रविवार, 31 मार्च 2019

फिफ्टी-फिफ्टी बॉस

31 मार्च 2019
डीजीपी डीएम अवस्थी से तीन बैच सीनियर गिरधारी नायक को डीजी नक्सल आपरेशन बनाने से खासकर नक्सल प्रभावित बस्तर और राजनांदगांव के पुलिस अधिकारियों के समक्ष कई बार धर्मसंकट की स्थिति निर्मित हो जा रही है। सवाल यह है, वे हंड्रेड परसेंट बॉस किसे मानें। क्योंकि, डीजीपी होने के नाते डीएम जनरल पोलिसिंग के बॉस हैं, तो नक्सल मूवमेंट के गिरधारी नायक। याने फिफ्टी-फिफ्टी। पिछले हफ्ते की बात है, डीएम नया रायपुर के पीएचक्यू से सूबे के पुलिस अधीक्षकों से वीडियोकांफ्रेंसिंग पर मुखातिब थे। वीसी में नक्सल आपरेशन के अफसरों को भी कनेक्ट होना था। डीएम बेफिक्र थे कि नक्सल आपरेशन से कोई नीचे का अफसर आएगा, लेकिन वीसी में पुराने पीएचक्यू से डीजी नायक कनेक्ट हो गए। इससे एसपी तो हड़बड़ाए ही….डीएम के चेहरे की बदली भाव-भंगिमा को भी अफसरों ने महसूस किया।

ब्यूरोक्रेट्स और चुनाव

लोकसभा चुनाव के लिए सूबे के कई रिटायर नौकरशाह टिकिट की क्यूं मे थे। सरजियस मिंज तो रायगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकिट के लिए लगभग आशान्वित हो गए थे। लेकिन, ऐन मौके पर उनकी किस्मत दगा दे गई। ठीक विधानसभा चुनाव की तरह। विस चुनाव से पहिले मिंज इसी आस में कांग्रेस में शामिल हुए थे कि कुनकुरी से उन्हें टिकिट मिल जाएगी। लेकिन, तब भी उन्हें मायूसी हाथ आई। और, अब भी। मिंज की तरह विधानसभा की टिकिट से चुकने वाले रिटायर आईएएस आरपीएस त्यागी भी कोरबा से लोकसभा सीट के लिए दावेदार थे। मगर कांग्रेस ने वहां पहले से ही महंत परिवार के लिए टिकिट तय कर दिया था। हालांकि, लोकसभा चुनाव में रिटायर आईपीएस संतकुमार पासवान को भी धक्का लगा है। छत्तीसगढ़ से डीजी जेल से रिटायर हुए पासवान पिछले साल बिहार में कांग्रेस पार्टी ज्वाईन किए थे। हाजीपुर संसदीय इलाके में उन्होंने काफी काम किया था…. आलाकमान से उन्हें इशारा भी मिल चुका था। लेकिन, एलायंस में हाजीपुर सीट लालू यादव ले जाने में कामयाब हो गए। हाजीपुर सीट की शर्त पर ही राजद शत्रुघ्न सिनहा के लिए पटना साहिब सीट छोड़ने पर तैयार हुआ। इस चक्कर में पासवान का नुकसान हो गया। हालांकि, पासवान के लिए राहत की बात यह है कि एक साल बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होना है।

11 मंत्री, 11 सीट

भूपेश सरकार ने प्रभारी मंत्री बनाते समय लोकसभा इलेक्शन को खास तौर पर ध्यान रखा। जाहिर है, सूबे में 11 मंत्री हैं, और 11 लोकसभा सीटें। सीएम ने जिले के अनुसार मंत्रियों को प्रभार नहीं दिया। बल्कि, रणनीति के तहत लोकसभावार कर दिया। मसलन, ताम्रध्वज साहू दुर्ग और बेमेतरा के प्रभारी। दुर्ग लोस में ये ही दो जिले आते हैं। इसी तरह मोहम्मद अकबर को राजनांगांव और कवर्धा, शिव डहरिया को रायपुर और बलौदाबाजार, रविंद्र चौबे को बिलासपुर और मुगेली। रुद्र गुरू को महासमुंद, धमतरी और गरियाबंद। महासमुंद संसदीय क्षेत्र में ये तीनों जिले आते हैं। इससे मंत्रियों को लोकसभावार जिम्मेदारी बांटने में सहूलियत हो गई। अब पारफारमेंस लूज होने पर सरकार मंत्रियों से पूछ तो सकेगी।

पहली बार

छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहली बार प्रमोटी आईएएस के साथ ही डायरेक्ट याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस को विभिन्न राज्यों मे इलेक्शन आब्जर्बर बनाया गया है। वरना, पहले डेढ़-दो दर्जन आब्जर्बरों में डायरेक्ट से सिर्फ दो नाम होते थे। एक भुवनेश यादव और दूसरा यशवंत कुमार। भुवनेश ने तो चुनाव कराने का कीर्तिमान बना डाला है। दरअसल, जीएडी में पहले निबटाने का खेल भी होता था। प्रमोटी की सूची निर्वाचन आयोग को भेज दी जाती थी। और, आयोग आदेश निकाल देता था। किन्तु, इस बार बड़ी संख्या में डायरेक्ट आईएएस को भी आब्जर्बर बनाया गया है। ऐसे में, चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर से प्रमोटी आईएएस का खुश होना लाजिमी है।

ट्रेंगुलर मुकाबला?

लोस चुनाव में दो सीटों को लेकर कांग्रेस पार्टी कुछ ज्यादा ही संजीदा होगी, वह है बिलासपुर और कोरबा। विधानसभा चुनाव में भी बिलासपुर संभाग में ही कांग्रेस का पारफारमेंस पुअर रहा था। उसी बिलासपुर से जोगी कांग्रेस के विधायक धरमजीत सिंह और कोरबा में पार्टी के संस्थापक अजीत जोगी के चुनाव लड़ने की चर्चा तेज है। दोनों अगर सियासी रणक्षेत्र में उतर गए तो जाहिर है, मुकाबला ट्रेंगुलर हो जाएगा। कांग्रेस भी इससे नावाकिफ नहीं है कि ट्रेंगुलर की स्थिति में नुकसान पार्टी का होना है। लेकिन, सियासी गलियारों से आ रही खबरों पर भरोसा करे तो कांग्रेस को घबराने की जरूरत नहीं है। जोगी और धरमजीत का माहौल अवश्य बन गया मगर उनके चुनाव लड़ने की संभावनाएं क्षीण प्रतीत होती हैं।

हाईप्रोफाइल नहीं

छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस, भाजपा से कोई बड़ा नाम न होने से पर्टिकुलर सीट को लेकर लोगों में उत्सुकता नहीं है। हाईप्रोफाइल मुकाबला तो भूल ही जाएं। दरअसल, कांग्रेस, भाजपा के 22 में से 19 प्रत्याशी नए हैं। याने पहली बार वे लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। खेल साय, धनेंद्र साहू और गुहराम अजगले ही तीन ऐसे नेता है, जो लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। साय और अजगले सांसद रह चुके हैं। धनेंद्र हार चुके हैं। इनके अलावा और कोई नामचीन चेहरा नहीं है। बीजेपी ने तो अधिकांश फ्रेश चेहरों पर दांव लगाया है। याने पूरे मोदी के भरोसे। यकीनन, इस चुनाव में लोगों को वह मजा नहीं आएगा, जिसका लोगों को इंतजार रहता है।

लटकी तलवार

हाईकोर्ट ने विधानसभा में आठ बरस तक नौकरी कर चुके आठ मार्शलों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। उन पर गलत ढंग से नौकरी पाने के गंभीर आरोप थे। आमतौर पर माना जाता है कि एक बार नौकरी मिल जाए, तो मानवीय ग्राउंड पर कोर्ट भी नरमी बरत देता है। लेकिन, हाईकोर्ट के कंपा देने वाले आदेश से चार दर्जन से अधिक कर्मचारियों, अधिकारियों की रात की नींद उड़ गई है, जिन्हें बैक डोर से इंटी मिली है। कोई किसी नेता का भाई है, भतीजा है या भांजा-भांजी। सबने लगभग मान लिया था कि अब उनके लिए कोई खतरा नहीं है। परन्तु, सावधान! इनके खिलाफ हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल होने जा रही है। समझिए, इन पर तलवार लटक गई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. लोकसभा चुनाव में रुचि न लेने वाले किस मंत्री से सीएम भूपेश बघेल खुश नहीं हैं?
2. राजधानी के डीकेएस अस्पताल में हुई गड़बड़ियों के लिए क्या स्वास्थ्य महकमे के अधिकारी दोषी नहीं हैं?

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