शनिवार, 30 नवंबर 2013

तरकश, 1 दिसंबर

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कहो दिल से….

भाजपा और कांग्रेस की किस्मत का फैसला भले ही 8 दिसंबर को होगा, मगर चैक-चैराहों, बंद कमरों, ट्रेनों में, दिलचस्प ढंग से कयासों का दौर जारी है। दो दिन पहले तक जिस प्रत्याशी को लोग जीतवा रहे थे, अब उसकी हार करार दे रहे हैं। तर्क भी अपने-अपने ढंग से…….ये भी जीत सकता है, और वैसा हुआ होगा, तो वह भी कम अंतर से निकाल सकता है…….जहां समझ मंे नहीं आ रहा, वहां बोल दो, टक्कर है। बहरहाल, सीट वाइज लोग कांग्रेस की बढ़त कैलकुलेट कर रहे हैं। मगर अंत में धीरे से कहते हैं…..मेरा दिल कहता है, रमन सिंह किसी तरह सरकार बना लेंगे। अब पता नहीं, रमन का सौम्य, शालीन, उदार चेहरा का असर कहें या अंतरात्मा की आवाज कि सीटों का कैलकुलेशन गड़बड़ाने के बाद भी सूबे का एक बड़ा तबका मान रहा कि सीएम रमन ही होंगे। ब्यूरोके्रट्स तक मान रहे हैं, रमन रिपीट हो रहे हैं।

जीते तो रमन हारे….

भाजपा ने अगर हैट्रिक बना ली तो रमन सिंह पार्टी के बेहद कद्दावर नेता बन जाएंगे। वजह, इस चुनाव में न चावल था और न कोई दीगर इश्यू। कांग्रेसी भी मान रहे हैं कि भाजपा को अगर वोट मिला होगा तो सिर्फ रमन के नाम पर। रमन के अलावा दूसरा कोई नेता चुनाव प्रचार में निकला भी नहीं। रमन ने अकेले 200 से अधिक सभाएं की। उनके बड़े मंत्री कांटे की लड़ाई में इस कदर उलझ गए थे कि उन्हें अपने इलाके से बाहर की सुध लेने का समय नहीं मिला। संगठन का तालमेल भी 2003 और 2008 जैसा नहीं दिखा। सो, जीतो रमन और हारे तो भाजपा, का ही मामला होगा।

कुर्सी के लिए जंग

कांग्रेस के आने पर सर्वमान्य सीएम के तौर पर भले ही मोतीलाल वोरा के नाम पर सट्टा बाजर उछाल पर हो, मगर अजीत जोगी भी आसानी से हथियार नहीं डालने वाले। टिकिट उनके लोगों को ज्यादा मिली है तो जाहिर है, विधायकों का संख्या बल उनके साथ ही होगा। दो-चार सीटें कम पड़ीं तो उसे भी मैनेज करने का काम जोगी के अलावा और कोई नहीं कर सकता। जोगी खेमा इसको भी नहीं भूल रहा कि भाजपा ने सिर्फ जोगी को इश्यू बनाया। नरेंद्र मोदी जैसे स्टार नेता तक ने जोगी को टारगेट किया। तो विज्ञापनों में भी भाजपा ने जोगी की फोटो छपवाई। जोगी खेमे के एक नेता की सुनिये, पूरे चुनाव में भाजपा के निशाने पर साहेब रहे, तो पार्टी को जीतने के बाद दूसरा कोई सीएम कैसे बनेगा? जाहिर है, कांग्रेस के जीतने पर सीएम का फैसला आसानी से नहीं होगा।

आरेस्ट होते मंत्रीजी

रायपुर में एक प्रेक्षक से पंगा लेने के बाद प्रशासनिक अफसरों ने अगर फील्ंिडग न की होती तो सूबे के एक मंत्री अरेस्ट हो गए होते। पता चला है, प्रेक्षक को देख लेने की धमकी से चुनाव आयोग इस कदर खफा हुआ था कि मंत्रीजी को फौरन आरेस्ट करने कह दिया था। मगर कुछ आईएएस अफसरों ने आयोग में बात करके मामले को सुलझाया। आयोग को बताया गया कि मत्री के गिरफ्तार होने पर बवाल हो जाएगा……उनके समर्थक चुनाव का बहिष्कार भी कर सकते हैं। फिर, प्रेक्षक को भी कंविंस किया गया कि मंत्रीजी दिल से उतने बुरे नहीं है, जितने कि बाडी लैंग्वेज से। तब जाकर मामला शांत हुआ।

हर्ट बीट्स तेज

चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और पीसीसीएफ के दावेदारों की इस खबर से हर्ट बीट्स तेज हो सकती है। भारत सरकार में आल इंडिया सर्विसेज के अफसरों की सेवानिवृति 60 से 62 करने की फाइल फिर से पीएमओ में पहुंच गई है। हालांकि, पीएमओ ने इसे एक बार खारिज करके वापिस लौटा दिया था। और सेवेंथ वेज बोर्ड के गठन के बाद इसकी संभावनाएं खतम हो गई थी। मगर पता चला है, नौकरशाही का भारी प्रेशर के चलते डीओपीटी ने सोमवार को फाइल फिर से पीएमओ भेज दिया है। जाहिर है, जिस फाइल को एक बार पीएमओ लौटा चुका है, उसे बिना किसी इशारे के डीओपीटी फिर से फारवर्ड करने की हिमाकत नहीं करेगा। खबर है, दिसंबर अंत तक प्रधानमंत्री इस पर मुहर लगा देंगे। अगर ऐसा होता है तो इसका सबसे अधिक असर छत्तीसगढ़ पर पड़ेगा। यहां 80 हजार रुपए स्केल वाले तीनों शीर्ष अफसर जनवरी से फरवरी के बीच रिटायर होने वाले हैं। सबसे पहले डीजीपी रामनिवास और पीसीसीएफ धीरेंद्र शर्मा 31 जनवरी को और इसके बाद 28 फरवरी को सीएस सुनिल कुमार सेवानिवृत हो जाएंगे। पीएमओ से ओके होने के बाद अब, तीनों का दो-दो साल बढ़ जाएगा। ऐसे में उनकी कुर्सी संभालने के लिए पिछले छह महीने से वार्मअप हो रहे अफसरों को धक्का लगना लाजिमी है।

कुटनीतिक आर्डर

पोस्टिंग को लेकर सरकार से लोहा ले रहे आईएएस अफसर केडीपी राव को बिलासपुर में सुब्रत साहू को कमिश्नर पोस्ट किए जाने के बाद भी कोई राहत नहीं मिल पाई। चुनाव आयोग के निर्देश पर सरकार ने साहू की पोस्टिंग तो कर दी मगर आदेश में लिख दिया सिर्फ चुनाव तक। याने 11 दिसंबर को आचार संहिता खतम हो जाने के बाद साहू मंत्रालय लौट आएंगे। और बिलासपुर कमिश्नर का पद फिर खाली हो जाएगा। जीएडी ने ऐसा आदेश इसलिए किया कि बिलासपुर में पूर्णकालिक कमिश्नर की नियुक्ति का लाभ राव को मिल जाता। कोर्ट भी मान लेता कि बिलासपुर में अब पोस्ट खाली नहीं है, इसलिए राव को सरकार रायपुर मे ही पोस्ट कर दें। इसी आशंका से दिमाग लगाकर आदेश निकाला गया। बहरहाल, सरकार किसी की भी बनें, कम-से-कम फरवरी तक राव का कल्याण नहीं होने वाला।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सूबे के ब्यूरोक्रेट्स क्यों चाह रहे हैं कि भाजपा की सरकार हैट्रिक बनाएं?
2. रविंद्र चैबे और बृजमोहन अग्रवाल सरीखे नेता भी अबकी अपने क्षेत्र में ही क्यों सिमटे रह गए?

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