शनिवार, 12 जनवरी 2013

तरकश, 13 जनवरी

मनहर के चलते
एसपी की सर्जरी अभी और आगे टल सकती थी। मगर बालोद में सीएम के रोड शो में काला झंडा की वजह से एसपी के लिस्ट पर विचार शुरू हो गया है। और खबर, तो यहां तक है, 14-15 को आदेश निकल सकते हैं या फिर 20-21 को लगभग तय मानिये। सिर्फ सीएम की अति व्यस्तता की वजह से इस पर अंतिम निर्णय नहीं हो पा रहा है। जाहिर है, सूची में बालोद एसपी डीएल मनहर का नाम, एक नम्बर पर रहेगा। उसके बाद, रायपुर, रायगढ़, जांजगीर जैसे दर्जन भर से अधिक जिले होंगे। दावा ऐसा भी है कि रमन सरकार के नौ साल में एसपी लेवल पर यह सबसे बड़ा फेरबदल होगा। 27 में से आधे से अधिक जिले के एसपी बदल जाएंगे। इसकी वजह यह है कि मुख्यमंत्री एसपी के पारफारमेंस से खुश नहीं हैं। दूसरा, इस साल चुनाव भी है। रही राजधानी रायपुर की बात, तो किसी मैच्योर परसन को यहां की कमान सौंपी जाएगी। या तो रायगढ़ के एसपी आनंद छाबड़ा प्रोन्नत होकर एसएसपी बनेंगे या फिर बिलासपुर के रतनलाल डांगी को मौका दिया जाएगा। एसपी के रूप में डांगी का बिलासपुर चैथा जिला है। इसके अलावा रायपुर के लायक कोई आईपीएस सरकार को नहीं दिख रहा। तमिलनाडू कैडर से डेपुटेशन पर आई सोनल मिश्रा का नाम जरूर उछला था, मगर सरकार को नया चेहरा हजम नहीं हो रहा है।   

 
तोड़ी की चक्कर
कांकेर के झलियामारी आश्रम में नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म का मामला ऐसे ही सामने नहीं आया। दरअसल, तोड़ी के चक्कर में यह सब हुआ। पता चला है, नरहरपुर के एक व्यक्ति को सबसे पहले घटना की जानकारी मिली थी और उसने कांकेर के एक युवक को खबर दी और तय हुआ था, जो मिलेगा, उसमें होगा आधा-आधा। प्लान के मुताबिक कांकेर का युवक झलियामारी आश्रम जाकर आरोपी शिक्षाकर्मी को चमकाया और 25 हजार रुपए ऐंठ भी लाया। किन्तु उसकी नीयत में खोट आ गई और बंटवारा करने में आनाकानी करने लगा। इस पर दोनों में विवाद हुआ और बात फैल गई। वरना, मासूम बच्चियों से अनाचार का मामला झलियामारी आश्रम में ही दफन हो गया होता। 


कलेक्टर की जिम्मेदारी?
झलियामारी आश्रम की आदिवासी बच्चियां जिस स्थिति को जी रही थी, उससे कांकेर कलेक्टर और आदिवासी विभाग के अफसरों को कैसे बरी किया जा सकता है। खपरे वाले कच्चे मकान के तीन कमरे में 42 बच्चियां। नहाने के लिए बाथरुम नहीं, टायलेट नहीं। दरवाजे की कुंडी टूटी हुई। रात में लड़कियां दरवाजा भिड़ा देती हंै। इसी का फायदा उठाया, आरोपियों ने। रात में किसी भी वक्त घुस जाते थे, कमरे में। नरहरपुर नक्सली इलाका भी नहीं है। विशुद्ध मैदानी क्षेत्र है। जिला मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर दूर। कलेक्टर जिले का मुखिया होता है और सरकार की योजनाओं का क्रियान्वन हो रहा है या नहीं, देखना उसका प्रमुख काम है। आश्रमों की बेहतरी के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपए का फंड जारी करती है। काश! कलेक्टर एक बार झलियामारी आश्रम का विजिट की होती, तो कई बच्चियों का भविष्य खराब होने से बच जाता। लेकिन जब उनकी पोस्टिंग इसलिए हुई है कि बगल के जगदलपुर में उनके पति कलेक्टर हैं और फ्रिक्विेंटली उनका मिलना-जुलना हो सकेगा, तो फिर कोई उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। बहरहाल, झलियामारी आश्रम, तो एक बानगी है। अधिकांश जिलों में आदिवासी आश्रमों और कलेक्टरों की यही स्थिति है। कलेक्टरों की रुचि सिर्फ इस बात में होती है कि हमारे एनजीओ को काम मिला या नहीं और खरीदी और टेंडर होता है, उसका हिस्सा आ जाए। जिस तरह काले झंडे दिखाने पर या हंगामा करने पर एसपी के ट्रांसफर हो जाते हैं, उसी तरह बड़ी घटनाओं पर एकाध कलेक्टर-एसपी को उल्टा टांगिये डाक्टर साब, देखियेगा, फिर कलेक्टर-एसपी कैसे चार्ज होते हैं। 


आईएएस बुद्धि
छह महीने का मातृत्व अवकाश पूरे हो जाने के बाद भी एक महिला आईएएस मंत्रालय में ज्वाईन नहीं दे रही हैं। पता चला है, उन्होंने एक महीने का और अवकाश ले लिया है। महिला अफसर को आशंका है कि एक बार मंत्रालय में फंस गई, तो इस महीने के अंत या अगले महीने होने वाले कलेक्टरों के फेरबदल में उनका नम्बर नहीं लग पाएगा। चूकने का मतलब समझा जा सकता है, सुनील कुमार जैसे सीएस के साथ साल भर और काम करना। सुबह 10 बजे आफिस पहुंचना और रिजल्ट ओरियेंटेड वर्क। मगर नए आईएएस रिजल्ट-विजल्ट में विश्वास कहां करते हैं। ज्वाईन करते ही मनीराम के चक्कर में पड़ जा रहे हैं। और मनीराम से मिलने के लिए कलेक्ट्रेट से बढि़यां जगह और क्या हो सकती है। बहरहाल, महिला अफसर के आईएएस पति पावर सेंटर में पहुंच गए हैं, सो उनकी योजना परवान चढ़ जाए, तो अचरज नहीं। 


मीर जाफर
कैडर रिव्यू का प्रस्ताव सबसे पहले वन विभाग ने भारत सरकार को भेजा था। और आईएफएस अफसरों को उम्मीद थी कि जल्द ही वह ओके होकर आ जाएगा। मगर पता चला है, कैडर रिव्यू से प्रभावित होने वाले कुछ आईएफएस अफसरों ने ही दिल्ली में जुगाड़ लगाकर फाइल डंप करवा दिया है। कैडर रिव्यू हो जाने के बाद सर्किल में सीएफ की जगह सीसीएफ पोस्ट किए जाएंगे। प्रशासनिक सुधार इसलिए किया जा रहा है कि कमिश्नरी में कमिश्नर, रेंज में आईजी होते हैं, उसी तरह वन विभाग के सर्किल में सीसीएफ बैठे। ताकि, सीसीएफ का कमिश्नर और आईजी से समन्वय ठीक रहे। दरअसल, तीनों का रैंक सेम होता है। लेेकिन कैडर रिव्यू हो गया, तो वर्तमान सीएफ लोगों को कमाई वाली कुर्सी छोड़कर वन मुख्यालय की रवानगी डालनी पड़ जाएगी। वहां उन्हें बैठने के लिए कुर्सी-टेबल का भी खुद ही इंतजाम करना होगा। सो, सीएफ क्यों चाहेंगे, कैडर रिव्यू हो। बहरहाल, वन महकमे के लोगों ने मीर जाफरों की तलाश तेज कर दी हैं। 


अंत में दो सवाल आपसे
1.    दुष्कर्म के मामले में कड़े कानून बनाने पर पुलिस को ज्यादा लाभ होगा या महिलाओं को?
2.    एक आईएएस अफसर का नाम बताइये, जिन्होंने मोटे कमीशन के फेर में एक कंपनी से 75 लाख रुपए के मोबाइल खरीदकर मातहतों को टिका दिया?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें