संजय के. दीक्षित
तरकश, 6 जून 2021
पिछली सरकार में नौकरशाहों का सोशल मीडिया प्रेम सर्वविदित था। कई कलेक्टर्स, एसपी ग्राउंड पर नहीं....फेसबुक और ट्वीटर पर काम करने के लिए जाने जाते थे। आलम यह था कि सरकारी योजनाओं को सोशल मीडिया में संचालित कर वाहवाही बटोर लेते थे। लेकिन, सरकार बदली तो सिस्टम भी बदला। ऐसे अफसर हांसिये पर आ गए, जो सोशल मीडिया में अत्यधिक चर्चित रहते थे। दरअसल, भूपेश बघेल सरकार इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती कि अफसरों को खुद का प्रचार करना चाहिए...ये काम राजनीतिज्ञों का है और उन्हें ही ये करना चाहिए। लोग देख भी रहे हैं....सरकार के नजदीकी अधिकारी और सलाहकार भी सोशल मीडिया में उतने ही एक्टिव रहते हैं, जो सरकार के लिए मुफीद हो। यानी जिससे सरकार की ब्रांडिंग होती हो। निजी प्रचार तो बिल्कुल नहीं। इसके बाद भी कुछ अधिकारी अभी भी सोशल मीडिया और फोटो का मोह नहीं छोड़ खुद का नुकसान करा रहे हैं। ऐसे अफसरों को जब भी कलेक्टर बनाने की बात आती है, सोशल मीडिया उसमें आड़े आ जाता है। फेसबुक और ट्वीटर पर सक्रिय रहने वाले नौकरशाहों को...दीवारों पर लिक्खा इश्तेहार समझना चाहिए। क्योंकि, कई अच्छा काम करने वाले अफसरों का नुकसान हो रहा है।
पोस्ट बड़ा और....
हरित क्रांति को सफल बनाने प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने खुद पहल करके राज्यों में कृषि से संबंधित विभागों को कोआर्डिनेट करने के लिए एग्रीकल्चर प्रोडक्शल कमिश्नर याने एपीसी का पोस्ट क्रियेट कराया था। एपीसी चूकि एक साथ 12 विभागों को कोआर्डिनेट करता है, इसलिए काबिल और वरिष्ठ आईएएस को इस पद पर बिठाया जाता था। मध्यप्रदेश के समय....एपीसी नेक्स्ट टू चीफ सिकरेट्री होता था। पुराने लोगों को याद होगा, 1995 के आसपास एपीसी रहे आईएएस आर परशुराम ने काम करके कितना नाम कमाया था। छत्तीसगढ़ बनने के बाद हालांकि, एपीसी का वजूद कम हुआ फिर भी वे कृषि से संबंधित सिंचाई, उर्जा, फूड, सहकारिता, संस्थागत वित, पशुपालन, डेयरी, हार्टिकल्चर, वेयर हाउस, बीज विकास निगम, फिशरीज जैसे विभागों की मीटिंग लेते थे। साल में कम-से-कम दो बार संभागीय मुख्यालयों में कलेक्टरो और विभाग प्रमुखों की बैठकें हो ही जाती थीं। खरीफ और रबी की। कलेक्टर्स भी इस मीटिंग को वेट करते थे। क्योंकि, एपीसी सारे अधिकारियों के सामने टारगेट निर्धारित कर देते थे, इससे कलेक्टरों का काम आसान हो जाता था। लेकिन, बाद में यह सिस्टम गड़बड़ाता चला गया। अब आलम यह है कि संभाग मुख्यालयों में आखिरी मीटिंग 2019 में हुई थी, जब केडीपी राव एसीएस थे। इसके बाद मीटिंग तो छोड़िये खरीफ और रबी की वीडियोकांफ्रेंसिंग तक नहीं हुई है। किसानों की प्रायरिटी वाली सरकार में अगर ऐसा है तो ये ठीक नहीं है। चीफ सिकरेट्री को इसे देखना चाहिए।
पावर हाउस के सामने
बात पूर्व आईएएस केडीपी राव की निकली तो इसका जिक्र लाजिमी है कि पुनर्वास का वेट उनका काफी लंबा हो गया। 31 अक्टूबर 2019 को वे एसीएस कृषि और एपीसी से रिटायर हुए थे। जाहिर है, पिछली सरकार में वे हांसिये पर रहे इसलिए उन्हें पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग की उम्मीद कुछ ज्यादा थी। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। अब चांस खतम होता दिख रहा है। बता दें, केडीपी राव का घर शांति नगर में पाटन हाउस के सामने है। पाटन हाउस बोलें तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का विधायक रहने के दौरान का ठिकाना। इस पावर हाउस के सामने रहने के बाद भी पता नहीं केडीपी पावर लेने में नाकाम कैसे हो गए?
आईएएस का गजब मौन
छत्तीसगढ़ में एक वो भी वक्त था, जब नौकरशाही जो चाहती थी, वह होता था। 15 साल तो स्वर्णिम ही रहा...नौकरशाहों ने सरकार पर प्रेशर बना कई फैसले करवाए। आईएएस सुनील कुजूर के प्रमोशन एपीसोड में तो अफसर सीएम के चेम्बर में घुस गए थे। सरकार झुकी भी। कुजूर का न केवल प्रमोशन हुआ बल्कि पहली बार पोस्टिंग भी अच्छी मिली। लेकिन, अब वो बात रही नहीं। आईएएस का व्हाट्सएप ग्रुप भी वक्त को देखते खामोश हो गया है। सिवाय जन्मदिन की बधाई और शुभकामनाओं के। वो भी एक्स चीफ सिकरेट्री विवके ढांड जन्मदिन की बधाई डालते हैं, उसके बाद सिलसिला शुरू होता है। वर्तमान वालों को हिम्मत नहीं होती कि किसी अफसर के जन्मदिन पर पहले बधाई दे दें। दिवंगत आईएएस चंद्रकांत उइके की पत्नी की अनुकंपा नियुक्ति का प्रकरण जीएडी में पिछले साल से लंबित है। मगर कोई बोल नहीं पा रहा।
सुब्रमणियम की विदाई!
भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस वीबीआर सुब्रमणियम को जम्मू-कश्मीर के चीफ सिकेरट्री से हटाकर केंद्र में ठीक-ठाक पोस्टिंग दे दी लेकिन, जेके से उनकी विदाई वैसी नहीं रही, जिस तरह की उन्हें उम्मीद रही होगी। उमर अबदुल्लाह समेत कई सियायी नेताओं, सामाजिक संगठनों ने सोशल मीडिया पर उनके क्रियाकलापों को लेकर मुहिम छेड़ दी। कुल मिलाकर सुब्रमणियम की विदाई में कड़वाहट घुल गई।
व्हाट एन आइडिया
कंबल ओढकर घी पीने वाले एक आईएफएस ने छत्तीसगढ़ में सर्विस के दौरान गजब के ब्रेन का इस्तेमाल किया। मुसली कांड हो या अदरख कांड या रायगढ़ का फाॅरेस्ट घोटाला, जब भी संकट आया धीरे से डेपुटेशन पर गृह राज्य निकल लिए। फिर वहां सब सेट कर मामला ठंडा हुआ तो फिर छत्तीसगढ़ वापिस। पता चला है, आंध्र में उन्होंने बड़ा नर्सरी खोला है। छत्तीसगढ़ में पौधारोपण कार्यक्रम के लिए करोड़ों की खरीदी उनकी नर्सरी से हो रही। बाकी लो प्रोफाइल के उनके रहन-सहन से नहीं लगेगा कि आईएफएस के पास इतना फर्टाइल दिमाग होगा।
रिकार्ड पारी
कोरबा कलेक्टर किरण कौशल लगातार चार जिलों की कलेक्टरी कर नया रिकार्ड बनाई है। वे पहली महिला कलेक्टर होंगी, जिन्होंने न केवल सबसे अधिक जिले की कलेक्टरी की बल्कि बिना किसी ब्रेक के। उनसे पहिले अलरमेल मंगई डी लगातार तीन जिलों की कलेक्टर रहीं। लगातार चार जिलों की कलेक्टरी में पुरूषों में सिद्धार्थ परदेसी और दयानंद ने बिना ब्रेक के चार-चार जिला किया है। सिद्धार्थ कवर्धा, राजनांदगांव, बिलासपुर और रायपुर कलेक्टर रहे तो दयानंद सुकमा, कवर्धा, कोरबा और बिलासपुर। हालांकि, प्रमोटी आईएएस में ठाकुर राम सिंह ने भी चार बड़े जिले किए। रायगढ़, दुर्ग, बिलासपुर और रायपुर। किरण मुंगेली से कलेक्टरी की पारी शुरू की फिर अंबिकापुर, बालोद होेते वे कोरबा पहंुची। किरण लगातार पांचवी जिला करतीं मगर कुछ अवरोध आ गए। मगर इस बात से इंकार नहीं कि कुछ दिन बाद किसी और अच्छेे जिले की वे कलेक्टर बन जाए।
प्रमोटी को प्राथमिकता
कलेक्टरों की लिस्ट में देर आए दुरूस्त आए कि तरह दो प्रमोटी आईएएस को बढ़ियां जिला मिला है। 2011 बैच के आईएएस जीतेंद्र शुक्ला को जांजगीर और 2012 बैच के तारन प्रकाश सिनहा को राजनांदगांव का कलेक्टर बनाया गया है। दोनों बड़े जिलों में शुमार होते हैं। जांजगीर और राजनांदगांव दोनों नौ-नौ ब्लाॅक का जिला है। राजनांदगांव शांतिपूर्ण भी। नक्सल घटनाएं भी अब नही ंके बराबर हो रहीं।
अंत में दो सवाल आपसे?
1. भाजपा सरकार के एक पूर्व मंत्री का हैदराबाद कनेक्शन का राज क्या है?
2. बड़ी लिस्ट निकालते-निकालते सरकार ने आईएएस की लिस्ट सिकोड़ क्यों दी?
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