तरकश, 3 दिसंबर 2023
संजय के. दीक्षित
आपकी भी जय-जय, आपकी भी...
सर्वे एजेंसियों ने अबकी गजब का कमाल किया है। सिर्फ एक अल्पज्ञात एजेंसी ने एक फिक्स संख्या कोट किया। बाकी में 10-10 सीटों का मार्जिन। मसलन कांग्रेस 45 से 55, तो बीजेपी 35 से 45। किसी ने बीजेपी को दिया 33 से 46 तो किसी ने कांग्रेस को 47 से 57। 90 विधानसभा सीटों के सर्वे में अगर 10-10 सीटों का अंतर आ रहा तो समझ सकते हैं कि सर्वे किस अंदाज और फर्मेट में हुआ होगा। सर्वे देखकर लगता है, आपकी भी जय-जय, आपकी भी जय-जय। तभी सीएम भूपेश बघेल ने भी कहा कि सर्वे से कहीं अधिक सीटें हमारी आएगी तो पूर्व सीएम रमन सिंह ने भी यही दावे किए। हमने इसी तरकश में लिखा था कि सर्वे एजेंसियां वोटरों के साइलेंट रहने से परेशान हैं। सर्वे में यह कंफ्यूजन साफ झलक रहा। जिस तरह अंडर करंट रहा, उससे प्रतीत होता है कि जिस पार्टी की भी सरकार आएगी, उसे ठीकठाक बहुमत मिलेगा।
5 गुलदस्ते की कहानी
2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान परिवर्तन की हवा तो थी मगर छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी समेत नामचीन लोगों को लगता था कि बीजेपी किसी तरह सरकार बना लेगी। बावजूद इसके, अधिकांश अधिकारियों ने काउंटिंग के रोज पांच बड़ा गुलदस्ता तैयार करवाया था। एक वर्तमान मुख्यमंत्री के लिए और कहीं बाजी पलटी तो फिर कांग्रेस के चार नेताओं के लिए। दरअसल, उस समय तक तय नहीं था कि कांग्रेस में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा। सो, भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव, चरणदास महंत और ताम्रध्वज साहू...चारों खेमों के अपने दावे थे...संभावनाएं थीं। पीसीसी चीफ के नाते भूपेश की तगड़ी दावेदारी थी तो टीएस सिंहदेव का भी अपना दावा था। ताम्रध्वज पार्टी के इकलौते सांसद थे, सो संभावनाएं उनकी भी कम न थी। महंत की किस्मत पर अत्यधिक भरोसा करने वाले लोगों में परसेप्शन था कि कका और बाबा में कुर्सी को लेकर कोई झंझट हुआ तो सिकहर टूट सकता है। यही वजह रही कि काउंटिंग का रुझान समझ में आते ही इन चारों नेताओं के बंगलों पर भीड़ उमड़ पड़ी। आलम यह था कि राजधानी के वही अफसर, वही चंद चेहरे इन चारों बंगले पर बार-बार टकरा रहे थे। हालांकि, इस बार रुलिंग पार्टी के साथ ये दिक्कत नहीं है। कांग्रेस अगर जीती तो सीएम हाउस। और अगर बीजेपी जीती तो...? एक ब्यूरोक्रेट्स ने चुटकी ली...बीजेपी में कोई फेस है नहीं...रमन सिंह को प्रतिकात्मक मान उन्हें ही गुलदस्ता दे आएंगे।
ताम्रध्वज की चूक
याद कीजिए...2018 का दिसंबर महीना। 13 दिसंबर को नतीजे आने के बाद सीएम की कुर्सी को लेकर दिल्ली में सियासत कैसी गरमाई थी। सबसे लास्ट में छत्तीसगढ़ का फैसला हो पाया। बताते हैं, सांसद होने की वजह से राहुल गांधी ने सीएम के लिए ताम्रध्वज के नाम को ओके कर दिया था। मगर उन्हें कहा गया कि अधिकारिक ऐलान तक इस बारे में कोई बात नहीं करनी है। मगर किसी तरह ताम्रध्वज के परिजनों तक भिलाई बात पहुंच गई और लगे फटाके फूटने। इसी के बाद मामला यूटर्न ले लिया। उसी के बाद भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव खुलकर सामने आए। फिर बंद कमरे में बातें शुरू हुई और फिर भूपेश बघेल के नाम का ऐलान हो गया। सियासी प्रेक्षक मानते हैं कि ताम्रध्वज को सीएम बनाने की बात अगर लीक नहीं हुई होती तो मामला कुछ और होता।
ब्यूरोक्रेसी में बदलाव
किसी भी स्टेट में नई सरकार के गठन के साथ नौकरशाही में बड़ा बदलाव होता है। मगर सरकारें अगर रिपीट होती हैं तो फिर लिस्ट की साइज छोटी हो जाती है। ऐसा इसलिए कि समझा जाता है उन्हीं अफसरों के बदौलत पार्टी को कामयाबी मिली है। ये अवश्य होता है कि चुनावी आचार संहिता के दौरान अगर-मगर करने वाले अधिकारियों को सरकार बदलते ही उनकी हैसियत का अहसास करा दिया जाता है। ऐसे में, भूपेश बघेल सरकार अगर रिपीट हुई तो जाहिर है, लिस्ट बहुत लंबी नहीं होगी। सबसे पहले उन पांच कलेक्टर, एसपी की फिर से उन्हीं जिलों में पोस्टिंग का आदेश निकलेगा। हालांकि, इसमें एक रिस्क यह भी है कि लोकसभा का ऐलान होते ही फरवरी एंड या मार्च फर्स्ट वीक में फिर से इन अधिकारियों को हटा दिया जाएगा। मगर सरकारें आमतौर पर मैसेज देने के लिए फिर से पोस्टिंग देती है। पिछली सरकार में भी एक कलेक्टर को फिर से लोकसभा चुनाव में हटा दिया गया था। बहरहाल, इन पांच अफसरों के आदेश के बाद फिर, राडार पर आने वाले अधिकारियों का नंबर आएगा। और बीजेपी आई तो...तब तो ब्यूरोक्रेसी का पूरा सीन बदल जाएगा। दिसंबर 2018 में जब कांग्रेस सरकार आई थी, उस समय 28 में से 23 जिलों के कलेक्टर बदल गए थे। पहली लिस्ट में ही 58 अफसरों के नाम थे। सो, ब्यूरोक्रेसी भी दम रोककर 3 तारीख का इंतजार कर रही है।
CS, DGP, PCCF चेंज?
किसी भी प्रदेश में सबसे बड़े स्केल वाले तीन पद होते हैं। चीफ सिकरेट्री, डीजी पुलिस और पीसीसीएफ याने हेड ऑफ फॉरेस्ट। सरकार बदलने पर इन तीनों को आमतौर पर सबसे पहले बदला जाता है। खासतौर से सीएस और डीजीपी को। 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो उसके तीसरे दिन डीजीपी एएन उपध्याय हटा दिए गए। उसके महीने भर बाद चीफ सिकरेट्री अजय सिंह की भी कुर्सी चली गई थी। हालांकि, 2003 में जब बीजेपी की सरकार बनी थी, उस समय एसके मिश्रा सीएस थे और अशोक दरबारी डीजीपी। सरकार ने सीएस को कंटिन्यू किया। दरबारी को बदलना चाहा मगर कोई विकल्प नहीं था। ओपी राठौर जब डेपुटेशन से लौटे तो छह महीने बाद दरबारी को हटाया गया। अब बात इस चुनाव की....इस समय सीएस अमिताभ जैन और डीजीपी अशोक जुनेजा एकदम सेफ मोड में हैं। कांग्रेस की सरकार बनी तो उन्हें हटाने का सवाल ही पैदा नहीं होता और बीजेपी आई तब भी दोनों को कोई खतरा नहीं। क्योंकि, दोनों पर कोई लेवल नहीं चस्पा है और न ही फिलहाल कोई अल्टरनेटिव है। सीएस में अमिताभ के बाद रेणू पिल्ले हैं, और उनसे एक बैच नीचे सुब्रत साहू। दोनों का रिटायरमेंट में चार से पांच साल बचे हैं। अमिताभ का रिटायरमेंट भी 2025 में है। डीजीपी में विकल्प का और टोटा है। जुनेजा 60 साल के हिसाब से इस साल जून में रिटायर हो जाते। मगर पूर्णकालिक डीजी का आदेश उनका सितंबर 2022 में निकला। दो साल के नियम के अनुसार वे अगले साल सितंबर में रिटायर होंगे। हालांकि, सरकार चाहे तो उन्हें हटा सकती है मगर सवाल वहीं, क्यों? जुनेजा से नीचे 90 बैच के राजेश मिश्रा हैं, वे अगले महीने जनवरी में रिटायर हो जाएंगे। उनके बाद पवनदेव और अरुणदेव का नंबर है। मगर दोनों अभी डीजी प्रमोट नहीं हुए हैं। लिहाजा, सीएस, डीजीपी बदलने की कोई संभावनाएं नजर नहीं आती। रही बात पीसीसीएफ श्रीनिवास राव की तो वे बीजेपी में भी ठीक-ठाक पोजिशन में रहे और इस सरकार में भी। सात आईएफएस अफसरों को सुपरसीड करके उन्हें हेड ऑफ फारेस्ट बनाया गया है। इससे उनके रसूख का अंदाजा आप लगा सकते हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. काउंटिंग को लेकर सरकार के कितने मंत्रियों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं?
2. क्या ये सही है कि बीजेपी के एक युवा नेता सर्वाधिक वोटों से जीत दर्ज करने वाले हैं?
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