रविवार, 6 जुलाई 2025

Chhattisgarh Tarkash: लालफीताशाही का नमूना

 तरकश, 6 जुलाई 2025

संजय के. दीक्षित

लालफीताशाही का नमूना

छत्तीसगढ़ में डॉयल 112 की गाड़ियां डेढ़-डेढ़, दो-दो लाख किलोमीटर चलकर अंतिम समय में पहुंच गई है। वहीं, अधिकांश थानों की गाड़ियां कंडम हो चुकी हैं। मगर इसका दूसरा स्याह पहलू यह है कि रायपुर से लगे अमलेश्वर बटालियन में 600 से अधिक नई बोलेरो गाड़ियां दो साल से रखे-रखे सड़ रही हैं। वजह यह कि 365 बोलेरो खरीद तो ली गई मगर डॉयल 112 सर्विस को ऑपरेट करने के लिए वेंडर फायनल नहीं हो पाया। तब तक थानों की गाड़ियों को रिप्लेस करने के लिए 300 नई बोलेरो और आ गईं। पीएचक्यू के अधिकारियों ने एक्स्ट्रा दिमाग लगाते हुए तय किया कि थानों के लिए आई गाड़ियों को डॉयल 112 के लिए रख लिया जाए और डॉयल 112 के नाम से दो साल पहले ली गई 370 बोलेरो को थानों को दे दिया जाए। पीएचक्यू के अफसर चाहते तो ये काम खुद ही कर सकते थे...इसके लिए किसी से पूछने की जरूरत नहीं थी। मगर पीएचक्यू ने अपना भार टालने के लिए मंत्रालय को लिख मारा। अब स्थिति यह है कि महीनों से नोटशीट किधर घूम रही है, ये बताने कोई तैयार नहीं। किन गाड़ियों को थाने को दिया जाए और किसे डॉयल 112 को, जब तक यह वीराट फैसला होगा, तब तक उन गाड़ियों की स्थिति क्या होगी, आप समझ सकते हैं। इसे ही कहते हैं लालफीताशाही...जनता की गाढ़ी कमाई का 50-100 करोड़ स्वाहा भी हो जाए तो क्या फर्क पड़ता है।

रायपुर टॉप पर

किराये की गाड़ियां दौड़ाने के मामले में कवर्धा और राजनांदगांव के बाद रायपुर पुलिस अब टॉप पर आ गया है। रायपुर में हर महीने साढ़े छह सौ से सात सौ गाड़ियां किराये पर ली जा रही हैं। डीजीपी अशोक जुनेजा और खुफिया चीफ अमित कुमार की पुलिस अधीक्षकों की क्लास के बाद हालाकि, कुछ जिलों में किराये की गाड़ियों में कमी आई थी। मगर सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि कोई कप्तान बुरा नहीं बनना चाहता। दरअसल, पुलिस महकमे में किराये में चलने वाली 80 परसेंट से अधिक गाड़ियां पुलिस परिवारों की है। आरआई से लेकर मुंशी, दरोगा, डीएसपी सबकी दो-दो, चार-चार गाड़ियां कागजों में दौड़ रही है। वेतन से चार गुना, पांच गुना इंकम इन गाड़ियों से आ रहा। कुछ अफसरों ने तो बकायदा ट्रेव्लर्स कंपनी बना लिया है। अब आप समझ सकते हैं...एसपी आखिर अपने ही घर में कितने लोगों से बुरा बनें...आखिर पोलिसिंग का काम भी उन्हीं लोगों से लेना है। ऐसे में, वित्त को ही कुछ करना होगा। हालांकि, फायनेंस सिकरेट्री मुकेश बंसल ने कुछ महीने पहले वाहनों की गड़बड़ियों के मामले में पीएचक्यू से कैफियत मांगी थी। पता नहीं, क्या जवाब आया।

अफसरों की क्लास

सुशासन तिहार में मैदानी इलाकों का हकीकत जानने के बाद सीएम विष्णुदेव साय योजनाओं के क्रियान्वयन की वस्तुस्थिति परखने विभागों की समीक्षा कर रहे हैं। सीएम का रिव्यू इस बार जरा दबाकर हो रहा है। वैसे भी डेढ़ साल में सीएम अब अफसरों और विभागों को काफी समझ चुके हैं तो सीएम सचिवालय के अफसरों का भी होमवर्क तगड़ा है...सो, इधर-उधर होने पर टोक दिया जा रहा। इस रिव्यू की सबसे खास बात यह है कि विभागों के अफसर आंकड़ों की बाजीगरी नहीं दिखा पा रहे। क्योंकि, सीएमओ के पास पहले से डायरेक्ट्रेट से लेकर जिलों तक का पूरा डेटा आ चुका है।

एक्सटेंशन का रिकार्ड

चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के नाम एक और रिकार्ड दर्ज हो गया। फर्स्ट एक्सटेंशन का। छत्तीसगढ़ में अभी तक किसी मुख्य सचिव का सेवा विस्तार नहीं हुआ था। मगर क्रीटिकल सिचुएशन में ही सही, अमिताभ को तीन महीने का एक्सटेंशन मिल गया। इससे पहले सुनील कुजूर और आरपी मंडल के एक्सटेंशन के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा गया था। पर मंजूरी मिली नहीं। बहरहाल, अमिताभ के तीन महीने बढ़ने की वजह से उनका कार्यकाल अब चार साल 10 महीने हो जाएगा। संभवतः यह भी अपने आप में एक रिकार्ड होगा। नेट पर सर्च करने पर इतनी लंबी अवधि वाले किसी मुख्य सचिव का नाम मिला नहीं।

अगला चीफ सिकरेट्री

अब यह पब्लिक डोमेन में आ चुका है कि दिल्ली से आए एक फोन कॉल के बाद किस तरह सिचुएशन ने यूटर्न लिया और चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन को विदाई की बेला में तीन महीने का एक्सटेंशन मिल गया। मगर सवाल उठता है, तीन महीने बाद कौन? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर देने की स्थिति में कोई नहीं है। कारण कि गेंद अब केंद्र के पाले में जा चुका है। हो सकता है, बदले हालात में भारत सरकार अब अमित अग्रवाल को डेपुटेशन ब्रेक कर छत्तीसगढ़ भेज दे। या फिर विकासशील को मनीला से वापिस बुला लिया जाए। चर्चाएं विकासशील को बुलाने की भी हैं। विकासशील इस समय एशियाई विकास बैंक मनीला में एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। विकासशील को फिलिपिंस से वापिस बुलाने वालों का तर्क यह है कि किसी भी आईएएस को पहले अपना कैडर देखना चाहिए, च्वाइस की सर्विस इसके बाद आती है। इन दोनों का अगर नही हुआ तो फिर मनोज पिंगुआ को सरकार आजमा सकती है। हालांकि, रेखाएं अगर सुब्रत साहू के हाथों में होगी तो फिर उन्हें कौन रोक पाएगा। हालांकि, कुल जमा सार यह है कि पहली बार में जब छत्तीसगढ़ के अफसरों को दरकिनार कर अगर अमिताभ को एक्सटेंशन दिया गया, तो उससे मैसेज तो यही निकला कि अब उपर से ही कोई आएगा।

इगो प्राब्लम और कोआर्डिनेशन

डॉक्टर डे के दिन रायपुर में एक ऐसी घटना हुई, जिसे होना नहीं था। और 25 साल में ऐसा कभी हुआ भी नहीं। असल में, कार्यक्र्रम के कोआर्डिनेशन में चूक हुई। कार्यक्रम हो रहा था मेडिकल कॉलेज में, मगर कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन को पूछा नहीं गया। इसलिए, वे पहुंची भी नहीं। डॉक्टर डे के कार्यक्रम में कॉलेज के डीन नीचे कहीं कोने में बैठे हुए थे और जिनका उस कार्यक्रम से कोई नाता नहीं, वे नेता मंचासीन थे। बेशक, इसमें विरोधियों का हाथ रहा होगा, मगर इगो प्राब्लम और कोआर्डिनेशन की चूक से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

हाल-बेहाल

पिछले पांच साल में कई स्वास्थ्य मंत्री, सिकरेट्री और डायरेक्टर की आंबेडकर अस्पताल का मुआयना करती फोटूएं मीडिया में आई होंगी, मगर किसी ने उन होनहारों के हॉस्टल का जायजा लेने की जरूरत नहीं समझी कि वे किस हाल में रह रहे हैं। सरकारी अस्पतालों के शौचालयों से ज्यादा बुरी स्थिति में मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल के शौचालय हैं। जाहिर है, मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट प्रदेश के क्रीम होते हैं, उसमें भी सूबे के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज रायपुर के। याने क्रीम में क्रीम। उनका ये हाल तो बाकी मेडिकल कॉलेज का आप समझ सकते हैं...भगवान ही मालिक होंगे।

रमन-धर्मजीत की जोड़ी

वैसे तो विधानसभा उपाध्यक्ष की खास जरूरत पड़ती नहीं। सभापति के पैनल से काम चला लिया जाता है। मध्यप्रदेश में 2020 के बाद कोई उपाध्यक्ष नहीं बना है। छत्तीसगढ़ में फिर भी लगभग हर विधानसभा में उपाध्यक्ष रहे हैं। उपाध्यक्ष का पद पहले विपक्ष को दिया जाता था। अजीत जोगी सरकार के दौरान बीजेपी के बनवारी लाल अग्रवाल उपाध्यक्ष रहे। मगर किसी बात पर आवेश में आकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया, उसके बाद यह पद विपक्ष से छीन गया। बहरहाल, इस छठवीं विधानसभा में अभी तक उपाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई है। पलड़ा धर्मजीत सिंह का भारी लग रहा है। सतीश भैया के नाम से जाने जाने वाले धर्मजीत पहले भी विस उपाध्यक्ष रह चुके हैं। उनके साथ विडंबना यह रही कि जिस हाइट के वे हैं, सियासत में उन्हें वह मुकाम मिला नहीं। मध्यप्रदेश विधानसभा में उन्हें उत्कृष्ठ विधायक का सम्मान मिला था। उनके सामने जन्म लिए लोग आज डिप्टी सीएम और मंत्री हैं, मगर सतीश भैया विधायक से उपर नहीं पहुंच पाए। असल में, रेखाओं का खेल कहें कि उनकी राजनीति हमेशा उल्टी दिशा में बहती रही। जब दिग्विजय सिंह का राज था, तो वे विद्याचरण के खेमे में थे। अजीत जोगी उन्हें छोटे भाई कहते रहे मगर कुछ दिया नहीं। 2018 में जब कांग्रेस का राज आया तो वे अजीत जोगी के साथ रहे। कांग्रेस में अगर होते भी तो उन्हें कुछ मिलता नहीं, क्योंकि भूपेश बघेल के साथ उनके गुण मिलते नहीं। और अब बीजेपी में आए तो बीजेपी वाले उन्हें अपना मानने तैयार नहीं। अलबत्ता, बीजेपी में मारामारी के बीच धर्मजीत ने कोई बड़ी ख्वाहिश पाली नहीं होगी। वैसे, विस उपाध्यक्ष के लिए धर्मजीत से कोई बेस्ट कंडिडेट हो भी नहीं सकता। सबसे अनुभवी, प्रखर वक्ता। स्पीकर डॉ0 रमन सिंह के साथ जोड़ेगी जमेगी भी। दोनों की केमेस्ट्री पुरानी है। 98 में रमन सिंह के पास जब अचानक केंद्रीय राज्य मंत्री का शपथ लेने के लिए फोन आया तो उनके पास ठीकठाक कुर्ता नहीं था। रेडिमेड उस समय इतना प्रचलित नहीं हुआ था और न रमन सिंह के साइज का कुर्ता मिल पाता। रमन के डीलडौल के धर्मजीत सिंह वहां थे। उनके पास एक नया कुर्ता था। बताते हैं, रमन सिंह ने उसे पहन केंद्रीय राज्य मंत्री की शपथ ली थी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. साढ़े छह साल के लंबे कार्यकाल के बाद भी आईपीएस पवनदेव पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन से मुक्त क्यों नहीं हो पा रहे हैं?

2. सफेद हाथी बनता जा रहा चिप्स की क्या कोई उपयोगिता रह गई है?

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