रविवार, 28 फ़रवरी 2021

प्रमोटी कलेक्टरों को महत्व?

 संजय के दीक्षित

तरकश 21 फरवरी 2021
कोरोना को पराजित कर लौटे चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन ने 17 फरवरी को कलेक्टर्स और जिपं सीईओ से वीडियोकांफ्रेंसिंग के जरिये संवाद किया। इस दौरान ऐसा कुछ हुआ कि प्रमोटी कलेक्टर और राप्रसे अधिकारियों के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे। दरअसल, 17 को तीन वीसी थी। लिहाजा, टाईम कम था। सीएस ने संभागवार एक-एक कलेक्टर को बोलने के लिए कहा। इसमें संयोग कहें या इत्तेफाक कि सीएस ने जिन अधिकारियों को जिले का प्रेजेंटेशन देने के लिए कहा, उनमें लगभग सभी प्रमोटी थे। मसलन, बिलासपुर से मुंगेली कलेक्टर पीएस एल्मा, सरगुजा से जशपुर कलेक्टर महादेव कावड़े, रायपुर से महासमुंद कलेक्टर डोमन सिंह, दुर्ग से बालोद कलेक्टर जन्मजय मोहबे। पांचवे संभाग बस्तर से कोंडागांव का नम्बर जरूर लगा लेकिन वहां के डायरेक्ट आईएएस कलेक्टर छुट्टी में थे। जिपं सीईओ में भी उन्हीं का नम्बर लगा जो राप्रसे से प्रमोट होकर आईएएस बनें हैं या फिर अभी राप्रसे अफसर की हैसियत से ही सीईओ पद संभाल रहे हैं। जांजगीर के राप्रसे सीईओ गजेंद्र सिंह का स्वास्थ्य ठीक नहीं था, तो वे घर से ही वीसी में शामिल हुए। सीएस ने इसके लिए गजेंद्र की पीठ थपथपाई। सीएस की आखिरी वीसी 8 दिसंबर को हुई थी। उसके बाद ये पहला मौका था। इसलिए, जिलों के कलेक्टरों ने काफी तैयारी की थी। लेकिन, इसमें प्रमोटी अफसरों की अहमियत देखकर निश्चित तौर पर डायरेक्ट आईएएस अधिकारियों के दिल पर सांप तो लोटे होंगे।


दो पद, 27 दावेदार

सूचना आयुक्त के दो पदों के लिए 27 अधिकारियों ने आवेदन किया है। इसमें एक दर्जन से अधिक रिटायर आईएएस, आईएफएस शामिल हैं। आधा दर्जन पत्रकार, और लगभग इतने ही वकील और एक्टिविस्ट भी। फाइल जीएडी से होते हुए मुख्यमंत्री सचिवालय तक पहुंच गई है। अब मुख्यमंत्री के उपर निर्भर करेगा कि सलेक्शन कमिटी की मीटिंग कब हो। कमेटी में सीएम, नेता प्रतिपक्ष के साथ एक सीनियर मंत्री मेम्बर होते हैं। हो सकता है कि विधानसभा सत्र के दौरान जब ये तीनों विधानसभा में मौजूद होते हैं, किसी दिन कमेटी इस पर मुहर लगा दे। या फिर लाल बत्ती की दूसरी सूची जारी होने तक वेट करना होगा तो फिर मामला मार्च एंड तक अटक जाएगा।

ब्यूरोक्रेट्स को नुकसान

सूचना का अधिकार जब लागू हुआ तो नौकरशाहों ने ऐसा नियम बनाया था रिटायरमेंट के बाद पांच साल के सम्मानजनक पुनर्वास का इंतजाम हो जाए। लेकिन, सूचना आयोगों में आयुक्त बनें कुछ एक्टिविस्टों ने उनकी योजना को पलीता लगा दी। दरअसल, दिल्ली के कुछ ऐसे ही आयुक्तों ने वीवीआईपी से संबंधित जानकारियां देने के आदेश देने लगे। जबकि, रिटायर ब्यूरोक्रेट्स ऐसा नहीं करते। 32-33 साल नौकरी करने के बाद रिटायर नौकरशाहों की रीढ़ की हड्डियां बची भी नहीं होती कि सरकार के खिलाफ जाकर कुछ कर सकें। बहरहाल, एक्टिविस्टों के फैसले के चलते हुआ यह कि मुख्य सूचना आयुक्त और आयुक्तों का कार्यकाल घटाकर पांच से तीन साल कर दिया गया। फिर मुख्य आयुक्त और आयुक्त की सेलरी भी बराबर। सवा दो लाख। इससे सीआईसी पद का अवमूल्यन हो गया। फिर, रिटायर आईएएस दो साल, तीन साल की बजाए पांच साल वाले पद को प्राथमिकता देते हैं। यही वजह है कि रिटायरमेंट के बाद कोई पीएससी चेयरमैन नहीं बनना चाहता। क्योंकि, पीएससी में रिटायरमेंट एज 62 साल है। यानी आईएएस से 60 में रिटायर होने के बाद मात्र दो साल मिल पाता है। और, रिटायर आईएएस को चाहिए….मोर। लेकिन अब तीन साल से ही संतोष करना पड़ेगा।

आदिवासी सीएम!

बीजेपी शासनकाल के 15 साल में से 10 साल डाॅ0 रमन सिंह आदिवासी एक्सप्रेस से बेहद परेशान रहे। कभी नंदकुमार साय आदिवासी एक्सप्रेस दौड़ा देते थे तो कभी रामविचार नेताम। हालांकि, सौदान सिंह के साथ मिलकर रमन सिंह आदिवासी एक्सप्रेस को डिरेल्ड करते रहे। अब सुना है, कांग्रेस के भीतर भी आदिवासी विधायकों के बीच कुछ खुसुर-फुसुर चल रहा है। लेकिन, वक्त अब काफी बदल चुका है। सूबे में ओबीसी वोटों का ऐसा ध्रुवीकरण हो गया है कि अब आदिवासी सीएम का मामला कमजोर हो गया है। छत्तीसगढ़ में करीब 30 फीसदी आदिवासी तो 50 परसेंट ओबीसी हैं। याद होगा कि इसी 50 परसेंट से अजीत जोगी भी घबरा गए थे। उनके सलाहकार और पूर्व डीजीपी आरएलएस यादव जब पिछड़े वर्ग को एकजुट करने सम्मेलन कराना चालू किया तो आवाज उठ गई थी कि जब ओबीसी ज्यादा तो आदिवासी मुख्यमंत्री क्यों? जोगी चतुर नेता थे। उन्होंने खतरे को तुरंत भांपकर ओबीसी सम्मेलनों पर रोक लगा दी थी। वैसे, छत्तीसगढ़ में आदिवासी सीएम की गुंजाइश इसलिए भी परवान नहीं चढ़ सकी, कि राज्य चला सकने लायक कोई आदिवासी चेहरा सामने आया भी नहीं। बस्तर में महेंद्र कर्मा जरूर बड़े नेता रहे। लेकिन, सरगुजा तरफ उनका प्रभाव नगण्य था। नंदकुमार साय विद्वान नेता हैं मगर बीजेपी की सियासत में वे चूक गए। छत्तीसगढ़ में निर्विवाद रूप से एक आदिवासी चेहरा था, जिससे अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज घबरा गए थे। वे थे मरवाही के भंवर सिंह पोर्ते। अर्जुन सिंह ने बड़ी चतुराई से पोर्ते की सियायत को ठिकाने लगा दिया था।

सबको सर्दी-खांसी

राजनांदगांव जिला पंचायत के आईएएस सीईओ अजीत बसंत स्कूलों का जायजा लेने निकले तो शिक्षकों की अनुपस्थिति देखकर हैरान रह गए। तीन स्कूलों के 23 में से 15 टीचर बिना सूचना के गायब मिले। अब तो सरकार ने सर्दी-खांसी पर स्कूल न आने का आदेश निकाल दिया है। ऐेसे में, वही होगा जो कोरोना के दौरान आफिसों में होता था। साहब मेरे पड़ोसी को कोरोना हो गया है तो साहब मेरे किरायेदार को। सरकारी कर्मचारी काम न करने के सौ बहाने ढ़ूढते ही हैं।

वन मैन आर्मी

विधानसभा का बजट सत्र 22 फरवरी से प्रारंभ होने जा रहा है। माना जा रहा ये सत्र काफी हंगामेदार होगा। कई मुद्दों पर सोशल मीडिया और ट्वीटर के जरिये अपने भड़ास निकालने वाले जब नेता विधानसभा में आमने-सामने बैठेंगे तो समझा जा सकता है कि वहां क्या होगा। हालांकि, कांग्रेस के लिए अखरने वाली बात ये है कि दो साल पूरे होने के बाद भी कांग्रेस के मंत्री और न ही विधायक वैसा दम-खम का प्रदर्शन कर पा रहे हैं, जिससे लगे कि 70 सीट वाली सरकार है। बीजेपी के तीन-चार विधायक कांग्रेस के 70 पर भारी पड़ जा रहे। कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि बड़ी संख्या में ऐसे विधायक हैं, जिन्हें कभी विस का तर्जुबा नहीं रहा। और नही पारफारमेंस सुधारने की कोशिश कर रहे। उधर, अखाड़े में सामने 15 साल के नाना प्रकार के दांव-पेंच में मंजे नेता हैं। ऐसे में, सदन में जब सीएम भूपेश बघेल होते हैं तो उन्हें मोर्चा संभालना पड़ता है। और जब वे नहीं होते तो सरकार घिर जाती है।

हेल्थ पर सवाल

विधानसभा में अबकी सबसे ज्यादा हेल्थ डिपार्टमेंट से संबंधित सवाल लगे हैं। विधायकों ने कोरोना, कोरोना की किट खरीदी से लेकर जेनेरिक दवाओं पर 200 से अधिक प्रश्न लगाए हैं। जाहिर है, स्वास्थ्य मंत्री को अबकी तैयारी अच्छी करनी पड़ेगी।

एक विभाग मजबूत और दूसरा…

पहले मुहल्ला क्लीनिक का काम हेल्थ विभाग के हाथ से निकलकर नगरीय प्रशासन के पास चला गया। अब शहरों में खुलने जा रहे डाइग्नोस्टिक सेंटर का काम भी नगरीय प्रशासन को मिलने जा रहा। नगर निगम और नगर पालिकाएं 3000 वर्गफुट की बिल्डिंग तैयार कर प्राइवेट लोगों को देगी। आबादी के हिसाब से एक शहर में तीन-तीन, चार-चार डाइग्नोस्टिक सेंटर होंगे। इसमें रियायती दर पर एमआरआई, सिटी स्केन, पैथोलॉजी टेस्ट के साथ ही डॉक्टरी सुविधाएं मुहैया होंगी। सरकार के रणनीतिकारों ने इसके लिए पुणे की पार्टी से बात भी कर ली है। जाहिर है, लोगों के लिए ये एक अच्छी सौगात होगी। शिव डहरिया के नगरीय प्रशासन के लिए भी…क्योंकि कद तो उसका भी बढ़ेगा न।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस रिटायर आईएएस ने नौकर- चाकर, नाते-रिश्तेदार और अपनी माशूका के नाम से 50 से अधिक बेनामी संपत्ति खरीदी है?

2. किस मंत्री के समधी की वसूली अभियान से विभाग के लोग हलाकान हैं?

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