शनिवार, 6 जुलाई 2024

Chhattisgarh Trakash 2024: छत्तीसगढ़ में MP कैडर के DGP


 तरकश, 7 जुलाई 2024

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ में MP कैडर के DGP

डीजीपी अपाइंटमेंट का टाईम है, सो इस शीर्षक से आप चौंकिएगा मत! छत्तीसगढ़ में कोई बाहर से डीजीपी नहीं आ रहा। इस खबर का तात्पर्य आपको स्मरण कराना है कि छत्तीसगढ़ में एमपी कैडर के भी आईपीएस डीजीपी रह चुके हैं। आईपीएस थे आरएलएस यादव। राज्य बंटवारे के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस का सेटअप ठीक करने उन्हें यहां भेजा गया था। यादव का रिटायरमेंट करीब था, जाहिर है उन्हें एमपी में डीजीपी बनने का मौका नहीं मिलता। इसलिए वे यहीं रुक गए। उस समय डीजीपी नियुक्ति के न तो कड़े नियम थे और न ही कैडर को लेकर भारत सरकार सख्त थी। तभी छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री जोगीजी ने उन्हें 26 मई 2001 को सूबे का डीजीपी अपाइंट कर दिया। याने राज्य बनने के छह महीने के भीतर ही। मगर इसके लिए जोगीजी को मानसिक झंझावतों से गुजरना पड़ा। उनके समक्ष धर्मसंकट यह था कि छत्तीसगढ़ के फर्स्ट डीजीपी श्रीमोहन शुक्ला, जिन्हें उन्होंने ही नियुक्त किया था, उन्हें वे बेहद चाहते थे और आरएलएस यादव तो उनके अपने थे ही। उधर, यादव का रिटायरमेंट भी करीब था। ऐसे में जोगीजी ने श्रीमोहन शुक्ला से आग्रह किया पीएससी चेयरमैन बनने के लिए। आग्रह शब्द का इस्तेमाल यहां इसलिए किया जा रहा कि जोगीजी ने उन्हें सीएम हाउस बुलाकर एक मैसेज देने के लिए सबके सामने कहा था कि ये फैसला मैं आप पर छोड़ता हूं। मैसेज यह था कि वे शुक्ला को हटा नहीं रहे हैं, उनका सम्मान करते हैं। तब शुक्ला के रिटायरमेंट में छह महीने से अधिक समय बचा था। उन्होंने जोगीजी की इच्छा का सम्मान करते हुए आईपीएस से वीआरएस ले लिया और 26 मई 2001 को उन्हें पीएससी का फर्स्ट चेयरमैन बना दिया गया। यादव भी करीब छह महीने ही डीजीपी रहे। जनवरी 2002 में वे सेवानिवृत हो गए। रिटायरमेंट के बाद जोगीजी ने उन्हें अपना सलाहकार बनाया था। बहरहाल, जोगीजी नहीं रहे। मगर उनके इस फैसले की आज भी ब्यूरोक्रेसी में चर्चा होती है कि उन्होंने आरएलएस यादव को डीजीपी बनाने का वादा भी निभाया और श्रीमोहन शुक्ला का सम्मान भी बरकरार रखा। याने जोगीजी ने दोनों को खुश कर दिया।

DGP: संयोग या दुर्योग

यह जानकर आपको हैरानी होगी कि मध्यप्रदेश बंटवारे में जो आईपीएस खुद की इच्छा से छत्तीसगढ़ आए थे, उनमें से एक को भी डीजीपी बनने का मौका नहीं मिला। और जो आईपीएस सुप्रीम कोर्ट जाकर केस जीत गए, वे सभी छत्तीसगढ़ के पुलिस प्रमुख बने। बता दें, छत्तीसगढ़ में अब तक जितने भी डीजीपी बने हैं, वे अगर एमपी में होते तो उनमें से कोई भी वहां डीजीपी नहीं बनता। क्योंकि, एमपी में कैडर बड़ा है। अभी 87 बैच के आईपीएस वहां डीजी हैं। और छत्तीसगढ़ में 91 बैच से नीचे के अफसर इस पद पर पहुंचने वाले हैं। दरअसल, नवंबर 2000 में आईपीएस कैडर का बंटवारा हुआ, उसे छत्तीसगढ़ कैडर के 16 आईपीएस अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था। उनका कहना था कि गलत रोस्टर के चलते उन्हें छत्तीसगढ़ भेजा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में वे केस जीत गए। आदेश यह हुआ था कि दोनों राज्यों की सहमति से 16 आईपीएस एमपी जाते और उनके बदले एमपी से 16 अफसर छत्तीसगढ़ आते। मगर एमपी के सीएम दिग्विजय सिंह ने सहमति देने से इंकार कर दिया। इसके बाद 16 आईपीएस अधिकारियों को मन मारकर छत्तीसगढ़ रहना पड़ा। तब छत्तीसगढ़ नक्सल और आदिवासी स्टेट माना जाता था। आईएएस हो या आईपीएस...छत्तीसगढ़ कैडर उनके लिए बज्रपात समान था। अब बात उनकी जो इच्छा व्यक्त कर छत्तीसगढ़ आए थे। इनमें राजीव माथुर, संतकुमार पासवान और गिरधारी नायक प्रमुख हैं। ये तीनों सारे एजिबिलिटी के बाद भी डीजीपी नहीं बन पाए। नायक को भाग्य इतना खराब था कि भूपेश बघेल उन्हें डीजीपी बनाना चाहते थे मगर उसमें छह महीने का रोड़ा आ गया। दरअसल, उस समय नियम यह था कि जिसके रिटायरमेंट में अगर छह महीने से कम समय बचा है, उसे डीजीपी नहीं बनाया जा सकता। और जैसे ही भूपेश सरकार ने डीएम अवस्थी को डीजीपी बनाया, महीने भर बाद छह महीने वाला नियम हट गया। अब इसे संयोग बोलिये या दुर्योग।

एसपी, आईजी का नुकसान

एसीबी ने राजधानी रायपुर के महिला थाना प्रभारी को रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। ये तब हुआ, जब एसीबी चीफ अमरेश मिश्रा खुद रायपुर रेंज के आईजी हैं। बहरहाल, इस कार्रवाई से टीआई लोग भारी दुखी और नाराज हैं। ठीक भी है...अमरेश ने अच्छा नहीं किया। सूबे के टीआई लोग अगर ईमानदार हो जाएंगे तो फिर एसपी और आईजी साहबों का क्या होगा? जिस प्रदेश में थानों की बोली लगती हो, वहां एसीबी इस तरह की कार्रवाई करने लगे तो फिर पोस्टिंग के लिए पैसा कोई क्यों देगा? लेकिन, अमरेश के साथ दिक्कत यह है कि वे अपनों को भी नहीं बख्शते। कोरबा में एसपी थे तो रिश्वत के मामले में एक सब इंस्पेक्टर की थाने के भीतर जमकर धुलाई कर डाले थे। जाहिर है, अमरेश अगर दो-एक साल एसीबी में टिक गए तो कोई आश्चर्य नहीं की राजस्थान की तरह दो-चार आईएएस और आईपीएस भी सलाखों के पीछे पहुंच जाएं।

एचओडी पर वर्कलोड

सरकार के दो विंग होते हैं। पहला सिकरेट्री...जो सचिवालय में बैठते हैं...एक तरह से उन्हें सरकार ही कहा जाता है। इनका काम है नीतियां बनाना और उसकी मानिटरिंग करना। दूसरा, सरकार की नीतियों को एग्जीक्यूट करने के लिए विभागीय एचओडी होते हैं। इसमें सेटअप के हिसाब से डायरेक्टर और कमिश्नर बिठाए जाते हैं। चूकि सरकार की योजनाओं को आम आदमी तक पहुंचाने का जिम्मा विभागीय कार्यालयों का होता है, इससे आप समझ सकते हैं कि एचओडी का पद कितना महत्वपूर्ण है। मगर इस समय डायरेक्टर लेवल के अफसरों की कमी कहेंं या सक्षम अफसर न होने से एचओडी पर लोड बढ़ता जा रहा है। सिकरेट्री की संख्या चूकि काफी बढ़ गई है, लिहाजा वे विभाग के लाले पड़ गए हैं और उधर एक-एक एचओडी के पास दो-दो, तीन प्रभार। जाहिर है, इससे काम की गुणवता पर असर पड़ सकता है।

दो नए कमिश्नर

आईएएस की बहुप्रतीक्षित लिस्ट छोटी हो या बड़ी...ये अवश्य यह है कि इस महीने के लास्ट में दो संभागों में नए कमिश्नर की पोस्टिंग की जाएगी। रायपुर के साथ बिलासपुर संभाग की कमान संभाल रहे डॉ0 संजय अलंग इस महीने 31 जुलाई को रिटायर होने जा रहे हैं। उनके रिटायर होने से पहले सरकार दो कमिश्नर अपाइंट करेगी। हो सकता है, अफसरों को इधर-से-उधर करने के क्रम में दो-एक और कमिश्नरों के नाम जुड़ जाएं।

गुस्से में सांसदजी

राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय ने दिल्ली में हाई प्रोफाइल डिनर कराकर अपनी ताकत दिखा दिए। इससे छत्तीसगढ़ में उनका रुतबा बढ़ना था। मगर उल्टा हो गया। कवर्धा में दो करोड़ की लागत से थाना भवन का लोकार्पण हुआ, उस कार्यक्रम में उन्हें पूछा तक नहीं गया। राजनांदगांव में आईजी आफिस का लोकार्पण करने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह पहुंचे थे, उस कार्यक्रम के आमंत्रण पत्र से सांसदजी का नाम गोल था। ऐसे में, सांसद का भड़कना स्वाभाविक था...चार दिन पहले दिल्ली में मुख्यमंत्री से लेकर बीएलए संतोष, शिवप्रकाश जैसे दिग्गजों को अपने घर पर डिनर कराने के बाद ये हाल...। पता चला है, सरकार से भी अफसरों को इसके लिए तीखी झिड़की मिली है। मगर इसमें अफसरों का क्या कसूर? कसूर यही कि दो बड़ों के विवाद में सरकारी मुलाजिम पिसता ही है।

मंत्रिमंडल का विस्तार?

छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय कैबिनेट का विस्तार जुलाई फर्स्ट वीक में होना तय माना जा रहा था। मगर पूरा हफ्ता निकल गया, अभी इस पर कोई सुगबुगाहट नहीं है। सत्ता प्रतिष्ठान से भी खामोश है। जानकारों की मानें तो, विधानसभा के मानसून सत्र तक कैबिनेट का विस्तार टल सकता है। तब तक जैसा चल रहा है, वैसा चलता रहेगा। सत्र भी सिर्फ पांच दिन का है। सो, इसमें संसदीय कार्य मंत्री का बहुत रोल नहीं है। बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद यही एक विभाग ऐसा है जिसका भूमिका सदन में होती है।

खटराल अफसर

बात करीब दो दशक पुरानी होगी...बिल्डरों और भूमाफियाओं को फायदा पहुंचाने रजिस्ट्री विभाग के एक खटराल आईजी ने ऐसा नियम दिया, जिससे न केवल राज्य सरकार को बल्कि इंकम टैक्स को भी चुना लग रहा है। नियम है...अगर कोई अपने जमीन से लगा अनडायवर्टेड जमीन खरीदता है, तो बाजार दर एकड़ रेट से निर्धारित किया जाएगा। ऐसा नासमझी भरा नियम देश के किसी भी प्रांत में नहीं है। असल में, एकड़ में रेट कर देने से बाजार मूल्य 5 से 10 गुना कम हो जाता है। हकीकत यह है कि बाजार का प्राइस मेकैनिज्म लगे हुए भूमि की कीमत कभी कम नहीं कर सकता। बल्कि यह हास्यपद है। इस नियम के आड़ में भूमि चाहे लगा हो, चाहे ना लगा हो, जमीन माफिया अपने छोटे टुकड़ों का एकड़ रेट में बाजार मूल्य निकालता है और इनकम टैक्स, रजिस्ट्री आदि कई विभागों को नुकसान पहुंचता है। इस नियम के संरक्षण में बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग होता है। रजिस्ट्री सिकरेट्री को इस पर गौर करना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि किसी बड़े नौकरशाह को पीएससी का चेयरमैन बनाने सरकार विचार कर रही है?

2. क्या जातिगत समीकरणों की वजह से मंत्रिमंडल विस्तार का मामला फंस गया है?

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