संजय के. दीक्षित
तरकश, 10 अप्रैल 2022
लालफीताशाही की इसे पराकाष्ठा कह सकते हैं...छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल मैकाहारा में कैंसर के सेल की जांच के लिए 2018 में एक हाईटेक जांच मशीन खरीदी गई थी। मशीन का नाम था पॉजिट्रॉन इमीशन टोमोग्राफी याने पेट सीटी स्केन। 18 करोड़ की ये मशीन केंसर के सेल को बड़ी बारीकी से डिटेक्ट कर लेती है। प्रदेश में ये जांच मशीन सिर्फ दो-एक प्रायवेट अस्पतालों के पास है, जो एक केस के लिए लोगों से 20 से 22 हजार रुपए तक ऐंठते हैं। बावजूद इसके मैकाहारा में इतनी महंगी और उपयोगी मशीन डिब्बे में बंद पड़ी है। दरअसल, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को आशंका थी कि इसकी खरीदी में अनियमितता बरती गई। लिहाजा, तीन साल से पेट सीटी स्केन खरीदी की जांच चल रही है। अरे भाई, जांच चलती रहती और उसका उपयोग भी चलता रहता तो क्या बिगड़ जाता। साढ़े तीन साल में सैकड़ों लोग इससे लाभान्वित हुए होते। मगर सिस्टम को क्या....लोगों की जेब कटते रहे....18 करोड़ की जांच मशीन बंद पड़ी है तो पड़ी रहे।
व्हाट एन आइडिया
नवा रायपुर में अफसरों के सेक्टर के पास रेलवे स्टेशन बनने के लिए एनआरडीए ने टेंडर फायनल कर दिया है। इस टेंडर में कई चीजें क्लास की हुई हैं। पहला, रेट ज्यादा। यूपी की कंपनी को पहले एसओआर से पांच फीसदी कम रेट पर काम मिला था। कंपनी ने महंगाई को देखते 10 फीसदी रेट बढ़ाने का लेटर दिया। चूकि पांच फीसदी कम में काम मिला था और 10 फीसदी बढ़ता तो एसओआर से सिर्फ पांच प्रतिशत ज्यादा होता। उसको छोड़ रिटेंडर में अफसरों ने गुजरात की कंपनी को एसओआर से 25 फीसदी ओवर रेट में टेंडर दे डाला। और क्लास देखिए...42 करोड़ के टेंडर में सिर्फ दो कंपनियों ने बीड डाला। जबकि, वहीं बगल में आरबीआई की बिल्डिंग बन रही, उसमें 29 कंपनियों ने टेंडर भरा और सीपीडब्लूडी ने उसका काम एसओआर से 28 फीसदी बिलो रेट में दिया है। बताते हैं, सूबे के एक पूर्व बीजेपी सांसद के निकटतम रिश्तेदार ने अफसरों से मुकम्मल सेटिंग की....दो बार टेंडर हुआ और दोनों बार दो ही कंपनियों ने टेंडर भरा। नेता के रिश्तेदार ने एक अपनी कंपनी का और दूसरा गुजरात की कंपनी का टेंडर डालवाया। शर्त भी ऐसी कि टेंडर गुजरात की कंपनी को मिला। और बीजेपी नेता के रिश्तेदार ने गुजरात की कंपनी से पेटी कंट्रेक्टर ले लिया। बताते हैं, स्मार्ट सिटी के पैसा का क्या किया जाए...इसलिए ये रास्ता निकाला गया। चूकि, काम भाजपा नेता को मिला इसलिए स्मार्ट सिटी के पैसे का बेजा उपयोग करने पर बीजेपी नेता भी कुछ नहीं बोलेंगे। वाकई, खेल बेजोड़ है।
नौकरशाह और थर्ड जेंडर
नवा रायपुर के सबसे प्राइम सेक्टर 15 में अधिकांश प्लाट नौकरशाहों ने लिया है। कई अफसरों ने अपने साथ-साथ अपने नाते-रिश्तेदारों के नाम पर भी बुक करवा लिया। अब एनआरडीए ने इसी सेक्टर में अफसरों के प्लाट के बगल में तीन पॉकेट के प्लाटों को नीलामी के लिए निकाला है। इसमें अप्लाई करने 20 अप्रैल आखिरी तारीख तय की गई है। इसमें खास यह है कि थर्ड जेंडर के लिए भी भूखंड रिजर्व किए गए हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने भी थर्ड जेंडर को समानता का अधिकार देने के लिए कहा है। इस दृष्टि से एनआरडीए ने बढ़ियां काम किया है। इस बारे में भूखंड क्रय करने वाले अधिकारी क्या सोचते हैं ये अलग बात है। नौकरशाहों के बगल में थर्ड जेंडर को रहने सौभाग्य मिलेगा, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है।
पूर्व मंत्री की याद!
कर्मचारियों को फाइव डे वीक का लाभ मिला और अब पेंशन का। कर्मचारियों की तरफ से नई डिमांड अब डीए की आ रही है। कर्मचारियों की अगर वाजिब मांगे हैं तो उसे उन्हें रखनी भी चाहिए। बहरहाल, कर्मचारियों की बात चली तो पूर्व मंत्री स्व0 रामचंर्द्र सिंहदेव की याद आ गई। 2003 में वे विधानसभा में बजट पेश कर बाहर आए। परंपरा के अनुसार प्रेस को ब्रीफिंग शुरू हुई। कर्मचारियों की किसी मांग को लेकर सवाल था, सिंहदेव ने कहा हम 99 फीसदी लोगों के हितों की बलि चढ़ाकर एक फीसदी कर्मचारियों को उपकृत नहीं कर सकते। पत्रकारों ने फिर सवाल किया, इलेक्शन ईयर में आप कैसी बात कर रहे हैं...कर्मचारी नाराज हो गए तो....सिंहदेव बोले...मैंने कहा न...मेरी प्राथमिकता में 99 प्रतिशत जनता हैं, कर्मचारी नहीं।
कलेक्टरों का रिपोर्ट कार्ड
गृह और उर्जा विभाग के कामकाज का मुख्यमंत्री रिव्यू कर चुके हैं और एग्रीकल्चर का आंशिक। खैरागढ़ उपचुनाव के बाद मुख्यमंत्री फिर विभागों की समीक्षा प्रारंभ करेंगे। समीक्षा खतम करने के बाद वे जिलों के दौरे पर निकलेंगे। बताते हैं, विभाग प्रमुखों के साथ बैठकों में सिर्फ योजनाओं का समीक्षा नहीं की जा रही, बल्कि जिलों में उसका क्रियान्वयन किस स्तर पर हो रहा, इसे भी नोट किया जा रहा है। इसके बाद मुख्यमंत्री दौरे पर निकलेंगे। समझा जाता है, 25 अप्रैल के बाद उनका दौरा शुरू होगा। और इसमें कलेक्टरों की शामत आएगी, क्योंकि सीएम के पास कलेक्टरों की कंप्लीट कुंडली होगी।
मई एंड में?
कलेक्टरों का ट्रांसफर अब मई लास्ट तक हो पाएगा। हालांकि, सुनने में ये भी आ रहा कि सरकार दो-एक कलेक्टरों के पारफारमेंस से खुश नहीं है और हो सकता है उनका आदेश पहले निकल जाए। इसके बाद फिर बड़ी लिस्ट। वैसे भी 12 कलेक्टरों के दो बरस हो गए हैं। और सात को एक साल। जिनके दो साल हो गए हैं, उन्हें तो निश्चित तौर पर बदला जाएगा। क्योंकि, अभी वे जिस जिले में जाएंगे तो फिर वे अगले साल विधानसभा चुनाव तक रह पाएंगे। जिले को समझने और पिच पर जमने के लिए उन्हें टाईम भी चाहिए।
महिला कलेक्टर
बिलासपुर कलेक्टर के लिए पहले एक युवा कलेक्टर का नाम चल रहा था। मगर अब एक महिला आईएएस की चर्चा शुरू हो गई है। अगर ऐसा हुआ तो बिलासपुर में पहली बार महिला कलेक्टर बनेगी। बड़े जिलों में सिर्फ बिलासपुर और रायपुर ऐसे दो जिले हैं, जहां अब तक कोई महिला कलेक्टर नहीं बन पाई हैं। इन दोनों जिलों में एसपी में भी पहली बार इसी सरकार में महिलाओं को मौका मिला। रायपुर में नीतू कमल और बिलासपुर में पारुल माथुर। बहरहाल, चर्चाओं पर अगर अमल हो गया तो बिलासपुर में कलेक्टर, एसपी दोनों महिला होंगी। इससे पहले मुंगेली में एक बार कलेक्टर, एसपी दोनों महिला पोस्टेड हुईं थीं।
सुपर एमएलए
नारायणपुर में होने वाला अबूझमाड़ पीस मैराथन इतना हिट हो रहा था कि पिछले साल 10 हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे। इस मैराथन में हिस्सा लेने विदेशों से लोग बस्तर आए थे। इसमें छह लाख के विभिन्न इनाम रखे गए थे। पर दुर्भाग्य यह कि इस बार यह आयोजन राजनीति का शिकार हो गया। 21 किलोमीटर मैराथन दौड को आयोजित करने में जिला और पुलिस प्रशासन ने हाथ खड़ा कर दिया है। बताते हैं, एक विधायक जी नहीं चाहते थे कि इस तरह का आयोजन किया जाए। उन्हें दिक्कत यह थी कि मैराथन से पॉलिटिकल माइलेज नहीं मिल रहा था। सो, इसे रोकवाने में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। अब विधायकजी पहले भी एक कलेक्टर का विकेट उड़वा चुके हैं, सो सारी तैयारी के बावजूद अफसरों ने तेज गरमी का हवाला देते हुए इसे स्थगित कर दिया। मगर अब इसे केंसिल ही समझा जाए।Amazing officers... Tarkash, the popular weekly column of senior journalist Sanjay Dixit focused on the bureaucracy and politics of Chhattisgarh
अंत में दो सवाल आपसे
1. खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच जीत की मार्जिन 15 हजार से अधिक होगी या कम?
2. किन दो जिलों के कलेक्टरों के कामकाज से सरकार खुश नहीं है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें