रविवार, 1 सितंबर 2024

Chhattisgarh Tarkash 2024: धर्म, आईएएस और खतरे

 


तरकश, 1 सितंबर 2024

संजय के. दीक्षित

धर्म, आईएएस और खतरे

आईएएस जैसी देश की सर्वोच्च सर्विस के लोग अगर धर्म, जाति देखकर फैसले लेने लगे तो समझा जा सकता है सिस्टम किधर जा रहा है। छत्तीसगढ़ के एक आईएएस ने जो किया, वाकई स्तब्ध करने वाला है। हम बात कर रहे हैं, बिलासपुर के निर्वतमान डिविजनल कमिश्नर की। सरकार ने भले ही एक झटके में उनकी छुट्टी कर दी। मगर विषय इससे कहीं ज्यादा गंभीर है। मिशनरीज संस्था को उन्होंने करीब 1000 करोड़ के मूल्य वाले कब्जे को बिना सोचे-समझे स्टे दे दिया। बताते चले, मध्यप्रदेश के दौरान 1962 में सरकार ने बिलासपुर शहर के प्राइम लोकेशन पर मिशन अस्पताल के लिए साढ़े 10 एकड़ लैंड दिया था। आज की तारीख में इस जमीन की कीमत 20 से 25 हजार रुपए फुट होगी। इतनी कीमती जमीन का 1992 के बाद लीज का रिनीवल नहीं हुआ। अलबत्ता, संस्था के लोग लैंड का कामर्सियल उपयोग कर सालों से लाखों रुपए किराया वसूल रहे थे। दिसंबर 2023 में सूबे में नई सरकार बनने के बाद जिला प्रशासन ने अवैध कब्जे को हटाने की कोशिशें शुरू की। मिशनरीज ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट की शरण ली। वहां से याचिका खारिज हो गई। संस्था ने कहीं कोई रास्ता न देख कलेक्टर से कब्जा खाली करने के लिए टाईम मांगा। उसने लगभग 75 परसेंट काम समेट भी लिया था। इसी दौरान अचानक इसमें कमिश्नर की इंट्री हुई और उन्होंने पहली पेशी में ही हजार करोड़ की बेशकीमती जमीन पर संस्था के पक्ष में स्टे दे दिया। छत्तीसगढ़ ब्यूरोक्रेसी के लिए दो-दो आईएएस के जेल जाने से भी ये ज्यादा शर्मनाक घटना होगी। इस पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया तो छत्तीसगढ़ का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ेगा।

स्टेराइड का इस्तेमाल

छत्तीसगढ़ में धर्म परिवर्तन की गति बढ़ने पर पहले भी इसी स्तंभ में हम सिस्टम को आगाह कर चुके हैं। मगर अब जो सुनने में आ रहा वह और खतरनाक है। धर्म परिवर्तन के लिए आयोजित की जाने वाली मजलिसों में दुखी, पीड़ितों को स्टेराइड का घोल पिलाया जा रहा है। दरअसल, धार्मिक सभाओं में बीमारी से परेशान लोग भी पहुंचते हैं। धर्म गुरू कुछ मंत्र पढ़ने का अभिनय कर स्टेराइड पिला देते हैं। फिर बताते हैं, कैसे और किसने किया चमत्कार। इसकी आड़ में अपना मकसद साधा जा रहा है। अभी तक धर्म परिवर्तन के मामले सरगुजा और बस्तर संभागों में ही सुनने को मिलते थे। मगर अब स्थिति इतनी विकट हो गई कि मैदानी इलाकों में भी सभाएं आयोजित की जाने लगी हैं और ओबीसी तथा दलित समुदायों के लोग भी ऐसे तत्वों के मोहपाश के शिकार बनते जा रहे हैं। जांजगीर, सारंगढ़, सराईपाली, बलौदा बाजार, कोरबा, मुंगेली में बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन का खेल शुरू हो गया है। सरकार के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है।

टीम अमिताभ

सेंट्रल डेपुटेशन से आईएएस अफसरों का लगातार लौटना जारी है। हफ्ते भर के भीतर डॉ0 रोहित यादव और रजत कुमार छत्तीसगढ़ लौट आएंगे। 2004 बैच के अमित कटारिया का भी सात साल पूरा हो गया है। मगर वे लौट रहे या अभी वहां रुकेंगे, क्लियरिटी नहीं है। सुबोध सिंह भी आएंगे ही। इनसे पहिले ऋचा शर्मा, सोनमणि बोरा, रीतू सैन, मुकेश बंसल, अविनाश चंपावत छत्तीसगढ़ लौट चुके हैं। अलेक्स पॉल मेनन के भी लौटने की खबरें आ रहीं हैं। कुल मिलाकर इस साल करीब दर्जन भर आईएएस छत्तीसगढ़ में आमद देंगे। याने अमिताभ जैन की टीम अब मजबूत होने वाली है। अब उनके पास बेस्ट ओपनर के साथ मध्यक्रम के भी मजबूत बैट्समैन का च्वाइस रहेगा। कुछ प्लेयर एक्सट्रा भी उनके पास रहेंगे। आखिर, इतने सारे सचिवों के लिए अमिताभ जैन विभाग कहां से लाएंगे।

कमिश्नर का टोटा

दर्जनों सचिव होने के बाद सरकार के सामने दिक्कत यह है कि ढंग का कमिश्नर नहीं मिल रहा। संजय अलंग को रायपुर के साथ बिलासपुर का चार्ज दिया गया था। घूम-फिर कर अब वही स्थिति आ गई है। महादेव कांवरे रायपुर के साथ बिलासपुर संभालेंगे। अलंग के बाद सरकार ने एक को झाड़-पोंछकर बिलासपुर भेजा मगर वे हिट विकेट होकर 28 दिन में ही पेवेलियन लौट गए। दूसरे कमिश्नर का दो घंटे में आदेश बदल गया। बेचारे का आम सहमति का एक पुराना मामला अलग से उखड़ गया। दरअसल, सिकरेट्रीज की फौज तो बड़ी है मगर सरकार आरआर याने डायरेक्ट आईएएस को कमिश्नर बनाना नहीं चाहती। उसकी सबसे बड़ी वजह है प्रमोटी आईएएस की दुकान छोटी होती है। मगर आरआर वाले शोरुम खोलकर बैठ जाते हैं। कुछ आरआर वालों को सरकारों ने कमिश्नर बनाया मगर उसके अनुभव अच्छे नहीं रहे। फिर जिलों के कलेक्टर भी नहीं चाहते कि उनके उपर कोई आरआर वाला आकर बैठ जाए। प्रमोटी कमिश्नर उन्हें भी सुहाता है। आरआर कलेक्टरों के जोर से नमस्ते कर देने भर से प्रमोटी कमिश्नर खुश हो जाते हैं। कलेक्टर जरा सा खुशामद कर ए प्लस सीआर लिखवा लेते हैं। मगर आरआर वालों को रिझाना कठिन होता है।

जरूरी है कमिश्नर सिस्टम?

छत्तीसगढ़ के फर्स्ट सीएम अजीत जोगी खुद ब्यूरोक्रेट रहे थे। वे जानते थे कि राजस्व मामलों में अपील की एक सीढ़ी और होने से आम पब्लिक को परेशानी में डालने के अलावा कोई मतलब नहीं। इसीलिए उन्होंने कमिश्नर सिस्टम खत्म कर दिया था। मगर बाद मे बीजेपी सरकार ने कमिश्नर प्रणाली फिर से प्रारंभ कर दिया। तब सरकार का तर्क दिया था कि राजस्व बोर्ड से पहले कलेक्टर के फैसले पर एक अपीलीय संस्था और होनी चाहिए। दूसरा, कलेक्टरों के खिलाफ कोई शिकायत आए तो उसकी जांच कौन करेगा। इसके लिए कमिश्नर सिस्टम फिर से चालू कर दिया गया। मगर सवाल उठता है कि पिछले 10 साल में किस कमिश्नर ने किस कलेक्टर को जांच कर दोषी ठहराया है। अगर कलेक्टर के खिलाफ कोई मामला आता है तो जीएडी जांच अधिकारी अपाइंट कर सकता है। फिर राजस्व मामलों की कमिश्नर कोर्ट में अपील करने से कितने लोगों को फायदा होता है? कमिश्नर कोर्ट के 95 परसेंट से अधिक मामले हाई कोर्ट जाते हैं। ऐसे में, न्याय मिलने में और टाईम लगता है। लोगों की जेब पर डाका पड़ता है, सो अलग। सिस्टम को इस पर एक बार विचार करना चाहिए।

छत्तीसगढ़ का अपमान?

छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम अरुण साव और उनके पीडब्लूडी सिकरेट्री डॉ0 कमलप्रीत सिंह दिल्ली में चार दिन प्रतीक्षा कर वापिस लौट आए मगर अमेरिकी एंबेसी ने उन्हें लगातार बुलाने के बाद भी वीजा क्लियर नहीं किया। कायदे से यह राज्य का अपमान है। छत्तीसगढ़ भारत के टॉप टेन राज्यों में शामिल है। अरुण साव की हैसियत भी छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के बाद दूसरे नंबर की है। सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि चूक कहां पर हुई। अमेरिका दौरा को प्रायोजित करने वाली एशियाई डेवलपमेंट बैंक ने पहले से अगर वीजा का बंदोबस्त कर लिया होता तो डिप्टी सीएम जैसे शख्सियत को दिल्ली में चार दिन नहीं वेट नहीं करना पड़ता। अरुण साव पीडब्लूडी, नगरीय प्रशासन और पीएचई जैसे बड़े विभाग के मिनिस्टर हैं, कमलप्रीत भी सीनियर सिकरेट्री हैं, मगर अमेरिकी अधिकारियों ने कोई अदब नहीं दिखाई।

बीजेपी-कांग्रेस भाई-भाई

सरकार ने शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण का फैसला वापिस ले लिया है। इस मसले पर बीजेपी और कांग्रेस नेता एक राय हो गए थे। बीजेपी नेता सरकार को पत्र लिख रहे थे, तो कांग्रेस नेताओं का लगातार बयान आ रहे थे। मगर किसी ने यह नहीं सोचा कि सूबे के रिमोट इलाकों में स्थित शिक्षक विहीन उन 5781 स्कूलों का क्या होगा? 13 हजार सरप्लस शिक्षक एक तरफ पैसे और एप्रोच के बल पर बिना पोस्ट के शहर के स्कूलों में कुर्सी तोड़ रहे हैं, और उधर 5781 गांवों के गरीब बच्चे एक अदद शिक्षक के लिए तरह रहे हैं। आखिर उन बच्चों का क्या कसूर? कसूर यही कि वे पिछड़े इलाके में पैदा हुए। सवाल उठता है, उनकी कौन सुनेगा? सुधार के काम में अगर इसी तरह सियासत होगी तो फिर रिफर्म की कल्पना मत कीजिए। वैसे भी काम करने से चुनाव नहीं जीता जाता।

सत्ताधारी पाटी को वोट क्यों नहीं

राजनेताओं को इस पर सर्वे कराना चाहिए कि कर्मचारी संगठन सत्ताधारी पार्टी को वोट क्यों नहीं देते। छत्तीसगढ़ में यही देखने में आ रहा। रमन सिंह ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले शिक्षाकर्मियों के संविलियन का फैसला किया, तब नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुनिल कुमार ने उन्हें बहुत समझाया कि संविलियन करना ठीक नहीं, इससे आपको वोट नहीं मिलेंगे। मगर रमन सिंह ने कहा, मैंने प्रॉमिस किया है तो इस बार करना ही होगा। और चुनाव हुआ तो 15 साल की सरकार 15 सीटों पर सिमट आई। भूपेश बघेल की सरकार ने भी डीए छोड़ दें, तो बाकी कोई कमी नहीं की। शिक्षाकर्मियों के संविलियन में रमन सरकार ने जो टाईम की शर्ते रखी थी, भूपेश सरकार ने उसे भी समाप्त कर सबको मर्ज कर दिया। फाइव डे वीक का फैसला भी उसी सरकार में हुआ। इसके अलावा छुट्टियों की झड़ी लगा दी। डीए भी लास्ट-लास्ट में दिया ही। तब भूपेश बघेल इस गफलत में रह गए कि कर्मचारियों को इतनी छुट्टियां दे दिए हैं, किसानों को हजारों करोड़ रुपए दे रहे हैं, वो भी उनके परिवार में ही जा रहा है। मगर रिजल्ट आया तो पासा पलट गया था। राजनेताओं को किसी नेशनल एजेंसी से इस पर काम करवाना चाहिए कि आखिर क्या बात है कि कर्मचारी सत्ताधारी पार्टी को वोट नहीं देते? कहां पर चूक होती है? इससे राजनेताओं को ही फायदा होगा...इससे बड़ा वोट बैंक को साधने का रास्ता भी निकलेगा।

किस्मत अपनी-अपनी

98 बैच रापुसे अधिकारी प्रफुल्ल ठाकुर को आईपीएस अवार्ड हो गया मगर उनके एक रैंक उपर राजेंद्र भैया का लिफाफा बंद हो गया। उनके खिलाफ कोई मामला है, जिससे उनको आईपीएस नहीं मिला। प्रफुल्ल के बाद 99 बैच खाली है। इसके बाद 2000 बैच के विजय पाण्डेय का नंबर लग गया। इस तरह प्रफुल्ल और विजय के रूप में छत्तीसगढ़ में दो आईपीएस और बढ़ गए। वैसे रापुसे का 98 बैच किस्मत वाला है। विजय अग्रवाल एसपी के तौर पर चौथा जिला बलौदा बाजार कर रहे हैं। रजनेश सिंह धमतरी, नारायणपुर के बाद बिलासपुर के एसपी हैं। इसी तरह राजेश अग्रवाल, रामकृष्ण साहू का तीसरा जिला चल रहा है। मगर इन सबसे आगे हैं, प्रफुल्ल ठाकुर। वे बिना आईपीएस हुए ही चार जिले के एसपी रह चुके हैं। जबकि, इस बैच के चार आईपीएस को अभी तक कोई जिला नहीं मिला है। चलिये किस्मत अपनी-अपनी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या छत्तीसगढ़ में बड़ा प्रशासनिक बदलाव होने वाला है?

2. क्या ये सही है कि छत्तीसगढ़ में अब सहकारिता के कामों में तेजी आने वाला है?




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