संजय के दीक्षित
तरकश, 1नवंबर 2020
गरियाबंद के कलेक्टर छत्तर सिंह डेहरे आज छह महीने की अल्प पारी पूरी कर रिटायर हो गए। उनकी जगह पर किसी प्रमोटी आईएएस को कलेक्टर बनाने की चर्चा थी। धर्मेश साहू का नाम चल भी रहा था। दोपहर में आरआर याने डायरेक्ट आईएएस नम्रता गांधी का नाम उड़ा। लेकिन, सरकार ने आरआर आईएएस नीलेश क्षीरसागर को गरियाबंद भेजना मुनासिब समझा। नीलेश का ये दूसरा जिला होगा। पहला जिला उनका जशपुर था। अलबत्ता, जशपुर से हटने के बाद भी सरकार ने उन्हें महत्वपूर्ण पोर्टफोलिया दिया था।
संख्या घटी
कांकेर कलेक्टर केएल चौहान जिस तरह विवादों में घिर रहे थे, उससे यह क्लियर था कि अब उनकी कलेक्टरी नहीं रहेगी। सरकार ने आज उन्हें हटा दिया। लेकिन, इस लिस्ट से खासकर प्रमोटी आईएएस अधिकारियों को धक्का लगा होगा। गरियाबंद में डायरेक्ट आईएएस नीलेश क्षीरसागर। और, कांकेर में भी डायरेक्ट आईएएस चंदन कुमार। प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या दो और कम हो गई, तो जाहिर है उन्हें तकलीफ होगी ही।
सिर्फ ट्रेनी आईएएस नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रेनी आईएएस को दिखास और छपास से बचने की नसीहत दी है। अहमदाबाद में उन्होंने कहा कि अखबारों और टीवी चैनलों में सिर्फ छपने की लालसा से आईएएस काम न करें। वे काम ऐसा करें कि उस काम से उनका नाम हो। प्रधानमंत्री ने ये बात सिर्फ नए अफसरों के संदर्भ में नहीं कही है। दरअसल, उनका तो ये बस इशारा मात्र था। वैसे भी, ट्रेनी तो सभी माने जाते हैं। आईएएस के पूरे कैरियर में ट्रेनिंग प्रोग्राम चलते रहते हैं। डीओपीटी हर दो साल में ट्रेनिंग प्रोग्राम कंडक्ट करते रहता है। गौर करने वाली बात ये है कि प्रधानमंत्री को आखिर सिविल सर्विसेज के अधिकारियों को नसीहत देने की जरूरत क्यों पड़ गई। ब्यूरोक्रेसी के लोग ही बताते हैं, पीएमओ में डीपीओटी से एक रिपोर्ट पहुंची है, जिसमें बताया गया है कि मीडिया और सोशल मीडिया के अतिशय प्रेम मे चलते नौकरशाहों के काम के स्तर में काफी गिरावट आई है। ब्यूरोक्रेट्स वही काम कर रहे, जिसमें उन्हें मीडिया में स्पेस मिले। मीडिया में न तो फिर फेसबुक और यूट्यूब तो है ही।
छत्तीसगढ़ में भी ये बीमारी
प्रधानमंत्री ने नौकरशाहों की ओर जिस बीमारी का इशारा किया है, उससे छत्तीसगढ़ की नौकरशाही भी नहीं बची है। बल्कि जकडी हुई है। पिछली सरकार में सार्वजनिक नल पर पानी पीते एक आईएएस की फोटो वायरल हुई थी। लोगों ने उस आईएएस को खूब सैल्यूट किया था। उसके बाद तो ये बीमारी फैलती चली गई। सूबे में एक समय ऐसा आ गया था कि अफसर सोशल मीडिया में ही काम करने लगे थे। पिछली सरकार का जो हश्र हुआ, उसमें बड़ा योगदान फेसबुकिया अधिकारियों का भी रहा। धरातल पर कोई काम ही नहीं हुआ। दरअसल, अफसर काम वही पकड़ता है, जिसमें माइलेज मिले। कलेक्टर अपने पसंद का एक काम पकड लेता है, बाकी की ओर वो आंख उठाकर नहीं देखेगा। मंत्रालय में सचिवों का भी लगभग यही हाल है। मंत्री जिस काम से खुश वही प्रमुखता से होगा बाकी योजनाओं की फाइलें धूल खाते पड़ी रह जाती हैं। ब्यूरोक्रेसी की यही प्रवृति उसके भरोसा खोने की वजह बन रही है।
गेहूं के साथ घुन
दिल्ली में हुई डीपीसी में छत्तीसगढ़ के सात डिप्टी कलेक्टरों को आईएएस अवार्ड करने हरी झंडी मिल गई है। इसमेें 2005 बैच के डिप्टी कलेक्टर शामिल हैं या नहीं, इसका खुलासा नहीं हुआ है। मगर ये बात सही है कि गेहूं के साथ घून पिसता है। 2005 बैच में 13 डिप्टी कलेक्टर हैं इनमें ऐसा नहीं है कि सारे-के-सारे गलत तरीके से सलेक्ट हुए होंगे। कुछ अफसर फील्ड में काम भी बढ़ियां कर रहे। लेकिन, जिस तरह इस बैच के लोगों ने जांच को रोकवाने में अपनी पूरी ताकत लगाई, उसकी बजाए अगर वे जांच होने दिए होते तो अच्छे वाले बच जाते। जाहिर है, उन्हें आईएएस अवार्ड में होने में कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन, हाईकोर्ट ने जब नियुक्ति निरस्त कर पीएससी को फिर से स्केलिंग करने कहा तो इस बैच ने सुप्रीम कोर्ट में देश के सबसे महंगे वकील हरीश साल्वे को खड़ा कर दिया। वहां से उन्हें स्टे मिल गया। दिल्ली में हुई डीपीसी में इस बैच को मौका मिला कि नहीं, इस बारे में कोई जानकारी सामने नहीं आ रही। मगर यूपीएससी ने सुप्रीम कोर्ट की जांच तक अगर इन्हें डीपीसी में शामिल करने से मना कर दिया होगा तो? तब खतरा ये रहेगा कि इस बैच के सभी 13 डिप्टी कलेक्टरों को बिना आईएएस बने ही रिटायर होना पड जाएगा। इसमें उन अधिकारियों का नुकसान हो जाएगा, जो मेहनत करके पीएससी क्लियर किए थे।
20 साल में पहली बार
भूपेश बघेल कैबिनेट ने जल मिशन का विवादित टेंडर निरस्त कर दिया। राज्य बनने के 20 बरस में यह पहली बार हुआ कि सरकार इतना बड़ा एक्शन लेते हुए किसी टेंडर को कैबिनेट में लेकर गई और वहां उसे निरस्त किया गया। इस मामले में मंत्रालय में बैठे आईएएस अफसर भी सवालों के घेरे में हैं। स्वाभाविक प्रश्न है कि अफसरों को इस बारे में क्या सरकार को सचेत नहीं करना था। या विधि विपरीत था तो उसे रोकना था। पिछली सरकार ने जब तेरहवें वित्त आयोग के पैसे से बस्तर में टाॅवर लगाने का फैसला किया तो तत्कालीन एसीएस पंचायत एमके राउत और तत्कालीन डायरेक्टर पंचायत तारण सिनहा ने नोटशीट में लिख दिया था कि नियमानुसार ऐसा नहीं किया जा सकता। तब सरकार उसे लेकर कैबिनेट में गई थी। खैर, वो मामला अलग था। बहरहाल, इस टेंडर मामले में गनीमत है कि समय रहते सरकार ने बड़ा स्टेप लेते हुए टेेंडर रद्द कर दिया। वरना. भारत सरकार का पैसा था, सीबीआई जांच होती तो कई अधिकारी निबट जाते।
एक अनार सौ
एलाॅयड सर्विस से आईएएस के एक पद के लिए अबकी रिकार्ड आवेदन आए हैं। अफसर भी मानते हैं कि 20 साल में इतना कभी नहीं आया। दो दर्जन से अधिक। सामान्य प्रशासन विभाग इसकी स्कूटनी करके पांच अधिकारियों का पेनल बनाएगा। इसके बाद दिल्ली में मीटिंग होगी। उसमें चीफ सिकरेट्री, एसीएस और जीएडी सिकरेट्री के साथ यूपीएससी एवं डीओपीटी के अधिकारी होंगे। अभी तक एलायड सर्विस से डाॅ0 सुशील त्रिवेदी, आलोक अवस्थी, शारदा वर्मा और अनुराग पाण्डेय आईएएस बन चुके हैं। इनमें से त्रिवेदी मध्यप्रदेश के समय बन गए थे। बाकी तीनों छत्तीसगढ़ बनने के बाद। बहरहाल, इनमें दो-तीन नामों की चर्चा बड़ी तेज है, उनके साथ अब दिक्कत ये होगी कि वे भी पीएससी के 2005 बैच वाले हैं। अगर इस बैच के डिप्टी कलेक्टरों को आईएएस रुकेगा तो फिर इनका भी नहीं होगा।
आईएफएस रिटायर
पीसीसीएफ बजट और वन विकास निगम के एमडी देवाशीष दास आज रिटायर हो गए। देवाशीष जितने समय वन विकास में रहे होंगे, लगभग उतने समय डेपुटेशन पर मंत्रालय में भी। बहरहाल, सरकार जल्द ही वन विभाग के कुछ खाली पदों पर नई पोस्टिंग करने वाली है तो कुछ अति होशियार अफसरों की छुट्टी भी।
अंत में दो सवाल आपसे
1. ठेकेदार किस विभाग के सिकरेट्री के घर एडवांस वापिस मांगने धमक जा रहे हैं?
2. कुछ जिलों के पुलिस अधीक्षकों को सरकार क्या कमांडेंट बनाने जा रही है?
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