संजय के. दीक्षित
तरकश, 24 अप्रैल 2022
शादी-ब्याह और गरमी के सीजन में रेलवे ने पहले 10 यात्री ट्रेनों को बंद किया। और आज एकमुश्त 22। छत्तीसगढ और समता एक्सप्रेस से लेकर दर्जन भर से अधिक लंबी दूरी की ट्रेनें अब महीने भर तक बंद रहेंगी। तो आजादी के पहले से चल रही सर्वहारा वर्ग की जेडी पैसेंजर भी। इस महीने की शुरूआत में जब 10 ट्रेनें बंद हुईं तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तंज करते हुए ट्वीट किया। इसके कुछ घंटे बाद एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू ने रेलवे बोर्ड को पत्र लिखकर बंद ट्रेनों को शुरू करने का आग्रह किया था। मगर हिमाकत तो देखिए, छत्तीसगढ़ से हर साल 20 हजार करोड़ से अधिक कमाई करने वाली दपूम रेलवे ने फिर 22 ट्रेनों की बलि ले ली। ये हुआ क्यों..? क्योंकि पिछले वितीय वर्ष में टारगेट से चार-पांच मिलियन टन लदान कम हो गया। अब मालगाड़ियों को दौड़ाकर उसकी भरपाई जो करनी है। रेलवे ने ये काम अगर बिहार, बंगाल या साउथ के किसी सूबे में किया होता तो बवाल मच गया होता। वहां के सांसद पटरी पर बैठ गए होते। मगर ये छत्तीसगढ़ है। यहां के नेताओं का पानी सूख गया है। तभी तो सिर्फ सीएम और उनके सचिवालय ने विरोध जताया। इसके अलावा न किसी मंत्री ने एकशब्द बोला और न किसी सांसद, विधायक या दीगर जनप्रतिनिधि ने मुंह खोला। केंद्र की सत्ताधारी पार्टी के सूबे में पूरे नौ सांसद हैं। कांग्रेस के भी दो। प्रदेश में कांग्रेस, भाजपा का बड़ा कैडर है। फिर भी जनसरोकारों को लेकर ऐसा मौन....तो ऐसे में परेशानियों से दो-चार हो रही पब्लिक के मुंह से आखिर क्या निकलेगा...ना-मर्द नेता।
लोक नीचे, तंत्र उपर
छत्तीसगढ़ के 90 फीसदी से अधिक लोग आज भी आवागमन के लिए ट्रेनों और बसों पर निर्भर हैं। ये संख्या काफी बड़ी है मगर दिक्कत की बात ये है कि जिन पर भरोसा कर आम आदमी वोट देता हैं, उनका अब बस और ट्रेनों से कोई वास्ता नहीं रह गया है। राज्य बनने के बाद सूबे में अचानक से इतना पैसा आया कि छोटे-छोटे छूटभैया नेता हवा में उड़ने लगे। सूबे के विधायक ट्रेन में चलना भूल गए। पंच, सरपंच और पार्षद प्लेन में उड़ने लगे...विज्ञप्तिबाज नेता भी नेताओं के स्वागत-सत्कार जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के नाम पर अफसरों और कारोबारियों से इतना तो वसूली कर ही लेते हैं कि उन्हें ट्रेनों में सफर करने की जरूरत नहीं। और जब ट्रेनों से उन्हें वास्ता नहीं पड़ना तो रेलवे 22 ट्रेनें बंद कर दें, उन्हें क्या फर्क पड़ना? जनता भुगत रही...भुगते। वैसे भी लोकतंत्र में लोक नीचे हो गया है और तंत्र उपर। रेलवे तंत्र की मनमानी से ऐसे में फिर कौन रोक पाएगा।
आईजी और यक्ष प्रश्न
एसपी, आईजी की लिस्ट कब निकलेगी...रायपुर का आईजी कौन बनेगा...अभी क्लियर नहीं। मगर अटकलों का दौर बदस्तूर जारी है। दरअसल, रायपुर आईजी डॉ0 आनंद छाबड़ा का करीब ढाई साल हो गया है। उनके पास खुफिया जैसी अहम जिम्मेदारी है। विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा, जाहिर है उन पर लोड और बढ़ेगा। वीआईपी मूवमेंट का चार्ज भी खुफिया चीफ के पास होता है। लिहाजा, रायपुर में नए आईजी की पोस्टिंग तो होगी....लेकिन किसकी पोस्टिंग होगी, ये यक्ष प्रश्न है। वैसे पीएचक्यू के गलियारों में दो नाम प्रमुखता से चल रहे हैं। बद्री नारायण मीणा और आरिफ शेख। 2004 बैच के आईपीएस बद्री फिलवक्त दुर्ग के एसएसपी हैं। उनका आईजी प्रमोशन के लिए डीपीसी हो चुकी है। दूसरे, 2005 बैच के आईपीएस आरिफ एसीबी चीफ हैं। उनका अगले साल जनवरी में आईजी प्रमोशन ड्यू होगा। हालांकि, प्रमोशन कोई इश्यू नहीं है। डीआईजी रहते रेंज आईजी का प्रभार संभालने वाले कई नाम हैं। सुंदरराज, रतनलाल डांगी, अजय यादव डीआईजी रहते रेंज में पोस्ट हो गए थे। आरिफ एसीबी में आने से पहले रायपुर के एसएसपी थे तो बद्री भी रायपुर के कप्तान रह चुके हैं। जाहिर है, सरकार दोनों में से जिसे मुफीद समझेगी, उसे रायपुर आईजी की कुर्सी पर बिठाएगी।
बड़ा सवाल
एसपी, आईजी की लिस्ट तभी निकलेगी, जब प्रमोशन का आदेश जारी हो। पिछले महीने आईपीएस की डीपीसी हुई थी, मगर आदेश अभी पेंडिंग है। जो जहां है, वहां काम कर रहा, इसलिए सरकार भी जल्दी में नहीं है। सरकार के जल्दी में नहीं होने की एक वजह यह भी बताई जा रही कि दुर्ग के एसएसपी बद्री मीणा बढ़ियां से जिला संभाले हुए हैं। दुर्ग वीवीआईपी डिस्ट्रिक्ट है। कप्तान के तौर पर बद्री का ठीक-ठाक विकल्प नजर आ नहीं रहा। बद्री के प्रमोट होकर आईजी बन जाने पर उन्हें हटाना पड़ेगा। क्योंकि, आईजी बनने के बाद कप्तानी करने जैसे दृष्टांत देश में मिलते नहीं। हालांकि, चर्चा इस लाईन पर भी चल रही कि बद्री को आईजी का प्रमोशन देने के बाद दुर्ग रेंज में ही पदस्थ दिया जाए। लेकिन, ऐसे में फिर आईजी ओपी पाल को शिफ्थ करना होगा। मगर ये चर्चा ही है...बड़ा सवाल यह है कि पहले डीपीसी के बाद आदेश तो निकले।
कलेक्टरों पर नजर
सूबे के कई कलेक्टर खानापूर्ति के चक्कर में सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं को पलीता लगाने से नहीं चूक रहे हैं। आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल इनमें सबसे उपर है। निःसंदेह यह सरकार की यह बड़ी अच्छी योजना है। अफसरों ने ईमानदारी से अगर क्रियान्वयन कर दिया तो छत्तीसगढ़ के मानव संसाधन की रैंकिंग बढ़ जाएगी...गरीबों के बच्चे अंग्रेजी बोलते नजर आएंगे। लेकिन हो रहा उल्टा। कलेक्टरों के बिहाफ में चलने वाली इस योजना में इक्के-दुक्के कलेक्टर ही रुचि दिखा रहे। बाकी भगवान मालिक हैं। इसमें क्या हो रहा, हम बताते हैं। रायपुर से लगे एक छोटे जिले के प्योर हिंदी स्कूल की प्राचार्या को अंग्रजी स्कूल का प्राचार्या बना दिया गया है। प्राचार्य समझाने की कोशिश कर रही, मुझे अंग्रेजी नहीं आती। मगर डिप्टी कलेटर धमका रहे...पहले ज्वाईन करो, नही ंतो...। एसडीएम और डिप्टी कलेक्टरों द्वारा धमकाना सेकेंड्री है। बड़ा सवाल यह है कि हिन्दी टीचरों के भरोसे कलेक्टर बच्चों को अंग्रेजी कैसे पढ़वा पाएंगे। प्रदेश में आलम यह है कि आत्मानंद स्कूलों में 50 फीसदी से ज्यादा प्रतिनियुक्ति पर हिंदी स्कूलों के शिक्षकों की पोस्टिंग कर कलेक्टरों ने पल्ला झाड़ लिया। कलेक्टर चाहते तो विज्ञापन निकालकर कम-से-कम प्रिंसिपल को प्रायवेट स्कूलों से ले सकते थे। प्रायवेट स्कूलों के प्राचार्यां के पास अंग्रेजी स्कूल चलाने और रिजल्ट देने का तजुर्बा होता है। अब सरकारी हिंदी स्कूल के प्राचार्यार् से रिजल्ट कैसे आएगा...? सही फीडबैक लेकर सरकार को ऐसे कलेक्टरों को राडार पर लेना चाहिए। क्योंकि, कलेक्टर तो आज इस जिले में हैं, कल किसी और जिले में चले जाएंगे...जिले में नहीं गए तो राजधानी आ जाएंगे...नुकसान तो बच्चों का होगा और फेस सरकार को करना पड़ेगा।
खटराल अफसर
कलेक्टरों को अंग्रेजी स्कूलों को खोलने में जल्दीबाजी करने की बजाए सेटअप बनाकर पूरी तैयारी के साथ स्कूलों को लंच करना था। मगर आनन-फानन में ये काम ढंग से हो नहीं पाया। उल्टे स्कूलों में प्रतिनियुक्ति के बहाने ट्रांसफर का बड़ा खेल हो गया। खेल ऐसा कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों की बन आई और मास्टर साब लोगों का भी। अफसरों की जेब भर गई तो मास्टर साब लोग भी नुकसान में नहीं रहे। विभाग ने अंग्रेजी स्कूलों में पढाने वाले शिक्षकों के लिए 10 फीसदी भत्ता का प्रावधान किया है। याने हर महीने ढाई से तीन हजार वेतन बढ़ गया। वो भी बिना पढ़ाए। अब हिंदी स्कूल के टीचर हैं, अंग्रेजी कैसे पढ़ाएंगे। सो, उन्हें पढ़ाने के लिए कोई बोलेगा नहीं। कलेक्टरों को स्कूल खोलकर पीठ थपथपवाना था, सो हो गया। स्कूल शिक्षा विभाग ने हिंदी शिक्षकों की अंग्रेजी स्कूलों में भरती करने पर नोटिस इश्यू कर पल्ला झाड़ लिया। हालांकि, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, कलेक्टर चाहें तो सेटअप का पुनरीक्षण कर अभी भी व्यवस्था को ठीक कर सकते हैं। जब गलत नियुक्ति हुई है, तो उन्हें निरस्त करने में विभाग को हिचक क्यों?
ये दोस्ती...
इस हफ्ते केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी रायपुर दौरे पर थे। दीनदयाल उपध्याय सभागार में आयोजित समारोह में दोस्ताना रिश्तों का अद्भुत दृश्य था। सीएम भूपेश बघेल तारीफ कर रहे थे गडकरी की और गडकरी ने भी कहा, छत्तीसगढ़ में सड़कों का काम बढ़िया हो रहा। भूपेश तो यहां तक कह गए कि गडगरी जितने अच्छे मंत्री हैं, उतने ही अच्छे वक्ता भी...हमलोग उन्हें सुनना चाहते हैं। कार्यक्रम के बाद गडकरी भूपेश बघेल के आमंत्रण पर सीएम हाउस भी गए। सीएम के परिवार के सदस्यों से आत्मीयता से मिले। लोग हतप्रभ थे कि साढ़े तीन साल में ऐसी कोई झलक दिखी नहीं। सीएम केंद्र को निशाने में लेने से कभी नहीं चूके तो केंद्रीय मंत्रियों ने भी राज्य सरकार पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। इस सियासी यारी से निश्चित तौर पर भाजपा नेताओं के सीने पर सांप लोटा होगा मगर उन्हें ये भी याद होगा...अभी तो सिर्फ एक मंत्री राज्य सरकार की तारीफ में बात की है। यूपीए कार्यकाल में तो शायद ही कोई केंद्रीय मंत्री रहा हो, जो रायपुर विजिट में बीजेपी सरकार की सराहना नहीं की। सोचिए, तब कांग्रेस नेताओं पर क्या गुजरती होगी।
खैरागढ़ इम्पैक्ट
कांग्रेस ने निष्क्रिय पदाधिकारियों की छुट्टी करने का फैसला किया है। इसके पीछे खैरागढ़ चुनाव है। इलेक्शन के ऐलान के बाद सरकार के लोग जब खैरागढ़, गंडई और छुई खदान के पदाधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की तो हाल विकट था। फर्जीवाड़ा ऐसा हुआ था कि कई पदाधिकारियों को पता हीं नहीं था कि वे पद में है। चुनाव चल रहा था और कई पदाधिकारी इलाके से गायब थे। सरकार के विश्वस्त लोगों ने अगर कमान नहीं संभाली होती तो नतीजा कुछ और होता।
अंत में दो सवाल आपसे
1. कलेक्टरों की लिस्ट मुख्यमंत्री के जिलों के दौरे के पहले निकलेगी या उसके बाद में?
2. सीएम भूपेश बघेल के दिल्ली दौरे में मंत्रिमंडल में फेरबदल पर भी कोई चर्चा हुई?
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