परेशां
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद नंदकुमार पटेल ने बड़े उत्साह के साथ काम शुरू किया था। कुछ हद तक पार्टी को पटरी पर लाने में कामयाब भी हुए थे। मगर अब सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चिंता की एक बड़ी वजह अजीत जोगी और चरणदास महंत के बीच प्रगाढ़ होते रिश्ते भी हैं। याद होगा, पटेल के खरसिया में कांग्रेस का कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ था, उसे महंत के कटटर समर्थक विष्णु तिवारी ने आयोजित किया था और अजीत जोगी मुख्य अतिथि थे। तिवारी वहीं हैं, जिन्होंने पटेल के खिलाफ पिछली बार एनसीपी से चुनाव लड़ा था। हाल में, कांग्रेस में जो लेटर बम फूटा, उसके पीछे पटेल को डिस्टर्ब करने की ही रणनीति थी। ऐसे में नंदू भैया सत्ताधारी पार्टी से लोहा लें या अपनों से? रविंद्र चौबे और सत्यनारायण शर्मा के साथ भी अब संबंधों में पहले जैसी गरमी नहीं रही। दरअसल, कांग्रेस में कोर्इ भी नेता नहीं चाहता कि पटेल की लकीर और लंबी हो। सो, उन्हें अकेला करने की कोर्इ कोर कसर नहीं रखी जा रही।
पर उपदेश
दिन फिरने के बाद प्रींसिपल सिकरेट्री, फायनेंस डीएस मिश्रा ने जिस तरह से तेवर दिखाने शुरू किए हैं, वह अफसरों को नागवार गुजर रहा है। वित्तीय कसावट के लिए उन्होंने हाल ही में कर्इ बंदिशें लगार्इ हैं। इनमें विदेश प्रवास भी शामिल हैं। अलबत्ता, मर्इ-जून में दर्जन भर से अधिक आर्इएएस के विदेश घूम कर लौट आने के बाद पाबंदी का औचित्य किसी को समझ में नहीं आ रहा। सूपा बोले चलनी से......का हवाला देकर लोग खूब चटखारे ले रहे हैं। दरअसल, मंत्रालय में सबसे महंगी गाड़ी उन्हीं के पास रही है और सबसे आलीशान चेम्बर भी। फायनेंस के फस्र्ट इनिंग में सबसे ज्यादा विदेश जाने वाले वे ही रहे हैं। विदेश जाने के लिए परमिशन के लिए जब भी उनके पास फाइल जाती थी, उनका नाम भी प्रतिनिधिमंडल में जुड़ जाता था। औरों के ंलिए नियम-कायदा और स्पेशल केस में अपने लिए खूब लग्जरी सुविधाएं जुटार्इ। उनके पीए तक मौज कर रहे हैं। बड़े अफसरों को एसी अलाउ नहीं है, उनके पीए सालों से एसी की ठंडक पा रहे हैं। और सुनिये, रमन की पहली पारी में मिश्रा जैसे ही प्रींसिपल सिकरेट्री, वित्त प्रमोट हुए थे, नियम बदलकर प्रींसिपल सिकरेट्री को भी हवार्इ जहाज के एक्जीक्यूटिव क्लास में सफर करने का आदेश निकाल दिया। ऐसे में सूपा और चलनी वाली बात गलत नहीं प्रतीत नहीं होती।परिपाटी-1
भले ही यह संयोग हो, मगर 2007 से तो यह हर बार हो रहा है......सूबे में सीनियरिटी के बजाए हर बार दूसरे या तीसरे क्रम के आर्इएएस, चीफ सिकरेट्री बनाए जा रहे हैं। 2006 में सीनियरिटी के तहत सीएस बनने वाले रामप्रकाश बगार्इ लास्ट आर्इएएस थे। ऐसे में, सुनील कुमार के बाद वरिष्ठतता में तीसरे नम्बर के आर्इएएस डीएस मिश्रा अगर एकिटव हो गए हैं, तो इसमें गलत क्या है......परिपाटी अगर जारी रही, तो अवसर आखिर उन्हें ही मिलेगा। भले ही एसीएस विवेक ढांड उनसे सीनियर हों। हालांकि, अभी इसमें टार्इम है। सुनील कुमार फरवरी 2014 में रिटायर होंगे। मगर सत्ता और ब्यूरोक्रेसी में दूरगामी समीकरणों को ध्यान में रखकर बिसात पर गोटियां बिछार्इ जाती है। और घटनाएं कुछ हो भी ऐसी ही रही हैं। ढांड के साथ ही उनके जूनियर मिश्रा को एसीएस बनाने की कवायद के बाद लोगों के कान खड़े हो गए हैं। फिर यह भी, मिश्राजी फायनेंस संंभालते ही नए-नए फरमान जारी करने शुरू कर दिए हैं। पुरानी छबि को बदलने के लिए, कुछ दिखाना तो पड़ेगा ना।परिपाटी-2
छत्तीसगढ़ बनने के बाद सूबे की राजनीति में भी कुछ इसी तरह का संयोग चल रहा है.....नेता प्रतिपक्ष के चुनाव हारने का। वो चाहे कांग्रेस का हो या भाजपा का, अगले चुनाव में उसकी हार हुर्इ है। पहली बार नंदकुमार साय हारे तो इसके बाद महेद्र कर्मा जैसे धाकड़ नेता दंतेवाड़ा में एक अल्पज्ञात युवा नेता से शिकस्त खा गए। सो, कांग्रेस में ही चौबे विरोधियों की बांछे खिली हुर्इ है तो इसी उम्मीद में साल भर पहले से लाभचंद बाफना ने साजा में तैयारी शुरू कर दी है। चौबे ने पिछले इलेक्शन में बाफना को हराया था। कहना तो यह भी है, साजा में चौबे विरोधियों को कांग्रेस के एक दिग्गज नेता से रसद-पानी मिल रहा है। राहुल गांधी जब रायपुर आए थे, उसी गुट के इशारे पर चौबे की शिकायत हुर्इ थी। इसलिए, चौबे को जरा सतर्क रहने की जरूरत है। आजादी के बाद से साजा सीट चौबे परिवार के पास रहा है। पहले उनके पिता, फिर मां और अब वे।पोसिटंग
राजभवन के सिकरेट्री जवाहर श्रीवास्तव के 31 अगस्त को रिटायर होने की वजह से इस महीने के अंत में मंत्रालय में एक छोटा फेरबदल हो सकता है। श्रीवास्तव की जगह मंत्रालय से सिकरेट्री या पीएस रैंक के किसी आर्इएएस को राजभवन पोस्ट करना होगा। इसके लिए दो-तीन अफसरों के नाम चल रहे हैं। इनमें संस्कृति सचिव केडीपी राव प्रमुख है। राव पदोन्नत होकर प्रींसिपल सिकरेट्री हो गए हैं। मगर उनके पास खास काम नहीं है। डिपार्टमेंट भी सिर्फ संस्कृति और पर्यटन हैं। इसे पूछल्ला विभाग ही समझा जाता है। उस पर भी, बृजमोहन अग्रवाल जैसे मंत्री। इसलिए, राजभवन के साथ, उन्हें संस्कृति और पर्यटन का अतिरिक्त प्रभार मिल सकता है।सुखी विधायक
चंदा के इस मौसम में राज्य का सबसे सुखी कोर्इ विधायक होगा, तो वे रायपुर उत्तर के कुलदीप जूनेजा होंगे। कृष्ण जन्माष्टमी से लेकर गणेशोत्सव के लिए चंदा मांगने वालों से राज्य के विधायक दो-चार हो रहे हैं। लेकिन स्कूटर में चलने वाले जूनेजा से चंदा मांगकर कोर्इ अपना मुंह क्यों खराब करें। भूले-भटके कोर्इ चला भी आया तो यही जवाब मिलेगा, अगली बार सरकार बनेगी तो जो बोलना....। विधायक चुने जाने के बाद हालांकि उन्होंने चमचमाती सफारी खरीदी थी मगर चंदा मांगने वालों की भीड़ को देखकर उन्होंने अपनी असरदार बुद्धि लगार्इ और स्कूटर पर चलना शुरू कर दिया। अब वे दिन में स्कूटर पर चलते हैं और रात में कार में। स्कूटर ही उनका चलता-फिरता आफिस है। डिक्की में ही रखते हैं, लेटरपैड, सील। घर में आफिस बनाकर चाय-पानी का खर्चा क्यों बढ़ाएं। सो, सुबह-शाम, चौक-चौराहे पर खडे़ हो जाते हैं। कोर्इ काम लेकर आ गया तो वहीं पर लिख कर दे दिया। काम हो गया तो ठीक, नहीं हुआ तो कोर्इ टेंशन नहीं।अंत में दो सवाल आपसे
1. कांग्रेस के एक तेज विधायक का नाम बताइये, जो एक सीमेंट कारखाना खरीदने जा रहे हैं?2. रायपुर के सांसद रमेश बैस ने जनर्दशन चालू किया है, जनता के लिए या अपनी रेटिंग बढ़ाने के लिए?
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