शनिवार, 12 अगस्त 2023

Chhattisgarh Tarkash: उम्र 84 की, हौसला...

 तरकश, 13 अगस्त 2023

संजय के. दीक्षित

उम्र 84 की, हौसला...

छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ विधायक रामपुकार सिंह जशपुर जिले के पत्थलगांव विधानसभा सीट से आठवी बार नुमाइंदगी कर रहे हैं। वे अजीत जोगी सरकार में मंत्री रहे और मध्यप्रदेश के समय दिग्विजय सरकार में भी। 2013 में सिर्फ एक बार चुनाव हारे, जब पत्थलगांव को जिला बनाने का वादा कर बीजेपी के शिव शंकर पैकरा चुनाव जीतने मे कामयाब हो गए थे। उम्र की बात करें तो रामपुकार सिंह इस समय 84 क्रॉस कर रहे हैं। जीवन का ये ऐसा पड़ाव होता है...जहां 80 फीसदी से अधिक लोग पहुंच नही पाते और पहुंच भी गए तो देश-दुनिया से उनका कोई वास्ता नहीं रह जाता। मगर इस सीनियर आदिवासी विधायक के हौसले को सैल्यूट करना चाहिए...इस उम्र में भी वे फिर से चुनाव लड़ने तैयार दिख रहे हैं। हाल ही में सीएम भूपेश बघेल ने सूबे में अपने दम पर चुनाव जीतने वाले नेताओं में रामपुकार का नाम का जिक्र किया था। रामपुकार सिंह का सबसे बड़ा प्लस यह है कि इतनी लंबी सियासी पारी के बाद भी उन्होंने अपनी छबि निर्विवाद और बेदाग रखा।

पैलेस बेअसर!

जशपुर जिले की तीन विधानसभा सीटों पर कभी दिलीप सिंह जूदेव का जादू चलता था। जब तक वे रहे, कम-से-कम इन तीन सीटों पर बीजेपी की जीत की गारंटी रही। मगर उनके असमय दिवंगत होने के बाद परिवार वाले जूदेव की विरासत को संभाल नहीं पाए। उपर से करेला और नीम चढ़ा...पैलेस में वर्चस्त की लड़ाई तेज हो गई। इसका नतीजा यह हुआ कि 2018 के विस इलेक्शन में तीनों सीटों कांग्रेस की झोली में चली गई। जूदेव परिवार के लिए पुराना वैभव याने जिले की तीनों सीटों को फिर से हासिल करना जैसी कोई इच्छा नहीं दिख रही। राजा रणविजय सिंह पिक्चर से गायब हैं। प्रबल प्रताप सिंह सरगुजा के किसी विधानसभा सीट से किस्मत आजमाने की कोशिश कर रहे तो युद्धवीर जूदेव की पत्नी चंद्रपुर सीट पर दावा करने वहां शिफ्थ हो गई हैं। बीजेपी के लिए खटकने वाली बात ये भी होगी कि उसके तीन बड़े नेता याने संगठन मंत्री पवन साय, पूर्व केंद्रिय मंत्री विष्णुदेव साय और पूर्व संगठन मंत्री रामप्रताप सिंह जशपुर जिले से आते हैं मगर वे पैलेस पर इस कदर आश्रित हो गए कि खुद के जिले में अदद एक सीट दिलाने की गारंटी नहीं दे सकते।

कमिश्नर, कलेक्टर सेम बैच

पोस्टिंग में आमतौर पर सीनियर, जूनियर का खयाल रखा जाता है। खासकर ब्यूरोक्रेसी में। मगर इन दिनों से मामला गडबड़ाया हुआ है। सरगुजा में 2008 बैच की आईएएस शिखा राजपूत कमिश्नर हैं तो उन्हीं के बैच के नरेंद्र दुग्गा मनेंद्रगढ़ जैसे नए नवेले जिले के कलेक्टर। इसी तरह बिलासपुर में 2009 बैच के के डी कुंजाम को कमिश्नर बनाया गया है। बिलासपुर में 2009 बैच के ही आईएएस सौरव कुमार कलेक्टर थे। कुछ दिन पहले ही उनका कोरबा ट्रांसफर हुआ है। कोरबा भी बिलासपुर संभाग में आता है। मतलब सरगुजा जैसी स्थिति यहां भी रहेगी। एक ही बैच का अफसर कमिश्नर रहेगा और उसी बैच का कलेक्टर। सरगुजा में तो फिर भी डायरेक्टर और प्रमोटी का फर्क है। शिखा आरआर याने डायरेक्ट आईएएस हैं और दुग्गा प्रमोटी। बिलासपुर में उल्टा है...सौरव के लिए कष्टदायक भी। बिलासपुर में प्रमोटी आईएएस कमिश्नर हैं और कोरबा कलेक्टर डायरेक्ट आईएएस। बिलासपुर के एडिशनल कमिश्नर कुमार चौहान की पीड़ा भी समझी जा सकती है। चौहान 2009 बैच के आईएएस हैं। और उन्हीं के 2009 बैच के केडी कुंजाम को कमिश्नर बना दिया गया। याने एक ही ऑफिस में सेम बैच का अफसर बॉॅस और सबआर्डिनेट होंगे। बहरहाल, इसके साइड इफेक्ट सामने आने लगे हैं। सरगुजा कमिश्नर मनेद्रगढ़ में एक तहसीदार की पोस्टिंग की। अगले दिन कमिश्नर के आदेश को ताक पर रखते हुए मनेंद्रगढ़ कलेक्टर ने तहसीलदार को हटाकर अपने पसंदीदा को तहसीलदार पोस्ट कर दिया।

सबसे बड़ा पुलिस रेंज

पुलिस रेंज के पुनर्गठन के बाद बिलासपुर छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पुलिस रेंज हो गया है। इसमें जिलों की संख्या बढ़कर अब नौ हो गई हैं। बिलासपुर, मुंगेली, जीपीएम, कोरबा, जांजगीर, सक्ती, रायगढ़, सारंगढ़ और जशपुर। जशपुर पहले सरगुजा में था, उसे भी अब बिलासपुर में शामिल कर दिया गया है। जशपुर के कारण झारखंड बार्डर भी अब बिलासपुर रेंज में आ गया है। कुल मिलाकर बिलासपुर आईजी डॉ0 आनंद छाबड़ा का औरा बढ़ा है। छत्तीसगढ़ के लगभग एक तिहाई एरिया के वे पुलिस चीफ होंगे। जिस रेंज में कोरबा और रायगढ़ जैसे इंडस्ट्रियल जिला शामिल हो, उस रेंज की अहमियत समझी जा सकती है।

जशपुर के साथ न्याय?

पुलिस रेंज के पुनर्गठन मे जशपुर को सरगुजा पुलिस रेंज से निकालकर बिलासपुर रेंज में शामिल किया गया है। इसके पीछे गृह विभाग की सोच यह बताई जा रही कि रायगढ़ नया पुलिस रेंज बनेगा तो उसमें जशपुर को शामिल कर लिया जाएगा। ठीक है, ये जब होगा, तब होगा। अभी तो जशपुर के लोगों के लिए दिक्कतें बढ़ गई। कमिश्नर आफिस सरगुजा रहेगा और पुलिस रेंज बिलासपुर। जशपुर से रोड कनेक्टिविटी की ये स्थिति है कि बिलासपुर के लोग रायगढ़ से उड़ीसा के झारसुगड़ा होकर जशपुर पहुंचते हैं। या फिर अंबिकापुर होकर। जब तक रायगढ़ नया रेंज नहीं बन जाता, तब तक जशपुर को सरगुजा में ही रहने देना न्यायसंगत होगा।

वक्त का खेल

रिटायर पीसीसीएफ एसएस बजाज को राज्य सरकार ने उस न्यू रायपुर डेवलपमेंट अथारिटी का चेयरमैन अपाइंट किया है, जिसके पी जाय उम्मेन, एन बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह, आरपी मंडल जैसे आईएएस चेयरमैन रहे हैं। इसी एनआरडीए के सीईओ रहने के दौरान एक मामले में 2019 में बजाज सस्पेंड हो गए थे। तब उन पर आरोप लगा था कि सोनिया गांधी पोता चेरिया में नया रायपुर की आधारशिला रखीं थीं, उसके शिलालेख को बजाज ने उखड़वाकर आईआईएम कैम्पस में रखवा दिया। बाद में पता चला, खुले में पड़े शिलालेख की हिफाजत की दृष्टि से बजाज ने ऐसा किया था। मगर, वक्त का खेल देखिए...उसे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ हुआ है। और फिर बजाज न केवल रिस्टेट हुए बल्कि कैबिनेट में पोस्ट क्रियेट कर उन्हें पीसीसीएफ प्रमोट किया गया। रिटायरमेंट के बाद उन्हें तुरंत सीजीकॉस्ट का डायरेक्टर जनरल की पोस्टिंग दी गई। और अब एनआरडीए चेयरमैन की कमान। कह सकते हैं, वक्त ने बजाज को जितना जख्म दिया, ब्याज समेत गरिमा और सम्मान लौटा दिया। बजाज नया रायपुर के शिल्पी रहे हैं। सीईओ के तौर पर वे करीब 10 साल काम किए और नया रायपुर में चमचमाती सड़कें, मंत्रालय, विभागाध्यक्ष भवन दिख रहा है, सब उनका बनवाया हुआ है। बीई सिविल के बाद आईएफएस अफसर बने बजाज ने 245 किमी फोर लेन सड़क निर्माण के साथ ही साढ़़े पाच हजार हेक्टेयर प्रायवेट लैंड का अधिग्रहण किया। समझा जा सकता है कि नए रायपुर को शेप देने में उनकी कैसी भूमिका रही होगी।

दूसरी पोस्टिंग

आईएफएस अधिकारी अरुण प्रसाद को आईएएस सारांश मित्तर की जगह डायरेक्टर इंडस्ट्री और सीएसआईडीसी का एमडी बनाया गया है। सीएसआईडीसी में अरुण की ये दूसरी पोस्टिंग होगी। इससे पहले भी इसी सरकार में वे सीएसआईडीसी के एमडी रहे हैं। उनके पास पौल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मेम्बर सिकरेट्री की जिम्मेदारी है, जो यथावत रहेगी। पौल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में वे पहले भी एक बार मेम्बर सिकरेट्री रह चुके हैं।

सिस्टम पर भारी

स्कूल शिक्षा की कुख्यात लॉबी सिस्टम पर भारी पड़ जा रही है। सरकार ने वहां के माफियाओं पर लगाम लगाने के लिए दो डिप्टी कलेक्टरों की तैनाती की। मगर इस पर कुछ लोग कोर्ट चले गए। और उस पर ब्रेक लग गया। शिक्षा विभाग के खेल में सिर्फ विभाग के अधिकारी, बाबू ही नहीं शिक्षक नेता और सियासी लोग भी संलिप्त हैं। पोस्टिंग घोटाले को ही लीजिए...इसमें करीब 50 करोड़ का वारा-न्यारा हुआ। मगर यह पैसा सिर्फ जेडी के जेब में नहीं गया। कुछ शिक्षक नेता भी मालामाल हुए। एक जिले के दो विधायकों को 40-40 पेटी मिला ताकि संरक्षण बना रहे। पुराने मंत्री के यहां से चूकि फाइल वापिस लौटती नहीं थी इसलिए तीन-तीन आईएएस होने के बाद भी वे कुछ कर नहीं पा रहे थे। मगर अब नए मंत्री आए तो ताबड़तोड़ कार्रवाइयां हो रही है। मगर सिस्टम इतना बिगड़ चुका है कि उसे पटरी पर लाने में वक्त लगेगा।

विभाग की रेटिंग

अभी तक पीडब्लूडी, एक्साइज, इनर्जी, इरीगेशन, इंडस्ट्रीज जैसे विभाग की रेटिंग अच्छी मानी जाती थी मगर पोस्टिंग घोटाले ने स्कूल शिक्षा विभाग और दवा खरीदी घोटाले ने लेबर डिपार्टमेंट की रेटिंग बढ़ा दी है। स्कूल शिक्षा विभाग का वौल्यूम काफी बड़ा है...कोई दो लाख के करीब शिक्षक। सो, थोड़े-थोड़े में बड़ा खेल हो जाता है। ट्रांसफर के सीजन में कई खोखा का काम हुआ तो इस विभाग की रेटिंग हाई करने में डीएमएफ का भी बड़ा योगदान है। बिलासपुर के अंग्रेजी स्कूल में डीएमएफ के पैसे से चौगुने रेट में परचेजिंग की गई। ऐसा अमूमन सभी जिलों में हुआ। इसलिए क्योंकि डीएमएफ का पैसा खर्च करना था। खर्च करेंगे तभी तो कमीशन मिलेंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. दूसरी बार कांग्रेस छोड़ने वाले आदिवासी नेता अरविंद नेताम विस चुनाव में फ्यूज बल्ब साबित होंगे या कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे?

2. शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण के आदेश में कैबिनेट के फैसले की बजाए महाधिवक्ता के अभिमत का हवाला क्यों दिया गया?


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