तरकश, 17 दिसंबर 2023
संजय के. दीक्षित
नई सरकार, 18 लाख मकान और अफसर
विष्णुदेव साय कैबिनेट ने पहली ही बैठक में सूबे में गरीबों के लिए 18 लाख नए मकान बनाने के फैसले पर मुहर लगा दी। जाहिर है, बीजेपी के संकल्प पत्र का यह अहम बिंदु तो था ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सभी सभाओं में आवास बनाने का ऐलान प्रमुखता से किया था। मगर बड़ा सवाल यह है कि वर्तमान सिस्टम में 18 लाख आवास का मेगा प्रोजेक्ट पूरा हो पाएगा? वो भी जब दो महीने बाद लोकसभा चुनाव है। खैर, दो महीने में कदापि संभव नहीं मगर इस दिशा में क्या प्रॉग्रेस है...ये तो जनता को बताना होगा। अफसरशाही को इस योजना में रुचि नहीं होगी क्योंकि, इसमें ज्यादा कुछ मिलना नहीं। वैसे भी, अधिकांश अफसरों का संतुष्टि लेवल काफी हाई हो गया है। पहले से करीब डबल। ऐसे में, जो काम उनके सेचुरेशन लेवल के नीचे का होगा, उसमें उनकी दिलचस्पी नहीं होगी। ब्यूरोक्रेसी में अब जनरल ट्रेंड बन गया है...योजना लागू करने से पहले पतासाजी कर लेना कि उसमें मिलेगा क्या? तभी फाइल खिसकती है। सो, नए सीएम को इस योजना के लिए किसी दमदार और रिजल्ट देने वाले अधिकारी को चुनकर बिठाना होगा।
सियासत और किस्मत-1
सियासत में काम के साथ ही किस्मत की बड़ी भूमिका होती है...जिसके माथे पर राजयोग लिखा होता है...उसे ही कुर्सी मिलती है। विष्णुदेव साय को सीएम बनना लिखा था तो बन गए वरना, एक दूसरे वाले सायजी को बुढ़ापा खराब करनी थी तो चुनाव के ऐन पहले पाला बदल कर बचा-खुचा अपना सम्मान भी गंवा डाले। खैर, र्शीर्षक...अरुण साव जस्टिस होते...आपको चौंकाएगा। मगर यह सही है कि अरुण साव को सूबे की दूसरी बड़ी कुर्सी तक पहुंचाने में भाग्य का प्रबल योग रहा है। बताते हैं, 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान टिकिट के लिए अरुण साव को बुलाया गया मगर उन्हें आभास नहीं था कि मुझे टिकिट मिल सकती है, वे पुरी में थे। वहां उनका फोन लग नहीं पाया। ऐसे में, पार्टी ने लखनराम साहू को टिकिट दिया और वे जीते भी। 2019 में चूकि पार्टी को चेहरा बदलना था, सो अरुण को मैदान में उतारा गया और वे सांसद बन गए। उससे पहले रमन सरकार की दूसरी पारी में अरुण साव उप महाधिवक्ता रहे थे। 2018 में जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू के साथ अरुण का भी नाम था। मगर वक्त ने अरुण साव के लिए कुछ और सोच रखा था। सो, पार्थ प्रीतम जस्टिस बन गए। सोचिए अरुण अगर 2014 में सांसद बन गए होते तो जरूरी नहीं था कि 2019 में उन्हें कंटीन्यू किया जाता। क्योंकि, 2018 में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था। और अगर जस्टिस बन गए होते तो सियासत से उनका नाता हमेशा के लिए जुदा हो गया होता।
सियासत और किस्मत-2
छत्तीसगढ़ के सियासत में किस्मत का बड़ा रोल रहा है। वरना, दिसंबर 2018 में सबसे अधिक नाम उछलने और ढाई-ढाई साल के एपीसोड के बाद भी टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम के पद से संतोष करना पड़ा। वहीं, भूपेश बघेल पूरे पांच साल सीएम रहे और अपने हिसाब से काम किए। डॉ0 रमन सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही रहा। 2003 में वे सीएम जरूर बन गए थे मगर काफी दिनों तक चर्चा रही कि रमन कुछ दिनों के लिए सीएम बनाए गए हैं, सुषमा स्वराज फाइनली रमेश बैस को सीएम बनवा देगी। मगर उसके बाद क्या हुआ सभी को मालूम है। रमन 15 साल मुख्यमंत्री रहे। छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े नेता रहे विद्याचरण शुक्ल की मुख्यमंत्री बनने की बड़ी इच्छा रही। मगर ऐन वक्त पर अजीत जोगी उनकी कुर्सी ले उड़े। दिलीप सिंह जूदेव जैसे नेता के साथ भी किस्मत वाला ही मामला रहा। वरना, 2003 का विधानसभा चुनाव उनके नाम पर लड़ा गया था और वे ट्रेप नहीं हुए होते तो अत्यधिक संभावना थी कि वे मुख्यमंत्री बनते। उन्हें ट्रेप भी इसलिए किया गया ताकि, प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने की राह आसान हो सके। जूदेव परिवार के लिए यह चुनाव भी अच्छा नहीं रहा। जूदेव का बेटा और बहू चुनाव हार गए मगर किस्मत देखिए कि उनसे जुड़कर राजनीति में पहचान बनाने वाले यूथ लीडर सुशांत शुक्ला अच्छी लीड से चुनाव जीत गए।
खरवास का मिथक
विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के एक लीडर से टिकिट वितरण में देरी को लेकर सवाल पूछा गया तो जवाब मिला...पितृ पक्ष निकल जाए, फिर देखते हैं। वहीं, बीजेपी जैसी धर्म से जुड़ी पार्टी ने पितृ पक्ष के बावजूद टिकिट बांटा और चुनाव निकाला भी। ऐसे में, जो लोग खरवास में मंत्रियों के शपथ लेने पर संशय व्यक्त कर रहे हैं...उनके जिज्ञासा का समाधान हो जाएगा। दरअसल, बीजेपी के सीनियर नेता भी मानते हैं...सरकार खरवास के पहले बन गई है। मंत्रियों के शपथ में खरवास का कोई इश्यू नहीं है। क्योंकि, महत्वपूर्ण होता है मुख्यमंत्री। मंत्री मुख्यमंत्री में समाहित होते हैं। राजकाज में मुख्यमंत्री का हाथ बंटाने...सुचारु संचालन के लिए मंत्रियों की व्यवस्था की गई है। जाहिर है, खरवास मंत्रियों के शपथ में रोड़ा नहीं बनेगा।
व्हाट एन आइडिया!
ये बीजेपी है...जहां विधानसभा चुनाव के बाद बड़े-बड़ों को किनारे कर दिया गया मगर कहीं से कोई आवाज नहीं आ रही। मंत्रिमडल गठन को लेकर भी कोई सुगबुगाहट नहीं। मुख्मयंत्री के शपथ ग्रहण के दिन छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान...तीनों राज्यों में बड़ी उत्सुकता रही...मंत्री में किसका नंबर लग रहा। मगर जैसे-जैसे वक्त निकलता जा रहा, चर्चाएं भी क्षीण पड़ती जा रही हैं। पुराने नेताओं की मंत्री बनने की स्वाभाविक दावा भी कमजोर पड़ता जा रहा है। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी यही चाह रहा है। बड़े नेता मानसिक तौर पर तैयार हो जाएं...नए लोगों का समय आ गया है।
दो-से-तीन पुराने मंत्री?
छत्तीसगढ़ में सीएम समेत 13 मंत्री बन सकते हैं। इनमें से सीएम और दो डिप्टी सीएम शपथ ले चुके हैं। बचे 10। इनमें से दो सीटें लोकसभा चुनाव के बाद के लिए रिजर्व रखी जाएगी ताकि जो बढ़ियां काम करेगा, उसे पारितोषिक दिया जा सके। याने आठ मंत्री और बनेंगे। इनमें से अगर सबके सब नए हो जाएंगे, जैसा कि बीजेपी के अंदरखाने में चर्चाएं हैं, तो थोड़े दिनों तक सरकार चलाने में दिक्कत तो जाएगी। खासतौर से फरवरी में बजट सत्र होगा। संसदीय कार्य मंत्री को सदन की पूरी व्यवस्था देखनी होती है। संसदीय परंपराओं की उन्हें जानकारी होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ में रविंद्र चौबे और अजय चंद्राकर जैसे संसदीय कार्य मंत्री रहे हैं। ठीक है...विपक्ष कमजोर है, बावजूद उसके पास भूपेश बघेल और चरणदास महंत जैसे अनुभवी नेता हैं। सदन में अगर सभी नए रहेंगे तो उन्हें छह महीने से ज्यादा ट्रेक पर आने में लग जाएगा। वो भी तब जब तगड़ी स्टडी करेंगे। लिहाजा, दो-तीन ऐसे पुराने मंत्रियों को मौका मिलने की अटकलें चल रही हैं, जिनका प्रदर्शन बढ़ियां और रिजल्ट देने वाला रहा है। वैसे भी पुराने मंत्री अब सिर्फ पावर चाहते हैं...पैसा कमाना उनका ध्येय नहीं। क्योंकि, 15 साल वाले को ही संभालने में वे परेशान होंगे...नया झमेला कर मोदी और ईडी के राडार पर क्यों आएंगे?
नौकरशाहों की कुंडली
डीओपीटी ने भले ही कई मौकों पर आईएएस, आईपीएस के मूल्यांकन के लिए 360 डिग्री सिस्टम से इंकार किया है। मगर ये तो जाहिर है भारत सरकार में पोस्टिंग पाने वाले अफसरों पर निगरानी करने वाला कोई सिस्टम अवश्य है। बिना क्रॉस चेक किए वहां किसी अफसर को नियुक्ति नहीं मिलती। छत्तीसगढ़ में सरकार बदलने के बाद अफसरों की पोस्टिंग में हो रही देरी के पीछे इसी 360 डिग्री सिस्टम की बात आ रही है। पता चला है, आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की पूरी कुंडली खंगाली जा रही है...किसका क्या बैकग्राउंड रहा...पिछली सरकार में उसकी क्या भूमिका रही...पारफारमेंस कैसा है...अभी तक की सर्विस में क्या कोई उल्लेखनीय काम रहा है...उसका लाइफस्टाईल। इसके आधार पर विभिन्न पदों पर नियुक्तियां की जाएंगी। सूत्रों का कहना है कि उपर वालों को सबसे अधिक दिक्कत छत्तीसगढ़ में जा रही है। क्योंकि, आईटी, और ईडी के छापों से छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी दो साल से चर्चा में है। आखिर, दो आईएएस जेल में हैं ही। बहरहाल, सरकार बदलने पर सबसे पहले सीएम सचिवालय में नियुक्तियां होती हैं। मगर ये भी अभी प्रॉसेज में है। ब्यूरोक्रेसी में सवाल बहुतेरे हैं...कौन बनेगा सबसे ताकतवर सीएम सचिवालय का मुखिया। दिल्ली से आएगा या यहीं से होगा अपाइंट। देखना है, अफसरों की उत्सुकता कब तक शांत होती है।
अमित लौटे छत्तीसगढ़
98 बैच के आईपीएस सीबीआई डेपुटेशन से लंबे समय बाद छत्तीसगढ़ लौटे हैं। पुलिस मुख्यालय में उन्होंने ज्वाईनिंग दे दी है। अब उन्हें पोस्टिंग का इंतजार है। दिल्ली से आए अमित को नई सरकार कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकती है। इनमें एसीबी और खुफिया चीफ भी शामिल हैं। अमित सीबीआई में ज्वाइंट डायरेक्टर पॉलिसी जैसे प्रतिष्ठित पोस्टिंग कर चुके हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. नए सीएम विष्णुदेव साय का सचिवालय कोई एसीएस संभालेगा या प्रिंसिपिल सिकरेट्री?
2. चरणदास महंत को किस्मत का धनी नेता क्यों कहा जाता है?
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