाव संपन्न हुआ तो जून में बरसात शुरू हो गई। अक्टूबर बरसात, दशहरा और दिवाली में निकल गया। नवंबर में ठाकुर राम सिंह ने नगरीय निकाय चुनाव का बिगुल फूंक दिया। और, अब पंचायत चुनाव। वैसे, कम-से-कम इस साल तो ये ठीक है, फरवरी में बजट पेश हो जाएगा। इसके बाद नया बजट, नया काम।
अफसरों को अभयदान
यह बात स्पष्ट है, नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों से जिलों के कलेक्टर्स एवं नगर निगम कमिश्नरों का न केवल परफारमेंस आंका जाएगा….बल्कि इसी से उनका भविष्य तय होगा। अधिकांश कलेक्टरों एवं निगम कमिश्नरों का जिलों में एक बरस पूरा हो गया है। ऐसे में, कोई कलेक्टर या कमिश्नर जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। कलेक्टर वैसे भी जिले में सरकार के प्रतिनिधि होते हैं। रिजल्ट अनुकूल नहीं आने का मतलब होगा, उन्होंने सरकार की योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं कराया। कलेक्टर्स और कमिश्नर्स भी इस चीज को समझ रहे हैं। तभी 25 दिसंबर का डेट उन्हें काफी डराया हुआ है। इस दिन चुनाव के रिजल्ट आएंगे। लेकिन, रिजल्ट अच्छा आए या खराब। पंचायत चुनाव के चलते उन्हें अब फरवरी तक के लिए अभयदान मिल जाएगा। आचार संहिता की वजह से अफसरों को हटाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि, कलेक्टर डिस्ट्रिक्ट रिटर्निंग आफिसर होते हैं। उसी तरह निगम कमिश्नर असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट रिटर्निंग आफिसर।
अब बजट के बाद
पंचायत चुनाव के चलते लगता है, मेगा प्रशासनिक फेरबदल अब बजट के बाद ही हो पाएगा। फरवरी में मुख्यमंत्री एवं भारसाधक वित्त मंत्री भूपेश बघेल अपना दूसरा बजट पेश करेंगे। तब तक धान खरीदी का काम भी पूरा हो जाएगा। तब जिलों में थोक में ट्रांसफर होंगे। हां, मंत्रालय और पुलिस मुख्यालय में जरूर कुछ अहम बदलाव हो सकते हैं…. ऐसी खबरें आ रही हैं।
डीजी का प्रमोशन
भारत सरकार ने संजय पिल्ले और आरके विज को फिर से डीजी बनाने के लिए अनुमति दे दी है। फिर से का मतलब आप समझते होंगे….दोनों को पिछले साल 6 अक्टूबर को पिछली सरकार ने डीजी बनाया था। नई सरकार ने पदोन्नति को निरस्त कर पिल्ले, विज और मुकेश गुप्ता को डिमोट कर दिया। मुकेश गुप्ता चूकि सस्पेंड हैं, लिहाजा राज्य सरकार ने दो पदों के लिए डीपीसी करने की अनुमति मांगी थी। इस दौरान 30 नवंबर को डीजी बीके सिंह के रिटायर हो जाने के बाद तीसरा पद भी खाली हो गया है। एडीजी अशोक जुनेजा इस तीसरे पद के इकलौते दावेदार हैं। अब प्रश्न यह है कि सरकार दो पदों पर डीपीसी कर देगी या फिर जुनेजा के लिए भारत सरकार से अनुमति आने का वेट करेगी। हालांकि, पिछली सरकार ने बिना अनुमति ही तीनों को डीजी बना दिया था। जुनेजा का प्रमोशन जनवरी से ड्यू है। कुल मिलाकर संजय पिल्ले के ग्रह-नक्षत्र कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं। पिछले साल पोस्ट होने के बाद भी उन्हें प्रमोशन के लिए 10 महीना वेट करना पड़ा। क्योंकि, सरकार विज और गुप्ता के बगैर उन्हें डीजी बनाने के लिए तैयार नहीं थी। पिल्ले डीजी बने और बिना कसूर के डिमोट हो गए। उनके लिए एक पोस्ट तो खाली थी ही। लेकिन, एक ही आदेश में तीनों का प्रमोशन हुआ था इसलिए तीनों का निरस्त करना पड़ गया।
सीएस की क्लास
चीफ सिकरेट्री की कुर्सी संभालने के डेढ़ महीने के भीतर आरपी मंडल 23 दिसंबर को तीसरी बार कलेक्टरों से मुखातिब होंगे। उन्होंने कलेक्टरों के साथ जिला पंचायत सीईओ और डीएफओ को भी वीडियोकांफें्रंसिंग में मौजूद रहने के लिए कहा है। सीएस जिलों में चल रहे मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान का रिव्यू करेंगे। मंडल के बारे में कलेक्टरों का कहना है कि एजेंडा सिर्फ कहने के लिए होता है, सीएस पूरी क्लास ले डालते हैं। इसलिए, पूरी तैयारी करनी पड़ती है। न जाने किस योजना के बारे में पूछ दें। ऐसे में, नए सीएस से जिले के अधिकारी थोड़ा असहज महसूस करने लगे हैं। पहले महीने में एक वीडियोकांफें्रसिंग होती थी। अब 15 दिन में वीडियोकांफें्रसिंग तो हो ही रही है सीएस खुद ही दौरे पर निकल जा रहे हैं। नवंबर में कलेक्टर कांफ्रेंस के बाद वे संभाग मुख्यालयों में जाकर अफसरों की क्लास ले चुके हैं।
कलेक्टर का बंगला
ब्यूरोक्रेसी का भी अजीब आलम है…राजधानी में एक महिला कलेक्टर के घर पर चोरी हुई तो चोरी पर चिंता जताने की बजाए अफसरों के बीच खुसुर-पुसुर शुरू हो गई….कलेक्टर को राजधानी में आवास कैसे मिल गया है। दरअसल, कलेक्टर को सरकार ने विशेष केस में दो महीने बंगला अपने पास रखने की इजाजत दी थी। नवबंर फर्स्ट वीक में यह पीरियड खतम हो गया था। सिर्फ डेढ़ महीना लेट हुआ आवास खाली करने में। तब तक चोरों ने हाथ साफ कर दिया। उधर, कलेक्टर का आदेश निकलते ही एडीजी पवनदेव ने सितंबर में ही यह बंगला अपने नाम पर अलॉट करा लिया था। नया अपडेट यह है कि महिला कलेक्टर ने बंगला खाली कर दिया है। पीडब्लूडी ने उसकी चाबी पवनदेव को सौंप दी है। बिलासपुर आईजी बनने से पहिले पवनदेव इसी बंगले में रहते थे। जाहिर है, इस बंगले से उनका लगाव तो रहेगा ही।
अंत में दो सवाल आपसे
1. पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए अफसर आजकल अपने सर्विस के स्टे्टस का ध्यान क्यों नहीं रख रहे?
2. नगरीय निकाय चुनाव के बाद बोर्ड और निगमों में नियुक्तियां होगी या पंचायत चुनाव के बाद?
2. नगरीय निकाय चुनाव के बाद बोर्ड और निगमों में नियुक्तियां होगी या पंचायत चुनाव के बाद?
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