किंग खान
एसआई से पदोन्नत होते-होते एडिशनल एसपी तक पहुंचे आईएच खान का जलवा देखकर दीग्गज आईपीएस भी हतप्रभ है। खान 31 मई को रिटायर हुए थे और नियम-कायदों को ताक पर रख उन्हें संविदा में एडिशनल एसपी बनाने के लिए जिस तरह की हाईप्रोफाइल कोशिशें चल रही हैं, वह किसी आईपीएस के लिए भी संभव नहीं है। जबकि, खान के खिलाफ ईओडब्लू में आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज है, साथ ही सीआईडी में भी। संविदा के लिए अनिवार्य शर्त है, एसीआर बेदाग होनी चाहिए। मगर तुलसीदासजी बहुत पहले कह गए हैं, समरथ को नहीं दोष गोसाईं। हैरत की बात यह, खान के खिलाफ जांच का हवाला देते हुए आईजी प्रशासन पवनदेव ने 18 जुलाई को डीजीपी को नोटशीट भेजी थी, वही पवनदेव हफ्ते भर बाद, फिर लिखते हैं......विभाग ने जांच कर ली है, खान के खिलाफ कोई गड़बड़ी नहीं है। आमतौर पर किसी से हेठा नहीं खाने वाले पवनदेव अगर झुक गए तो समझा जा सकता है, कितना प्रेशर रहा होगा। खबर है, पीएचक्यू के प्रस्ताव को पीएस होम एनके असवाल ने अनुमोदन करके फाइल हाथो-हाथ उपर भेज दिया है। और संभव है, दो-एक दिन में खान की ताजपोशी का आदेश निकल जाए। और अब इधर देखिए......ठाकुरों की सरकार होने के बाद भी राजेश्वर सिंह ठाकुर, खान जैसे किस्मती नहीं रहे। सरगुजा रेंज एआईजी से रिटायर हुए सिंह के लिए रामविचार नेताम समेत संगठन के कई नेताओं ने जान लगा दिया। लेकिन सिंह इज किंग, नहीं हो पाया, भाजपा की सरकार में खान इज किंग हो गया।
स्टेट गेस्ट?
छत्तीसगढ़ सरकार अगर स्टेट गेस्ट का दर्जा देकर विशेषज्ञों की सेवाएं लेने का आफर करें, तो सहमति देने से पहले विद्वानों को ठीक से विचार कर लेना चाहिए। हो सकता है, चपरासी से भी बदतर व्यवहार आपके साथ होने लगे। राज्य के पुरातत्व सलाहकार अरुण शर्मा से ज्यादा इस बारे में कौन बता सकता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के रिटायर अफसर शर्मा को 2005 में संस्कृति और पुरातत्व विभाग ने 50 हजार मासिक वेतन और गाड़ी की सुविधाएं देने का आफर दिया था। शर्माजी छत्तीसगढि़यां ठहरे, इसलिए पैसे की भूख नहीं थी। सो, कह दिया मुझे पंेशन काफी है, बस, एक गाड़ी देई दो, काम चल जाएगा। तब संस्कृति विभाग ने उन्हें स्टेट गेस्ट का दर्जा दे दिया। बकायदा इसके लिए आदेश निकाला गया। लेकिन, वहीं संस्कृति विभाग अब अपने 80 वर्षीय राज्य अतिथि को नचाना शुरू कर दिया है। पिछले छह महीने में एक पैसा नहीं मिला है। न खुदाई कार्य के लिए और न ही गाड़ी और वहां तैनात चैकीदारों के लिए। आलम यह है, शर्मा को अपनी पेंशन से गाड़ी का किराया चूकता करना पड़ रहा है। पिछले छह महीने से वे पुरातत्व अफसरों के सामने पैसे के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं मगर कोई सुनने को तैयार नहीं है। लिहाजा, उन्होंने खुदाई बंद कर सिरपुर से लौटने का अल्टीमेटम दे दिया है.....भगवान बचाए, स्टेट गेस्ट बनाने वाले ऐसे लोगों से। वैसे, गलती शर्माजी की है। संस्कृति और पुरातत्व विभाग में काम करने के लिए पहली अनिवार्य शर्त है, हेवी प्रपोजल बनाओ, काम कागजों में करों.....खूब खाओ और खूब खिलाओं। शर्माजी ठहरे पुराने जमाने के आदमी। कोई फायदा नहीं तो उन्हें अब क्यों ढोया जाए। भाड़ में जाए खुदाई। पुराना पत्थर से क्या मिलेगा। अपना राजिम कुंभ और सिरपुर महोत्सव जिंदाबाद।
बुरे दिन
एक समय था, जब दर्जन भर से अधिक बोर्ड और कारपोरेशन में आईएफएस अफसरों का कब्जा था। मगर लगता है, अब उनके दिन पूरे हो गए हैं। पिछले हफ्ते, नगरीय विकास आयुक्त संजय शुक्ला को घर का रास्ता दिखाया गया। इसके बाद, तीन और आईएफएस अब-तब की स्थिति में हैं। माईनिंग कारपोरेशन के एमडी राजेश गोवर्धन, हार्टिकल्चर मिशन के आलोक कटियार और पौल्यूशन बोर्ड के नरसिंह राव। किसी भी टाईम इनका विकेट गिर सकता है। सरकार की अब कोशिश है, निगम, बोर्ड में आईएएस बिठाए जाएं या फिर विभागीय अधिकारियों को कमान सौंपी जाए। देखा होगा आपने, संजय शुक्ला को हटाने के बाद नो रिस्क के तहत रोहित यादव को रायपुर कलेक्टर से रिलीव कराके तत्काल वहां ज्वाईन कराया गया, ताकि किसी आईएफएस की सिफारिश न आ जाए। जबकि, रायपुर के नए कलेक्टर सिद्धार्थ परदेशी डेढ़ महीने की टे्रनिंग में प्रदेश से बाहर हैं। इसी तरह मंडी बोर्ड से एमडी सुब्रमण्यिम की छुट्टी हो गई और वहां अब विभागीय अफसर को पोस्ट किया गया है। पता चला है, डेपुटेशन पर बचेंगे तो सिर्फ एनआरडीए के सीईओ श्याम सुंदर बजाज, सीएसआईडीसी के एमडी देवेंद्र सिंह और एससीईआरटी के डायरेक्टर अनिल राय। वो भी इसलिए, कि छबि अच्छी है, काम आता है और सरकार के भरोसेमंद भी हैं।
ढांड टीम
रमन सिंह की पहली पारी में विवेक ढांड का जलजला रहा। पांच साल तक सिकरेट्री टू सीएम रहे, साथ ही उर्जा और सिंचाई जैसे विभाग भी.....मगर दूसरी पारी में सब कुछ अच्छा नहीं रहा और वह बदस्तूर जारी है। अब तो, कुछ ज्यादा ही.....मंत्रालय के गलियारों में चर्चा ऐसे ही सरगर्म नहीं है, ढांड टीम के लोगों को एक-एक कर खिसकाया जा रहा है। पहले, सबसे करीबी अधिकारी संजय शुक्ला की छुट्टी की गई। और अब अनिल टूटेजा को ननि का आयुक्त बनाकर भिलाई भेजा गया है। आईएएस अवार्ड होने का इंतजार कर रहे टूटेजा ने सोचा भी नहीं होगा, इतना सीनियर और अनुभवी होने के बाद भिलाई में पोस्टिंग मिलेगी। वहां भाजपा-कांग्रेस नेताओं की गुटीय लड़ाई के अलावा काम कुछ खास नहीं है। संजय अग्रवाल टं्रांसफर कराके ऐसे ही रायपुर नहीं आए हैं।
कभी खुशी, कभी....
मीडिया की वजह से एडीजी रामनिवास के लिए विचित्र स्थिति निर्मित हो गई.....खबर थी, भारत सरकार ने डीजीपी की एक अतिरिक्त पोस्ट की स्वीकृति दे दी है....हफ्ते भर में रामनिवास डीजी बन जाएंगे। इसके बाद तो बधाइयों और बुके का तांता लग गया। मगर लोगों ने जब आदेश देखा तो माजरा दूसरा निकला। दरअसल, वह अतिरिक्त डीजी की स्वीकृति नहीं, बल्कि, डीजीपी अनिल नवानी के 30 नवंबर को रिटायर होने के बाद 1 दिसंबर से रामनिवास को डीजी बनाने की भारत सरकार ने औपचारिक अनुमति दी है। विशुद्ध तौर पर यह पदोन्नति की प्रक्रिया है। इसे लोग समझ नहीं पाए। रामनिवास तो वैसे भी दिसंबर में ही डीजी बनने वाले हैं। नवानी के रिटायर होने के बाद डीजीपी बनने के लिए उनका संतकुमार पासवान से कांटे का टक्कर है, जो उनसे न केवल चार साल सीनियर हैं, बल्कि पिछले तीन साल से डीजी हैं। सो, रामनिवास समय से पहले अगर डीजी बन जाते तो उनकी स्थिति सुदृढ़ हो सकती थी।
याद आए....
नए रायपुर को इस मुकाम तक पहुंचाने वाले रिटायर सीएस पी जाय उम्मेन को सोमवार को सीएम ने याद किया, तो मौजूद लोग एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। मौका था, नए रायपुर में पौधारोपण का। लोगों में धारणा थी, उम्मेन को हटाने के बाद उन्होंने जिस तरह वीआरएस लिया, उससे कड़वाहट बढ़ी होगी मगर डाक्टर साब ने चैंका दिया। उन्होंने कहा, नई राजधानी को शेप देने में उम्मेन की प्रयासों को भूलाया नहीं जा सकता। वे यही नहीं रुके। आवास पर्यावरण सचिव एन बैजंेद्र कुमार और एनआरडीए के सीईओ श्याम संुदर बजाज की भी उन्होंने जमकर तारीफ की। इशारा साफ था, नया रायपुर बनाने में जिन लोगों ने पसीना बहाया है, क्रेडिट उन्हें ही मिलेगी। और यह मैसेज यह भी, दूसरे लोग के्रडिट लेने की कोशिश ना करें।
अंत में दो सवाल आपसे
1 जमीनों की अफरातफरी के मामले में मुख्यमंत्री के निर्देश पर किस पुलिस महानिरीक्षक को गृह मंत्री ननकीराम कंवर से मिलकर सफाई देनी पड़ी है?
2. शहरी इलाके में भाजपा का जनाधार लगातार खिसकने के बाद भी राज्य सरकार ने नगरीय प्रशासन विभाग को अजय सिंह और रोहित यादव जैसे आईएएस अफसर के हवाले कैसे कर दिया?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें