शनिवार, 5 जनवरी 2013

तरकश, 6 जनवरी

शर्मनाक
 
छेड़छाड़ और रेप के मामले में कार्रवार्इ करने में छत्तीसगढ़ पुलिस का रवैया भी आहत करने वाला रहा है। रायपुर के उरला इलाके में 16 दिसंबर की रात हुए पांच साल की बच्ची से रेप हो या इसके एक हफते बाद पेंड्रा इलाके में आटो चालक द्वारा महिला की अस्मत लूटने के मामले में। पुलिस का व्यवहार शर्मनाम रहा। उरला घटना में दुष्कर्म की रिपोर्ट तब लिखी गर्इ, जब इलाज के लिए बच्ची को आंबेडकर अस्पताल में भरती किया गया। पुलिस को डर था कि दिल्ली की तरह रायपुर में भी बवाल न हो जाए। ऐसा तब हुआ, जब उरला में महिला थानेदार हैं। शुरू में, तो थानेदार ने घटना से ही अनभिज्ञता जता दी थी। बाद में, मीडिया को यह कहकर गुमराह किया गया कि बच्ची स्वास्थ्य होकर घर जा चुकी है। जबकि, वह अस्पताल में बिस्तर पर थी। महिला अफसर ने यह साबित किया कि पुलिस में आने के बाद महिला, महिला नहीं बलिक पुलिस सिस्टम का हिस्सा बन जाती है। और थानों में भले ही महिला इंस्पेक्टरों की पोसिटंग कर दो, होना-जाना कुछ नहीं है। बहरहाल, यह सब हुआ, सरकार की नाक के नीचे। जहां, राज्यपाल से लेकर चीफ मिनिस्टर, गृह मंत्री, चीफ सिकरेट्री, डीजीपी सरीखे अफसर बैठते हैं। आरोपी गया था, विधवा महिला की इज्जत लूटने, वह नहीं मिली तो मासूम बच्ची को हवश का शिकार बना डाला। और पुलिस हीलाहवाला करती रही। ऐसे अफसरों पर अब तक कार्रवार्इ कुछ भी नहीं। पेंड्रा इलाके में, तो थानेदार आरोपियों के साथ समझौता कराने लगा। ऐसे में पुलिस से क्या उम्मीद की जा सकती है। 


पटनायक स्टाइल
उड़ीसा में चुनाव के पहले नवीन पटनायक सरकार गड़बड़ कर्मचारियों और अधिकारियों पर डंडा चलाकर या जेल भेजकर चुनाव जीत जाती है। पटनायक इस थ्योरी पर काम करते हैं कि सरकारी लोगों पर कड़ार्इ से आम आदमी खुश होता है। आदमी आखिर, उन्हीं से, तो सबसे अधिक त्रस्त रहता है। सो, छत्तीसगढ़ में भी कुछ ऐसा ही हो जाए, तो हैरान मत होइयेगा। इसकी शुरूआत शिक्षाकर्मियों और लिपिकों के साथ हो सकती है। सरकार किस तरह सख्त है, आप समझ सकते हैं, शिक्षाकर्मियों ने शुक्रवार को जेल भरो आंदोलन को सांकेतिक गिरफतारी में क्यों तब्दील कर दिया। सरकार ने दो टूक कह दिया है, फिलहाल न छठा वेतनमान मिलेगा और संविलयन, तो नामुमकिन है। वेतन कुछ बढ़ाए जाएंगे, मगर वो भी अभी नहीं। दो-एक महीने बाद ही कुछ होगा। अंदर की खबर है, सरकार को आशंका है, एक बार झुकने पर आंदोलनों की बाढ़ आ जाएगी। काम-धाम छोड़कर सितंबर तक इसी से दो-चार होना पड़ेगा। शिक्षाकर्मियों को छठा वेतनमान देने से पहले साल करीब 800 करोड़ रुपए खर्च आएगा। और दो साल बाद यह 1800 करोड़ रुपए पहुंच जाएगा। उधर, 42 लाख गरीब परिवारों को चावल-दाल देने में 1200 करोड़ खर्च बैठ रहा है। अब, सरकार या तो गरीबों को चावल दें या शिक्षाकर्मियों को छठा वेतनमान। सरकार के रणनीतिकारों का मानना है, चुनावी समीकरण में 42 लाख परिवार ज्यादा महत्वपूर्ण है, न कि डेढ़ लाख। वैसे भी, 50 फीसदी से अधिक शिक्षाकर्मी काम पर लौट चुके हैं। व्यापम से चयनित 40 हजार शिक्षाकर्मियों को तुरंत अपाइंटमेंट आर्डर देने पर भी विचार कर रही है।  


दलित कार्ड
पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन का चेयरमैन बनने के लिए निवर्तमान डीजीपी अनिल नवानी ट्रार्इ कर रहे हैं, मगर यकीन मानिये, उनकी ताजपोशी नहीं होने वाली। मार्च में डीजी होमगार्ड से रिटायर होने वाले संतकुमार पासवान के लिए यह कुर्सी सुरक्षित रखी गर्इ है। समझने की बात है, नवानी को अगर चेयरमैन बनाना होता, तो रामनिवास को डीजी बनाते समय ही कारपोरेशन का आदेश भी हो गया होता। रामनिवास को आखिर अकारण कारपोरेशन का चार्ज थोड़े ही दिया गया। जाहिर है, समय काम होने की वजह से पासवान डीजीपी न बन सकें। सो, सरकार चाहती है, कारपोरेशन में चेयरमैन बनाकर पुलिस महकमे से मार्च में उनकी सम्मानजनक बिदार्इ हो। इसका लाभ आखिर सरकार को भी तो मिलेगा। अनुसूचित जाति की उपेक्षा के आरोप का जवाब देने के लिए सरकार के तरकश में एक पासवान का भी वाण होगा। 


26 के बाद
ट्रांसफर से घबराए सूबे के कुछ कलेक्टर और एसपी को इस खबर से कुछ राहत मिल सकती है कि सरकार ने सर्जरी को फिलहाल टाल दिया है। और अब 26 जनवरी के बाद ही कुछ होगा। सरकार अपना पूरा ध्यान अभी 9 नए जिले में होने वाले रोड शो और उसके उत्सव पर केंदि्रत करने जा रही है। शीतकालीन सत्र के बाद से ही आर्इएएस, आर्इपीएस की बड़ी लिस्ट निकलने की चर्चा थी। आखिरी साल में चुनावी हिसाब से सरकार बड़े स्तर पर फेरबदल करने की तैयारी भी कर रही थी। मगर अपरिहार्य कारणों से इसे स्थगित करना ही मुनासिब समझा है। 


बेहाल
जीएडी बोले तो समान्य प्रशासन विभाग। मंत्रालय का महत्वपूर्ण महकमा। इसलिए तीन-तीन सिकरेट्री हैं। मगर काम देखिए कि गृह मंत्री और चीफ सिकरेट्री के मार्क किए गए पत्रों पर भी कार्रवार्इ नहीं हो रही है। नए मंत्रालय में गलत जगह राष्ट्रध्वज लगाने को लेकर गृह मंत्री ननकीराम कंवर ने आपतित करते हुए 4 दिसंबर को चीफ सिकरेट्री सुनील कुमार को पत्र लिखा था। कार्रवार्इ के लिए कुमार ने इसे जीएडी को भेज दिया। कुछ नहीं हुआ तो कंवर ने जीएडी को फिर रिमाइंडर भेजा। 4 जनवरी को जीएडी के डिप्टी सिकरेट्री ने राष्ट्रध्वज ठीक करने के लिए एनआरडीए को पत्र लिख पल्ला झाड़ लिया। मंत्रालय में राष्ट्रध्वज ठीक जगह पर लगे, यह काम जीएडी का है न कि एनआरडीए का। राष्ट्रध्वज के साथ ऐसा मजाक, लिंटर के छड़ में राष्ट्रध्वज को लटका दिया है, वह भी कोने में। और गृह मंत्री और चीफ सिकरेट्री के पत्र के बाद भी हीलाहवाला। समझ सकते हैं, कैसा चल रहा है जीएडी।   


 अंत में दो सवाल आपसे
1.    शिक्षाकर्मियों और लिपिकों के आंदोलन को आम आदमी की सहानुभूति क्यों नहीं मिल रही है?
2.    कितने परसेंट मां-बाप अपने बेटियों को शालीन कपड़े पहनने की सीख देते हैं और बेटों को यह संस्कार कि बहन-बेटियों के साथ बदतमीजी कर हमारी नाक मत कटवाना?

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