तरकश, 22 जून 2025
संजय के. दीक्षित
7 एसडीएम सस्पेंड, मगर....
छत्तीसगढ़ बनने के 24 बरस में राज्य प्रशासनिक सेवा के सिर्फ दो अफसरों के निलंबित होने का स्मरण आता है। मगर विष्णुदेव सरकार के पिछले एक साल के भीतर सात एसडीएम सस्पेंड हो चुके हैं। टेकराम माहेश्वरी और भागीरथ खांडे रिश्वत लेते ट्रेप हुए तो निर्भया साहू, आनंदस्वरूप तिवारी, शशिकांत कुर्रे और अशोक कुमार मार्बल पर मुआवजा स्कैम में गाज गिरी। वहीं, प्रेमप्रकाश शर्मा पाठ्य पुस्तक घोटाले में निलबित हुए। इसके अलावे राजस्व और ट्रेप मामलों में सुपरिटेंडेंट इंजीनियर से लेकर अब तक 70 से ज्यादा तहसीलदार, नायब तहसीलदार, दरोगा, टीआई गिरफ्तार और सस्पेंड हो चुके हैं। बावजूद इसके छत्तीसगढ़ में करप्शन का लेवल कम नहीं हो पा रहा बल्कि पिछली कांग्रेस सरकार से टक्कर लेने की स्थिति में है। तो सिस्टम में बैठे लोगों के लिए सोचने का विषय है कि साल भर के भीतर सात-सात एसडीएम सस्पेंड...छह तो छह महीने में। फिर भी खटराल तंत्र में वो खौफ क्यों नहीं बन पा रहा, जिसकी इस समय बड़ी जरूरत है। भ्रष्टाचार की बीमारी लाइलाज बन छत्तीसगढ़ की प्रगति को निगल जाए, इससे पहले सरकार को कोई हाइपरसोनिक कदम उठाना चाहिए।
ऐसे चीफ सिकरेट्री-1
छत्तीसगढ़ के पुराने लोगों को याद होगा...2008 के विधानसभा चुनाव में रमन सरकार की नैया एक रुपए किलो चावल के सहारे पार हो गई थी। मगर 2013 के चुनाव के लिए कोई एजेंडा नहीं था। रमन सिंह के रणनीतिकारों ने सिस्टम में अनुशासन लाकर सरकार की साफ-सुथरी छबि का मैसेज देने का रास्ता निकाला। इसके लिए दिल्ली में डेपुटेशन पर पोस्टेड सुनिल कुमार को आग्रह पूर्वक बुलाकर चीफ सिकरेट्री बनाया गया। इसके बाद बीजेपी 2013 का विस चुनाव जीती भी। बहरहाल, बात वर्तमान की। पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ के सिस्टम में जिस तरह भ्रष्टाचार का विष बेल फैला है, उसे कोई शीर्ष स्तर पर बैठा सख्त नौकरशाह ही अंकुश लगा सकता है...सरकार के सुशासन की कोशिशों में सुरखाब के पंख लगा सकता है। हालांकि, सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड अमित अग्रवाल के भले ही चीफ सिकरेट्री बनने की संभावनाएं कम प्रतीत हो रही हैं मगर यह कड़वा सत्य यह है कि उनके नाम से ब्यूरोक्रेसी तक घबरा रही है। जाहिर है, ऐसे
ऐसे चीफ सिकरेट्री-2
चीफ सिकरेट्री का पद इतना महत्वपूर्ण है कि उसमें थोड़ा लचीलापन न हो तो सरकार का कामधाम ठहर सा जाएगा। यही वजह है कि 99 परसेंट सरकारें यस मैन चीफ सिकरेट्री ही पसंद करती है। ध्यान रहे, सुनिल कुमार को रमन सरकार ने दिल्ली से बुलाया जरूर, मगर फरवरी 2013 में उनके एक्सटेंशन के लिए कोई प्रयास भी नहीं किया। जबकि, झीरम कांड के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री के समक्ष वे अपनी उपयोगिता प्रमाणित कर चुके थे। वाकई, तेज नौकरशाहों को झेलना कठिन होता है मगर ये भी सही है कि ऐसे अफसर फाइलों में सरकार को फंसने नहीं देते। एक सिकरेट्री टू सीएम की पोस्टिंग पर सवाल उठा तो सुनिल कुमार ने दिमाग दौड़ाते हुए बकायदा संविदा कानून बनवा दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि हाई कोर्ट से पीआईएल खारिज हो गया।
ऐसे चीफ सिकरेट्री-3
छत्तीसगढ़ बनने के बाद अभी तक 12 चीफ सिकरेट्री अपाइंट हो चुके हैं। अरुण कुमार से लेकर एसके मिश्र, अशोक विजयवर्गीय, आरपी बगाई, शिवराज सिंह, पी0 जॉय उम्मेन, सुनिल कुमार, विवेक ढांड, अजय सिंह, सुनील कुजूर, आरपी मंडल, अमिताभ जैन। मगर इनमें से किसी के नाम से सिकरेट्री, कलेक्टर से लेकर सरकारी मुलाजिम घबराते थे, उनमें चार नाम प्रमुख हैं। आरपी बगाई, शिवराज सिंह, सुनील कुमार और विवेक ढांड। इसमें दिलचस्प यह है कि ये चारों अफसर एक ही सरकार, एक ही मुख्यमंत्री के दौरान मुख्य सचिव रहे। बचे आठ में से अजय सिंह सरकार बदलने का शिकार होकर विकेट गंवा बैठे तो आरपी मंडल का कार्यकाल कोरोना का भेंट चढ़ गया। इनमें सबसे सरल और सहज कहा जाए तो अशोक विजयवर्गीय और सुनील कुजूर का नाम सबसे उपर आएगा। उधर, 80 बरस के एसके मिश्रा अभी भी काफी सक्रिय हैं। और, अमिताभ जैन सबसे लंबे कार्यकाल का ऐसा रिकार्ड बनाकर जा रहे कि निकट भविष्य में उसे कोई तोड़ नहीं सकता। अमित अग्रवाल के पास पूरे पांच साल जरूर हैं मगर वैसे अफसर इतना लंबा चलते नहीं। मनोज पिंगुआ बने तो वे सीएस के फोर ईयर क्लब में शामिल अवश्य हो जाएंगे मगर अमिताभ का रिकार्ड नहीं ब्रेक कर पाएंगे।
ईडी की तरह ईओडब्लू
खबर है, भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के तहत सरकार अब एसीबी को स्ट्रांग करने जा रही है। बिल्कुल ईडी की तरह। ईओडब्लू और एसीबी को अब संसाधनों से लैस किया जाएगा। थोक में वहां अफसरों को भेजने के लिए नोटशीट चल चुकी है। चलिये...सरकार का आइडिया बढ़ियां है। आखिर, मोदीजी की छबि चमकाने में ईडी का हाथ रहा ही। छत्तीसगढ़ में करप्शन से पब्लिक इतना त्रस्त हो चुकी है कि एक चुनाव तो करप्शन पर चोट कर निकाला जा सकता है। पिछली कांग्रेस सरकार सिर्फ और सिर्फ करप्शन के इश्यू पर पिट गई, वरना 2018 के चुनाव में 15 सीट पर आ चुकी बीजेपी के लिए कम-से-कम 10 साल तक कोई संभावनाएं नहीं थी। नो दाउट, कांग्रेस सरकार की कई योजनाएं अच्छी थीं, मगर उसका क्रियान्वयन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। बहरहाल, बात ईओडब्लू को ईडी की तरह बनाने की, तो उसे ईडी की तरह पावर भी देना होगा। किस अफसर को पूछताछ के लिए बुलाना है किसे नहीं, इसमें भेदभाव और भाई साहबों का दखल न हो। तभी ईओडब्लू को मजबूत करने का फायदा 2028 के विधानसभा चुनाव में मिल सकेगा।
सबसे सीनियर कलेक्टर
2009 बैच के अवनीश शरण और 2010 बैच के कार्तिकेय गोयल के रायपुर वापसी के बाद अब छत्तीसगढ़ में 2011 बैच वाले सबसे सीनियर कलेक्टर हो गए हैं। इस बैच के इस समय पांच आईएएस अधिकारी जिला संभाल रहे हैं। सर्वेश भूरे राजनांदगांव, दीपक सोनी बलौदा बाजार, नीलेश श्रीरसागर कांकेर, भोस्कर विलास संदीपन अंबिकापुर और जन्मजय मोहबे जांजगीर। हालांकि, ये अलग बात है कि सीनियरिटी के हिसाब से इनमें से अधिकांश को बड़ा जिला नहीं मिला है। और अभी उम्मीद भी नहीं है। क्योंकि, ’ए’ केटेगरी वाले तीनों जिलों में वैकेंसी नहीं है। रायपुर में गौरव सिंह मजबूती से क्रीज पर टिके हुए हैं तो बिलासपुर और दुर्ग वाले अभी-अभी क्रीज पर उतरे हैं। छत्तीसगढ़ में ’ए’ और ’बी’ के बीच में एक ’बी प्लस’ केटेगरी भी है। वो हैं कोरबा, दंतेवाड़ा, रायगढ़ और राजनांदगांव। इनमें कोरबा को छोड़ तीनों में नए कलेक्टर हैं। उन्हें हटाया नहीं जा सकता। आगामी फेरबदल में 2011 बैच वालों के लिए फिलहाल कोरबा ही एक बचता है, जहां के लिए वे भगवान विष्णुदेव को वे खुश करने का प्रयास कर सकते हैं।
पूर्णकालिक डीजीपी
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कल 22 जून को रायपुर आ रहे हैं। रात्रि विश्राम करने के बाद वे अगले दिन बस्तर जाएंगे। अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे में नए मंत्रियों और नए चीफ सिकरेट्री का नाम भले ही फायनल न हो मगर अंदेशा है कि पूर्णकालिक डीजीपी का नाम जरूर तय हो जाएगा। क्योंकि, ये विषय अब सरकार के औरा से जु़ड़ गया है। अगर यूपीएससी से पेनल नहीं आया होता तो बात अलग थी। दो नामों का पेनल आए महीना भर होने जा रहा है। अरुणदेव गौतम को सरकार ने प्रभारी डीजीपी बनाया है तो निश्चित तौर पर वे सरकार के पसंदीदा भी होंगे। मगर आर्डर नहीं निकल पा रहा तो संदेश ये जा रहा कि सिस्टम किसी प्रेशर की वजह से कश्मकश में है। सो, कश्मकश दूर करने के लिए संभावना है कि अमित शाह के दौरे में कम-से-कम पूर्णकालिक डीजीपी का नाम तय हो जाएगा।
गृह मंत्री का खौफ
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे की तैयारी में अफसरशाही कई दिन से बेहद व्यस्त चल रही है। खासकर, गृह और पुलिस मुख्यालय के अफसर। मंत्रालय के गलियारों में काफी हलचल है। दरअसल, अमित शाह ऐसे मंत्री हैं, जिनका मीटिंग यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी से ज्यादा कठिन होता है। बता दें, अमित शाह का खौफ सरकार के लोगों को ही नहीं बल्कि संगठन के नेताओं पर भी सिर चढ़कर बोलता है। 2019 का वाकया याद होगा, जब एक हारे हुए विधायक ने सरकार की पराजय का ठीकरा रमन सिंह और उनके अफसरों पर फोड़ने का प्रयास किया तो अमित शाह ने उन्हें यह कहते हुए झिड़क दिया था कि कांग्रेस के गढ़ रहे छत्तीसगढ़ में बीजेपी का 15 साल तक शासन करना आसान नहीं था। बहरहाल, अमित शाह की बैठकों में शामिल होने वाले अफसर बताते हैं...चाहे जितनी भी तैयारी कर के जाओ, वे ऐसे कठिन सवाल पूछ देंगे, जिसका जवाब तैयार नहीं रहता। अमित शाह का होम वर्क इतना तगड़ा होता है, उन्हें फेस कर पाना अच्छे-अच्छे अधिकारियों के वश की बात नहीं होती।
हॉट टॉपिक
छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और उसके वास्ता रखने वालों के बीच इस समय सबसे हॉट टॉपिक है...नेक्स्ट चीफ सिकरेट्री कौन? दरअसल, मुख्य सचिव अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में अब पांच वर्किंग डे बच गया है। 23 से 27 जून। 28 और 29 को शनिवार, रविवार अवकाश है। और उसके अगले दिन 30 को दोपहर तक नए सीएस का आदेश निकल जाएगा। यह पहली बार है कि ब्यूरोक्रेसी के बड़े अधिकारियों को भी समझ में नहीं आ पा रहा कि उंट किस करवट बैठेगा? सूबे के प्रशासनिक मुखिया के लिए पांच अफसर पात्रता रखते हैं। दिल्ली स्तर पर अगर फैसला होगा तो अमित अग्रवाल और ऋचा शर्मा हो सकती हैं तो स्टेट लेवल पर सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ में टक्कर है। हालांकि, सीनियरिटी के हिसाब से देखें तो एसीएस रेणु पिल्ले का नाम सबसे उपर आएगा। मगर उनके नाम की चर्चा इसलिए नहीं है क्योंकि, जनरल परसेप्शन बन गया है...नियम-कायदों से इंच भर भी समझौता नहीं करने वाले आजकल सीएस बनते नहीं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. सारे पैरामीटर पर अगर सहमति की बात की जाए तो चीफ सिकरेट्री के लिए आईएएस सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल और मनोज पिंगुआ में से किसका पलड़ा भारी रहेगा?
2. इसमें कितनी सत्यता है कि छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल विस्तार भाई साहब लोगों की पसंद-नापसंद की वजह से लटक जा रही है?
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