संजय के. दीक्षित
तरकश, 15 जनवरी 2023
एसपी का रिपोर्ट कार्ड
भानुप्रतापपुर बाइ इलेक्शन के पहले से एसपी की लिस्ट निकलने की चर्चा चल रही है। अब चुनाव हो गया और विधानसभा सत्र समाप्त हुए भी 10 दिन निकल गए। अटकलों का दौर फिर चल पड़ा है...कप्तान साब लोगों की धड़कनें बढ़ी हुई है। फिर भी, कोई क्लियरिटी नहीं है कि लिस्ट कब निकलेगी। मगर ये जरूर है कि इस बार बड़े-बड़े विकेट चटकेंगे। कई बड़े जिलों के एसपी को इस बार सरकार उनकी कप्तानी वापिस लेगी। तो रिजल्ट देने वाले कुछ अच्छे कप्तानों को और बड़े जिलों में उतारेगी। पता चला है, डीजीपी अशोक जुनेजा और नए खुफिया चीफ अजय यादव इससे पहले सभी पुलिस अधीक्षकों के पारफारमेंस का एक डेटा तैयार करवा रहे हैं। इसमें इंटेलिजेंस से भी इनपुट्स लिए जा रहे हैं। इससे परखा जाएगा कि कौन कप्तान मैदान में रहने लायक है और कौन विश्राम देने लायक। परफारमेंस का आंकलन करने में लगता है, 26 जनवरी निकल जाएगा। याने जनवरी लास्ट या फरवरी फर्स्ट वीक तक लिस्ट की उम्मीदें की जा सकती है। तब तक एसपी साब लोग नाहक परेशां न हों।
पुलिस या...?
यूं तो पुलिस पर अपराधियों को संरक्षण देने के आरोप लगते हैं...मगर राजधानी से सटे एक ऐसा जिला है, जहां पुलिस की भूमिका क्या होती है, यहां लिखना मुनासिब नहीं होगा। और ये आज से नहीं, राज्य बनने के पहले से चल रहा है। कबिलाइ्र्र पोलिसिंग। दरअसल, ये ऐसा जिला है, जहां सूबे के अधिकांश आईपीएस अधिकारी एसपी या आईजी के तौर पर पोस्टेड रह चुके हैं। और, सबके दो-चार मुंहलगे सिपाही हैं। इसके अलावा बीजेपी के कई बड़े नेता हैं तो कांग्रेस तो सत्ताधारी पार्टी ही है। थानों के 100 से अधिक पुलिस वालों का सुबह का पहला काम होता है कांग्रेस और भाजपा नेताओं के घर जाकर उनका पैर छू आना और आईपीएस अफसरों को सैल्यूट मार पूछ लेना...साब कोई आदेश। ऐसे सिपाहियों का कौन है, जो बाल बांका कर ले। इसकी आड़ में फिर पुलिस वाले अपना खेला करते हैं। कई सिपाही अपने थानेदार और इलाके के सीएसपी की नही सुनते। ऐसे में भला क्या कर लेगा एसपी।
रेरा का पेड़ा-1
रेरा याने रियल इस्टेट रेगुलरटी अथॉरिटी के फर्स्ट चेयरमैन विवेक ढांड रिटायमेंट के दो दिन पहले रिटायर हो गए। असल में, 15 जनवरी को उनका पांच साल पूरा होता मगर इस दिन रविवार है और उससे पहले शनिवार। दोनों दिन अवकाश। लिहाजा, 13 जनवरी को उनकी विदाई हो गई। ढांड के जाने के साथ ही ब्यूरोक्रेसी के गलियारों में ये चर्चाएं शुरू हो गई कि रेरा का अगला चेयरमैन कौन होगा। इसमें पहला नाम पीसीसीएफ संजय शुक्ला का लिया जा रहा है। उनका पलड़ा भारी होने की एक बड़ी वजह यह है कि वे हाउसिंग सेक्टर में काम कर चुके हैं। छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड कमिश्नर के साथ ही लंबे समय तक आवास और पर्यावरण विभाग के सिकरेट्री रहे। यद्यपि उनके रिटायरमेंट में अभी चार महीने बाकी है। मई तक उनका कार्यकाल है। मगर तब तक खाली भी रखा जा सकता है। इससे पहले विवेक ढांड के लिए मुख्य सूचना आयुक्त का पद डेढ़ साल से अधिक समय तक खाली रखा गया। ये अलग बात है कि बाद में वे रेरा के चेयरमैन बन गए। वैसे, संजय के अलावा और किसी बड़े अफसर का रिटायरमेंट भी नहीं हो रहा। सो, ब्यूरोक्रेसी से कोई ऐसा नाम नहीं दिख रहा, जिसे रेरा चेयरमैन की कमान सौंपी जा सकें।
रेरा का पेड़ा-2
रेरा चेयरमैन का पद हाईकोर्ट के जस्टिस के बराबर है। हालांकि, ये रेरा के एक्ट में नहीं है। मगर पिछली सरकार ने चेयरमैन की पोस्टिंग से पहले इस पद को हाईकोर्ट के सीटिंग जज के समतुल्य कर दिया था। रेरा का ट्रिब्यूनल जब तक आब्जेक्शन नहीं करें तब तक यह व्यवस्था चलती रहेगी। ट्रिब्यूनल के चेयरमैन हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस हैं। ऐसे में, सीटिंग जज के बराबर आदमी रेरा का चेयरमैन कैसे होगा? खैर ये तकनीकी विषय है। लोगों की दिलचस्पी इसमें है कि सलेक्शन कमेटी किस नाम पर मुहर लगाती है। सलेक्शन कमेटी में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस या उनका कोई नामिनी जस्टिस अध्यक्ष होते हैं और चीफ सिकरेट्री तथा एक सीनियर सिकरेट्री मेम्बर। हालांकि, होता वही है, जिसे सरकार चाहती है। सरकार जिसे चाहेगी, उसे ही रेरा का पेड़ा मिलेगा।
राहत
रेरा चेयरमैन विवेक ढांड के रिटायरमेंट से रेरा ट्रिब्यूनल के मेम्बर धनंजय देवांगन का कांफर्टनेस लेवल बढ़ा होगा। वो ऐसे कि विवेक ढांड तेज आईएएस रहे हैं। पौने चार साल तक चीफ सिकरेट्री। जब वे सीएस थे, तब धनंजय सिकरेट्री भी प्रमोट नहीं हो पाए थे। सरकार ने पिछले महीने धनंजय को रेरा ट्रिब्यूनल का सदस्य नियुक्त कर दिया। इस पर ब्यूरोक्रेसी में चुटकी ली जा रही थी...ढांड साब के फैसले के खिलाफ अपील की धनंजय सुनवाई करेंगे। भले ही ये मजाक था मगर धनंजय के लिए ये सुनना थोड़ा मुश्किल तो होता होगा। जाहिर है, पुराने बॉस का खौफ जल्दी जाता कहां है।
सीएस का दस्तखत क्यों नहीं?
छत्तीसगढ़ देश का पहला स्टेट होगा, जहां आईएएस अधिकारियों का ट्रांसफर आदेश चीफ सिकरेट्री के दस्तखत से नहीं, जीएडी सिकरेट्री के दस्तखत से निकलता है। बाकी सभी राज्यों में आईएएस से संबंधित कोई भी आदेश चीफ सिकरेट्री के साइन से निकलता है। यहां भी अजय सिंह तक यही परिपाटी रही। उनके बाद पता नहीं कैसे मामला बदल गया। अब चीफ सिकरेट्री नोटशीट पर हस्ताक्षर करते हैं। उसके बाद आदेश निकालने के लिए फाइल जीएडी में भेज दी जाती है। हालांकि, वैधानिक और तकनीकी तौर पर इसमें कुछ गलत नहीं है। मगर मर्यादा और प्रोटोकॉल की दृष्टि से ठीक नहीं है। अब एसीएस और प्रिंसिपल सिकरेट्री का ट्रांसफर या सरकार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करें तो उसका आदेश जीएडी सिकरेट्री निकाले तो ये प्रोटोकॉल के हिसाब से ठीक नहीं है। एक सीनियर अफसर को लूप लाईन में भेजा गया था, तो उसका यह दर्द छलक आया था। दरअसल, नोटषीट में आप राष्ट्रपति से साइन करवा कर रख लीजिए, उसे कौन देखता है। मार्केट में तो आदेश की कॉपी मूव होती है।
जनसंपर्क की उम्मीदें
राज्य सरकार ने दिन-रात एक कर बजट तैयार करने वाले वित्त विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों को एक महीने का वेतन दिया है। इससे जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों की भी उम्मीदें बढ़ गई है। सरकार की छबि बनाने वाला जनसंपर्क ऐसा विभाग है, जो होली हो या दिवाली, शैटर्डे हो या संडे, गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस...पूरा देश जश्न मनाता रहता है...जनसंपर्क अधिकारी ड्यूटी बजा रहे होते हैं। कोविड में कंप्लीट लॉकडाउन था। तब भी जनसंपर्क अधिकारी मुस्तैदी से अपने काम में लगे हुए थे। दूसरी लहर में अपना कर्तव्य निभाते हुए एक अधिकारी और एक कर्मचारी कोविड के शिकार होकर जान गंवा बैठे। बावजूद इसके जनसंपर्क अधिकारियों का हौसला नहीं डिगा। ऐसे में, उनकी उम्मीदों को जायज कहा जा सकता।
उदार मंत्री
एक प्लॉट की तीन रजिस्ट्री करने वाले रायपुर के डिप्टी रजिस्ट्रार को निलंबित करने के डेढ़ महीने के भीतर ही उन्हें बहाल कर धमतरी जिले की जिम्मेदारी सौंप दी गई। पता चला है, इसके लिए मंत्री जय सिंह अग्रवाल की सहमति भी नहीं ली गई। जबकि, क्लास टू के अफसर का रिस्टेट बिना मंत्री के एप्रूवल के नहीं होना चाहिए। विभाग के लोग मानते हैं, मंत्रीजी का पूरा फोकस अपने गृह जिले पर होता है...वहां के लिए बेहद संजीदा माने जाते हैं। इससे उलट बाकी जगहों के लिए बेहद उदार। वरना, दूसरा मंत्री इसे कहां बर्दाश्त करेगा।
तीन केंद्रीय मंत्री?
केंद्रीय मंत्री के लिए वैसे नाम तो कई चल रहे हैं मगर जातीय समीकरणों की दृष्टि से गुहाराम अजगले का पलड़ा भारी दिख रहा है। दरअसल, बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि आदिवासी वर्ग से रेणुका सिंह केंद्र में पहले से मंत्री हैं। ओबीसी में कुर्मी और साहू सबसे प्रभावशाली हैं और इन दोनों से अरुण साव अध्यक्ष और नारायण चंदेल नेता प्रतिपक्ष हैं। झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस भी इसी वर्ग से हैं। दलित वर्ग से जरूर प्रतिनिघित्व नहीं है। पुन्नूराम मोहले के भरोसे पार्टी आखिर कब तक रहेगी। सो, इसके लिए गुहाराम अजगले का नाम आगे बढ़ाया गया है। इससे बीजेपी को सियासी लाभ दिखाई दे रहा है। हालांकि, सीएम भूपेश बघेल ने ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करके सियासी बढ़त ले ली है। इसको देखते बीजेपी इस पर भी विचार कर रही है कि क्यों न दो मंत्री बना दिया जाए। एक अनुसूचित जाति से और दूसरा ओबीसी से। पहले भी अटल जी की सरकार के समय केंद्र में तीन राज्य मंत्री रहे हैं। डॉ0 रमन सिंह, रमेश बैस और दिलीप सिंह जूदेव। भाजपा को इसका लाभ भी मिला था। ऐसे में, गुहराम का नाम लगभग फायनल बताया जा रहा है, उनके साथ ओबीसी से विजय बघेल का नाम जुड़ जाए, तो आश्चर्य नहीं।
वीसी शुक्ला लास्ट मिनिस्टर
छत्तीसगढ़ बनने के बाद केंद्र में बीजेपी की सरकार हो या कांग्रेस की, राज्य को कभी कैबिनेट मंत्री नही मिला। मनमोहन सिंह सरकार की दूसरी पारी में चरणदास महंत को मंत्री बनाया गया। और बीजेपी में अटल बिहारी सरकार हो या फिर नरेंद्र मोदी की, छत्तीसगढ़ को राज्यमंत्री से ही संतोष करना पड़ा। और राज्य मंत्री को कितना पावर रहता है, इससे आप समझ सकते हैं कि इनमें से कोई मंत्री अपना एक काम नहीं बता सकता। याने सिर्फ काउंटिंग के लिए। रेणुका सिंह अभी केंद्रीय राज्य मंत्री हैं, अचानक किसी से पूछ दिया जाए, तो आदमी हड़बड़ा जाएगा। केंद्र में या तो कैबिनेट हो या स्वतंत्र प्रभार, तभी जलवा-जलाल होगा। छत्तीसगढ़ से आखिरी कैबिनेट मंत्री मध्यप्रदेश के समय वीसी शुक्ला रहे। नरसिम्हाराव ने उन्हें जल संसाधन जैसा मंत्रालय दिया था।
अंत में दो सवाल आपसे
1. मंत्रियों के कार्यक्र्रम में कांग्रेस नेताओं को सम्मानपूर्वक बुलाने के लिए पत्र जारी हुआ है...तो सवाल उठते हैं...मंत्री अपने विस क्षेत्रों के अलावा किसी और जिले का दौरा कर रहे हैं क्या?
2. ऐसा क्यों कहा जा रहा कि बसपा की विधानसभा सीटें इस बार बढ़ सकती हैं?
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