संजय के. दीक्षित
तरकश, 25 जुलाई 2021
राज्य सरकार ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह के खिलाफ तीन पुराने मामलों की जांच के लिए आईपीएस अधिकारियों की तीन अलग-अलग कमेटियां गठित कर दी है। इनमें स्पेशल डीजी नक्सल अशोक जुनेजा, दुर्ग आईजी विवेकानंद सिनहा और रायपुर आईजी डॉ0 आनंद छाबड़ा शामिल हैं। जाहिर है, राजद्रोह और एसीबी केस का सामना कर रहे जीपी की मुश्किलें और बढ़ जाएगी। हालांकि, इसका दूसरा पहलू यह है कि इससे एसीबी चीफ आरिफ शेख को ताकत मिलेगी। आरिफ अभी अकेले सीनियर अफसर से लोहा ले रहे थे। आरिफ डीआईजी हैं और जीपी एडीजी। यानी उनसे दो रैंक सीनियर। आरिफ के साथ अब जुनेजा, विवेकानंद और छाबड़ा जैसे तीन सीनियर अफसर होंगे। एसीबी की कार्रवाई के बाद राजधानी पुलिस ने भी जीपी के घर छापा मारकर बहुत सारी चीजें जप्त की है। ऐसे में, रायपुर के एसएसपी अजय यादव भी इस केस में इनवाल्व हो गए हैं। पुलिस महकमे में इसको लेकर चुटकी ली जा रही….जांच के साथ इन अफसरों का लॉयल्टी टेस्ट भी होगा। जुनेजा डीजीपी के दावेदार हैं तो विवेकानंद एडीजी बनने वाले हैं। छाबड़ा खुफिया चीफ हैं ही। इससे पहिले आईपीएस राहुल शर्मा केस की जांच करने के लिए सरकार ने डीजी जेल संजय पिल्ले की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी। लेकिन, इस मामले में कोर्ट ने स्टे दे दिया। इससे पिल्ले धर्मसंकट से बच गए। लेकिन, ये बाकी चार…?
लाल बत्ती पर ग्रहण
मोहला की पूर्व महिला विधायक तेज कुंवर नेताम को सरकार ने छत्तीसगढ़ बाल संरक्षण आयोग का चेयरमैन मनोनित किया। मगर विधिवत आदेश निकालने के लिए फाइल जब महिला बाल विकास विभाग गई तो अफसरों के पैरों के नीचे से जमीन खिसकती महसूस हुई। दरअसल, बाल संरक्षण आयोग में चेयरमैन और मेम्बर की पोस्टिंग मनोनयन के जरिये नहीं, सलेक्शन से होती है। इसके लिए समाचार पत्रों में बकायदा विज्ञापन निकाले जाते हैं। पता चला है, इस बार भी चेयरमैन के सलेक्शन के लिए महिला बाल विकास मंत्री अनिला भेड़िया की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बना दी गई थी। भेड़िया कमेटी विज्ञापन निकालने की प्रक्रिया प्रारंभ करती, इससे पहिले तेजकुंवर की नियुक्ति हो गई। जबकि, ऐसा होना नहीं था। अभी तक ये होता था कि सरकार अफसरों को इशारा कर देती थी और वे विज्ञापन की औपचारिकता पूरी कर सरकार की इच्छा के अनुरुप कमेटी से मुहर लगवा लेते थे। शताब्दी पाण्डेय और प्रभा दुबे की नियुक्ति इसी तरह हुई थी। इस चूक की वजह से तेजकुंवर की नियुक्ति गड़बड़ा सकती है। अब प्रक्रिया पूरी करते हुए विज्ञापन भी निकाला जाएगा तो तेजकुंवर का चयन सवालों के घेरे में आ जाएगा। बहरहाल, महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी लीगल ओपीनियन ले रहे हैं। अब देखना है, क्या रास्ता निकलता है।
नो वैकेंसी
लाल बत्ती में वैसे तो अभी आधा दर्जन से अधिक निगम-मंडल बच गए हैं। लेकिन, महत्वपूर्ण तीन-चार ही हैं। सीएसआईडीसी, ब्रेवरेज कारपोरेशन, एक्साइज कारपोरेशन और मार्कफेड। चारों को मलाईदार बोर्ड माना जाता है। एक्साइज और ब्रेवरेज के बारे में बताने की जरूरत नहीं। सीएसआईडीसी इंडस्ट्री को डील करने के साथ ही रेट कंट्रेक्ट फायनल करती हैं। तो मार्कफेड का सलाना कारोबार 15 हजार करोड़ से अधिक का है। इनमें से सीएसआईडीसी और ब्रेवरेज या एक्साइज में पॉलिटीशियन की नियुक्ति नहीं भी जी जा सकती है। क्योंकि, संकेत कुछ ऐसे ही मिल रहे हैं। इन दोनों में अगर नियुक्ति नहीं हो पाई तो जाहिर है विभाग ही इन दोनों बोर्डों को चलाएगा।
चूक गए…
सत्ताधारी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ताओं में शैलेष नीतिन त्रिवेदी किस्मती रहे…उन्हें पाठ्य पुस्तक निगम की चेयरमैनशिप मिल गई। उनके बाद दूसरी, तीसरी सूची में आरपी सिंह और सुशील आनंद शुक्ला का नाम लाल बत्ती के दावेदारों में प्रमुख था। टीवी डिबेट में दमदारी से बात रखते आरपी को ब्रेवरेज कारपोरेशन मिलने की चर्चा थी। लेकिन, उनका मामला इस बार जमा नहीं। सुशील तो दुग्ध संघ के लिए बेहद आशन्वित थे। कुछ दिन पहले रसिक परमार ने दुग्ध संघ से इस्तीफा दिया था तो समझा गया सुशील आनंद की लाटरी निकल जाएगी। लेकिन, लिस्ट जब आई तो मायूस होने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था। वैसे, पूर्व विधायक गुरमुख सिंह ने भी खूब जोर लगाया था…कोई भी निगम मिल जाए। लेकिन, उन्हें भी झटका लगा। वैसे, झटका तो कई विधायकों और नेताओं को लगा है, लेकिन कोई मुंह खोलने की हिमाकत नहीं कर रहा।
करिश्माई नेता?
निगम-मंडलों में बड़े पद हासिल करने से चूके कांग्रेस नेता अब उपाध्यक्ष और मेम्बर बनने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं…आखिर कुछ तो मिल जाए। दरअसल, कांग्रेस में पोस्ट का ऐसा प्रभाव होता है कि मेम्बर जैसे पदों से भी कई लोग अपना करतब दिखा देते हैं। बीजेपी शासन काल में भी कांग्रेस के ऐसे प्लेयरों का कारोबार निर्बाध गति से चलता रहा… अब तो अपनी सरकार है। सो, कोशिश है…रौब झाड़ने के लिए कुछ भी मिल जाए।
एमडी को पावर
लाल बत्ती मिलने से सत्ताधारी पार्टी के नेता चाहे जितना खुश हो लें मगर हकीकत यह है कि चेयरमैन को कागजों में कोई खास पावर नहीं है। निगम-मंडल में साइनिंग अथारिटी एमडी या सीईओ होता है। उसके दस्तखत से ही चेयरमैन का गाड़ी-घोड़ा, हवाई जहाज का टिकिट आदि पास होता है। इन निगमों में अधिकांश एमडी आईएएस हैं या फिर आईएफएस, जिसकी चाबी सरकार के पास होती है। चेयरमैन अपना जलवा तभी दिखा पाएंगे जब सरकार लाल बत्ती देने के साथ ही उनके कंधे पर हाथ भी रखे। वरना, एमडी कुछ करने देंगे नहीं। और फिर दोनों में टकराव होगा। बीजेपी सरकार में ये समस्या इसलिए नहीं आती थी कि उसमें नौकरशाही हॉवी थी। चेयरमैन उनके सामने कुछ बोल नहीं पाते थे। अभी ब्यूरोक्रेसी कमजोर है मगर नियमों की कैंची उनके पास है। लिहाजा, सरकार के पास अब ये डिमांड आएगी…हमरा एमडी बदलिए….ये कुछ करने नहीं दे रहा।
खेतान होंगे रिटायर
छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर आईएएस सीके खेतान अगले हफ्ते रिटायर हो जाएंगे। 87 बैच के आईएएस खेतान रायपुर कलेक्टर रहने के साथ ही तीन बार डीपीआर, सीपीआर रहे। सिकरेट्री के रूप में उन्होंने सिंचाई, स्कूल एजुकेशन, अरबन एडमिनिस्ट्रेशन, फॉरेस्ट जैसे कई महत्वपूर्ण विभाग संभाला। फिलहाल, वे रेवन्यू बोर्ड के चेयरमैन हैं। इसके साथ ही आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट भी। खेतान के बाद छत्तीसगढ़ में बड़ा विकेट दिसंबर में गिरेगा, जब डीजी आरके विज रिटायर होंगे।
अंत में दो सवाल आपसे
1. ड्यू डेट सात महीने पार हो जाने के बाद भी किस वजह से आईपीएस के प्रमोशन अटके हुए हैं?
2. छत्तीसगढ़ राजस्व बोर्ड का अगला चेयरमैन कौन बनेगा?
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