तरकश, 18 मई 2025
संजय के. दीक्षित
रायपुर राजधानी या कस्बा?
पड़ोसी राज्य ओड़िसा को गरीब राज्य माना जाता है, मगर वहां की राजधानी भुवनेश्वर को देखकर लगता है अपना रायपुर 50 साल पीछे है। दरअसल, 25 साल में रायपुर को राजधानी बनाने, जिस तरह से सिस्टम डेवलप करना था, वो हुआ नहीं। दो-चार सड़कों का चौड़ीकरण कर सिस्टम ने वाहवाही लूट ली। आज भी रायपुर में कहीं आगजनी की घटना हो जाए, तो फायर ब्रिगेड के पास बीएसपी और सीमेंट प्लांटों का मुंह ताकने के अलावा कोई चारा नहीं, क्योंकि फायर ब्रिगेड के पास अपना कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। तीन साल पहले गोलबाजार के होटल में आग लगी तो दमकल पहुंचता, उससे पहले दो लोगों की मौत हो चुकी थी। रायपुर में सिविल डिफेंस सिस्टम का हाल पूछिए मत। पाकिस्तान के साथ तनाव के दौरान भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ के रायपुर समेत छह शहरों को मॉक ड्रील के लिए चुना। मगर सिर्फ भिलाई में इसकी खानापूर्ति हो सकी, क्योंकि सिस्टम में बैठे लोगों ने सिविल डिफेंस की कभी सुध नहीं ली। दूसरे राज्यों में जगह-जगह मॉक ड्रील हुआ और राजधानी रायपुर के लोग ताकते रह गए। पिछड़ा राज्य कहे जाने वाले झारखंड के जमशेदपुर पिछले दिनों जाना हुआ। वहां गाड़ी के ड्राईवर ने सीट बेल्ट लगाने कहा तो मैं चौंक गया। वहां बाइक में पीछे बैठे लोग भी हेलमेट लगाए हुए थे। मगर अपने रायपुर में...छत्तीसगढ़ियां, सबले बढ़िया। तेलीबांधा थाने के पास आईआईएम की छात्रा ट्रक के नीचे आकर जान गंवा बैठी। मगर हेलमेट लगाने की बात आएगी, तो पुलिस की वसूली शुरू हो जाएगी या फिर पुलिस के पास रायपुर के भईया लोगों का फोन आने लगेगा। रायपुर के लोग एयर कनेक्टिविटी पर गर्व कर सकते हैं, मगर वो भी कोल, स्टील और आयरन इंडस्ट्रीज की वजह से हुआ, उसमें सिस्टम का कोई रोल नहीं।
जोगी का विजन और स्काई वॉक
रायपुर का विवादास्पद स्काई वॉक को फिर से बनाने का फैसला एक तरह से कहें तो राजधानी को कस्बा बनाने जैसा ही है। 50 करोड़ फूंकने के बाद फिर से 37 करोड़ की स्वीकृति देना नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा पैसे में आग लगाने जैसा ही माना जाना चाहिए। सिस्टम को किसी की जिद की पूर्ति करने से पहले एक सर्वे करा लेना था कि वाकई इसकी जरूरत है क्या। मेरा दावा है कि कैबिनेट के न तो एक मंत्री इसके पक्ष में होंगे, न एक आईएएस अधिकारी। रायपुर के शास्त्री चौक पर खड़े 100 लोगों से उसकी उपयोगिता पूछ ली जाए, तो सभी एक ही जवाब देंगे, इस पर कौन चढ़ेगा? यह गंजेरी, भंगेरी और लड़के-लड़कियों के लंपटई का अड्डा बन कर रह जाएगा। ऐसे में अजीत जोगी की याद आती है। छत्तीसगढ के विकास के स्वप्नद्रष्टा जोगीजी ने तेलीबांधा से लेकर टाटीबंध और शास्त्री चौक से लेकर स्टेशन चौक तक फ्लाई ओवर बनाने का ड्राइंग-डिजाइन तैयार करा लिया था। उन्होंने सीजी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन को इसे बनाने का दायित्व सौंपा था। मुझे आज भी याद है....2004 में सीआईडीसी के तत्कालीन एमडी आईसीपी केसरी ने मुझसे कहा था, हमलोग फ्लाई ओवर का टेंडर करने जा रहे हैं। मगर पता नहीं किधर से चकरी चली कि इस पर ब्रेक लग गया। ये जरूर है कि जीई रोड के व्यापारी इसके विरोध में थे। वे नहीं चाहते थे कि फ्लाई ओवर से उनका बिजनेस मार खाए। असल में, एक परसेप्शन है कि फ्लाई ओवर बनने से उस इलाके में 30 परसेंट बिजनेस कम हो जाता है। इसलिए, रायपुर के भाई साहबों ने स्काई वॉक का ऐसा इंतजाम कर दिया कि भविष्य में कभी फ्लाई ओवर की गुंजाइश ही न रहे। जनता की गाढ़ी कमाई को पानी में बहाने से पहले नगरीय प्रशासन विभाग को एक बार और विचार करना चाहिए।
सम्मानजनक विदाई
बजट सत्र से पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने जिस गति से मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति की फाइलें दौड़ाई थीं, उससे लोगों को लगा था कि मुख्य सचिव स्तर पर समय से पहले बदलाव हो सकता है। मगर अब उनके एराइवल अधिकारियों ने भी मान लिया है कि जून से पहले कोई मौका नहीं है। अमिताभ जैन अब चार साल आठ महीने का कार्यकाल पूरा कर 30 जून को विदा होंगे। जाहिर है, यह एक बड़ा रिकार्ड होगा, जिसे तोड़ना किसी सीएस के लिए मुश्किल होगा। छत्तीसगढ़ बनने के बाद कोई मुख्य सचिव फोर ईयर क्लब में शामिल नहीं हुआ। विवेक ढांड चार साल पूरे होने के 20 दिन पहले अपना विकेट गंवा बैठे थे। पी0 जॉय उम्मेन भी करीब सवा तीन साल सीएस रहे। अमिताभ के साथ एक प्लस यह है कि उम्मेन और ढांड एक ही सरकार में आउट हो गए, मगर अमिताभ दो सरकारों में रहे और अभी भी पिच पर मुस्तैदी से टिके हुए हैं। बहरहाल, ब्यूरोक्रेसी में उत्सुकता इस बात की है कि सम्मानजनक विदाई के साथ अमिताभ को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग क्या मिलेगी। तीन साल वाला सीआईसी की कुर्सी या कोई और प्रतिष्ठित, ग्लेमरस पोस्टिंग? इसका जवाब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ही दे पाएंगे। वैसे, मई की गरमी में अमिताभ जैन सीएम के साथ पसीना बहाते देखे जा रहे, उससे लगता है कि कुछ बढ़ियां ही होगा।
गृह मंत्री का दिल्ली दौरा
पाकिस्तान के साथ तनाव जब चरम पर था, तब बस्तर में एनकाउंटर की खबरें मीडिया की सुर्खिया बनी थी। लेकिन दिल्ली से पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि गृह मंत्री विजय शर्मा को नक्सलियों के एनकाउंटर की खबरों का खंडन करना पड़ गया। हालांकि, उसके बाद सीआरपीएफ के डीजी दिल्ली से आए और प्रेस कांफ्रेंस कर 31 नक्सलियों के मारे जाने का खुलासा किया। खैर, युद्धकाल में देश के भीतर एनकाउंटर...गृह मंत्री का खंडन...ये संवेदनशील मसला है...इस पर फिलहाल नो कमेंट्स। मगर छत्तीसगढ़ के मीडिया के लिए ये हैरान करने वाला रहा कि नक्सलियों से मुठभेड़ में सीआरपीएफ के कुछ जवान जख्मी हुए...एयरलिफ्ट कर उन्हें कब दिल्ली ले जाया गया, किसी को पता नहीं चला। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उन्हें देखने जब एम्स पहुंचे, तब इसकी जानकारी पब्लिक डोमेन में आई। हालांकि, सियासी गलियारों में हैरान करने वाला गृह मंत्री विजय शर्मा की फोटो भी रही। फोटो में अमित शाह के साथ विजय शर्मा को देख लोग चौंक पड़े...सबके मुंह से बरबस यही निकला, ये कैसे हुआ? विजय शर्मा क्या अमित शाह के इतने क्लोज?
15 महीने में 57 दौरा
बस्तर से नक्सलियों का सफाया करना भारत सरकार के कितने प्रायरिटी में है कि केंद्रीय गृह मंत्री पिछले एक साल में चार बार बस्तर का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने एक बार सीआरपीएफ के कैंप में भी रात्रि विश्राम भी किया। वैसे, बस्तर का दौरा करने में सीएम विष्णुदेव साय ने अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों को पीछे छोड़ दिया है। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के 15 महीने में विष्णुदेव साय 57 बार बस्तर जा चुके हैं। हालांकि, पहले के सीएम भी बस्तर जाते थे...26 जनवरी को झंडारोहन के लिए बस्तर निश्चित था। मगर महीने में चार बार बस्तर का दौरा, ऐसा पहले नहीं हुआ। दरअसल, इसकी एक वजह यह भी है कि नक्सलियों के सफाए का डेडलाइन तय करने के साथ ही केंद्र बस्तर के डेवलपमेंट को लेकर गंभीर है। इसको देखते राज्य सरकार टूरिज्म और इंडस्ट्रीलाइजेशन का रोडमैप तैयार कर रही है। पिछले महीने सीएम दो दिन इसी काम को लेकर बस्तर में कैंप किए थे।
छुट्टियों पर ब्रेक
छत्तीसगढ़ में अनगिनत सरकारी छुट्टियों से सिस्टम कॉलेप्स होता जा रहा है। सरकारी ऑफिसों में कामकाज ठप्प हो रहा तो स्कूलों के कोर्स कंप्लीट नहीं हो पा रहे। प्रायवेट स्कूल एसोसियेशन ने सरकार को ज्ञापन दिया था, जिसमें बताया गया था कि छुट्टियों के चलते किस तरह कोर्स प्रभावित हो रहा है। इसके लिए पिछली सरकार के समय छुट्टियों में क्लास लगाने की अनुमति मांगी गई मगर इसमें कुछ हुआ नहीं। बहरहाल, फाइव डे वीक से सबसे अधिक नुकसान होता है जब किसी सप्ताह शुक्रवार या सोमवार को छुट्टी पड़ जाए। इस चक्कर में तीन दिन सब कुछ बंद। पिछले हफ्ते 10 और 11 मई को सैटर्ड और संडे था, इसके अगले दिन सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा। याने लगातार तीन दिन छुट्टी। इससे पहले पिछले महीने 11 दिन में सात छुट्टियां रहीं। 10 अप्रैल को महावीर जयंती, 12 और 13 को सर्टडे, संडे। फिर 14 को आंबेडकर जयंती, 18 को गुड फ्रायडे, 19, 20 मई को सैर्टडे, संडे। गुड गर्वर्नेंस पर काम कर रही सरकार ऐसे में चिंतित है। सुनने में आ रहा कि सरकार छुट्टियों में कटौती करने पर विचार कर रही है। हो सकता है, सभी सैटर्डे की बजाए पहले की तरह सेकेंड और थर्ड सैटर्डे को छुट्टी वाला रुल फिर से लागू कर दिया जाए।
कलेक्टरों को वार्निंग
गुड गवर्नेंस के तहत छत्तीसगढ़ सरकार अफसरों को टाईम पर ऑफिस आने ताकीद कर रही थी, जनवरी में जीएडी से कलेक्टर, एसपी के लिए जिलों में दौरे करने के निर्देश जारी हुए थे। मगर सरकार की नोटिस में ये बात आई है कि 80 परसेंट कलेक्टर घर और ऑफिस से बाहर नहीं निकल रहे। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इसको लेकर नाराज बताए जा रहे हैं। राजनांदगांव की समीक्षा बैठक में उनके भीतर की बातें जुबां पर आ गई। उन्होंने कलेक्टरों, कमिश्नरों से फिर कहा कि अपने इलाकों के दौरे में कोताही न करें। सीएम ने सख्त लहजे में इन दोनों प्रशासनिक अधिकारियों को चेताया कि कोर्ट को तभी केंसिल करें, जब कोई बेहद अर्जेंट वर्क हो। जाहिर है, पिछले हफ्ते इसी तरकश स्तंभ में हमने कलेक्टरों के कोर्ट के प्रति बेरुखी का जिक्र किया था। अधिकांश कलेक्टर इन दिनों राजस्व के मामले अपर कलेक्टरों को सौंप दे रहे हैं। चलिये, सीएम की तल्खी से शायद अब कलेक्टर और कमिश्नरों की कोर्ट में लंबित प्रकरणों की अब सुनवाई में तेजी आए।
कलेक्टर लांचिंग पैड
रायपुर विकास प्राधिकरण का गठन 2004 में हुआ था। इसके सीईओ का पोस्ट आईएएस के लिए तय किया गया। अमित कटारिया दो अलग-अलग टेन्योर में करीब तीन साल तक सीईओ रहे। अभिजीत सिंह भी आरडीए में रिपीट हुए। मगर 2018 के बाद पता नहीं, इस कुर्सी को कौन सा ग्रहण लगा कि कोई अफसर वहां टिक नहीं पा रहा। इस सरकार के सवा साल में अब तक चार सीईओ बदल चुके हैं। जनवरी 2024 में पहली लिस्ट में धमेंद्र साहू कलेक्टर बनकर गए तो उनकी जगह प्रतीक जैन को बिठाया गया। वे 10 महीने रहे। उनके बाद 14 जनवरी को कुंदन कुमार सीईओ बने। कुंदन तीन महीने में मुंगेली कलेक्टर बनकर चले गए। सरकार ने अब आकाश छिकारा को नया सीईओ बनाया है। वैसे धमेंद्र साहू से पहले अभिजीत सिंह पांच महीने, नरेंद्र शुक्ला सात महीना, प्रभात मलिक चार महीना, भीम सिंह छह महीना, ऋतुराज रघुवंशी चार महीना, अभिजीत सिंह दूसरी बार तीन महीना और चंद्रकांत वर्मा दो महीना सीईओ रहे हैं। आरडीए की पोस्टिंग की खास बात यह है कि अधिकांश सीईओ यहां से कलेक्टर बनकर निकले। अमित कटारिया रायगढ़ का कलेक्टर बनकर गए थे। इस फेहरिश्त में ऋतुराज रघुवंशी, प्रभात मलिक, अभिजीत सिंह, चंद्रकांत वर्मा, कुंदन कुमार, धमेंद्र साहू और प्रतीक जैन शामिल हैं। इन सभी के लिए आरडीए की पोस्टिंग शुभ रही थी। ऐसे में, आकाश छिकारा को नाउम्मीद नहीं होना चाहिए।
दूसरा मोक्षित
छत्तीसगढ़ को हिलाकर मोक्षित जेल चला गया तो क्या हुआ, सीजीएमएससी के खटराल अधिकारियों ने दूसरा मोक्षित ढूंढ लिया है। राजधानी रायपुर के पड़ोसी जिले के इस कंपनी को मोक्षित की जब चलती रहे तो उसने उसे फटकने नहीं दिया। मगर वह जेल चला गया तो सीजीएमएससी में उसकी इंट्री हो गई। पता चला है, पिछले दो-तीन महीने में 80 से 90 परसेंट सप्लाई का काम इसी कंपनी को दिया गया है। कारस्तानियों का मोड भी वही है, जिसके लिए सीजीएमएससी बदनाम हुआ है। अब आप कहेंगे...ईओडब्लू जांच! तो दो-दो आईएएस के जेल जाने के बाद क्या छत्तीसगढ़ में करप्शन रुक गया? सरकार की चेतावनी के बाद 1.20 लाख के पीएम आवास में 25 हजार घूस का मामला हाल ही में पकड़ा गया। कुल मिलाकर कहा जाए तो सीजीएमएससी के सिस्टम में करप्शन का वायरस घूस गया है। अब ईओडब्लू आ जाए या ईडी, सीबीआई...वायरस को क्या फर्क पड़ने वाला है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. वो कौन सी अदृश्य शक्तियां है, जो सूबे के कई खटराल और बदनाम अफसरों के लिए कवच बन जा रही?
2. वो कौन से मंत्री हैं, जिन्होंने वसूली के लिए आरगेनाइज सिस्टम तैयार कर लिया है?
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