रविवार, 4 अगस्त 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: साहूकार मालामाल, और छत्तीसगढ़ियां...?

तरकश, 4 अगस्त 2024

संजय के, दीक्षित

साहूकार मालामाल, और छत्तीसगढ़ियां...?

छत्तीसगढ़ में हायर एजुकेशन का एक शर्मनाक आंकड़ा सामने आया है। भारत सरकार की एजेंसी के अनुसार सूबे में 18 से 23 वर्ष के बीच सिर्फ 19.6 फीसदी युवा ही उच्च शिक्षा की देहरी तक पहुंच पा रहे हैं। इस श्रेणी में देश में नीचे तीसरे नंबर पर है छत्तीसगढ़। सबसे नीचे हैं असम। उसके बाद बिहार और फिर अपना छत्तीसगढ़। जिस राज्य के मानव संसाधन का ये हाल होगा...जहां 80 फीसद से अधिक यूथ उच्च तालिम से वंचित हों... उस राज्य की तरक्की की क्या उम्मीद की जा सकती है। असल में, मध्यप्रदेश के समय छत्तीसगढ़ का बुरा हाल तो रहा ही, राज्य बनने के बाद की सरकारों ने कभी स्किल डेवलपमेंट पर जोर नहीं दिया, सिवाय सरकार बनाने के लिए फ्री की चीजें बांटने के। अलबत्ता, फर्जी डिग्री बांटने वाले प्रायवेट कालेज, यूनिवर्सिटी खुलते गए और युवाओं की जेब काट मानव संसाधन का कबाड़ा करते गए। हद तो यह कि सरकारी शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति जुदा नहीं है। 365 सरकारी कॉलेजों में एक भी प्रोफेसर नहीं हैं। लायब्रेरी, लेबोरेटरी ये सब तो दूर की चीजें हैं। ऐसा नहीं है कि राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ का विकास नहीं हुआ। डेवलपमेंट हुआ मगर एक खास सेक्टर में। स्टील, कोल, पावर, राईस और रियल इस्टेट में बूम आया और इससे जुड़े लोगों ने दिन-दुनी और रात चौगुनी टाईप तरक्की की। सूबे के सेठ-साहूकार मालामाल होते गए और आम आदमी नेताओं के मुंह से छत्तीसगढ़ियां...सबले बढ़ियां सुन गदगद होते रहे।

अंधा सिस्टम, ब्लाइंड अफसर

छत्तीसगढ़ के स्कूलों में 13 हजार से अधिक टीचर मक्ख्यिं मार रहे हैं क्योंकि उनके पास कोई काम नहीं है...वे जोर-जुगाड़ या फिर धन के बल पर शहरों के उन स्कूलों में ठस गए हैं, जहां पहले से शिक्षक भरे पडे़ हैं। दुर्ग शहर इसकी बानगी है, जहां एक मीडिल स्कूल में 90 बच्चों पर 11 शिक्षक तैनात हैं। दरअसल, छत्तीसगढ़ बनने के बाद पैसे और पहुंच के बल पर ये खेल प्रारंभ हुआ। चूकि दूरस्थ इलाकों में कंपीटिशन कम होता है इसलिए वहां अप्लाई करके पहले नौकरी हथिया लो और फिर स्कूल शिक्षा के खटराल अफसरों को भेंट-पूजा देकर शहरों में घर के पास ट्रांसफर करा लो। अब जरा सोचिए! जिस स्टेट में 13 हजार अतिशेष शिक्ष़्ाक, वहां सालां से यह प्रचारित किया जाता रहा...स्कूलों में शिक्षकों की काफी कमी है। विधानसभा के हर सत्र में सवाल लगते हैं और मंत्री का जवाब आता है...इतने स्कूल शिक्षक विहीन हैं और इतने सिंगल टीचर के भरोसे चल रहे। बात सही भी है..एक तरफ शिक्षक स्कूलों में जबरिया कुर्सी तोड़ रहे और दूसरी तरफ गांवों के 300 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं तथा 5500 स्कूल सिंगल टीचर के भरोसे संचालित हो रहे। विष्णुदेव साय सरकार ने इसके लिए स्कूलों और शिक्षकों का युक्तियुक्तकरणक करने का फैसला किया है। मगर देखना है कि सरकार इसमें कितना कामयाब हो पाती है। क्योंकि, स्कूल शिक्षा और हेल्थ में भ्रष्ट अफसरों और घाघ नेताओं की ऐसी पैठ है कि सरकारें सुधार के कदम वापिस खींच लेती हैं। लिहाजा, छत्तीसगढ़ में अगर स्कूलों और शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण 80 परसेंट भी सफल हो गया, तो एक नजीर कायम होगा। क्यांकि, सिर्फ वोट बैंक के लिए नेताओं ने पांच हजार से अधिक ऐसे स्कूल खोलवा डाले हैं, जहां राष्ट्रीय मानक से आधे बच्चे भी नहीं हैं। कई स्कूल ऐसे हैं, जहां बच्चे चार-पांच हैं तो शिक्षक पांच-सात। चूकि इस समय शिक्षा विभाग खुद मुख्यमंत्री के पास है। उन्होंने युक्तियुक्तकरण के लिए अफसरों को गो कह दिया है। इसलिए उम्मीद तो बनती है।

पुलिस को ट्रेनिंग

देश के कानून में कई अहम बदलाव किए गए हैं। इसके बारे में छत्तीसगढ़ में पुलिस अधिकारियों को अवगत कराने पुलिस मुख्यालय से लेकर जिलों तक ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए गए। मगर कोई काम नहीं आया...ट्रेनिंग पर खर्च किया पैसा बेकार गया। कई जिले के पुलिस अधिकारियों को यह भी नहीं पता कि पास्को में एफआईआर पहले किया जाता है या प्रारंभिक विवेचना। कई जिलों में पास्को जैसे संवेदनशील मामलों में जबदर्स्त लापरवाही की जा रही। पास्को में स्पष्ट है कि मामला गलत हो या सही, सबसे पहले एफआईआर करना है। अगर बच्ची के मां-बाप मुकदमा दर्ज नहीं करा रहे तो उनके खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज हो सकती है। पुलिस को अगर-मगर करना ही नहीं है। मगर छत्तीसगढ़ में पुलिस अधिकारी खुद ही जांच कर आरोपों को खारिज कर दे रहे। डीजीपी साब को इसे संज्ञान लेकर पास्को की संजीदगी के बारे में अफसरों को ट्रेनिंग की व्यवस्था करानी चाहिए।

छत्तीसगढ़ पुलिस, यूपी स्टाईल

यूपी में लंबे समय से यह परंपरा चली आ रही है...सावन में जब कांवर यात्री निकलते हैं तो स्टेट की पुलिस उनका स्वागत करती है...फूल बरसाती है। छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में पिछले दिनों इसी तरह का दृश्य देखने में आया। एसपी के नेतृत्व में पुलिस अधिकारी कांवरियों को आरती उतार उन पर फूल बरसाये। पुलिस की इस नई और अटपटी परंपरा को देख छत्तीसगढ़ के लोगों का चौंकना स्वाभाविक था। वो इसलिए कि यूपी का अनुसरण ठीक नहीं। कम-से-कम फोर्स को जाति, धर्म से अलग रखना चाहिए। हाल ही में बलौदा बाजार में तोड़फोड़ और आगजनी की घटना हुई, उसमें भी पुलिस और जाति को लेकर कुछ बातें हुई थीं। खैर, कवर्धा पुलिस ने जिस तरह से और जैसे भी किया...उसकी फोटो हजम नहीं हुई।

कलेक्टरों की एक लिस्ट और

सरकार ने 20 आईएएस अधिकारियों का ट्रांसफर किया या फिर उनकी जिम्मेदारियों में बदलाव किया। इनमें कोरिया, महासमुंद और बीजापुर के कलेक्टर भी बदले गए। हालांकि, कलेक्टर बनने वालों की सूची में सर्वेश भूरे, कुंदन कुमार, चंदन कुमार, ऋतुराज रघुवंशी जैसे और आईएएस अफसरों के नाम थे। मगर ऐन वक्त पर सरकार ने तय किया कि फिलहाल तीन ही कलेक्टरों को बदल जाए। इस चक्कर में बाकी का मामला गड़बड़ा गया। महासमुंद कलेक्टर प्रभात मलिक का गुड गर्वनेंस में अत्यधिक दिलचस्पी दिखाना आ बैल मुझे मार...जैसा हाल हो गया। सरकार ने उन्हें कलेक्टरी के ट्रेक से वापिस बुला गुड गर्वनेंस में ज्वाइंट सिकरेट्री बना दिया। हालांकि, उन्हें चिप्स के सीईओ का दायित्व दिया गया है। लेकिन, कलेक्टरी तो चली गई। इसको लेकर ब्यूरोक्रेसी में चुटकी ली जा रही है। दरअसल, अब के आईएएस को कलेक्टर से नीचे कोई पोस्टिंग पसंद नहीं आती। उपर से गुड गवर्नेंस...। अरे भाई जब गवर्नेंस गुड हो जाएगा तो नौकरशाहों को पइसा-कौड़ी कहां से मिलेगा...इसलिए जितने दुखी प्रभात मलिक नहीं होंगे, उनसे अधिक उनकी गुड गवर्नेंस की पोस्टिंग पर दूसरे आईएएस परेशान हैं। बहरहाल, एकाध महीने में फिर एक लिस्ट निकल सकती है। मुंगेली और जगदलपुर कलेक्टर भी बदेलेंगे या फिर इधर-से-उधर किए जाएंगे। लिस्ट में नाम जशपुर कलेक्टर डॉ. रवि मित्तल का भी था, मगर अब सुनने में आ रहा कि नगरीय निकाय चुनाव तक रवि को जशपुर में ही रखने का फैसला किया गया है।

एक प्लस, एक माइनस

आईएएस अधिकारियों के फेरबदल में एसीएस मनोज पिंगुआ को एक हैंड दिया गया और दूसरे को ले लिया गया। मनोज के पास होम और हेल्थ है। उनके विभाग में किरण कौशल को कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन बनाया गया है। मगर होम से नीलम एक्का माइनस कर दिए गए। नीलम को बिलासपुर संभाग का कमिश्नर बनाया गया है। हालांकि, होम में अरुण गौतम हैं मगर उनके पास और दो-तीन चार्ज हैं। और फिर डीजी रैंक के आईपीएस। 92 बैच के सीनियर आईपीएस। बहरहाल, लगता है सरकार भी समझ गई है कि मनोज पिंगुआ का कंधा मजबूत है।

बस्तर आईजी डेपुटेशन पर

बस्तर के आईजी सुंदरराज लंबे समय बाद माओवादग्रस्त इलाके से लौट रहे हैं। वे करीब एक दशक से बस्तर में पोस्टेड हैं। इस दौरान थोड़े दिनो के लिए जरूर रायपुर लौटे थे मगर यहां भी उन्हें नक्सल विभाग ही मिला था। वे बस्तर में डीआईजी रहे और अब आईजी हैं। उन्होंने पिछली सरकार में भी डेपुटेशन के लिए अनुमति मांगी थी मगर बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान को देखते उन्हें एनओसी नहीं दिया गया। बहरहाल, पता चला है कि सुंदरराज को नई सरकार से एनओसी मिल गया है। उनकी एनआईए में पोस्टिंग हो रही है। सुंदरराज के प्रतिनियुक्ति पर जाने के बाद जाहिर है आईजी की एक लिस्ट जल्द ही निकलेगी। इसमें पांच में से तीन-से-चार पुलिस रेंज के आईजी बदल सकते हैं। पुलिस मुख्यालय में खाली बैठे एकाध आईजी का भी किसी रेंज में नंबर लग सकता है।

राप्रसे अधिकारियों को झटका

आईएएस अवार्ड के लिए पिछले दो बरस से संघर्ष कर रहे छत्तीसगढ़ राज्य प्रशासनिक अधिकारियों को अभी आईएएस अवार्ड के लिए और वेट करना होगा। उनके लिए 5 अगस्त को यूपीएससी में डीपीसी रखी गई थी। मुख्य सचिव समेत सभी अधिकारियों ने जाने की तैयारी कर ली थी। मगर मामला गड़बड़ा गया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कौन बनेगा बस्तर का नया पुलिस महानिरीक्षक?

2. सरकार की योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए दक्ष कलेक्टरों का होना क्यों जरूरी होता है?



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें